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हिंदी दिवस विशेष: अपने पैतृक गांव में इस तरह आज भी जिंदा हैं राष्ट्रकवि 'दिनकर'

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Published : Sep 14, 2019, 12:14 PM IST

बिहार के बेगूसराय में ईटीवी भारत की टीम उस सिमरिया गांव पहुंची, जहां रामधारी सिंह 'दिनकर' का बचपन बीता था. यहां देखने को मिला कि उनकी कविताओं से लोगों ने उन्हें अब भी संजों कर रखा है. इस दौरान रामधारी सिंह 'दिनकर' उच्च विद्यालय सिमरिया के प्रधानाचार्य से भी खास बातचीत की गई.

रामधारी सिंह दिनकर, hindi diwas

बेगूसराय/जयपुर. 'लोहे के पेड़ हरे होंगे, तू गान प्रेम का गाता चल...नम होगी यह मिट्टी ज़रूर, आंसू के कण बरसाता चल...राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की भूमिका को हिंदी साहित्य के इतिहास में भुलाया नहीं जा सकता. 'दिनकर' की कविताएं हिंदी के पाठकों के बीच खासी लोकप्रिय हैं और हिंदी के विकास में दिनकर का अतुलनीय योगदान भी है.

रामधारी सिंह दिनकर, hindi diwas
बिहार के बेगूसराय में है राष्ट्रकवि रामधारी सिंह 'दिनकर' का गांव

'दिनकर' की कविताएं बहुत ही सहज रूप से पाठकों को अपनी ओर आकर्षित करती हैं. 'दिनकर' हिंदी के उन रचनाकारों में से हैं, जिनकी कलम से 'परशुराम की प्रतीक्षा' के रूप में अंगारे भी फूटे और 'उर्वशी' के रूप में प्रेम की धारा भी बही. 'हिंदी दिवस पर ईटीवी भारत की टीम ने उनके गांव का दौरा किया.

पढे़ं: हिन्दी दिवस विशेष: हिन्दी भाषा के बारे में कुछ दिलचस्प बातें

सिमरिया गांव में रामधारी सिंह दिनकर का बचपन बीता था. इस छोटे से गांव में पले बढ़े रामधारी सिंह दिनकर का राष्ट्रकवि तक का सफर काफी रोचक और ज्ञानवर्धक है. राष्ट्रकवि दिनकर से जुड़ी यादों को सहेजने के लिए सिमरिया गांव के लोगों ने अनोखा उपाय ईजाद किया है. दरअसल, यहां के लगभग सभी भवनों पर दिनकर का नाम है. सरकारी और गैर सरकारी भवनों पर दिनकर जी द्वारा लिखित रचनाएं और कविताएं उकेरी गई हैं. जैसे ही आप गांव में प्रवेश करेंगे, उनकी कविताओं को पढ़कर आप रोमांचित हो उठेंगे और सिर्फ एक ही सवाल उठेगा कि क्या आखिर इस छोटे से गांव से राष्ट्रकवि दिनकर जैसे भारत के लाल कैसे पैदा हुए.

बिहार के बेगूसराय में अपने पैतृक सिमरिया गांव में कविताओं के जरिए आज भी जिंदा हैं राष्ट्रकवि रामधारी सिंह 'दिनकर'

पढे़ं: क, ख, ग, घ, 'मंजिल तो याद रही, घर का पता भूल गए'

दिनकर को आत्मसात किए हुए हैं यहां के प्राचार्य
ईटीवी भारत की टीम ने रामधारी सिंह दिनकर उच्च विद्यालय सिमरिया के प्रधानाचार्य से खास बातचीत भी की. प्रधानाचार्य के साथ वो दिनकर की कविता का गायन करने वाले कवि भी हैं. उन्होंने बताया कि गांव के लोग और सभी शिक्षक रामधारी सिंह दिनकर की कविताओं को आत्मसात कर चुके हैं और जीवन के हर डगर पर दिनकर की कविताएं प्रासंगिक दिखती हैं.

बेगूसराय/जयपुर. 'लोहे के पेड़ हरे होंगे, तू गान प्रेम का गाता चल...नम होगी यह मिट्टी ज़रूर, आंसू के कण बरसाता चल...राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की भूमिका को हिंदी साहित्य के इतिहास में भुलाया नहीं जा सकता. 'दिनकर' की कविताएं हिंदी के पाठकों के बीच खासी लोकप्रिय हैं और हिंदी के विकास में दिनकर का अतुलनीय योगदान भी है.

रामधारी सिंह दिनकर, hindi diwas
बिहार के बेगूसराय में है राष्ट्रकवि रामधारी सिंह 'दिनकर' का गांव

'दिनकर' की कविताएं बहुत ही सहज रूप से पाठकों को अपनी ओर आकर्षित करती हैं. 'दिनकर' हिंदी के उन रचनाकारों में से हैं, जिनकी कलम से 'परशुराम की प्रतीक्षा' के रूप में अंगारे भी फूटे और 'उर्वशी' के रूप में प्रेम की धारा भी बही. 'हिंदी दिवस पर ईटीवी भारत की टीम ने उनके गांव का दौरा किया.

पढे़ं: हिन्दी दिवस विशेष: हिन्दी भाषा के बारे में कुछ दिलचस्प बातें

सिमरिया गांव में रामधारी सिंह दिनकर का बचपन बीता था. इस छोटे से गांव में पले बढ़े रामधारी सिंह दिनकर का राष्ट्रकवि तक का सफर काफी रोचक और ज्ञानवर्धक है. राष्ट्रकवि दिनकर से जुड़ी यादों को सहेजने के लिए सिमरिया गांव के लोगों ने अनोखा उपाय ईजाद किया है. दरअसल, यहां के लगभग सभी भवनों पर दिनकर का नाम है. सरकारी और गैर सरकारी भवनों पर दिनकर जी द्वारा लिखित रचनाएं और कविताएं उकेरी गई हैं. जैसे ही आप गांव में प्रवेश करेंगे, उनकी कविताओं को पढ़कर आप रोमांचित हो उठेंगे और सिर्फ एक ही सवाल उठेगा कि क्या आखिर इस छोटे से गांव से राष्ट्रकवि दिनकर जैसे भारत के लाल कैसे पैदा हुए.

बिहार के बेगूसराय में अपने पैतृक सिमरिया गांव में कविताओं के जरिए आज भी जिंदा हैं राष्ट्रकवि रामधारी सिंह 'दिनकर'

पढे़ं: क, ख, ग, घ, 'मंजिल तो याद रही, घर का पता भूल गए'

दिनकर को आत्मसात किए हुए हैं यहां के प्राचार्य
ईटीवी भारत की टीम ने रामधारी सिंह दिनकर उच्च विद्यालय सिमरिया के प्रधानाचार्य से खास बातचीत भी की. प्रधानाचार्य के साथ वो दिनकर की कविता का गायन करने वाले कवि भी हैं. उन्होंने बताया कि गांव के लोग और सभी शिक्षक रामधारी सिंह दिनकर की कविताओं को आत्मसात कर चुके हैं और जीवन के हर डगर पर दिनकर की कविताएं प्रासंगिक दिखती हैं.

Intro:एंकर- हिंदी दिवस के अवसर पर देश में कई कार्यक्रम आयोजित किए गए हैं लेकिन जब बात हिंदी की हो वैसे मैं राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की भूमिका को भारतीय हिंदी साहित्य के इतिहास में भुलाया नहीं जा सकता है। इस अवसर पर ईटीवी भारत की टीम ने उनके गांव का दौरा किया और कविताओं के जरिए ग्रामीणों ने किस तरह उनकी यादों को संजो कर रखा है पेश है खास रिपोर्ट


Body:vo- बेगूसराय जिले के गंगा किनारे में बसे सिमरिया गांव में जन्म लेकर राष्ट्रकवि दिनकर तक की उपाधि हासिल करने वाले बेगूसराय के लाल रामधारी सिंह दिनकर के कृत्य को बेगूसराय ही नहीं पूरा देश हिंदी दिवस पर याद करना चाहेगा। जिस तरीके से हिंदी भाषा साहित्य और हिंदी के विकास के लिए उन्होंने प्रयास किया वो अतुलनीय है ।छोटे से गांव में पले बढ़े रामधारी सिंह दिनकर का राष्ट्रकवि दिनकर तक का सफर काफी रोचक और ज्ञान वर्धक है। राष्ट्रकवि दिनकर से जुड़ी यादों को सहेजने के लिए सिमरिया गांव के लोगों ने अनोखा उपाय ईजाद किया है इसके तहत सरकारी और गैर सरकारी भवनों पर दिनकर जी द्वारा लिखित रचनाएं और कविताएं उकेरी गई हैं और जैसे ही आप गांव में प्रवेश करेंगे उनकी कविताओं को पढ़कर आप रोमांचित हो उठेंगे और सिर्फ एक ही सवाल उठेगा क्या आखिर इस छोटे से गांव से राष्ट्रकवि दिनकर जैसे भारत के लाल कैसे पैदा हुए ।ईटीवी भारत की टीम ने रामधारी सिंह दिनकर उच्च विद्यालय सिमरिया के प्रधानाचार्य से खास बातचीत की प्राचार्य के साथ वो दिनकर की कविता का गायन करने वाले कवि भी हैं ।उन्होंने बताया कि गांव के लोग और सभी शिक्षक रामधारी सिंह दिनकर की कविताओं को आत्मसात कर चुके हैं और जीवन के हर डगर पर दिनकर की कविताएं प्रासंगिक दिखती हैं।
बाइट-कुलदीप सिंह यादव,प्रधानाचार्य, दिनकर उच्य विद्यालय, सिमरिया


Conclusion:।।
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