जयपुर. कोरोना वायरस के संक्रमण से बचाव के लिए देश में लॉकडाउन चल रहा है. इस लॉकडाउन ने अगर सबसे ज्यादा प्रभावित किसी को किया है, तो वह है देश का किसान. हालांकि अभी किसान पूरे तरीके से लॉकडाउन का पालन भी कर रहा है. लेकिन उसे जो नुकसान इस दौरान हुआ है, उसकी भरपाई कर पाना मुश्किल होगा.
हालात यह है कि जहां एक ओर लॉकडाउन के दौरान शहरों में लोग परिवार के साथ समय बिता कर किसी तरीके से अपना समय निकाल रहे हैं. लेकिन खेती करने वाले किसानों का कहना है कि अगर वह बाहर नहीं जाएंगे, तो रोजमर्रा की जरूरत के सामान भी उन्हें नहीं मिलेंगे.
मंड़ी तक नहीं पहुंचा पा रहे सब्जी और अनाज
वो साफ कहते हैं कि शाम 7 बजे से लेकर सुबह 8 बजे तक का समय वह परिवार को ही देते हैं. किसानों के सामने चिंता का विषय यह है कि उनकी फसल पहले तो मंडी तक पहुंच ही नहीं रही और किसी तरीके से अगर वह पहुंचाते भी हैं, तो फसल की खरीद ओने पौने दामों पर हो रही है.
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किसानों का मानना है कि अगर यह लॉकडाउन 14 अप्रैल से आगे खींचता है, तो उनकी सब्जी की अगली फसल भी खराब होने की संभावना बन जाएगी. ऐसे में फसल के लिए बैंक के कर्ज को वो कैसे चुकाएंगे. इसे लेकर चिंता की लकीरें किसानों के चेहरों पर साफ तौर पर दिखाई दे रही है. आइए आपको बताते हैं किसानों के सामने क्या-क्या समस्याएं आ रही हैं.
सब्जी के दाम गिरे हुए
बात करें सब्जी की फसल की तो किसानों के खेत में बैंगन, हरी मिर्च, टमाटर, हरी प्याज, पत्ता गोभी की फसल तैयार है. अब मुश्किल किसानों के सामने ही आ गई है कि इस तैयार फसल को अगर वह तोड़ते नहीं है, तो वह खेत में ही खराब होना शुरू हो चुकी है और अगर तोड़ भी लेते हैं तो उसे मंडी तक कैसे पहुंचाएं, क्योंकि लॉकडाउन के चलते आवाजाही के साधन बंद है.
किसी तरह अगर सुबह जल्दी मंडी में जाकर वह फसल को बेचने का प्रयास भी करते हैं, तो अब भाव गिर कर सब्जियों के आधे रह गए हैं. ऐसे में किसानों को चिंता है की अगर यह लॉकडाउन 14 अप्रैल से आगे खिंच गया, तो फिर फसल के लिए ली गई केसीसी का भुगतान वह कैसे करेंगे और यह हालात उनकी सब्जियों की फसल की ही नहीं है, बल्कि गेहूं की फसल के भी बने हुए हैं.
पशुओं का दूध हो रहा खराब
किसान केवल फसल आधारित ही नहीं होते हैं, बल्कि वह हमेशा एक बड़ा पशु धन भी अपने पास रखते हैं और दूध की सप्लाई भी वह डेयरी और अन्य लोगों को सीधे करते हैं. जो उनकी कमाई का एक प्रमुख साधन है. लेकिन जब से लॉक डाउन हुआ है, किसानों के दूध की सप्लाई भी रुक गई है. किसानों का कहना है कि न तो डेयरी की ओर से उनका दूध उठाया जा रहा है और न ही लॉकडाउन के चलते उनका दूध वो ले जा रहे है, जो सीधा लोगों को सप्लाई करते हैं.
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किसानों को लॉकडाउन के दौरान यह भी दिक्कत आ रही है कि उनके परिवार के कुछ सदस्य बाहर जाकर कमाते भी थे और रोज-रोज शाम को जब अपने घर लौटते तो रोजाना की आवश्यक चीजों को खरीद भी लाते थे. लेकिन अब क्योंकि लॉकडाउन है. ऐसे में वह अपने गांव से बाहर नहीं निकल पा रहे हैं और ज्यादातर वह गांव जो ढाणियों के रूप में बसे हुए हैं, वहां रोजमर्रा के साधन भी उपलब्ध नहीं है. ऐसे में उनके सामने रोजमर्रा के सामान का भी संकट खड़ा हो गया है.
लॉकडाउन ने बहुत कुछ बदल दिया
किसान बताते हैं कि शहर के लोग भले ही लॉकडाउन को अपने परिवार के साथ समय गुजारने के लिए बेहतर मानते हो. लेकिन उनके परिवार के जो सदस्य शाम 7 बजे से सुबह 8 बजे तक अपने घरों पर रहते थे, उनके लिए वहीं पर्याप्त है और गांव के लोग वैसे भी अपने परिवार के साथ ही समय गुजारते हैं. ऐसे में उनके लिए जरूरी बाहर जाना है ना कि परिवार के साथ रहना.