जयपुर. राजस्थान भाजपा में बदलते सियासी समीकरणों की आहट शुरू हो चुकी है. पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के विरोधी घनश्याम तिवाड़ी को राज्यसभा प्रत्याशी (Rajasthan BJP candidate Ghanshyam Tiwari) बनाकर भाजपा आलाकमान ने एक बड़ा संदेश राजस्थान भाजपा के नेताओं को दिया है. तिवाड़ी को प्रत्याशी बनाने में वसुंधरा राजे विरोधी धड़े की अहम भूमिका रही है. यही कारण है कि पार्टी के निर्णय के बाद राजस्थान भाजपा नेताओं के एक खेमे में खुशी तो दूसरे धड़े में गम का माहौल है.
संघ और प्रदेश नेतृत्व की रही अहम भूमिका - पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा से अलग होकर अपनी पार्टी बनाने वाले घनश्याम तिवाड़ी वो नेता हैं, जो लोकसभा चुनाव में कांग्रेस में चले गए थे, लेकिन संघ विचारधारा के चलते उनकी भाजपा में वापसी हुई. अब 2 साल बाद उन्हें पार्टी ने राज्य सभा के लिए अपना प्रत्याशी भी बना लिया. मौजूदा परिस्थितियों में पार्टी का यह निर्णय सियासत के जानकारों के लिए चौंकाने वाला हो सकता है, लेकिन इसके पीछे की कहानी कुछ अलग है. तिवाड़ी पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के विरोधी नेताओं (Vasundhara Raje vs Ghanshyam Tiwari) में शामिल हैं, लेकिन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से उनकी नजदीकी किसी से छुपी हुई नहीं है. तिवाड़ी की कांग्रेस से भाजपा में घर वापसी में भी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कुछ बड़े पदाधिकारियों की भूमिका रही थी और राज्यसभा का प्रत्याशी बनवाने में भी संघ और प्रदेश नेतृत्व की अहम भूमिका रही. भाजपा प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया हो या फिर संगठन महामंत्री चंद्रशेखर सहित अन्य नेता जो चाहते थे कि राजस्थान से पार्टी का वही व्यक्ति राज्य सभा में पहुंचे, जो दिल्ली पहुंचकर प्रदेश नेतृत्व और संगठन की पैरवी कर सके. इसे दूसरे शब्दों में कहें तो वो नेता दिल्ली न पहुंचे जो वसुंधरा राजे खेमे के करीब हो और इस काम में पार्टी का एक धड़ा सफल भी रहा.
केंद्र ने रखी प्रदेश नेतृत्व की बात, इसके ये सियासी मायने- घनश्याम तिवाड़ी को प्रत्याशी बनाकर (Rajasthan Rajya sabha Election) भाजपा आलाकमान ने सीधे तौर पर प्रदेश नेतृत्व से जुड़े एक बड़े खेमे की मजबूती का संदेश दिया है. अपने इस निर्णय से पार्टी आलाकमान ने यह भी संकेत दिए हैं कि अब राजस्थान में काफी कुछ सियासी समीकरण (Equations changing in BJP Rajasthan) बदलने वाले हैं. मतलब साफ है कि घनश्याम तिवाड़ी जिन नेताओं की आंख के कांटा बने रहे, अब उनकी पार्टी में ज्यादा कुछ भूमिका रहने की संभावना कम ही है.
74 वर्ष के तिवाड़ी को प्रत्याशी बनाकर दिया ये संदेश - हाल ही में एक चर्चा शुरू हुई थी कि भाजपा 70 साल से अधिक उम्र वालों को इस बार टिकट नहीं देगी, लेकिन राज्यसभा में 74 वर्ष के घनश्याम तिवाड़ी को प्रत्याशी बनाकर इन सभी चर्चाओं को पार्टी ने सिरे से समाप्त कर दिया. घनश्याम तिवाड़ी पिछले विधानसभा चुनाव में अपनी भारत वाहिनी नाम से पार्टी बना चुके हैं और राजस्थान में चुनाव लड़ चुके हैं. इसके बाद लोकसभा चुनाव में घनश्याम तिवाड़ी ने कांग्रेस पार्टी भी जॉइन की और राहुल गांधी के साथ मंच साझा किया, लेकिन घनश्याम तिवाड़ी की विचारधारा कांग्रेस से मेल नहीं खाई और उसकी आत्मग्लानि उन्हें हमेशा रही. तिवाड़ी चाहते थे कि जो गलती उनसे हुई है उसे भाजपा माफ कर वापस उन्हें गले लगाए और संघ की मदद से ऐसा संभव भी हुआ. इसमें प्रदेश नेतृत्व का भी अहम योगदान था. अब घनश्याम तिवाड़ी की राजनीति के अंतिम पड़ाव में भी भाजपा ने उन्हें राज्यसभा भेजकर एक नया सियासी संकेत भी दिया है. घनश्याम तिवाड़ी का वसुंधरा राजे से 36 का आंकड़ा है लिहाजा पार्टी के निर्णय में संभवतः उनकी सहमति नहीं होगी, लेकिन मौजूदा परिस्थितियों में वसुंधरा राजे इसका विरोध भी नहीं कर सकती थी. यही कारण है की प्रत्याशी घोषित होने के एक दिन पहले ही वसुंधरा राजे ने फोन पर घनश्याम तिवाड़ी को भी शुभकामनाएं अग्रिम रूप से दे दी थी.
मजबूत हुआ राजस्थान में वसुंधरा विरोधी खेमा लेकिन लाहोटी ने ली राहत की सांस - घनश्याम तिवाड़ी को राज्यसभा प्रत्याशी बनाए जाने के बाद यह तो साफ हो गया कि राजस्थान में वसुंधरा राजे विरोधी खेमा (Anti Vasundhara camp in Rajasthan) अब और मजबूत होगा, लेकिन वुसंधरा खेमे में ही शामिल माने जाने वाले सांगानेर से विधायक अशोक लाहोटी ने जरूर राहत की सांस ली होगी. घनश्याम तिवाड़ी के भाजपा में वापस आने के बाद ये संभावना बन रही थी कि तिवाड़ी सांगानेर सीट पर विधानसभा चुनाव की टिकट की दावेदारी करें लेकिन अब तिवाड़ी के राज्यसभा जाने के बाद अशोक लाहोटी की यह परेशानी तो दूर हो गई. मौजूदा स्थिति में इस बात की संभावनाएं भी बढ़ गई हैं कि आने वाले दिनों में राजस्थान के कई भाजपा नेता अपना खेमा बदलेंगे, मतलब बदलते समीकरण का एक इफेक्ट यह भी देखने को मिल सकता है.
यह है घनश्याम तिवाड़ी का राजनीतिक सफरनामा- घनश्याम तिवाड़ी भाजपा के वो नेता हैं, जिसने आपातकाल के दौरान जेल में यातना भी सही तो छह बार जीतकर विधानसभा में पहुंचने का मुकाम भी हासिल किया. तिवाड़ी 1980 में पहली बार सीकर से विधायक बने. वे 1985 से 1998 तक सीकर से विधायक रहे और 1993 से 1998 तक चौमूं से विधायक बने. घनश्याम तिवाड़ी जयपुर के सांगानेर विधानसभा क्षेत्र से तीन बार विधायक रहे. घनश्याम तिवाड़ी भैरों सिंह शेखावत सरकार में ऊर्जा मंत्री भी रहे तो, वहीं वसुंधरा राजे सरकार में शिक्षा मंत्री रहने का मौका भी मिला. घनश्याम तिवाड़ी के नाम साल 2013 में सबसे ज्यादा वोटों से जीतने वाले विधायक का ताज भी रहा. हालांकि वसुंधरा राजे से खिलाफत के चलते साल 2018 में उन्होंने भाजपा छोड़ भारत वाहिनी पार्टी बनाई. वे खुद सांगानेर से चुनाव नहीं जीत पाए और उनकी जमानत जब्त हुई. साल 2019 में घनश्याम तिवाड़ी ने राहुल गांधी की मौजूदगी में कांग्रेस जॉइन की और रामलीला मैदान में हुए एक कार्यक्रम में राहुल गांधी के साथ मंच भी साझा किया. संघ विचारधारा के चलते वह कांग्रेस जॉइन करने के बाद भी कांग्रेस पार्टी से दूर ही रहे और कांग्रेस के किसी भी कार्यक्रम में नजर नहीं आए. अपनी इस गलती की आत्मग्लानि उन्हें थी. यही कारण है कि संघ की मदद से उनकी भाजपा में वापसी हुई और अब उन्हें राज्यसभा का प्रत्याशी भी भाजपा ने ही बनाया है.