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संवैधानिक प्रावधानों के अनुकूल आहूत हो विधानसभा सत्र : राज्यपाल

राजस्थान राजभवन की ओर से तीन बींदुओं पर परामर्श देते हुए पत्रावली सरकार को भेजी गई है. जिसमें लिखा गया है कि 25 जुलाई की रात को राजभवन को यह प्रस्ताव मिला कि राज्य सरकार 31 जुलाई को सत्र बुलाना चाहती है.

राजस्थान राजभवन, Rajasthan Raj Bhavan
राज्यपाल ने सरकार को भिजवाया जवाब
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Published : Jul 27, 2020, 6:21 PM IST

जयपुर. राजस्थान में सरकार और राजभवन के बीच लगातार टकराव चल रहा है. हालात यह हैं कि कैबिनेट के विधानसभा सत्र बुलाने के प्रस्ताव को दूसरी बार राज्यपाल ने लौटा दिया है. एक बार फिर जब राज्यपाल कलराज मिश्र ने यह प्रस्ताव लौटाया है तो उसमें लिखा गया है कि 25 जुलाई की रात को राजभवन को यह प्रस्ताव मिला कि राज्य सरकार 31 जुलाई को सत्र बुलाना चाहती है.

सरकार के प्रस्ताव में लिखा गया है कि अनुच्छेद 174 (1) में मंत्रिमंडल की सलाह मानने के लिए राज्यपाल बाध्य है और स्वयं विवेक से कोई निर्णय नहीं ले सकते हैं. इस मामले पर राज्यपाल की ओर से सर्वोच्च न्यायालय के नबाम रविया और बमांग फेलिक्स बनाम विधानसभा उपाध्यक्ष अरुणाचल प्रदेश के निर्णय के पैरा 150 से 162 का अध्ययन किया गया है. जिसमें यह सामने आया है कि संविधान के अनुच्छेद 174(1)की पालना के लिए मंत्रिमंडल की सलाह मान्य है, लेकिन परिस्थितियां विशेष हो तो ऐसी स्थिति में राज्यपाल यह सुनिश्चित करेंगे कि विधानसभा सत्र संविधान की भावना के अनुरूप बुलाया जाए या ना बुलाया जाए.

तीन बिंदुओं पर परामर्श देते हुए पत्रावली राजभवन की ओर से सरकार को भेजी गई है...

1. विधानसभा का सत्र 21 दिन का क्लियर नोटिस देकर बुलाया जाए. जिससे भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 के अंतर्गत प्राप्त मौलिक अधिकारों की मूल भावना के अंतर्गत सभी को समान अवसर की उपलब्धता सुनिश्चित हो सके अत्यंत महत्वपूर्ण सामाजिक और राजनीतिक प्रकरणों पर स्वस्थ बहस देश की शीर्ष संस्थाओं तथा सर्वोच्च न्यायाल, उच्च न्यायालय आदि की भांति ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर किए जाते हैं. ताकि सामान्य जनता को कोविड-19 के संक्रमण से बचाया जा सके.

पढ़ेंः बड़ी खबर : स्पीकर सीपी जोशी ने सुप्रीम कोर्ट से वापस ली SLP

2. यदि किसी भी परिस्थिति में विश्वास मत हासिल करने की विधानसभा सत्र में कार्रवाई की जाती है तब ऐसी परिस्थितियों में जबकि विधानसभा अध्यक्ष की ओर से स्वयं माननीय सर्वोच्च न्यायालय में विशेष अनुज्ञा याचिका दायर की गई है. विश्वास मत प्राप्त करने की संपूर्ण प्रक्रिया संसदीय कार्य विभाग के प्रमुख सचिव की उपस्थिति में की जाए और संपूर्ण कार्रवाई की वीडियो रिकार्डिंग कराई जाए.

ऐसा विश्वास मत केवल हां या ना के बटन के माध्यम से ही किया जाए. यह भी सुनिश्चित किया जाए कि ऐसी स्थिति में विश्वास मत का सजीव प्रसारण किया जाए. इस काम में सर्वोच्च न्यायालय के भारत संघ बनाम हरीश चंद्र रावत 2016 के वॉल्यूम 16 एमएससी पेज संख्या 154 प्रताप पाटिल बनाम कर्नाटक राज्य 2019 के वॉल्यूम साथ एसएससी पृष्ठ संख्या 463 व मध्य प्रदेश राज्य के प्रकरण में माननीय सर्वोच्च न्यायालय में पारित आदेशों अनुरूप थी किया जाए.

पढ़ेंः 6 विधायकों के कांग्रेस में विलय मामले में हाईकोर्ट जाएगी बसपा, BJP विधायक की याचिका पर भी सुनवाई आज

3. यह भी स्पष्ट किया जाए कि यदि विधानसभा का सत्र आहूत किया जाता है तो विधानसभा के सत्र के दौरान सामाजिक दूरी का पालन किस प्रकार कि जाएगा. क्या कोई ऐसी व्यवस्था है कि जिसमें 200 माननीय विधायक गण और 1000 से अधिक कर्मचारी अधिकारियों को एकत्रित होने पर उन्हें संक्रमण का कोई खतरा नहीं होगा और यदि उनमें से किसी को संक्रमण हुआ तो उसे अन्य में फैलने से रोका जाएगा जैसा कि मुझे ध्यान है कि राजस्थान विधानसभा में 200 विधायक हैं और 1000 से अधिक अधिकारी कर्मचारियों के साथ सामाजिक दूरी की पालना करते हुए बैठने की व्यवस्था नहीं है.

जबकि संक्रमण के प्रसार को रोकने के लिए आपदा प्रबंधन अधिनियम और भारत सरकार के दिशा निर्देशों की पालना किया जाना आवश्यक है. संविधान के अनुच्छेद 174 का निरपेक्ष अर्थ मंत्रिमंडल की आज्ञा से उल्लेखित किया गया है यह राज्यपाल का संवैधानिक दायित्व है कि ऐसी विपरीत परिस्थिति में बिना किसी विशेष आकस्मिकता के विधानसभा का सत्र आहूत कर 12 सौ से अधिक लोगों के जीवन को खतरे में डाला जाए.

पढ़ेंः मदन दिलावर की याचिका खारिज, HC ने नए सिरे से याचिका दायर करने की दी छूट

राज्यपाल संविधान में अनुच्छेद 74 के अंतर्गत उपरोक्त परामर्श देते हुए विधानसभा का सत्र आहूत किए जाने हेतु कार्यवाही किए जाने के निर्देश राज्य सरकार को दिए हैं. विधानसभा सत्र नहीं बुलाने की कोई भी मंशा राजभवन की नहीं है, राज्यपाल द्वारा संवैधानिक एवं नियमित प्रक्रिया तथा प्रावधानों के अनुरूप ही कार्य किए जाने का निश्चय दौड़ाया गया है.

जयपुर. राजस्थान में सरकार और राजभवन के बीच लगातार टकराव चल रहा है. हालात यह हैं कि कैबिनेट के विधानसभा सत्र बुलाने के प्रस्ताव को दूसरी बार राज्यपाल ने लौटा दिया है. एक बार फिर जब राज्यपाल कलराज मिश्र ने यह प्रस्ताव लौटाया है तो उसमें लिखा गया है कि 25 जुलाई की रात को राजभवन को यह प्रस्ताव मिला कि राज्य सरकार 31 जुलाई को सत्र बुलाना चाहती है.

सरकार के प्रस्ताव में लिखा गया है कि अनुच्छेद 174 (1) में मंत्रिमंडल की सलाह मानने के लिए राज्यपाल बाध्य है और स्वयं विवेक से कोई निर्णय नहीं ले सकते हैं. इस मामले पर राज्यपाल की ओर से सर्वोच्च न्यायालय के नबाम रविया और बमांग फेलिक्स बनाम विधानसभा उपाध्यक्ष अरुणाचल प्रदेश के निर्णय के पैरा 150 से 162 का अध्ययन किया गया है. जिसमें यह सामने आया है कि संविधान के अनुच्छेद 174(1)की पालना के लिए मंत्रिमंडल की सलाह मान्य है, लेकिन परिस्थितियां विशेष हो तो ऐसी स्थिति में राज्यपाल यह सुनिश्चित करेंगे कि विधानसभा सत्र संविधान की भावना के अनुरूप बुलाया जाए या ना बुलाया जाए.

तीन बिंदुओं पर परामर्श देते हुए पत्रावली राजभवन की ओर से सरकार को भेजी गई है...

1. विधानसभा का सत्र 21 दिन का क्लियर नोटिस देकर बुलाया जाए. जिससे भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 के अंतर्गत प्राप्त मौलिक अधिकारों की मूल भावना के अंतर्गत सभी को समान अवसर की उपलब्धता सुनिश्चित हो सके अत्यंत महत्वपूर्ण सामाजिक और राजनीतिक प्रकरणों पर स्वस्थ बहस देश की शीर्ष संस्थाओं तथा सर्वोच्च न्यायाल, उच्च न्यायालय आदि की भांति ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर किए जाते हैं. ताकि सामान्य जनता को कोविड-19 के संक्रमण से बचाया जा सके.

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2. यदि किसी भी परिस्थिति में विश्वास मत हासिल करने की विधानसभा सत्र में कार्रवाई की जाती है तब ऐसी परिस्थितियों में जबकि विधानसभा अध्यक्ष की ओर से स्वयं माननीय सर्वोच्च न्यायालय में विशेष अनुज्ञा याचिका दायर की गई है. विश्वास मत प्राप्त करने की संपूर्ण प्रक्रिया संसदीय कार्य विभाग के प्रमुख सचिव की उपस्थिति में की जाए और संपूर्ण कार्रवाई की वीडियो रिकार्डिंग कराई जाए.

ऐसा विश्वास मत केवल हां या ना के बटन के माध्यम से ही किया जाए. यह भी सुनिश्चित किया जाए कि ऐसी स्थिति में विश्वास मत का सजीव प्रसारण किया जाए. इस काम में सर्वोच्च न्यायालय के भारत संघ बनाम हरीश चंद्र रावत 2016 के वॉल्यूम 16 एमएससी पेज संख्या 154 प्रताप पाटिल बनाम कर्नाटक राज्य 2019 के वॉल्यूम साथ एसएससी पृष्ठ संख्या 463 व मध्य प्रदेश राज्य के प्रकरण में माननीय सर्वोच्च न्यायालय में पारित आदेशों अनुरूप थी किया जाए.

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3. यह भी स्पष्ट किया जाए कि यदि विधानसभा का सत्र आहूत किया जाता है तो विधानसभा के सत्र के दौरान सामाजिक दूरी का पालन किस प्रकार कि जाएगा. क्या कोई ऐसी व्यवस्था है कि जिसमें 200 माननीय विधायक गण और 1000 से अधिक कर्मचारी अधिकारियों को एकत्रित होने पर उन्हें संक्रमण का कोई खतरा नहीं होगा और यदि उनमें से किसी को संक्रमण हुआ तो उसे अन्य में फैलने से रोका जाएगा जैसा कि मुझे ध्यान है कि राजस्थान विधानसभा में 200 विधायक हैं और 1000 से अधिक अधिकारी कर्मचारियों के साथ सामाजिक दूरी की पालना करते हुए बैठने की व्यवस्था नहीं है.

जबकि संक्रमण के प्रसार को रोकने के लिए आपदा प्रबंधन अधिनियम और भारत सरकार के दिशा निर्देशों की पालना किया जाना आवश्यक है. संविधान के अनुच्छेद 174 का निरपेक्ष अर्थ मंत्रिमंडल की आज्ञा से उल्लेखित किया गया है यह राज्यपाल का संवैधानिक दायित्व है कि ऐसी विपरीत परिस्थिति में बिना किसी विशेष आकस्मिकता के विधानसभा का सत्र आहूत कर 12 सौ से अधिक लोगों के जीवन को खतरे में डाला जाए.

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राज्यपाल संविधान में अनुच्छेद 74 के अंतर्गत उपरोक्त परामर्श देते हुए विधानसभा का सत्र आहूत किए जाने हेतु कार्यवाही किए जाने के निर्देश राज्य सरकार को दिए हैं. विधानसभा सत्र नहीं बुलाने की कोई भी मंशा राजभवन की नहीं है, राज्यपाल द्वारा संवैधानिक एवं नियमित प्रक्रिया तथा प्रावधानों के अनुरूप ही कार्य किए जाने का निश्चय दौड़ाया गया है.

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