जयपुर. राजस्थान के सियासी गलियारों में जुलाई से शुरू हुई मंत्रिमंडल विस्तार और पुनर्गठन की चर्चाओं का सिलसिला अगस्त के महीने के तीसरे हफ्ते में भी बरकरार है. इस बीच प्रत्येक कांग्रेस विधायक और मंत्री इन चर्चाओं के लिहाज से अपनी धड़कनों को काबू किये हुए हैं और सवाल जस का तस है कि मंत्रिमंडल विस्तार या फेरबदल में उनका क्या होगा? इसी बीच चाहें पायलट गुट से जुड़े हुए नेता हों या फिर गहलोत गुट से जुड़े नेता, 31 अगस्त तक मंत्रिमंडल विस्तार होने की बात कहना शुरू कर चुके हैं.
वर्क-इन-प्रोग्रेस के मायने
राजस्थान में मंत्रिमंडल की खबरों के बीच कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी अजय माकन ने मंगलवार को दिल्ली में मीडिया से मुखातिब होकर ये साफ कर दिया था कि मंत्रिमंडल विस्तार की तारीख नहीं बताई जा सकती है. माकन के इस बयान के बीच 'वर्क इन प्रोग्रेस' वाली बात बीती शाम से ही राजधानी जयपुर के सियासी हलकों में नई चर्चाओं को जोर देने लगी हैं. वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए जैसे-जैसे विधानसभा सत्र की तारीख 9 सितंबर नजदीक आ रही है, वैसे-वैसे अब कैबिनेट विस्तार को लेकर विधायकों की धड़कन तेज हो गई है.
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इसी बीच अब सचिन पायलट और अशोक गहलोत गुट से जुड़े नेता यह कहते नजर आ रहे हैं कि 31 अगस्त तक मंत्रिमंडल विस्तार हो सकता है. हालांकि, इन विस्तार की खबरों में छह जिलों में चल रहे पंचायती राज चुनाव और 9 सितंबर से शुरू होने जा रहा विधानसभा का सत्र रोड़े अटकाता दिख रहा है. ऐसे में माकन का ये कहना कि वर्क-इन-प्रोग्रेस है, तो सभी इसके मायने अपनी सहूलियत के मुताबिक निकाल रहे हैं.
पंचायती राज चुनाव के बीच फेरबदल की संभावना ना के बराबर
वैसे तो राजस्थान के 6 जिलों में फिलहाल पंचायती राज चुनाव चल रहे हैं. ऐसे में इन चुनाव के बीच में मंत्रिमंडल विस्तार या फेरबदल को सियासी जोड़-तोड़ के लिहाज से सही वक्त नहीं माना जा सकता है. इन 6 जिलों में से किसी जिले के प्रतिनिधित्व को लेकर अगर नाराजगी होती है, तो इसका खामियाजा कांग्रेस पार्टी को उठाना पड़ सकता है. कहा जा रहा है कि अब मंत्रिमंडल फेरबदल की संभावना विधानसभा सत्र समाप्त होने तक ना के बराबर है, क्योकि फेरबदल के बाद सत्र के दौरान सवालों का जवाब देना सरकार के लिए मुश्किलें पैदा कर सकता है. पर एक संभावना ये है कि सरकार फिलहाल मंत्रिमंडल विस्तार तक सीमित रहे, ताकि नए मंत्री बनाने का पूरा हो जाये और फेरबदल को बाद के लिये छोड़ दिया जाये.
विधानसभा सत्र में नए मंत्रियों को नहीं दे सकते हैं जिम्मेदारी
मंत्रिमंडल विस्तार और फेरबदल में अब एक संकट यह खड़ा हो गया है कि अगर विधानसभा सत्र से पहले मंत्रिमंडल विस्तार या फेरबदल मुख्यमंत्री अशोक गहलोत करते हैं, तो उन्हीं मंत्रियों को विधानसभा सत्र में विपक्ष के सवालों के जवाब देने होंगे. इसमें यह बात जगजाहिर है कि कोई भी मंत्री को जब विभाग मिलेगा, उसके बाद उन्हें संबंधित महकमे से जुड़े सवालों का जवाब देने के लिए तैयारी की जरूरत होती है. ऐसी स्थितियों में विधानसभा सत्र से ठीक पहले मंत्रिमंडल विस्तार या फिर फेरबदल के बारे में चाहे कोई भी सरकार हो, उनके लिये विचार करना इतना आसान नहीं होता है.
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दूसरी ओर पार्टी के अंदर की सियासी खींचतान के बीच अटकलें तेज हैं कि प्रदेश में कैबिनेट विस्तार को लेकर प्रोसेस शुरू हो चुका है और आलाकमान इसे लेकर हरी झंडी दे देता है, तो मुख्यमंत्री अशोक गहलोत विधानसभा सत्र से पहले यह मंत्रिमंडल विस्तार कर भी सकते हैं.
राजनीतिक अनिश्चितता के बीच हर संभावना पर विचार
सामान्य परिस्थितियों में अगर देखा जाए तो फिलहाल यह नहीं लगता है की पंचायती राज चुनाव और विधानसभा सत्र संपन्न होने से पहले राजस्थान में मंत्रिमंडल विस्तार या फेरबदल संभव है. लेकिन, राजस्थान की जो राजनीतिक परिस्थितियां हैं और पायलट-गहलोत गुट के बीच जो खींचतान है, उसे देखते हुए किसी भी संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है.
जाहिर है कि राजस्थान में पायलट गुट लगातार यह बात कहता आ रहा है कि मंत्रिमंडल विस्तार और फेरबदल प्रदेश में हो जाना चाहिए, तो वहीं गहलोत गुट में शामिल विधायकों के भी मन में यही बात है कि अब ढाई साल बाद जो लोग मंत्रिमंडल में शामिल नहीं हो सके थे, अब उन्हें मौका मिले. ऐसे में अब यह कहा जा सकता है कि केवल राजनीतिक अनिश्चितता को छोड़ दिया जाए तो तो मंत्रिमंडल फेरबदल या विस्तार के लिए विधायकों को विधानसभा सत्र के समाप्त होने का इंतजार करना होगा.