जयपुर. जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल के पहले दिन बादशाहों की नीतियों की तुलना आज के शासकों की नीतियों से की गई. जनता को लुभाने के लिए आज भी नेता बादशाहों के जैसे धर्म का इस्तमाल करते हैं. अकबर एंड दारा सेशन में लेखक और पत्रकार मनीमुग्ध शर्मा ने कहा कि धर्म हमेशा सत्ताधारियों की ओर से इस्तेमाल किया जाता है. अकबर ने भी अपने शासनकाल में ओर से इस्तेमाल किया. बादशाह अकबर ने अल्ला ओ अकबर को इस्तेमाल किया, जिससे लगता था कि इसमें अकबर का गुणगान होता है.
उन्होंने धर्म के इस्तेमाल के मामले में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का भी नाम लिया. शर्मा ने कहा कि मोदी जब बनारस में 2014 में चुनाव प्रचार कर रहे थे, तब लोगों ने हर हर मोदी का नारा दिया, जो भाजपा ने स्वीकार कर लिया. जबकि हर हर तो हर हर महादेव के लिए कहा जाता है. विलियम ने सवाल किया कि क्या यह कहना सही है कि अकबर धर्मनिरपेक्ष था. इस पर मनीमुग्ध शर्मा ने कहा कि धर्मनिरपेक्ष एक आधुनिक शब्द है, उनके लिए सहिष्णु शब्द उचित रहेगा.
इस बीच विलियम ने सवाल किया कि अकबर पर इल्जाम लगाया जाता है कि अपनी हिन्दू सेना को दक्षिण में मुस्लिम राजाओं के खिलाफ लड़ने के लिए भेजा. इस पर मनीमुग्ध ने आपत्ति जताई कि यह कहना गलत होगा, उस समय अकबर के सेना में हिंदू मुस्लिम का कोई अंतर नहीं था, लोग अपने बादशाह के लिए लड़ रहे थे. धर्म के नाम पर नहीं लड़ रहे थे.
सुप्रिया गांधी ने अपनी किताब का जिक्र करते हुए कहा कि दारा शिकोह ने धर्म के साथ बहुत सारे प्रयोग किए हैं. दारा शिकोह ने धर्म को निष्पक्ष रूप से देखा और अपने पूर्व शासकों के पदचिन्हों पर चलने का प्रयास किया. दारा शिकोह एक दार्शनिक था और बादशाह बनने की इच्छा रखता था. विलियम ने सवाल किया कि मारवाड़ के कुछ साहित्य में मुगलों की तुलना रावण से की गई है. इस पर मनीमुग्ध ने कहा कि मारवाड़ में उनकी प्रतिष्ठा का सवाल था, लेकिन आमेर पहला राज्य था, जिसने अकबर का स्वामित्य अपनाया था. मानसिंह ने उसकी प्रशंसा में आमेर महल में एक सिलालेख लगवाया था.
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वहीं मुगल टेंट में मैथोलोजी फॉर द मिलेनियल में लेखकों ने हमारे पैराणिक ग्रंथों को समृद्ध बताया. इन्हें स्कूलों में नई पीढ़ी को पढ़ाने की जरूरत जताई. हालांकि लेखकों ने पैराणिक ग्रंथों की अपने-अपने हिसाब से व्याख्या करने पर चिंता भी जताई. लेखक आनंद नीलकंठन ने कहा कि धार्मिक ग्रन्थों की लोगों ने अलग अलग व्याख्या की है. लोग रामानंद सागर की रामायण को ही मानते आ रहे हैं, जबकि दक्षिण भारत के साथ कुछ जगहों पर रामायण और महाभारत के पात्रों की अलग-अलग व्याख्या की गई है.
उन्होंने कहा कि हम अपने-अपने अनुसार भगवान को मानते हैं. उसके अनुसार ही उस पर भरोसा करते हैं. हिंदुओं में कहीं देवी देवता हैं, सब अपने अपने अनुसार उन्हें मानते हैं. देश काल के अनुसार भगवान के प्रति आस्था में बदलाव देखा गया है. भगवान गणेश और कार्तिकेय को लेकर भी अलग-अलग मान्यताएं हैं. दक्षिण भारत में गणेश को कुंवारा बताया गया है, जबकि कार्तिकेय को विवाहित माना गया है. वहीं उत्तर भारत में भगवान गणेश की दो पत्नियां बताई गई हैं और कार्तिकेय को कुंवारा बताया गया है. उन्होंने कहा कि साहित्य लेखन में इतिहास को नहीं मानते हैं. इतिहास को केवल पढ़ा जाता है.