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मंत्रालयिक कर्मचारी महासंघ में एकता का अभाव, सरकार से सिर्फ मिलती है आश्वासन की चाशनी: मनोज सक्सेना - राजस्थान राज्य मंत्रालयिक कर्मचारी महासंघ

कर्मचारियों के हितों के लिए बनाया गया राजस्थान मंत्रालयिक कर्मचारी महासंघ (Rajasthan Ministerial Employees Federation) 3 धड़ों में बंट चुका है. कर्मचारी नेताओं की परस्पर फूट का फायदा राज्य सरकारों ने खूब उठाया.आलम यह है कि राजधानी जयपुर में अपनी मांगों के लिए धरना दे रहे विभिन्न कर्मचारी संगठनों (staff organization) की सरकार सुध नहीं ले रही है. सरकार की अनदेखी पर कर्मचारी नेता एकजुट होने की बात करने लगे हैं.

Jaipur News , Rajasthan News
मंत्रालयिक कर्मचारी महासंघ
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Published : Oct 29, 2021, 2:11 PM IST

Updated : Oct 29, 2021, 3:46 PM IST

जयपुर. प्रदेश के कर्मचारियों के हितों के लिए बना राजस्थान मंत्रालयिक कर्मचारी महासंघ (Rajasthan Ministerial Employees Federation) अतीत में 3 धड़ों में बंट चुका है. इसका खामियाजा 70 हजार मंत्रालयिक कर्मचारी भुगत रहे हैं. तीन धड़ों के नेताओं की मांगों पर सुनवाई पर सरकार सिर्फ आश्वासन देती है. एकजुटता के अभाव और कर्मचारी नेताओं की परस्पर खींचतान की वजह से कर्मचारियों की मांगे पूरी नहीं पाती. सरकारों ने कर्मचारी नेताओं की फूट का खूब फायदा उठाया. राजधानी जयपुर (Jaipur) में अलग-अलग धड़ों के नेता राज्य सरकार के खिलाफ आंदोलनरत है. लेकिन सरकार पर इसका कोई असर नहीं है.

पिछली भाजपा सरकार में राजस्थान राज्य मंत्रालयिक कर्मचारी महासंघ के प्रदेश अध्यक्ष मनोज सक्सेना के नेतृत्व में महापड़ाव डाला गया था. मांगे पूरी नहीं होने के कारण महासंघ में असंतोष उभर कर सामने आया. इसके बाद महासंघ में खीचतान शुरू हो गई. इस खीचतान का अंत महासंघ के दो धड़े के रूप में सामने आया.

कर्मचारी नेता मनोज सक्सेना

एक गुट के प्रदेश अध्यक्ष मनोज सक्सेना रहे तो दूसरे गुट के प्रदेश अध्यक्ष राज सिंह चौधरी को बनाया गया. गजेंद्र सिंह राठौड़ के नेतृत्व में राजस्थान राज्य मंत्रालयिक कर्मचारी संघर्ष समिति का गठन किया. अब यह तीनों ही संगठन अपनी मांगे सरकार के सामने रख रहे हैं. सबकी मांगे एक जैसी है. महासंघ के टुकड़े होने से संगठन कमजोर हो गया.

पढ़ें. बड़ा फेरबदल: गहलोत सरकार ने 35 आरएएस अफसरों के किए तबादले

पिछली 2 अक्टूबर से शहीद स्मारक पर राजस्थान राज्य मंत्रालयिक कर्मचारी महासंघ के प्रदेश अध्यक्ष मनोज सक्सेना (President Manoj Saxena) का आंदोलन चल रहा है. महापड़ाव (Mahapadav in Jaipur) में मंत्रालय कर्मचारियों की संख्या भी कम है.मनोज सक्सेना ने कहा कि यदि तीनों ही संगठन एक साथ मिलकर सरकार के खिलाफ लड़ाई लड़े तो ज्यादा बेहतर रहेगा. मनोज सक्सेना ने अन्य संगठनों को भी अपने साथ आंदोलन में शामिल होने के लिए आमंत्रित भी किया.

संगठन के कमजोर होने से कर्मचारियों को नुकसान

राजस्थान राज्य मंत्रालयिक कर्मचारी संघर्ष समिति (Rajasthan State Ministerial Employees Conflict Committee) के संयोजक गजेंद्र सिंह राठौड़ ने कहा कि इससे पहले बने हुए संगठन 7 साल में कोई आंदोलन नहीं कर पाए. इसलिए कई संगठनों को मिलाकर संघर्ष समिति गठित की गई. संघर्ष समिति की वजह से मंत्रालयिक कर्मचारी जागे हैं. सरकार से मांगे मनवाने के लिए आगे आए. उन्होंने कहा कि जब संगठन के टुकड़े होते हैं तो इसका नुकसान कर्मचारियों को होता है.

पढ़ें. राजस्थान हाईकोर्ट ने नेटबंदी के खिलाफ दायर याचिकाओं को सुनवाई के लिए सीजे को भेजा, राज्य सरकार से मांगा जवाब

संघर्ष समिति में कई लोग आए लेकिन अपने पद पाने की लालसा की वजह से समिति छोड़ कर चले गए. हम संघर्ष समिति के बैनर तले अपनी मांगों को लेकर सरकार के सामने चुनौती पेश कर रहे हैं. गजेंद्र सिंह राठौड़ ने इस बात पर सहमति जताई एकजुट होकर मजबूती के साथ हम सरकार के सामने अपनी मांगें रख पाएंगे. सरकार भी सुनवाई करेगी.

सिर्फ मिलता है आश्वासन

राजसिंह चौधरी गुट भी अपने संगठन के माध्यम से सरकार के सामने मंत्रालयिक कर्मचारियों की मांगों को रख रहे हैं. सितंबर में राज सिंह चौधरी गुट ने महारैली और विधानसभा (Assembly) घेराव की चेतावनी दी थी. लेकिन उससे पहले ही इनकी मुख्य सचिव निरंजन आर्य (Chief Secretary Niranjan Arya) से वार्ता हुई और कई बिंदुओं पर सहमति बनी है. सहमति बनने के बाद मंत्रालयिक कर्मचारियों ने महारैली और विधानसभा घेराव को स्थगित कर दिया था.

ये है कर्मचारियों की मांगें

प्रदेश के मंत्रालयिक कर्मचारी ग्रेड पे 3600 करने, सचिवालय के समान वेतन भत्ते देने, 30 अक्टूबर 2017 का वेतन कटौती आदेश निरस्त करने, एआरडी लिंक ओपन करवाने, निदेशालय का गठन करने, पंचायतराज में उच्च पदों का आवंटन पदोन्नति के स्वीकृत 26000 पदों में से शेष रहे 11 हजार पद देने, पदोन्नति में अनुभव में छूट देने के लिए एक बार ही शीथलता देने, कनिष्ठ सहायक की न्यूनतम योग्यता स्नातक करने, नवीन पेंशन योजना के स्थान पर पुरानी पेंशन योजना लागू करने सहित अन्य मांगों को लेकर संघर्ष कर रहे हैं.

जयपुर. प्रदेश के कर्मचारियों के हितों के लिए बना राजस्थान मंत्रालयिक कर्मचारी महासंघ (Rajasthan Ministerial Employees Federation) अतीत में 3 धड़ों में बंट चुका है. इसका खामियाजा 70 हजार मंत्रालयिक कर्मचारी भुगत रहे हैं. तीन धड़ों के नेताओं की मांगों पर सुनवाई पर सरकार सिर्फ आश्वासन देती है. एकजुटता के अभाव और कर्मचारी नेताओं की परस्पर खींचतान की वजह से कर्मचारियों की मांगे पूरी नहीं पाती. सरकारों ने कर्मचारी नेताओं की फूट का खूब फायदा उठाया. राजधानी जयपुर (Jaipur) में अलग-अलग धड़ों के नेता राज्य सरकार के खिलाफ आंदोलनरत है. लेकिन सरकार पर इसका कोई असर नहीं है.

पिछली भाजपा सरकार में राजस्थान राज्य मंत्रालयिक कर्मचारी महासंघ के प्रदेश अध्यक्ष मनोज सक्सेना के नेतृत्व में महापड़ाव डाला गया था. मांगे पूरी नहीं होने के कारण महासंघ में असंतोष उभर कर सामने आया. इसके बाद महासंघ में खीचतान शुरू हो गई. इस खीचतान का अंत महासंघ के दो धड़े के रूप में सामने आया.

कर्मचारी नेता मनोज सक्सेना

एक गुट के प्रदेश अध्यक्ष मनोज सक्सेना रहे तो दूसरे गुट के प्रदेश अध्यक्ष राज सिंह चौधरी को बनाया गया. गजेंद्र सिंह राठौड़ के नेतृत्व में राजस्थान राज्य मंत्रालयिक कर्मचारी संघर्ष समिति का गठन किया. अब यह तीनों ही संगठन अपनी मांगे सरकार के सामने रख रहे हैं. सबकी मांगे एक जैसी है. महासंघ के टुकड़े होने से संगठन कमजोर हो गया.

पढ़ें. बड़ा फेरबदल: गहलोत सरकार ने 35 आरएएस अफसरों के किए तबादले

पिछली 2 अक्टूबर से शहीद स्मारक पर राजस्थान राज्य मंत्रालयिक कर्मचारी महासंघ के प्रदेश अध्यक्ष मनोज सक्सेना (President Manoj Saxena) का आंदोलन चल रहा है. महापड़ाव (Mahapadav in Jaipur) में मंत्रालय कर्मचारियों की संख्या भी कम है.मनोज सक्सेना ने कहा कि यदि तीनों ही संगठन एक साथ मिलकर सरकार के खिलाफ लड़ाई लड़े तो ज्यादा बेहतर रहेगा. मनोज सक्सेना ने अन्य संगठनों को भी अपने साथ आंदोलन में शामिल होने के लिए आमंत्रित भी किया.

संगठन के कमजोर होने से कर्मचारियों को नुकसान

राजस्थान राज्य मंत्रालयिक कर्मचारी संघर्ष समिति (Rajasthan State Ministerial Employees Conflict Committee) के संयोजक गजेंद्र सिंह राठौड़ ने कहा कि इससे पहले बने हुए संगठन 7 साल में कोई आंदोलन नहीं कर पाए. इसलिए कई संगठनों को मिलाकर संघर्ष समिति गठित की गई. संघर्ष समिति की वजह से मंत्रालयिक कर्मचारी जागे हैं. सरकार से मांगे मनवाने के लिए आगे आए. उन्होंने कहा कि जब संगठन के टुकड़े होते हैं तो इसका नुकसान कर्मचारियों को होता है.

पढ़ें. राजस्थान हाईकोर्ट ने नेटबंदी के खिलाफ दायर याचिकाओं को सुनवाई के लिए सीजे को भेजा, राज्य सरकार से मांगा जवाब

संघर्ष समिति में कई लोग आए लेकिन अपने पद पाने की लालसा की वजह से समिति छोड़ कर चले गए. हम संघर्ष समिति के बैनर तले अपनी मांगों को लेकर सरकार के सामने चुनौती पेश कर रहे हैं. गजेंद्र सिंह राठौड़ ने इस बात पर सहमति जताई एकजुट होकर मजबूती के साथ हम सरकार के सामने अपनी मांगें रख पाएंगे. सरकार भी सुनवाई करेगी.

सिर्फ मिलता है आश्वासन

राजसिंह चौधरी गुट भी अपने संगठन के माध्यम से सरकार के सामने मंत्रालयिक कर्मचारियों की मांगों को रख रहे हैं. सितंबर में राज सिंह चौधरी गुट ने महारैली और विधानसभा (Assembly) घेराव की चेतावनी दी थी. लेकिन उससे पहले ही इनकी मुख्य सचिव निरंजन आर्य (Chief Secretary Niranjan Arya) से वार्ता हुई और कई बिंदुओं पर सहमति बनी है. सहमति बनने के बाद मंत्रालयिक कर्मचारियों ने महारैली और विधानसभा घेराव को स्थगित कर दिया था.

ये है कर्मचारियों की मांगें

प्रदेश के मंत्रालयिक कर्मचारी ग्रेड पे 3600 करने, सचिवालय के समान वेतन भत्ते देने, 30 अक्टूबर 2017 का वेतन कटौती आदेश निरस्त करने, एआरडी लिंक ओपन करवाने, निदेशालय का गठन करने, पंचायतराज में उच्च पदों का आवंटन पदोन्नति के स्वीकृत 26000 पदों में से शेष रहे 11 हजार पद देने, पदोन्नति में अनुभव में छूट देने के लिए एक बार ही शीथलता देने, कनिष्ठ सहायक की न्यूनतम योग्यता स्नातक करने, नवीन पेंशन योजना के स्थान पर पुरानी पेंशन योजना लागू करने सहित अन्य मांगों को लेकर संघर्ष कर रहे हैं.

Last Updated : Oct 29, 2021, 3:46 PM IST
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