जयपुर. यह कहानी है कांग्रेस के दो वरिष्ठ नेताओं की, दोनों का नाम कांग्रेस के अध्यक्ष पद (congress president election) के लिए चला. एक स्वेच्छा से दावेदार थे तो दूसरे मजबूरी में. दोनों दौड़ में शामिल होकर हट भी गए. एक बेमन से तो दूसरे रणनीति बनाकर. एक को ऊपर से आशीर्वाद नहीं मिला तो दूसरे ने आशीर्वाद को ही ठुकरा दिया. बहरहाल दोनों अध्यक्ष पद की दौड़ से हट गए हैं. दोनों ने मीडिया के सामने इसकी वजह भी बताई. फिर भी मन में क्या था ये दिल्ली से निकलते ही सामने आ गया. अपने सूबे में पहुंचते ही दोनों वरिष्ठ नेताओं ने जो राग अलापा उससे बखूबी समझा जा सकता है कि अध्यक्ष पद की दौड़ से हटते वक्त उनके मन में क्या था. एक ने सोशल मीडिया पर वैराग दिखाया तो दूसरे ने मीडिया के सामने सत्ता राग सुनाया.
इधर गहलोत से कुर्सी ना छोड़ी जायः कांग्रेस अध्यक्ष पद की कहानी में क्लाईमैक्स जिन दो किरदारों की बदौलत आया वे राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और एमपी के पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह ही हैं. दोनों गांधी परिवार के लॉयल्टी टेस्ट में भी खरे उतरते रहे हैं, लेकिन इत्तेफाक है कि कांग्रेस के दुर्दिन में पार्टी को अपना कंधा दोनों ही नेता नहीं दे पाए. खैर कहानी में ट्विस्ट केवल इन दोनों के अध्यक्ष पद की दौड़ से बाहर होने की अपनी-अपनी वजह के साथ नहीं आए. क्लाईमैक्स तो इसे कहा जाएगा कि दौड़ से बाहर आए इन दो दिग्गजों के दिल की बात ज़ुबां पर आई है.
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राजनीति का अखाड़ा बने हुए राजस्थान में बीकानेर से गहलोत का बड़ा बयान सामने आया है. दिल्ली से लौटकर अशोक गहलोत ने बयान दिया (Cm Gehlot on Political crisis in Rajasthan) कि वो पूरे पांच साल तक सरकार चलाएंगे. उनके इस बयान को लेकर राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि इसे केवल अशोक गहलोत के मन की बात माना जाए या हाईकमान की भी मुहर है इस एलान में. क्योंकि पार्टी आलाकमान की ओर से सूबे के अगले सीएम के नाम की घोषणा के लिए 48 घंटे का समय निर्धारित था.
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उधर दिग्गी राजा हुए बैरागी: इत्तेफाक देखिए टाइमिंग तकरीबन वही है. लेकिन कांग्रेस के ही दो दिग्गज राजनेताओं मन की बात अलग-अलग है. गहलोत जहां पांच साल तक सरकार चलाने की बात कह रहे हैं. वहीं कांग्रेस अध्यक्ष का पद मजबूरी में छोड़ने के बाद दिग्विजय सिंह यूं पेश आ रहे हैं कि सियासत में पद छोड़ (congress leader Digvijay singh tweet) देने वाला ही तो असल शहंशाह होता है. ये और बात है कि उनकी ये नसीहत उनके समकालीन नेता अशोक गहलोत तक पहुंच कर भी नहीं पहुंची. दिग्विजय सिंह ने ट्विटर पर एक ही दिन में दो ट्वीट किए है.
पहले ट्वीट में वे रहीम को याद करते हैं. और कहते हैं चाह गई चिंता मिटी मनुआ बे परवाह. जाके कछु नहीं चाहिए वे शाहन के शाह. इसी दिन दिग्विजय सिंह अपने दूसरे ट्वीट में कलाकार विनोद दुबे का एक वीडियो शेयर करते हैं. वीडियो में विनोद दुबे जो गीत सुना रहे हैं वो खास है. क्या लेके आया जग में क्या लेके जाएगा. मन सुन जोगी बात ये माया करती घात आतम भीतर समझात. मूरख ना समझे बात. अब सवाल उठ रहे हैं कि कांग्रेस अध्यक्ष पद से नाम वापिस लेने के एन दूसरे ही दिन दिग्विजय ऐसे बैरागी क्यों हो गए है. क्या ये सोशल संदेश दिया जा रहा है कि 2003 में मिली हार के बाद दस साल तक कांग्रेस में कोई भी पद नहीं लेने का एलान करने वाले दिग्विजय सत्ता में साधू भाव में ही रहते हैं.