जयपुर. लंबे समय से बारिश के इंतजार के बाद गुलाबी नगरी में शुक्रवार को जमकर मेघ बरसे. सुबह से ही मौसम का मिजाज बदला हुआ नजर आया. मूसलाधार बारिश ने पूरे शहर को तरबतर कर दिया. सड़कें पानी से पूरी तरह से लबालब हो गईं. इस बरसात ने राजधानी के ड्रेनेज सिस्टम की पोल खोलकर रख दी. बारिश का पानी सड़कों पर बह निकला और देखते ही देखते सड़कें दरिया बन गईं. शहर में करीब 47 जगहों पर पानी भर गया. बारिश थमने के साथ ही कंट्रोल रूम में लगातार जलभराव की शिकायतें आने लगीं.
कभी सड़कों पर नहीं ठहरता था पानी...
इतिहासकार बताते हैं कि 18 नवंबर 1727 को महाराजा सवाई जयसिंह द्वितीय ने जयपुर की नींव रखी थी. तब राजधानी की सड़कों पर कभी भी पानी ठहरता नहीं था. इसके ड्रेनेज सिस्टम का दूसरे शहर से लोग आकर अध्ययन किया करते थे, लेकिन वास्तुकार विद्याधर भट्टाचार्य की डिजाइन के साथ तैयार की गई गुलाबी नगरी अब अव्यवस्थाओं की भेंट चढ़ गई है. जयपुर के ड्रेनेज सिस्टम को विकास के नाम पर नेस्तनाबूद कर दिया गया. नतीजन शुक्रवार को हुई मूसलाधार बारिश में यह ड्रेनेज सिस्टम पूरी तरह फेल साबित हुआ.
खराब ड्रेनेज सिस्टम की खुली पोल...
शुक्रवार का दिन जयपुर वासियों के लिए आसमान से आफत लेकर आया. सुबह घंटों तक हुई मूसलाधार बारिश के बाद परकोटा पानी-पानी हो गया. मान सागर झील जलमहल के साथ सड़कों तक बही. शहर में कई जगह वाहन बह गए और कई बस्तियां जलमग्न हो गईं. शहर के कई क्षेत्रों में बाढ़ जैसे हालात पैदा हो गए. हालांकि, 14 अगस्त को जो हुआ सालों पहले जयपुर में ऐसा होना तो दूर, कोई सोच भी नहीं सकता था.
यह भी पढ़ें : जयपुर में जल का 'जलजला'...कई इलाकों में आफत ही आफत
292 साल पहले बसाए गए जयपुर की संरचना में वर्षा जल संचयन और बारिश की निकासी का विशेष तौर पर इंतजाम किया गया था जो आज भी आधुनिक भारत के ज्यादातर शहरों में देखने को नहीं मिलता. जयपुर की छोटी चौपड़, बड़ी चौपड़, और रामगंज चौपड़ पर बने कुंड इसी संरचना का हिस्सा है. हालांकि, जयपुर के पास जलस्रोत नहीं था. ऐसे में यहां के निवासियों की पेयजल समस्या का समाधान करने के लिए सवाई जयसिंह ने हरमाड़ा के पास से एक नहर निकाली थी, जो गुप्त गंगा कहलाती थी.
जल संवर्धन की थी बेहतरीन तकनीक...
ये नहर इतनी चौड़ी थी कि दो घुड़सवार आराम से चल सकते थे और जिस भी आम आदमी को पानी की आवश्यकता होती थी, वो यहां बने मोघों से पानी ले लिया करते थे. जयपुर की बसावट के समय जल निकासी और जल संग्रहण की प्लानिंग की गई थी. जयपुर के कुंड, बावड़ी इसी का उदाहरण हैं. जल संवर्धन के तहत जयपुर की खासियत यहां के बाजारों के नीचे बहने वाली नहर थी.
कुछ साल पहले जब ऑपरेशन पिंक चलाया था, तब वो नहरें/नाले निकली थी, लेकिन आज के जमाने में उनका कोई उपयोग नहीं है. ऐसे में उन्हें दोबारा ढक दिया गया था. पुराने शहर में बलवंत व्यायामशाला के पास से जो नाला जा रहा है, वो किसी जमाने में पेयजल निकासी का स्त्रोत हुआ करता था, जो तालकटोरा में जाता था. इसी तरह गलता की पहाड़ियों में भी ऐसे ही कई एनिकट बने हुए हैं, जो आज भी मौजूद हैं. जिससे वन्यजीवों के लिए भी पानी की समस्या का समाधान किया गया था.
यह भी पढ़ें : जयपुर: तेज बारिश में 6 लोगों की मौत, मकान हुए ध्वस्त, कार आई पानी में तैरती नजर
वक्त बदला, सूरत भी बदली...
बहरहाल, आज जयपुर की तीनों चौपड़ों का स्वरूप बदल चुका है. बावड़ियों की संभाल नहीं होने से कुछ सूख चुकी हैं तो कुछ गंदगी से अटी हुई हैं. वर्षा जल का संचयन करने वाली नहरें नाले बन चुकी हैं और ड्रेनेज सिस्टम विकास और अतिक्रमण की भेंट चढ़ चुका है. यही वजह है कि जयपुर में जल स्रोत तालकटोरा, मावठा, सागर, जल महल और चौपड़ों पर बने हुए कुंडों में बहने वाला वर्षा जल आज सड़कों पर बह रहा है.