जयपुर. जयपुर के हरेक कण में इतिहास समाहित है. मकर संक्रांति का जिक्र आते ही चटशाला और पंचाग पाठन का जिक्र चल पड़ता है. पुराने लोग या फिर इतिहासकार बढ़े गर्व से उस दौर की बात करते हैं. अनेक जिज्ञासाओं को शांत करते हैं और कई सवाल मन में छोड़े जाते हैं.
राजधानी का पुराना इतिहास यदि खंगाला जाए तो चटशाला और पंचांग पाठन का भी जिक्र आता है. चटशालाओं की परंपरा कैसे शुरू हुई, कौन इसमें शिक्षा लेने आते थे- ज्ञानी ध्यानी सब कुछ बताते हैं.
चटशाला का इतिहास (History Of Jaipur Chatshalas)
इतिहासकार देवेंद्र कुमार भगत के अनुसार चटशाला छोटी पाठशालाओं का एक रूप है. जिसमें अध्यापन का कार्य जयपुर के जोशी परिवार के ब्राह्मण किया करते थे. छोटे बच्चों को बेसिक एजुकेशन बाहरखड़ी, पाटी-पेंसिल से लिखना सिखाते थे. मकर संक्रांति पर विशेषकर नए छात्र जोड़े जाते थे और छात्रों को नए पाटी पेंसिल दिए जाते थे.
रामगंज बाजार में कांवटियों का खुर्रा में जोशी परिवार चटशालाएं चलाया करता था. इसी तरह पुरानी बस्ती में बारह भाइयों का चौराहा पर पंडित जटाशंकर तिवाड़ी, अमरु जोशी चटशालाएं संचालित करते थे. सवाई मानसिंह द्वितीय के अंतिम दौर तक चटशालाएं चलाई गई. इसके लिए राज परिवार की ओर से अनुदान दिया जाता था. महाराजा के जन्मदिन पर निकलने वाले पैसे से ये अनुदान दिया जाता था. यहां जनाना ड्योढ़ी की दाइयों तक को शिक्षा देने का काम जोशियों की ओर से किया गया. इन चटशालाओं के रूप में पारंपरिक गुरुकुल पद्धति जयपुर में जीवित थी.
पढ़ें- मकर संक्रांति 2022 : सूर्य उत्तरायण होकर मकर राशि में करेंगे गोचर, ये उपाय कर लेंगे तो आत्मबल होगा मजबूत
पंचांग पाठन की परम्परा (Tradition Of Panchang Pathan In Jaipur)
जयपुर के इतिहास में साक्ष्य मिलते हैं कि मकर संक्रांति पर पंचांग पाठन का भी अपना अलग महत्व था. इस संबंध में देवेंद्र कुमार भगत ने बताया कि जयपुर एक ऐसा नगर है जिसमें ज्योतिष, खगोल शास्त्र का बड़ा महत्व है. सवाई जयसिंह के राज ज्योतिषी पंडित केवल राम ने आमेर से राम पंचांग निकाला था. बाद में जब जयपुर की बसावट हुई तब यही पंचांग जय विनोदी पंचांग के नाम से जाना जाने लगा. जो आज भी प्रकाशित होता है. इसके अलावा बंशीधर जी का पंचांग, जयपुर पंचांग का भी पाठन हुआ करता था.
मकर संक्रांति और पंचाग (Makarsankranti And Panchang Reading In Jaipur)
मकर संक्रांति पर इन पंचांगों को आम जनता के लिए प्रोड्यूस किया जाता था और बाकायदा जयपुर की गली-मोहल्लों में इन्हें पढ़ा जाता था. पंचांग के जरिए ये पता लगाया जाता था कि साल कैसा जाएगा, अकाल-भुखमरी जैसी स्थिति तो नहीं आएगी, कृषि कैसी होगी? आम लोगों में ये धारणा थी कि पंचांग के जरिए पंडित जी जो भी बोलेंगे वही सत्य और अच्छा होगा.
पढ़ें- कोरोना के कारण लगातार दूसरी बार मकर संक्रांति पर नहीं होगा Kite Festival का आयोजन
उत्तरायण पर खास
मकर संक्रांति पर सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है, इसी दिन सूर्य उत्तरायण होता है और उत्तरायण का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है. सभी शुभ कार्य सौर गणना के हिसाब से उत्तरायण में ही होते हैं. महाभारत में भीष्म पितामह ने भी उत्तरायण होने तक अपने प्राण रोके रखे थे. इसी वजह से मकर सक्रांति को पंचांग पाठन के लिए चुना गया.कुल मिलाकर पंचांग पाठन का सीधा संबंध जयपुर के अगले एक साल के भविष्य वाचन पर केन्द्रित था.
दाली बाटी चूरमा का प्रचलन
इसके साथ ही मकर संक्रांति पर जयपुर के घरों में दाल-बाटी-चूरमा का भी प्रचलन रहा है. इसी दिन बहन बेटियों को भोजन के लिए आमंत्रित करना, दान पुण्य के कार्य करना मकर सक्रांति के साथ जुड़ा हुआ है. कुल मिलाकर जयपुर में मकर का एक अपना सवर्णिम इतिहास रहा है. पंचाग पाठन का और चटशालाओं का. इतिहास जो रोचक है, आशाओं से परिपूर्ण है और खुशियों का पैगाम लाता है. एक और खास बात मकर संक्रांति पर ही चटशालाओं में छात्र-छात्राएं उपस्थित होकर संकीर्तन भी किया करते थे.