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SPECIAL : तमाम जद्दोजहद के बाद भी 'दो जून की रोटी' नसीब नहीं...तस्वीर फुटपाथ पर जिंदगी की - poverty in corona era

जन अनुशासन पखवाड़ा और लॉकडाउन के बाद बुधवार को अनलॉक के पहले चरण में लोग अपने काम-धंधे पर लौटते दिखे. लेकिन एक तबका ऐसा भी है जिसे दो जून की रोटी के लिए जद्दोजहद करनी पड़ती है. सरकार को फुटपाथ पर जिंदगी गुजार रहे लोगों की भी सुध लेनी चाहिए.

poverty in rajasthan
दो जून की रोटी की जद्दोजहद
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Published : Jun 2, 2021, 5:13 PM IST

जयपुर. दो जून की रोटी मिलना कितना मुश्किल होता है, जेएलएन रोड पर यूनिवर्सिटी की बाउंड्री पर तिरपाल के नीचे जिंदगी गुजर-बसर कर रहे परिवारों को देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है. यहां करीब 13 परिवार सर्दी, गर्मी, बरसात हर मौसम में अपने सीजनल काम के साथ जीवन यापन करते हैं. लेकिन महामारी के इस दौर में लॉकडाउन लगा तो इनका काम धंधा भी चौपट हो गया.

दो जून की रोटी की जद्दोजहद

30 साल से तिरपाल ही छत

इन्हीं परिवारों में से एक के सदस्य रमेश ने बताया कि करीब 30 साल से तिरपाल ही उनकी छत है. यहां कभी मच्छरदानी, कभी टैडीबियर तो कभी मूर्ति बनाकर बेचकर वे परिवार पालते हैं. राज्य सरकार की जनकल्याणकारी योजनाओं में भी कई बार भाग्य आजमाया. लेकिन नसीब नहीं चेता. आलम ये है कि कोरोना काल में ग्राहक न के बराबर पहुंच रहे हैं. बमुश्किल इक्का-दुक्का आइटम बिकता है. उसी से गुजारा चल रहा है. हां, पुलिस प्रशासन ने जरूर सूखा राशन पहुंचाया है.

poverty in rajasthan
सवाल दो जून की रोटी का

निवाले का सवाल

रमेश के 8 साल के बच्चे ने बताया कि अभी स्कूल बंद है. ऐसे में वह भी अपने पिता के साथ सामान बेचने में हाथ बंटाता है. दो जून की रोटी के सवाल पर मासूम बच्चे के चेहरे से आखिर दर्द छलक ही पड़ा. उसने बताया कि कभी पूरे दिन में एक बार निवाला पेट में जाता है, तो कभी दो बार मिल जाता है.

पढ़ें- लापरवाही! टोंक में भूख हड़ताल पर बैठे 17 बंदियों की तबीयत बिगड़ी

भूखे पेट मुश्किल से रात गुजरती है

यहीं तिरपाल के पास अपने पोते को गोद में खिला रही एक बुजुर्ग महिला ने बताया कि लॉकडाउन में कोई सामान खरीदने नहीं आता. कोई आटा दाल दे जाता है, तो खा लेते हैं. वरना भूखे पेट मुश्किल से रात गुजरती है. बारिश आए तो कभी भीग जाते हैं और गर्मी में पसीने में नहा लेते हैं. कोई घर नहीं है. फुटपाथ का ही आसरा है. वहां से भी कभी-कभी भगा दिया जाता है. कभी कभी बच्चों के लिए दूध तक नहीं मिल पाता.

poverty in rajasthan
बरसों से तिरपाल ही छत

बहरहाल, रमेश और उनके परिवार जैसे राजधानी में न जाने कितने ही ऐसे लोग हैं, जो रोज कमाकर दो जून की रोटी का इंतजाम कर पाते थे. लेकिन फिलहाल ये परिवार दूसरों की रहमत पर पल रहे हैं. ये लोग इंतजार कर रहे हैं कि आखिर कब सरकार इन पर राहत की बूंदें बरसाएगी.

जयपुर. दो जून की रोटी मिलना कितना मुश्किल होता है, जेएलएन रोड पर यूनिवर्सिटी की बाउंड्री पर तिरपाल के नीचे जिंदगी गुजर-बसर कर रहे परिवारों को देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है. यहां करीब 13 परिवार सर्दी, गर्मी, बरसात हर मौसम में अपने सीजनल काम के साथ जीवन यापन करते हैं. लेकिन महामारी के इस दौर में लॉकडाउन लगा तो इनका काम धंधा भी चौपट हो गया.

दो जून की रोटी की जद्दोजहद

30 साल से तिरपाल ही छत

इन्हीं परिवारों में से एक के सदस्य रमेश ने बताया कि करीब 30 साल से तिरपाल ही उनकी छत है. यहां कभी मच्छरदानी, कभी टैडीबियर तो कभी मूर्ति बनाकर बेचकर वे परिवार पालते हैं. राज्य सरकार की जनकल्याणकारी योजनाओं में भी कई बार भाग्य आजमाया. लेकिन नसीब नहीं चेता. आलम ये है कि कोरोना काल में ग्राहक न के बराबर पहुंच रहे हैं. बमुश्किल इक्का-दुक्का आइटम बिकता है. उसी से गुजारा चल रहा है. हां, पुलिस प्रशासन ने जरूर सूखा राशन पहुंचाया है.

poverty in rajasthan
सवाल दो जून की रोटी का

निवाले का सवाल

रमेश के 8 साल के बच्चे ने बताया कि अभी स्कूल बंद है. ऐसे में वह भी अपने पिता के साथ सामान बेचने में हाथ बंटाता है. दो जून की रोटी के सवाल पर मासूम बच्चे के चेहरे से आखिर दर्द छलक ही पड़ा. उसने बताया कि कभी पूरे दिन में एक बार निवाला पेट में जाता है, तो कभी दो बार मिल जाता है.

पढ़ें- लापरवाही! टोंक में भूख हड़ताल पर बैठे 17 बंदियों की तबीयत बिगड़ी

भूखे पेट मुश्किल से रात गुजरती है

यहीं तिरपाल के पास अपने पोते को गोद में खिला रही एक बुजुर्ग महिला ने बताया कि लॉकडाउन में कोई सामान खरीदने नहीं आता. कोई आटा दाल दे जाता है, तो खा लेते हैं. वरना भूखे पेट मुश्किल से रात गुजरती है. बारिश आए तो कभी भीग जाते हैं और गर्मी में पसीने में नहा लेते हैं. कोई घर नहीं है. फुटपाथ का ही आसरा है. वहां से भी कभी-कभी भगा दिया जाता है. कभी कभी बच्चों के लिए दूध तक नहीं मिल पाता.

poverty in rajasthan
बरसों से तिरपाल ही छत

बहरहाल, रमेश और उनके परिवार जैसे राजधानी में न जाने कितने ही ऐसे लोग हैं, जो रोज कमाकर दो जून की रोटी का इंतजाम कर पाते थे. लेकिन फिलहाल ये परिवार दूसरों की रहमत पर पल रहे हैं. ये लोग इंतजार कर रहे हैं कि आखिर कब सरकार इन पर राहत की बूंदें बरसाएगी.

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