जयपुर. राज्य सरकार ने घरेलू जल कनेक्शन पंजीकृत प्लंबर से ही कराने के लिए सोमवार को आदेश जारी कर दिया है. दरअसल, रजिस्टर्ड नंबर से जल कनेक्शन नहीं कराने के कारण विभाग को राजस्व का भी नुकसान हो रहा था. साथ ही गैर राजस्व जल में भी बढ़ोतरी हो रही थी. इसी कारण विभाग ने यह निर्णय लिया है.
आदेश में कहा गया है कि प्लंबर का पंजीकरण खंड कार्यालय (अधिशासी अभियंता ) में किया जाएगा और पंजीकृत प्लंबर का कार्यक्षेत्र पंजीकरण प्राधिकारी के अधीन क्षेत्र तक सीमित रहेगा. प्लंबर का पंजीकरण शुल्क एवं नवीनीकरण शुल्क विभागीय परिपत्र 31 मार्च 2017 के अनुसार होगा. पंजीकरण अवधि 5 वर्ष तक के लिए मान्य रहेगी. साथ ही 5 वर्ष की अवधि के बाद निर्धारित शुल्क जमा कराने के बाद ही पंजीकरण का नवीनीकरण किया जाएगा. पंजीकरण के आवेदन के साथ प्लंबर द्वारा दस हजार रुपए की सिक्योरिटी एफडी आर के रूप में पंजीकरण अवधि तक के लिए जमा करवानी होगी.
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पंजीकरण अवधि में यदि पंजीकृत प्लंबर जल का अवैध कनेक्शन करते हुए अथवा विभागीय मापदंड के अनुसार कार्य करता नहीं पाया जाता है तो अधिशासी अभियंता द्वारा धरोहर राशि जब्त कर पंजीकरण को निरस्त करने का अधिकार होगा. अधिशासी अभियंता के द्वारा की गई कार्यवाही पर अधीक्षण अभियंता प्रथम अपीलीय अधिकारी एवं अतिरिक्त मुख्य अभियंता द्वितीय अपीलीय अधिकारी होंगे. प्रथम अपील के लिए 100 रुपए एवं द्वितीय अपील के लिए 250 रुपए का शुल्क जमा करवाना होगा.
पंजीकृत प्लंबर के लिए निम्न में से एक योग्यता जरूरी
1. सिविल इंजीनियरिंग या मैकेनिकल इंजीनियरिंग में एआईसीटीई से मान्यता प्राप्त डिप्लोमा या उच्चतर योग्यता
2. इंस्टीट्यूट ऑफ इंजीनियर्स या एआईसीटीई से नलकारी अथवा सेनेटरी इंजीनियरिंग का प्रमाण पत्र
3. आईटीआई या राजस्थान कौशल एवं आजीविका विकास निगम से नलकारो अथवा सेनेटरी अथवा फिटर ट्रेड का प्रमाण पत्र
4. पंजीकृत नलकार के अधीन 5 वर्ष तक कार्य करने का अनुभव प्रमाण पत्र
बता दें कि राजस्थान जल प्रदाय नियम- 1967 के अनुसार राज्य में सभी श्रेणी के जल कनेक्शन- 2008 से पहले पंजीकृत प्लंबर द्वारा ही जारी किए जाते थे. इसके बाद राज्य सरकार के परिपत्र 4 जनवरी 2008 से घरेलू जल संबंध जारी करने के लिए रजिस्टर्ड प्लंबर की आवश्यकता को समाप्त कर दिया गया था. घरेलू श्रेणी के उपभोक्ताओं द्वारा अनाधिकृत एवं अप्रशिक्षित प्लंबर से जल कनेक्शन करवाने के कारण विभाग की पाइप लाइन क्षतिग्रस्त हो जाती थी. साथ ही विभाग के मापदंड के अनुसार जल संबंध भी नहीं किए जाते थे. इससे गैर राजस्व जल में बढ़ोतरी भी हुई है और जल राजस्व में भी आशा के अनुरूप वृद्धि नहीं हो पाई.