जयपुर. ग्रामीण विकास मंत्रालय और भारत सरकार के प्रयासों से साल 2006 में एक ऐसी योजना ने भारत के नक्शे पर आकार लिया. जिसमें ग्रामीण भारत की तस्वीर बदलने का माद्दा है. राजस्थान में कोरोना काल के दौरान मनरेगा योजना के तहत लाखों लोगों को स्थानीय स्तर पर रोजगार मिला. इतना ही नहीं बल्कि इस योजना ने प्रवासी मजदूरों को भी उस वक्त रोजगार मुहैया कराया जब महानगरों से पलायन कर लोग अपने गांवों की तरफ लौट रहे थे.
मनरेगा योजना पर हालांकि कई बार उंगली उठाई जाती है. इस योजना को लेकर सियासत भी खूब गर्माती है. आरोप-प्रत्यारोप भी लगाए जाते हैं. स्थानीय स्तर पर भ्रष्टाचार के मामले भी उजागर होते हैं. कागजों पर योजना चलने के तथ्य भी परोसे जाते हैं. लेकिन इसमें कोई दोराय नहीं कि ये योजना आम ग्रामीण के लिए मुश्किल वक्त में वरदान साबित हुई है. यह भी हकीकत है कि इस योजना की वजह से स्थानीय स्तर पर पलायन रुका है.

कोरोना जैसी महामारी के दौरान इस योजना से वे लोग भी जुड़े जो शिक्षित बेरोजगार की श्रेणी में शुमार थे.ईटीवी भारत ने राजस्थान की राजधानी समेत मेवाड़ के चित्तौड़गढ़ और डूंगरपुर. मेवात के अलवर, शेखावाटी के सीकर, मरूभूमि नागौर में मनरेगा योजना को लेकर ग्राउंड की हकीकत जानने की कोशिश की.इस रियलिटी चेक में कई तथ्य उजागर हुए.योजना से जुड़े कई पहलू हम आपके सामने रख रहे हैं.
कोरोना काल में ग्रामीण भारत का सबसे बड़ा सहारा बनी योजना
राजधानी जयपुर से सरकार चलती है. योजनाओं को लेकर ड्राफ्ट तैयार होते हैं.मसौदे बनाए जाते हैं.सचिवालय में तथ्य जुटाए जाते हैं और सरकार आदेश-निर्देश जारी करती है. तो ग्राउंड रिपोर्ट की शुरूआत राजधानी जयपुर से करते हैं. राजधानी में हमने कोरोना काल के दौरान मनरेगा योजना के महत्व के बारे में तथ्यों को खंगाला.ऐसे में यह दावा सामने आया कि साल 2020-21 में योजना के तहत 13 से 15 लाख अतिरिक्त परिवारों को मनरेगा के तहत काम मिला. ऐसे में कोरोना से उपजे आर्थिक तंगी के दौर में मनरेगा ने कई घरों का चूल्हा बदस्तूर जलने दिया.
पढ़ें- मनरेगा, मजदूर और मजबूरी....काम मिला लेकिन पैसा इतना कम कि घर चलाना मुश्किल
पूरे राज्य की बात की जाए तो वित्तीय वर्ष 2020-21 में मनरेगा के तहत 8 लाख 85 हजार काम किए गए. मनरेगा के तहत कोरोना गाइड लाइन का भी बखूबी पालन किया गया. योजना के तहत इस वित्त वर्ष में 6958 करोड़ रूपए खर्च किए जा चुके हैं. राजस्थान में एक गांव चार काम योजना ने मनरेगा के रूपाकार में गुणवत्तापूर्ण परिवर्तन किए हैं.

हमने मनरेगा आयुक्त से जब लॉकडाउन के दौरान योजना के बारे में बात की तो पता चला कि साल 2020-21 में 70 लाख मजदूरों को काम मिलना इसी योजना के तहत संभव हो सका. ये गौरव की बात है कि कोरोना के दौर में राजस्थान मनरेगा के तहत काम देने वाला राज्य बना. ऐसे में मनरेगा को अगर गांवों के लिए वरदान कहा जाए तो अतिश्योक्ति नहीं होगी.
राजधानी जयपुर में योजना के तहत लिए गए अहम फैसले
दिसंबर के आखिरी सप्ताह में प्रदेश में सर्दी अपने चरम पर रही. सर्द हवाओं के दौर में मनरेगा को लेकर बड़ा फैसला किया गया. जिला कलेक्टर अंतर सिंह नेहरा ने ठंड को देखते हुए मनरेगा योजना के तहत काम का वक्त सुबज 8 बजे से शाम 4 बजे तक कर दिया. इससे पहले ये समय सुबह 7 से दोपहर 3 बजे तक था.साथ ही जिला कलेक्टर ने ये सुविधा भी दी कि अगर मजदूर दल पहले से निर्धारित टास्क को वक्त रहते पूरा कर लेता है. तो टास्क प्रपत्र में इसे अंकित कर.
समूह मुखिया के हस्ताक्षर करा के कार्यस्थल छोड़ सकता है. ऐसे में इस योजना के तहत न केवल ग्रामीण इलाकों में रोजगार दिया जा रहा है. बल्कि मानवीयता पक्ष को भी भूला नहीं गया है..
चित्तौड़गढ़ में प्रवासी मजदूरों का संबल बनी MGNREGA योजना
राजस्थान के मेवाड़ क्षेत्र के जिले चित्तौड़गढ में हमने मनरेगा योजना की ग्राउंड तफ्तीश की. हमने पाया कि यहां प्रवासी मजदूरों में कोरोना का खौफ अब तक कायम है. देश के अलग-अलग हिस्सों से कोरोना काल के दौरान पलायन कर के आए मजदूर अब मनरेगा योजना में ही रोजी-रोटी हासिल करके संतुष्ट हैं. वे अपने घर अपने गांव से जाना नहीं चाहते. मनरेगा के अलावा अब ये प्रवासी मजदूर कोई दूसरा काम धंधा गांव के स्तर पर ही करना चाहते हैं. रबी की फसल की कटाई में भी मजदूरों की दरकार है. ऐसे में मनरेगा योजना प्रवासी मजदूरों के लिए एक विकल्प के तौर पर उभरी है.
पढ़ें- धौलपुर : मनरेगा मेट भर्ती पर रोक लगाने की मांग को लेकर कलेक्टर को सौंपा ज्ञापन
इलाके की देवरी पंचायत में रोजाना 200 से ज्यादा मजदूरों ने मनरेगा के तहत काम किया. आंकड़े बताते हैं कि यहां मजदूरों की संख्या बढ़ रही है. प्रवासी मजदूर अब घर की आधी रोटी में ही खुश नजर आ रहे हैं. जिला परिषद के आंकड़े बताते हैं कि मार्च में हजारी प्रवासी मजदूर इलाके में लौटे, ऐसे मे मई महीने में मनरेगा मजदूरों की तादाद तीन गुना तक हो गई. दिसंबर तक मजदूरों की संख्या में उतार नहीं देखा गया.

कहने के मायने ये हैं कि दूसरे शहरों से पलायन कर अपने गांव आए मजदूर अब वापस नहीं जाना चाहते. मनरेगा योजना उनका संबल बन चुकी है. हालांकि जिला परिषद के अधिकारी मानते हैं कि मनरेगा योजना के तहत अब लोकल मजदूरों पर ही फोकस किया जा रहा है. कुल मिलाकर पलायन कर लौटे मजदूरों के लिए ये योजना जीने का आधार बनकर उभरी है. इसमें कोई दोराय नहीं है.
डूंगरपुर में वरदान बनी MGNREGA योजना
आदिवासी बहुल डूंगरपुर जिले में कोरोना काल के दौरान पलायन कर लौटे मजदूरों के लिए मनरेगा योजना वरदान साबित हुई. योजना के तहत जिले में उस वक्त जब देश लॉकडाउन के हालात से जूझ रहा था, तब चार लाख से ज्यादा मजदूरों को मनरेगा के तहत काम मिला. हालांकि अनलॉक के बाद अब योजना से महज 1 लाख मजदूर ही जुड़े हैं. अधिकतर मजदूर अपने कामों पर दूसरे शहरों को लौट गए हैं. जिले में 22 हजार से ज्यादा ऐसे मजदूर हैं जो 100 दिन के रोजगार का दायरा पूरा कर चुके हैं. सीईओ ने कहा कि इस वित्तीय वर्ष में 1 लाख लोगों को 100 दिन का पूरा काम देने का लक्ष्य तय किया गया है.
प्रदेश के दक्षिणी और आदिवासी बहुल जिले डूंगरपुर में में पंचायती राज चुनावों के बाद एक बार फिर मनरेगा योजना के तहत कामों ने रफ्तार पकड़ी. जिला कलेक्टर सुरेश कुमार ओला ने विभागीय अधिकारियों के साथ चर्चा करते हुए मनरेगा के तहत पूरा काम पूरा दाम अभियान की चर्चा की.
पढ़ें- झालावाड़: मनरेगा के तकनीकी सहायकों का अनिश्चितकालीन धरना प्रदर्शन, ये हैं मांगें
जिला कलेक्टर ने साफ किया कि मनरेगा मजदूरों को उनके काम का पूरा दाम मिले. कलेक्टर ने ये भी निर्देश दिए कि मनरेगा योजना के तहत अधिकारी किसी तरह की कोताही न बरतें. डूंगरपुर में हालांकि जिला कलेक्टर ने मनरेगा योजना के तहत कोताही नहीं बरतने के निर्देश दिए थे. लेकिन ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज विभाग के इंजीनियर और कनिष्ठ तकनीकी सहायकों की हड़ताल के चलते मनरेगा का काम-पूरा दाम अभियान प्रभावित हुआ. ऐसे में लगभग एक लाख मनरेगा मजदूरों के सामने भुगतान और नए काम की समस्या खड़े होने संकट पैदा हो गया. अधिकारियों पर निर्भरता योजना की एक कमजोरी बनकर भी सामने आई.

डूंगरपुर से ही एक ऐसी तस्वीर भी सामने आई जिसने योजना के सकारात्मक पक्ष पर कालिख पोतने का काम किया. यहां बच्चों से मनरेगा के तहत मजदूरी कराई जा रही थी. बड़ों के साथ बच्चे भी पत्थर ढोते नजर आए. ठंड में सिंचाई करते भी दिखे. मामला भाटपुर ग्राम पंचायत का था. यहां तालाब की पाल बनाने और रिंगवाल का काम मनरेगा के तहत चल रहा था. इस काम में 13 से 16 साल के 4-5 बच्चे काम करते मिले. हालांकि मीडिया टीम को देखकर बच्चे भाग खड़े हुए. बच्चे अपने माता-पिता के स्थान पर मजदूरी कर रहे थे. ऐसे में ग्राउंड रिपोर्ट में योजना की यह खामी भी उजागर हुई.

अलवर में MGNREGA में पूरा काम- पूरा दाम
अलवर में मनरेगा के तहत पूरा काम-पूरा दाम अभियान के तहत चार सप्ताह तक मॉनिटरिंग की बात होने लगी. मॉनिटरिंग के लिए अलग अधिकारी नियुक्त करने पर भी चर्चा की गई. मॉनिटरिंग का जिम्मा बीडीओ को सौंपा गया है. मनरेगा के तहत अलवर जिले को 22 लाख से ज्यादा श्रमिकों को काम देने का टारगेट मिला था. अलवर जिले ने टारगेट को क्रॉस करते हुए 40 लाख से ज्यादा मजदूरों को काम दिया.
ऐसे में टारगेट से 101 फीसदी ज्यादा काम दिया गया. यह तथ्य भी सामने आया कि मनरेगा का निर्धारित मानदेय 220 रुपए है, राजस्थान में यह रेट 165 रुपए है जबकि अलवर जिले में 183 रुपए मजदूरों को भुगतान किया जा रहा है.
नागौर में हजारों मजदूरों को मिला काम
नागौर में सितंबर महीने में जिला परिषद सीईओ ने मनरेगा योजना पर फोकस करने की बात कही. साथ ही मजदूरों को उनके हक का पूरा पैसा दिए जाने पर चर्चा की. कोरोना काल में पलायन कर लौटे मजदूरों को नागौर में काम मिला. आंकड़े बताते हैं कि 86 हजार मजदूरों को इस योजना में काम मिला. बड़े शहरों में रोजी रोटी छिनने के बाद ये मजदूर अपने गांवों में लौटे थे. ऐसे में ये योजना यहां के रहवासियों के लिए आर्थिक संबल बनी.
सितंबर महीने की बात करें तो जिले की 500 ग्राम पंचायतों में से 468 में मनरेगा के तहत मजदूरों को काम मिला. देश के दूसरे शहरों में इनमें से कोई मजदूर कैटरिंग का काम कर रहा था, तो कोई किसी दुकान पर नौकर था. मनरेगा ने इन्हें अपने ही गांव में रोजगार दिया. योजना के तहत महिलाओं को भी बड़ी तादाद में काम मिला. जुलाई के शुरुआती पखवाड़े में यहां 2 लाख मजदूर मनरेगा से जुड़े.
सीकर में सांसद ने दिए MGNREGA योजना के लिए सुझाव
सीकर में सांसद सुमेधानंद सरस्वती ने अगस्त महीने में सुझाव दिया कि मनरेगा मजदूर ग्रुप में काम करें. आशय ये था कि ग्रुप को टास्क दिया जाए तो काम जल्दी होगा. मजदूरी भी पूरी मिलेगी. सांसद ने मजदूरों को पूरी मजदूरी नहीं मिलने की शिकायत पर ऐसा सुझाव दिया था. महिला मजदूर और बुजुर्ग श्रमिकों को यह शिकायत थी कि उन्हें पूरा पैसा नहीं दिया जा रहा. सांसद ने कहा था कि वे नियमों में सहूलियत के लिए केंद्र सरकार से मांग करेंगे.

पढ़ें- बच्चों का बचपन छीनता मनरेगा, डूंगरपुर में पत्थर उठाते आए नजर
कुल मिलाकर कई खामियों के बावजूद यह कहने में कोई संकोच नहीं होना चाहिए कि राजस्थान के ग्रामीण अंचल के लिए यह योजना काफी फायदेमंद साबित हुई है. खास तौर से कोरोना काल की बात करें तो उस वक्त जब रोजगार छिन रहे थे, तब यह योजना उन घरों के लिए वरदान साबित हुई जिनमें चूल्हा जलने तक का संकट पैदा हो गया था.
किसी भी योजना को मुकम्मल करने के लिए उसकी लगातार मॉनीटरिंग होना जरूरी है. उसकी खामियों को पहचान कर उसे दुरुस्त करना प्रशासन की जिम्मेदारी है. मनरेगा योजना ग्राम्य भारत के लिए बेहतरीन योजना है. ग्राउंड रिपोर्ट में यह तथ्य सामने आया कि कुछ जगहों पर उजागर हुई खामियों पर अगर शासन-प्रशासन काम करे, तो राजस्थान के लिए इससे अच्छी योजना नहीं हो सकती.