जोधपुर. जिले के खेजड़ली गांव में पेड़ों के लिए शहीद होने वाले 363 लोगों की याद में खेजड़ली मेला लगता है. इन ग्राम वासियों ने पेड़ों को बचाने के लिए शहादत दी थी. इनकी याद में खेजड़ली में स्मारक बनाया जा रहा है.
पूरी दुनिया में पर्यावरण और पेड़ों को लेकर चिंता जाहिर की जा रही है. सबका यह मानना है कि पेड़ नहीं बचे तो पर्यावरण नहीं बचेगा. इसको लेकर अलग-अलग नीतियां भी बनाई जा रही है. लेकिन राजस्थान में पर्यावरण को लेकर 291 साल पहले ही विश्नोई समाज की अमृता देवी ने जो पहल की थी वह आज भी कायम है. सन 1730 में खेजड़ली गांव के आसपास के इलाके में तत्कालीन शासक ने पेड़ काटने के आदेश दिया था, ग्राम वासियों ने पेड़ काटने का विरोध किया. इस पर अमृता देवी के साथ 363 लोगों ने अपने शीश कटवा दिये थे.
इस बात से हर कोई वाकिफ है. लेकिन अब राजस्थान सरकार जोधपुर विकास प्राधिकरण के माध्यम से इन पर्यावरण शहीदों के लिए एक नया स्मारक खेजड़ली मेला परिसर में ही बना रही है. इस स्मारक के खास से बात यह है कि यहां पर सभी 363 शहीदों के नाम अंकित किए गए हैं. गोलाकार बनने वाले स्मारक में 20 शिलालेखों पर ये नाम अंकित कर दिए गए हैं.
स्मारक का निर्माण कार्य तेजी से चल रहा है. इस मार्ग के बीचों-बीच अमृता देवी की एक प्रतिमा लगेगी. विकास प्राधिकरण इस पर 50 लाख से ज्यादा का खर्च कर रहा है. यह पहला मौका होगा जब सभी 363 शहीदों के नाम लोग पढ़ पाएंगे. हालांकि दस्तावेजों में और अन्य जगह पर इनका विवरण मिलता है. लेकिन बतौर स्मारक इन सब शहीदों को यह श्रद्धांजलि दी जा रही है.
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अगले एक माह में स्मारक का कार्य पूर्ण हो जाएगा. मुख्यमंत्री अशोक गहलोत इसका लोकार्पण करेंगे. जिस परिसर में स्मारक बन रहा है. उस पूरे परिसर में हर वर्ष बड़ा मेला भी आयोजित किया जाता है. जिसमें इन सभी शहीदों को याद किया जाता है.
यह थी घटना
सन 1730 विक्रम संवत 1787 में राजस्थान के जोधपुर में तत्कालीन राजा ने छोटे से गांव खेजड़ली में पेड़ काटने का आदेश दिया था. लेकिन खेजड़ली गांव की बेटी अमृता देवी ने इसका विरोध किया. कहा कि सिर साठे रूख रहे तो भी सस्ता जाण. यानी कि सिर कटने पर अगर पेड़ बचता है तो इसे सस्ता समझें. इसके साथ ही अमृता देवी गुरु जांभोजी की जय बोलते हुए सबसे पहले पेड़ से लिपट गई और तीन पुत्रियों ने पेड़ से लिपट कर अपना बलिदान दे दिया. यह सिलसिला रूका नहीं.
आसपास के 84 गांवों के लोग आ गए उन्होंने एकमत से तय कर लिया कि एक पेड़ से एक विश्नोई लिपट कर अपने प्राणों की आहुति देगा. सबसे पहले बुजुर्गों ने प्राणों की आहुति दी. तब तत्कालीन शासन के मंत्री गिरधारी दास भंडारी ने बिश्नोईयों को ताना मारा कि ये बुड्ढे लोगों की बलि दे रहे हैं. उसके बाद तो ऐसा जलजला उठा कि बड़े-बूढ़े जवान बच्चे महिलाएं और पुरुष सबमें अपने प्राणों की बलि देने की होड़ मच गई.
इस तरह बिश्नोई समाज के कुल 363 लोगों ने अपने प्राणों की आहुति दे दी. इनमें 71 महिलाएं थीं और 292 पुरुष. सभी ने पेड़ों की रक्षा में अपने प्राण न्योछावर कर दिये. इस तरह खेजड़ली गांव की धरती पर्यावरण के लिए शहीद होने वालों की धरती बन गई.
खेजड़ी की बेटी नाटक
खेजड़ली गांव की इस कहानी को नाट्य निर्देशक अशोक राही ने अपने नाटक खेजड़ी की बेटी के माध्यम से जन-जन तक पहुंचाया. खेजड़ी की बेटी नाटक की नायिका अमृता देवी और खेजड़ली गांव के वासी हैं. इस नाटक का मंचन देश-दुनिया में कई बार हो चुका है. पीपुल्स थिएटर ग्रुप के माध्यम से इस नाटक का मंचन देश के बड़े शहरों में हो चुका है.