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Rajasthani Traditional Arts : महज रुचि का विषय बन कर रह गया जयपुर चित्रकारी, चित्रकार रिक्शा चलाने और चौकीदारी करने को मजबूर - Rajasthan Hindi News

विकास के पथ पर बढ़ते शहर में लोक कलाएं कहीं लुप्त होती जा रही हैं. राजधानी जयपुर (Rajasthani Traditional arts) में कुछ ऐसे लोग भी हैं जिन्होंने लोक कलाओं को जीवित रखा है. उन्हीं में से एक हैं वैदिक चित्रकार रामू रामदेव, जिन्होंने ईटीवी भारत से खास बातचीत में वैदिक चित्रकारी के बारे में बता की.

Rajasthani Traditional arts
महज रुचि का विषय बन कर रह गया जयपुर चित्रकारी
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Published : Jun 26, 2022, 8:53 PM IST

जयपुर. राजधानी जयपुर न सिर्फ अपनी बसावट, बल्कि ऐतिहासिक व्यापार का भी केंद्र रहा है. जयपुर 18वीं सदी (Jaipur Famous for its art and culture) में 36 कारखानों का घर कहलाता था. जहां चित्रकला, नक्काशी और आभूषण सहित शिल्प और लोक कलाओं का विकास हुआ. इन उद्योगों में से कुछ को विशिष्ट सड़कों और बाजारों के माध्यम से जाना गया. ये धरोहर शिल्प और लोक कला के क्षेत्र की विविधता और जीवन शक्ति का गवाह बनी. इन्हीं में से एक है जयपुर की चित्रकारी, जिसने अपना डंका पूरे विश्व में बजवाया.

इस चित्रकारी को करने के लिए 70 से ज्यादा देश गुरु-शिष्य परंपरा के तहत यहां के कलाकारों से गुर सीखते हैं. लेकिन यही चित्रकारी बीते 4 साल से नोटबंदी, जीएसटी और कोरोना की मार झेल कर खुद अपना अस्तित्व तलाश रही है. चित्रकार इस लोक कला से दूर होकर कोई रिक्शा चलाने तो कोई चौकीदारी करने को मजबूर हैं. आलम ये है कि अब ये कलाकार नई पीढ़ी को भी अर्थोपार्जन के नजरिए से जयपुर चित्रकारी सीखने की सलाह नहीं देते.

महज रुचि का विषय बन कर रह गया जयपुर चित्रकारी

विकास के पथ पर बढ़ते देश में हमारी लोक कलाएं लुप्त होती जा रही हैं. हालांकि राजधानी में कुछ ऐसे लोग हैं, जिन्होंने यहां की पुरानी लोक कलाओं को आज भी जीवित रखा हुआ है. उन्हीं में से एक हैं वैदिक चित्रकार रामू रामदेव, जिन्होंने ईटीवी भारत से खास बातचीत में वैदिक चित्रकारी के बारे में बता की. उन्होंने कहा कि वेदों में जिन यंत्रों और मंत्रों का वर्णन किया गया है, उन्हीं के आधार पर की गई चित्रकारी वैदिक चित्रकारी कहलाती है. ये श्री यंत्र, हनुमान यंत्र या राम यंत्र या कोई भी यंत्र हो सकते हैं.

लुप्त होने की कगार पर लोक कलाएं: रामू रामदेव ने बताया कि जयपुर की पहचान यहां की कलाओं से है. यहां के भवनों पर चूने का कोट किया हुआ है. उस पर गुलाबी रंग कर सफेद रंग से बेल-बूटे, पशु-पक्षी का चित्रण किया हुआ है. लेकिन अब ये कला लुप्त होने की कगार पर है. पहले जब जयपुर का निर्माण कराया गया, उस वक्त कई कलाकार भी थे. जिस प्रकार सोलह शृंगार में बिंदी का महत्व है, उसी तरह लोक कलाओं में भित्तिचित्र का था. जो अब लुप्त होने को है.

पढ़ें. 75th Cannes Film Festival in France : लोक कलाकार मामे खान की उपलब्धि पर राजस्थान में जश्न, कलाकारों ने जताई खुशी

हालांकि भित्तिचित्र के अलावा जयपुर के आसपास उनियारा चौमूं, अलवर ठिकानों पर भी चित्रकारी (Disappearing Folk arts and Painting in Rajasthan) होती रही है. इनमें कुछ कलाएं क्लासिकल हैं, कुछ लोक कलाएं हैं. दीपावली पर पाने बनना भी इन्हीं में शुमार है, जो अब देखने को नहीं मिलता. पहले कुमावत समाज में दीपावली पर यदि कोई ससुराल जाता था, तो वो लक्ष्मी जी का पाना हाथ से बनाकर लेकर जाता था. लेकिन आज के दौर में न तो वो कलाकार रहे और न वो परंपरा.

जहां तक बात विदेशी टूरिस्ट के पसंद की है, उन्हें कंटेंपरेरी या मॉडर्न आर्ट में कोई इंटरेस्ट नहीं रहता क्योंकि ये और देशों में भी देखने को मिल जाती है. लेकिन भारत में आकर पर्यटक भारतीय कला देखना पसंद करते हैं. जिसमें लाइन, भाव, कलरों की सॉफ्टनेस और चमक अनायास ही उन्हें अपनी ओर आकर्षित करती है. पर्यटक जब जयपुर आते हैं तो वे इन पेंटिंग्स को खरीद कर जरूर ले जाते हैं. लेकिन कोविड-19 के बाद से हालत खराब हैं.

कोरोना के बाद चित्रकारों की हालत खराब: चित्रकार रामू रामदेव ने बताया कि जयपुर के चित्रकार 4 साल से संघर्ष कर रहे हैं. पहले नोटबंदी का असर देखने को मिला. उसके बाद चित्रकला पर लगने वाले 12% जीएसटी से पेंटिंग्स महंगी हो गई. पेंटिंग्स महंगी होने से शोरूम के डीलर और लोगों ने खरीदना बंद कर दिया. जब पेंटिंग बिकेगी ही नहीं तो कलाकार क्या करेगा. शौक के लिए कई चित्रकारों ने महीनों तक पेंटिंग बनाई, लेकिन पेंटिंग से पेट नहीं भरता. जब पेंटिंग्स बिकेगी, तभी अर्थोपार्जन होगा.

पढ़ें. राजस्थान दिवस 2022: डूंगरपुर में लोक कलाकारों ने बिखेरे राजस्थान के चटख रंग, एक 'नए संकल्प' के साथ मना जश्न

यही वजह है कि जयपुर के कलाकार दुखी होकर कोई रिक्शा चला रहा है, कोई सब्जी का ठेला लगा रहा है. कोई चाय बेच रहा है और कोई चौकीदारी कर रहा है. यदि ऐसा ही रहा तो आने वाले समय में ये कला पूरी तरह लुप्त हो जाएगी. वैदिक चित्रकार ने कहा कि ये दुर्भाग्य है कि हिंदुस्तान में इस कला का न तो कोई स्कूल है, न कोई कॉलेज. हालांकि रंगरेज संस्थान की ओर से 1996 से गुरु शिष्य परंपरा के अनुरूप देसी-विदेशी छात्रों को वो क्लासेस दे रहे हैं. जयपुर चित्रकारी के गुर सीखने वाले कुछ कलाकार प्रोफेशनल थे, जो अपनी कला को और निखारना चाहते हैं. उन्होंने कोरोना काल में भी क्लासेस ली.

हालांकि, रामू रामदेव ने अपनी लाचारी व्यक्त करते हुए कहा कि चित्रकारी सीखने वाले कलाकारों को ये नहीं कह सकते कि उन्हें बड़ा रोजगार मिलेगा. फिलहाल जो कलाकार मौजूद हैं, टूरिस्ट नहीं आने की वजह से उनकी भी हालत खराब है. फिलहाल वो खुद नहीं दौड़ पा रहे तो किसी को चलने की राय कैसे दे सकते हैं. उन्होंने स्पष्ट किया कि जब तक की टूरिज्म पटरी पर नहीं लौटेगा और राज्य सरकार इसके संरक्षण के विषय में नहीं सोचती, इस कला को जीवनदान नहीं मिलेगा.

कलाकारों की कला को दें बढ़ावा: उन्होंने भारतीय कला को जिंदा रखने का एक अनूठा तरीका बताया. रामू रामदेव ने कहा कि यदि किसी के भी घर में शादी विवाह या किसी आयोजन में आप गिफ्ट दे रहे हैं तो आसपास के कलाकारों से उनकी कला खरीदें. चाहे वो मिट्टी के हों, लकड़ी के हों या पेपर के. यदि पारंपरिक क्राफ्ट है तो वो खरीद कर उसका प्रचार भी करें और गिफ्ट के तौर पर अपनो को दें. इस दौरान उन्होंने भारत के प्रधानमंत्री की लोकल को वोकल करने पर जोर दिया. उन्होंने कहा कि यदि यही सोच हर भारतीय रखेगा, तो उम्मीद की जा सकती है कि भारत में कला और कलाकारों के लिए स्वर्णिम युग आ जाएगा.

जयपुर. राजधानी जयपुर न सिर्फ अपनी बसावट, बल्कि ऐतिहासिक व्यापार का भी केंद्र रहा है. जयपुर 18वीं सदी (Jaipur Famous for its art and culture) में 36 कारखानों का घर कहलाता था. जहां चित्रकला, नक्काशी और आभूषण सहित शिल्प और लोक कलाओं का विकास हुआ. इन उद्योगों में से कुछ को विशिष्ट सड़कों और बाजारों के माध्यम से जाना गया. ये धरोहर शिल्प और लोक कला के क्षेत्र की विविधता और जीवन शक्ति का गवाह बनी. इन्हीं में से एक है जयपुर की चित्रकारी, जिसने अपना डंका पूरे विश्व में बजवाया.

इस चित्रकारी को करने के लिए 70 से ज्यादा देश गुरु-शिष्य परंपरा के तहत यहां के कलाकारों से गुर सीखते हैं. लेकिन यही चित्रकारी बीते 4 साल से नोटबंदी, जीएसटी और कोरोना की मार झेल कर खुद अपना अस्तित्व तलाश रही है. चित्रकार इस लोक कला से दूर होकर कोई रिक्शा चलाने तो कोई चौकीदारी करने को मजबूर हैं. आलम ये है कि अब ये कलाकार नई पीढ़ी को भी अर्थोपार्जन के नजरिए से जयपुर चित्रकारी सीखने की सलाह नहीं देते.

महज रुचि का विषय बन कर रह गया जयपुर चित्रकारी

विकास के पथ पर बढ़ते देश में हमारी लोक कलाएं लुप्त होती जा रही हैं. हालांकि राजधानी में कुछ ऐसे लोग हैं, जिन्होंने यहां की पुरानी लोक कलाओं को आज भी जीवित रखा हुआ है. उन्हीं में से एक हैं वैदिक चित्रकार रामू रामदेव, जिन्होंने ईटीवी भारत से खास बातचीत में वैदिक चित्रकारी के बारे में बता की. उन्होंने कहा कि वेदों में जिन यंत्रों और मंत्रों का वर्णन किया गया है, उन्हीं के आधार पर की गई चित्रकारी वैदिक चित्रकारी कहलाती है. ये श्री यंत्र, हनुमान यंत्र या राम यंत्र या कोई भी यंत्र हो सकते हैं.

लुप्त होने की कगार पर लोक कलाएं: रामू रामदेव ने बताया कि जयपुर की पहचान यहां की कलाओं से है. यहां के भवनों पर चूने का कोट किया हुआ है. उस पर गुलाबी रंग कर सफेद रंग से बेल-बूटे, पशु-पक्षी का चित्रण किया हुआ है. लेकिन अब ये कला लुप्त होने की कगार पर है. पहले जब जयपुर का निर्माण कराया गया, उस वक्त कई कलाकार भी थे. जिस प्रकार सोलह शृंगार में बिंदी का महत्व है, उसी तरह लोक कलाओं में भित्तिचित्र का था. जो अब लुप्त होने को है.

पढ़ें. 75th Cannes Film Festival in France : लोक कलाकार मामे खान की उपलब्धि पर राजस्थान में जश्न, कलाकारों ने जताई खुशी

हालांकि भित्तिचित्र के अलावा जयपुर के आसपास उनियारा चौमूं, अलवर ठिकानों पर भी चित्रकारी (Disappearing Folk arts and Painting in Rajasthan) होती रही है. इनमें कुछ कलाएं क्लासिकल हैं, कुछ लोक कलाएं हैं. दीपावली पर पाने बनना भी इन्हीं में शुमार है, जो अब देखने को नहीं मिलता. पहले कुमावत समाज में दीपावली पर यदि कोई ससुराल जाता था, तो वो लक्ष्मी जी का पाना हाथ से बनाकर लेकर जाता था. लेकिन आज के दौर में न तो वो कलाकार रहे और न वो परंपरा.

जहां तक बात विदेशी टूरिस्ट के पसंद की है, उन्हें कंटेंपरेरी या मॉडर्न आर्ट में कोई इंटरेस्ट नहीं रहता क्योंकि ये और देशों में भी देखने को मिल जाती है. लेकिन भारत में आकर पर्यटक भारतीय कला देखना पसंद करते हैं. जिसमें लाइन, भाव, कलरों की सॉफ्टनेस और चमक अनायास ही उन्हें अपनी ओर आकर्षित करती है. पर्यटक जब जयपुर आते हैं तो वे इन पेंटिंग्स को खरीद कर जरूर ले जाते हैं. लेकिन कोविड-19 के बाद से हालत खराब हैं.

कोरोना के बाद चित्रकारों की हालत खराब: चित्रकार रामू रामदेव ने बताया कि जयपुर के चित्रकार 4 साल से संघर्ष कर रहे हैं. पहले नोटबंदी का असर देखने को मिला. उसके बाद चित्रकला पर लगने वाले 12% जीएसटी से पेंटिंग्स महंगी हो गई. पेंटिंग्स महंगी होने से शोरूम के डीलर और लोगों ने खरीदना बंद कर दिया. जब पेंटिंग बिकेगी ही नहीं तो कलाकार क्या करेगा. शौक के लिए कई चित्रकारों ने महीनों तक पेंटिंग बनाई, लेकिन पेंटिंग से पेट नहीं भरता. जब पेंटिंग्स बिकेगी, तभी अर्थोपार्जन होगा.

पढ़ें. राजस्थान दिवस 2022: डूंगरपुर में लोक कलाकारों ने बिखेरे राजस्थान के चटख रंग, एक 'नए संकल्प' के साथ मना जश्न

यही वजह है कि जयपुर के कलाकार दुखी होकर कोई रिक्शा चला रहा है, कोई सब्जी का ठेला लगा रहा है. कोई चाय बेच रहा है और कोई चौकीदारी कर रहा है. यदि ऐसा ही रहा तो आने वाले समय में ये कला पूरी तरह लुप्त हो जाएगी. वैदिक चित्रकार ने कहा कि ये दुर्भाग्य है कि हिंदुस्तान में इस कला का न तो कोई स्कूल है, न कोई कॉलेज. हालांकि रंगरेज संस्थान की ओर से 1996 से गुरु शिष्य परंपरा के अनुरूप देसी-विदेशी छात्रों को वो क्लासेस दे रहे हैं. जयपुर चित्रकारी के गुर सीखने वाले कुछ कलाकार प्रोफेशनल थे, जो अपनी कला को और निखारना चाहते हैं. उन्होंने कोरोना काल में भी क्लासेस ली.

हालांकि, रामू रामदेव ने अपनी लाचारी व्यक्त करते हुए कहा कि चित्रकारी सीखने वाले कलाकारों को ये नहीं कह सकते कि उन्हें बड़ा रोजगार मिलेगा. फिलहाल जो कलाकार मौजूद हैं, टूरिस्ट नहीं आने की वजह से उनकी भी हालत खराब है. फिलहाल वो खुद नहीं दौड़ पा रहे तो किसी को चलने की राय कैसे दे सकते हैं. उन्होंने स्पष्ट किया कि जब तक की टूरिज्म पटरी पर नहीं लौटेगा और राज्य सरकार इसके संरक्षण के विषय में नहीं सोचती, इस कला को जीवनदान नहीं मिलेगा.

कलाकारों की कला को दें बढ़ावा: उन्होंने भारतीय कला को जिंदा रखने का एक अनूठा तरीका बताया. रामू रामदेव ने कहा कि यदि किसी के भी घर में शादी विवाह या किसी आयोजन में आप गिफ्ट दे रहे हैं तो आसपास के कलाकारों से उनकी कला खरीदें. चाहे वो मिट्टी के हों, लकड़ी के हों या पेपर के. यदि पारंपरिक क्राफ्ट है तो वो खरीद कर उसका प्रचार भी करें और गिफ्ट के तौर पर अपनो को दें. इस दौरान उन्होंने भारत के प्रधानमंत्री की लोकल को वोकल करने पर जोर दिया. उन्होंने कहा कि यदि यही सोच हर भारतीय रखेगा, तो उम्मीद की जा सकती है कि भारत में कला और कलाकारों के लिए स्वर्णिम युग आ जाएगा.

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