जयपुर. राजस्थान विधानसभा में मंगलवार को हरिदेव जोशी पत्रकारिता विश्वविद्यालय (HJU) संशोधन विधेयक पास कर दिया गया, लेकिन इससे पहले विपक्षी दल भाजपा की ओर से इस विधेयक पर जमकर सवाल उठाए (BJP questions HJU amendment bill) गए. सवाल जवाब के लम्बे चले दौर में निर्दलीय विधायक एक समय इतना उत्तेजित हो गए कि विपक्षी विधायकों से मुखातिब हो खुद को गांधी नेहरू परिवार का गुलाम बता बैठे.
संयम बोले-हां मैं हूं गांधी परिवार का गुलाम: संशोधन विधेयक पर अपनी बारी पर संयम लोढ़ा अपना पक्ष रख रहे थे. उन्होंने कहा- ये ऐसा ही है जैसे कि बिरजू महाराज या भीमसेन जोशी को ये कहा जाए कि वो डिग्री लेकर आएं. इसके साथ ही लोढ़ा ने उप नेता प्रतिपक्ष राजेन्द्र राठौड़ पर निशाना साधा और संकेतों में उनकी कही याद दिलाते हुए आक्रोश में आ गए. भावुक लोढ़ा ने कहा कि जब विचार व्यक्त किए जा रहे थे, तो कहा गया कि ये गांधी नेहरू परिवार के गुलाम हैं. हां हम हैं गुलाम और जब तक हमारे शरीर में सांस हैं, हम गुलामी करेंगे क्योंकि इस देश का निर्माण नेहरू गांधी परिवार ने किया है.
बयान के बाद बरपा हंगामा: बयान पर सदन में हंगामा हुआ. राठौड़ ने तंज कसा. कहा कि ये नई संस्कृति सही है, आपको बधाई हो गुलामी की. फिर बोले कि गुलामों को अपनी बात रखने की अनुमति नहीं दी जा सकती है. विपक्ष के शोर के बीच लोढ़ा ने राज्यपाल की चिट्ठी का जिक्र किया. सवाल उठाते हुए कहा कि 21 जनवरी को राज्यपाल के सचिव ने विश्वविद्यालय को चिट्ठी भेजी और कहा कि डॉ कैलाश सोडाणी से हरिदेव जोशी पत्रकारिता एवं जनसंपर्क को विश्वविद्यालय के कुलपति पद पर नियुक्ति के लिए खोजबीन समिति में भेज दिया जाए.
राजभवन पर साधा निशाना: संयम यहीं नहीं रुके. अपनी बात को आगे बढ़ते हुए (Sanyam Lodha On Rajbhawan Over Haridev Joshi University Issue) उन्होंने कहा- क्या ये शर्म की बात नहीं है? राजस्थान का राजभवन ये काम कर रहा है? कौन है कैलाश सोडाणी, जिसका बायोडाटा राजस्थान का राजभवन भेज रहा है. क्यों अरोड़ा ने कहा कि राजस्थान में जो पैसे लेकर कुलपतियों की नियुक्ति हो रही है, उसे रोका जाए.
भाजपा ने दिए तर्क: इससे पहले बिल पर चर्चा के दौरान जपा ने कहा कि इस बिल को लेकर राजस्थान सरकार न तो हाईकोर्ट के नोटिस को मान रहा है, न ही सुप्रीम कोर्ट के उस निर्णय को जिसमें कुलपति की पात्रता को लेकर निर्णय लिए गए और न ही यूजीसी के नियम कायदों को माना जा रहा है.
इसका नाम ओम थानवी नियुक्ति संशोधन रखें-राजेन्द्र राठौड़: उपनेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़ ने कहा कि हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के निर्णय सामने होने के बावजूद केवल एक व्यक्ति को फायदा पहुंचाने के लिए यह विधेयक लाया जा रहा है. इसका नाम हरिदेव जोशी पत्रकारिता विश्वविद्यालय संशोधन की जगह ओम थानवी नियुक्ति संशोधन विधेयक रखना चाहिए. अगर यूजीसी के नियम लागू नहीं होंगे, तो कोई भी उड़ता कबूतर अखबार का 20 साल का एक्सपीरियंस रखेगा, तो वह कुलपति बनने का पात्र हो जाएगा.
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संशोधन यूजीसी के नियमों के खिलाफ-वासुदेव देवनानी: इस बिल पर बोलते हुए पूर्व शिक्षा मंत्री वासुदेव देवनानी ने इसे विधेयक को गैर-कानूनी बताया. उन्होंने कहा कि यूजीसी के अनुसार कुलपति के लिए विश्वविद्यालय या कॉलेज में प्राचार्य के तौर पर 10 साल का अनुभव होना आवश्यक है. ऐसे में इस बिल के जरिए सरकार गैर-कानूनी काम कर रही है.
नेता प्रतिपक्ष गुलाबचंद कटारिया ने इस बिल पर बोलते हुए कहा कि सरकार जो संशोधन ला रही है उसे लाने का उसे अधिकार नहीं है. जिसे आज प्रतिष्ठा का प्रश्न बनाया जा रहा है, उसके कारण सरकार का अपमान होगा, आज नहीं होगा, तो कल होगा. कटारिया ने कहा कि मैं गारंटी के साथ कह रहा हूं कि जो आपके अधिकार क्षेत्र में नहीं है, उस काम को आप अपने बहुमत के अभिमान के तहत ला रहे हो. इससे आपकी ही नहीं बल्कि सदन की प्रतिष्ठा भी गिरेगी. यहां ऐसे लोग बैठे हैं जो कानून को समझे बिना हां और ना करते हैं.
किसी अनपढ़ ने बनाया बिल-कालीचरण: भाजपा विधायक कालीचरण सराफ ने इस विधेयक पर बोलते हुए कहा कि क्या कोई अनपढ़ व्यक्ति इसे लेकर आया है. उन्होंने कहा कि इस बिल के जरिए सरकार बताना चाहती है कि वह यूजीसी गाइडलाइन को नहीं मानेगी. सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को नहीं मानेंगे. समवर्ती विषय के मामले में कानून लाया जा रहा है, जिसका अधिकार नहीं है. उन्होंने मंत्री राजेंद्र यादव से कहा कि राजस्थान विधानसभा की परंपरा है. आपका नाम काले अक्षर में लिख दिया जाएगा, क्योंकि गवर्नर इसपर साइन नहीं करेंगे और गवर्नर ने साइन किया तो सुप्रीम कोर्ट इसे रोकेगा ऐसे में इस बिल को वापस लेकर सदन से माफी मांगे.
मंत्री राजेंद्र यादव बोले पहले मुंह काला आपका होगा उसके बाद हमारा: बिल पर जवाब देते हुए मंत्री राजेंद्र यादव ने साफ किया कि पत्रकारिता विश्वविद्यालय और अन्य विश्वविद्यालय में अंतर होता है. ऐसे में केवल ज्यादा से ज्यादा ऑप्शन मिल सकें, इसी के चलते यह विधेयक सदन में रखा गया है. इस विधेयक के जरिए यूजीसी गाइडलाइन का उल्लंघन नहीं किया गया है और सरकार यूजीसी गाइडलाइन को मानती है. उन्होंने कहा कि भोपाल और महाराष्ट्र में भी पत्रकारिता विश्वविद्यालय में यही नियम बने हुए हैं. पत्रकारिता विश्वविद्यालय क्योंकि सामान्य विश्वविद्यालय से अलग प्रकृति का है. पत्रकारिता के क्षेत्र में अनुभव बहुत मायने रखता है. इसलिए ऐसे व्यक्ति को जिसने पत्रकारिता के क्षेत्र में 20 साल तक सेवा की है और इस क्षेत्र में ख्याति प्राप्त रहा है, ऐसे व्यक्ति के अनुभव का लाभ उठाने के लिए कुलपति की योग्यता में यह अतिरिक्त योग्यता अथवा के रूप में शामिल की जा रही है. हमने यूजीसी के लिए 10 साल की योग्यता को भी रखा है.
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