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बगावत वाली जुलाई: 2 साल बाद भी सत्ता और संगठन में पायलट के हाथ खाली, कब तक रहेंगे 'पूर्व'...

सीएम गहलोत और पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट के बीच टकराव (two years of Confrontation between Gehlot and Pilot) की बात किसी से छुपी नहीं है. जुलाई 2020 में पायलट और गहलोत के बीच विरोध खुलकर सामने आया था. राजस्थान में सरकार गिरने तक की नौबत आ गई थी. हालांकि आलाकमान की दखल के बाद हालात स्थिर हुए और सचिन पायलट की वापसी के बाद राजस्थान में सरकार बच गई. लेकिन गहलोत से बगावत के बाद सचिन पायलट आज भी पार्टी में बिना पद के ही हैं. यही नहीं, सीएम गहलोत के तेवर आज भी पायलट के लिए वैसे ही हैं जैसे बगावत के दिनों में थे. ये उनके बयानों में भी नजर आता है. पढ़ें पूरी खबर..

Sachin Pilot empty hands in power and organization
पायलट गहलोत का टकराव
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Published : Jul 12, 2022, 6:02 AM IST

जयपुर. राजस्थान की राजनीति में साल 2020 से जुलाई को बगावती महीने के तौर पर इतिहास के पन्नों में दर्ज हो चुका है. जुलाई 2020 में कांग्रेस के तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष और उप मुख्यमंत्री रहते हुए सचिन पायलट ने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के खिलाफ बगावत कर दी और अपने सहयोगी 19 मंत्री, विधायकों के साथ मानेसर चले गए. नतीजा ये हुआ कि कांग्रेस पार्टी मध्यप्रदेश में तो ज्योतिरादित्य सिंधिया की बगावत के चलते सरकार गवां ही चुकी थी, राजस्थान में भी अपने ही नेताओं के विरोध के चलते सरकार पर संकट मंडराने लगा था. तमाम आरोप-प्रत्यारोप और राजनीतिक उठापटक के बाद जब दिल्ली (two years of Confrontation between Gehlot and Pilot) में प्रियंका गांधी ने बीच-बचाव कर सचिन पायलट की वापस पार्टी में एंट्री करवाई तब जाकर राजस्थान में कांग्रेस की सरकार बची.

पायलट की वापसी तो कांग्रेस में हो गई लेकिन उनको बगावत वाली जुलाई के उस 1 महीने में हुए नुकसान का दंश आज तक झेलना पड़ रहा है. जिस पायलट ने जुलाई 2020 में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष और उपमुख्यमंत्री जैसे प्रतिष्ठित पद गवांए उसकी भरपाई आज तक नहीं हो सकी है. पायलट दो साल बाद भी न तो संगठन में कोई पद पा सके हैं और न ही राजस्थान की सत्ता में उनके लिए रास्ते खुल सके हैं. भले ही वो मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के साथ कांग्रेस के हर राज्य में स्टार प्रचारकों की लिस्ट में शामिल होने के साथ ही सीएम के बराबरी में ही गांधी परिवार के साथ जुड़े रहे हों लेकिन हकीकत यही है कि जिस बगावत करने वाले माह जुलाई 2020 में पायलट ने अपना पद और प्रतिष्ठा गवाई वह उन्हें अब भी औपचारिक तौर पर वापस नही मिल सका है. यही कारण है कि पायलट भले ही हंसी में अपने समर्थकों के बीच यह कहते हैं कि इतनी सी उम्र में उनके आगे इतने पूर्व लगे हैं और कितने पूर्व लगाओगे लेकिन यह हंसी में कही बात भी उनके अंदर के दर्द को बयां करती है.

पायलट गहलोत का टकराव

पढ़ें. सत्ता और संगठन में टकराव के हालात, बीते एक माह की वो घटनाएं जिनमें पायलट और गहलोत हुए आमने-सामने

पायलट को उनके धैर्य का सिला कब मिलेगा?
सचिन पायलट भले ही आज किसी पद पर न हों, लेकिन इन 2 सालों में चाहे किसी भी राज्य का विधानसभा चुनाव हुआ हो या फिर उपचुनाव, सचिन पायलट हर राज्य में कांग्रेस के स्टार प्रचारक के तौर पर भेजे गए हैं और पार्टी की जीत के लिए संघर्ष करते नजर आए हैं. सचिन पायलट के संघर्ष को कांग्रेस आलाकमान भी देख रहा है. खुद राहुल गांधी भी पायलट के धैर्य की तुलना अपने आप से कर चुके हैं. इसके बावजूद अब तक इंतजार इस बात का है कि पायलट को उनके धैर्य का सिला कब और किस रूप में मिलेगा? 2 साल बाद भी राजस्थान की राजनीति का सबसे बड़ा यक्ष प्रश्न यही बना हुआ है.

गहलोत का बयान

गहलोत के 2020 के घाव नहीं भरे, पायलट को अब भी कह देते हैं निकम्मा
2 साल बीत जाने के बाद भी सचिन पायलट किसी पद पर नहीं हैं. इसका सबसे बड़ा कारण राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की पायलट को लेकर अब तक बनी नाराजगी है. मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के जुलाई 2020 के घाव आज भी हरे हैं. वह न खुद उस सियासी संकट के समय को भूलते हैं और न ही पायलट समेत राजस्थान के सभी विधायकों को ये भूलने देते हैं. आज 2 साल बीत जाने के बाद भी मुख्यमंत्री अशोक गहलोत सियासी संकट के समय को याद भी करते हैं और उस समय विधायकों की खरीद-फरोख्त के आरोप लगाते हुए सचिन पायलट को न केवल सियासी संकट के लिए जिम्मेदार ठहराते हैं. यही नहीं जो नकारा-निकम्मा शब्द उन्होंने साल 2020 में सचिन पायलट के लिए इस्तेमाल किया था, आज भी वह उस शब्द का इस्तेमाल पायलट के लिए करने से नहीं चूकते हैं. भले ही पायलट अब गहलोत के शब्दों का जवाब सम्मान पूर्वक दे रहे हों लेकिन हकीकत यह है कि आज भी गहलोत और पायलट के बीच कुर्सी की लड़ाई पहले की तरह बनी हुई है.

पढ़ें. Rajasthan : वैभव गहलोत ने हेमाराम से नहीं की मुलाकात, क्या पायलट और गहलोत गुट में सब सामान्य है ?

पायलट ने अपने साथ गए मंत्रियों को दिलवाए पद लेकिन उनके हाथ खाली
साल 2020 में राजस्थान कांग्रेस के सियासी संकट में अपने प्रदेश अध्यक्ष और उपमुख्यमंत्री पद गंवाने वाले सचिन पायलट भले ही किसी पद पर नहीं हो, लेकिन उनके साथ बर्खास्त किए गए दोनों मंत्री रमेश मीणा और विश्वेंद्र सिंह फिर से मंत्री बनाए जा चुके हैं. तो वहीं उनके साथ बागी होने वाले विधायक सुरेश मोदी, जीआर खटाना को भी राजनीतिक नियुक्ति दी गई है, लेकिन आज भी बगावत के चलते अपने पद खोने वाले तत्कालीन सेवादल अध्यक्ष राकेश पारीक और यूथ कांग्रेस अध्यक्ष मुकेश भाकर को कोई पद नहीं दिया गया है.

राहल गांधी की चुटकी

80 बनाम 20 करने में मुख्यमंत्री कामयाब
जब राजस्थान में सियासी संकट आया तो सचिन पायलट के साथ कांग्रेस के 19 विधायक मानेसर चले गए तो पीछे बचे कांग्रेस के 80 विधायक गहलोत के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़े रहे. 13 जुलाई से लेकर 31 जुलाई तक जयपुर के फेयर माउंट होटल में और 31 जुलाई से 13 अगस्त 2020 तक जैसलमेर में हुई बाड़ेबंदी में वह गहलोत के साथ खड़े रहे. उस समय मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने लड़ाई को 80 बनाम 20 का बना दिया था और आज भी हालात कमोबेश यही बने हुए हैं कि ज्यादातर विधायक सचिन पायलट से दूरी बनाए हुए हैं.

पढ़ें. Gehlot VS Pilot: कांग्रेस के मेंबरशिप अभियान में कौन किस पर पड़ा भारी, जानिए पायलट और गहलोत कैंप की रैंकिंग

ये हुआ था घटनाक्रम

  • 11 जुलाई : पायलट समेत 19 विधायकों के दिल्ली जाने की सूचना आई
  • 12 जुलाई : मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने अपने आवास पर विधायको की बैठक कर 13 जुलाई को विधायक दल की बैठक बुलाई.
  • 12 जुलाई : रात 9:00 बजे सचिन पायलट ने विधायक दल की बैठक में आने से इंकार करने के साथ ही यह दावा किया कि उनके साथ 30 से ज्यादा कांग्रेस के विधायकों का समर्थन है और गहलोत सरकार माइनॉरिटी में है.
  • 13 जुलाई : पायलट और उनके सहयोगी विधायक विधायक दल में नहीं पहुंचे. इधर विधायक दल की बैठक शुरू हुई तो उधर गहलोत के करीबी राजीव अरोड़ा और धर्मेंद्र राठौर पर आयकर विभाग के छापे पड़ने शुरू हुए. शाम को मुख्यमंत्री ने अपने साथ आए सभी विधायकों को होटल फेयर माउंट में बाड़ाबंदी में शिफ्ट कर दिया.
  • 14 जुलाई : बगावत कर रहे मंत्रियों विधायकों का नेतृत्व करने वाले सचिन पायलट को प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष और उप मुख्यमंत्री पद से बर्खास्त किया गया, तो उनके साथ गए सेवादल अध्यक्ष राकेश पारीक और यूथ कांग्रेस अध्यक्ष मुकेश भाकर को भी पदों से हटा दिया गया. उसी दिन 14 जुलाई को गोविंद डोटासरा को प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनाए जाने के साथ ही हेम सिंह शेखावत को सेवा दल और गणेश घोघरा को यूथ कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया.
  • 15 जुलाई : स्पीकर की ओर से सभी विधायकों को नोटिस जारी किए गए.
  • 16 जलाई : सचिन पायलट की ओर से भी कोर्ट का दरवाजा खटखटाया गया.
  • 21 जुलाई : गिर्राज सिंह मलिंगा ने सचिन पायलट पर लालच देने के आरोप लगाए तो पायलट ने भी उन पर मानहानि का दावा पेश किया.
  • 22 जुलाई : मुख्यमंत्री के भाई अग्रसेन गहलोत के खिलाफ ईडी की कार्रवाई हुई.
  • 24 जुलाई : विधानसभा का सत्र नहीं बुलाई जाने के विरोध में मुख्यमंत्री समेत कांग्रेस के सभी विधायक राजभवन पहुंचे जहां नारेबाजी और प्रदर्शन हुए.
  • 26 जुलाई : बसपा से कांग्रेस में शामिल हुए 6 विधायकों के विलय का मामला पहुंचा हाईकोर्ट.
  • 29 जुलाई : राज्यपाल ने आखिर 14 अगस्त को विधानसभा सत्र बुलाने की दी इजाजत.
  • 31 जुलाई : कांग्रेस के गहलोत समर्थक विधायकों को जैसलमेर बाड़ाबंदी में किया गया शिफ्ट.
  • 10 अगस्त : प्रियंका गांधी से हुई सचिन पायलट की मुलाकात, प्रियंका ने करवाई सचिन पायलट की वापसी, आईसीसी में सभी विधायकों की तस्वीरें आईं सामने.
  • 11 अगस्त : सचिन पायलट समेत सभी विधायक लौटे जयपुर.
  • 14 अगस्त : विधानसभा के विशेष सत्र में कांग्रेस ने पास किया बहूमत, सचिन पायलट को मिली नई सीट.

जयपुर. राजस्थान की राजनीति में साल 2020 से जुलाई को बगावती महीने के तौर पर इतिहास के पन्नों में दर्ज हो चुका है. जुलाई 2020 में कांग्रेस के तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष और उप मुख्यमंत्री रहते हुए सचिन पायलट ने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के खिलाफ बगावत कर दी और अपने सहयोगी 19 मंत्री, विधायकों के साथ मानेसर चले गए. नतीजा ये हुआ कि कांग्रेस पार्टी मध्यप्रदेश में तो ज्योतिरादित्य सिंधिया की बगावत के चलते सरकार गवां ही चुकी थी, राजस्थान में भी अपने ही नेताओं के विरोध के चलते सरकार पर संकट मंडराने लगा था. तमाम आरोप-प्रत्यारोप और राजनीतिक उठापटक के बाद जब दिल्ली (two years of Confrontation between Gehlot and Pilot) में प्रियंका गांधी ने बीच-बचाव कर सचिन पायलट की वापस पार्टी में एंट्री करवाई तब जाकर राजस्थान में कांग्रेस की सरकार बची.

पायलट की वापसी तो कांग्रेस में हो गई लेकिन उनको बगावत वाली जुलाई के उस 1 महीने में हुए नुकसान का दंश आज तक झेलना पड़ रहा है. जिस पायलट ने जुलाई 2020 में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष और उपमुख्यमंत्री जैसे प्रतिष्ठित पद गवांए उसकी भरपाई आज तक नहीं हो सकी है. पायलट दो साल बाद भी न तो संगठन में कोई पद पा सके हैं और न ही राजस्थान की सत्ता में उनके लिए रास्ते खुल सके हैं. भले ही वो मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के साथ कांग्रेस के हर राज्य में स्टार प्रचारकों की लिस्ट में शामिल होने के साथ ही सीएम के बराबरी में ही गांधी परिवार के साथ जुड़े रहे हों लेकिन हकीकत यही है कि जिस बगावत करने वाले माह जुलाई 2020 में पायलट ने अपना पद और प्रतिष्ठा गवाई वह उन्हें अब भी औपचारिक तौर पर वापस नही मिल सका है. यही कारण है कि पायलट भले ही हंसी में अपने समर्थकों के बीच यह कहते हैं कि इतनी सी उम्र में उनके आगे इतने पूर्व लगे हैं और कितने पूर्व लगाओगे लेकिन यह हंसी में कही बात भी उनके अंदर के दर्द को बयां करती है.

पायलट गहलोत का टकराव

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पायलट को उनके धैर्य का सिला कब मिलेगा?
सचिन पायलट भले ही आज किसी पद पर न हों, लेकिन इन 2 सालों में चाहे किसी भी राज्य का विधानसभा चुनाव हुआ हो या फिर उपचुनाव, सचिन पायलट हर राज्य में कांग्रेस के स्टार प्रचारक के तौर पर भेजे गए हैं और पार्टी की जीत के लिए संघर्ष करते नजर आए हैं. सचिन पायलट के संघर्ष को कांग्रेस आलाकमान भी देख रहा है. खुद राहुल गांधी भी पायलट के धैर्य की तुलना अपने आप से कर चुके हैं. इसके बावजूद अब तक इंतजार इस बात का है कि पायलट को उनके धैर्य का सिला कब और किस रूप में मिलेगा? 2 साल बाद भी राजस्थान की राजनीति का सबसे बड़ा यक्ष प्रश्न यही बना हुआ है.

गहलोत का बयान

गहलोत के 2020 के घाव नहीं भरे, पायलट को अब भी कह देते हैं निकम्मा
2 साल बीत जाने के बाद भी सचिन पायलट किसी पद पर नहीं हैं. इसका सबसे बड़ा कारण राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की पायलट को लेकर अब तक बनी नाराजगी है. मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के जुलाई 2020 के घाव आज भी हरे हैं. वह न खुद उस सियासी संकट के समय को भूलते हैं और न ही पायलट समेत राजस्थान के सभी विधायकों को ये भूलने देते हैं. आज 2 साल बीत जाने के बाद भी मुख्यमंत्री अशोक गहलोत सियासी संकट के समय को याद भी करते हैं और उस समय विधायकों की खरीद-फरोख्त के आरोप लगाते हुए सचिन पायलट को न केवल सियासी संकट के लिए जिम्मेदार ठहराते हैं. यही नहीं जो नकारा-निकम्मा शब्द उन्होंने साल 2020 में सचिन पायलट के लिए इस्तेमाल किया था, आज भी वह उस शब्द का इस्तेमाल पायलट के लिए करने से नहीं चूकते हैं. भले ही पायलट अब गहलोत के शब्दों का जवाब सम्मान पूर्वक दे रहे हों लेकिन हकीकत यह है कि आज भी गहलोत और पायलट के बीच कुर्सी की लड़ाई पहले की तरह बनी हुई है.

पढ़ें. Rajasthan : वैभव गहलोत ने हेमाराम से नहीं की मुलाकात, क्या पायलट और गहलोत गुट में सब सामान्य है ?

पायलट ने अपने साथ गए मंत्रियों को दिलवाए पद लेकिन उनके हाथ खाली
साल 2020 में राजस्थान कांग्रेस के सियासी संकट में अपने प्रदेश अध्यक्ष और उपमुख्यमंत्री पद गंवाने वाले सचिन पायलट भले ही किसी पद पर नहीं हो, लेकिन उनके साथ बर्खास्त किए गए दोनों मंत्री रमेश मीणा और विश्वेंद्र सिंह फिर से मंत्री बनाए जा चुके हैं. तो वहीं उनके साथ बागी होने वाले विधायक सुरेश मोदी, जीआर खटाना को भी राजनीतिक नियुक्ति दी गई है, लेकिन आज भी बगावत के चलते अपने पद खोने वाले तत्कालीन सेवादल अध्यक्ष राकेश पारीक और यूथ कांग्रेस अध्यक्ष मुकेश भाकर को कोई पद नहीं दिया गया है.

राहल गांधी की चुटकी

80 बनाम 20 करने में मुख्यमंत्री कामयाब
जब राजस्थान में सियासी संकट आया तो सचिन पायलट के साथ कांग्रेस के 19 विधायक मानेसर चले गए तो पीछे बचे कांग्रेस के 80 विधायक गहलोत के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़े रहे. 13 जुलाई से लेकर 31 जुलाई तक जयपुर के फेयर माउंट होटल में और 31 जुलाई से 13 अगस्त 2020 तक जैसलमेर में हुई बाड़ेबंदी में वह गहलोत के साथ खड़े रहे. उस समय मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने लड़ाई को 80 बनाम 20 का बना दिया था और आज भी हालात कमोबेश यही बने हुए हैं कि ज्यादातर विधायक सचिन पायलट से दूरी बनाए हुए हैं.

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ये हुआ था घटनाक्रम

  • 11 जुलाई : पायलट समेत 19 विधायकों के दिल्ली जाने की सूचना आई
  • 12 जुलाई : मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने अपने आवास पर विधायको की बैठक कर 13 जुलाई को विधायक दल की बैठक बुलाई.
  • 12 जुलाई : रात 9:00 बजे सचिन पायलट ने विधायक दल की बैठक में आने से इंकार करने के साथ ही यह दावा किया कि उनके साथ 30 से ज्यादा कांग्रेस के विधायकों का समर्थन है और गहलोत सरकार माइनॉरिटी में है.
  • 13 जुलाई : पायलट और उनके सहयोगी विधायक विधायक दल में नहीं पहुंचे. इधर विधायक दल की बैठक शुरू हुई तो उधर गहलोत के करीबी राजीव अरोड़ा और धर्मेंद्र राठौर पर आयकर विभाग के छापे पड़ने शुरू हुए. शाम को मुख्यमंत्री ने अपने साथ आए सभी विधायकों को होटल फेयर माउंट में बाड़ाबंदी में शिफ्ट कर दिया.
  • 14 जुलाई : बगावत कर रहे मंत्रियों विधायकों का नेतृत्व करने वाले सचिन पायलट को प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष और उप मुख्यमंत्री पद से बर्खास्त किया गया, तो उनके साथ गए सेवादल अध्यक्ष राकेश पारीक और यूथ कांग्रेस अध्यक्ष मुकेश भाकर को भी पदों से हटा दिया गया. उसी दिन 14 जुलाई को गोविंद डोटासरा को प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनाए जाने के साथ ही हेम सिंह शेखावत को सेवा दल और गणेश घोघरा को यूथ कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया.
  • 15 जुलाई : स्पीकर की ओर से सभी विधायकों को नोटिस जारी किए गए.
  • 16 जलाई : सचिन पायलट की ओर से भी कोर्ट का दरवाजा खटखटाया गया.
  • 21 जुलाई : गिर्राज सिंह मलिंगा ने सचिन पायलट पर लालच देने के आरोप लगाए तो पायलट ने भी उन पर मानहानि का दावा पेश किया.
  • 22 जुलाई : मुख्यमंत्री के भाई अग्रसेन गहलोत के खिलाफ ईडी की कार्रवाई हुई.
  • 24 जुलाई : विधानसभा का सत्र नहीं बुलाई जाने के विरोध में मुख्यमंत्री समेत कांग्रेस के सभी विधायक राजभवन पहुंचे जहां नारेबाजी और प्रदर्शन हुए.
  • 26 जुलाई : बसपा से कांग्रेस में शामिल हुए 6 विधायकों के विलय का मामला पहुंचा हाईकोर्ट.
  • 29 जुलाई : राज्यपाल ने आखिर 14 अगस्त को विधानसभा सत्र बुलाने की दी इजाजत.
  • 31 जुलाई : कांग्रेस के गहलोत समर्थक विधायकों को जैसलमेर बाड़ाबंदी में किया गया शिफ्ट.
  • 10 अगस्त : प्रियंका गांधी से हुई सचिन पायलट की मुलाकात, प्रियंका ने करवाई सचिन पायलट की वापसी, आईसीसी में सभी विधायकों की तस्वीरें आईं सामने.
  • 11 अगस्त : सचिन पायलट समेत सभी विधायक लौटे जयपुर.
  • 14 अगस्त : विधानसभा के विशेष सत्र में कांग्रेस ने पास किया बहूमत, सचिन पायलट को मिली नई सीट.
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