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पिता ने मुझे बेटे के तरह पाला, उनकी हर जिम्मेदारी मेरी

जयपुर के चाकसू कस्बे में रहने वाली लीना बेनीवाल ने पिता के निधन के बाद पगड़ी की रस्म ऐसे निभाई और संपन्न की जैसे कोई बेटा करता है. सामाजिक स्वीकृति के बीच लीना के माथे पिता की पगड़ी बंधी तो उसका चेहरा बदलाव की रोशनी से दमक उठा.

Daughter tied a turban after father death,  Chaksu News
बेटी ने बांधी पगड़ी
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Published : Jul 28, 2020, 10:15 PM IST

चाकसू (जयपुर). भारतीय समाज में पगड़ी की रस्म से अकसर बेटियों को वंचित रखा जाता है. रस्म है कि पिता के अवसान के बाद पुत्र ही पिता की पगड़ी धारण करता है, लेकिन जयपुर जिले के चाकसू कस्बे की एलबीएस कॉलोनी में रहने वाली लीना बेनीवाल ने पिता के निधन के बाद पगड़ी की रस्म ऐसे निभाई और संपन्न की, जैसे कोई बेटा करता है.

पिता के देहांत के बाद बेटी ने बांधी पगड़ी

लीना ने पिता की पगड़ी अपने सिर पर बांध कर बदलाव की एक नई इबारत लिखी है. लीना पेशे से डॉक्टर हैं. उनका कहना है कि मेरा मकसद सिर्फ इतना ही है कि बेटियों को बराबरी का हक मिले. मेरे पिता ने हमेशा मुझे बेटे से भी ज्यादा महत्व दिया. उन्होंने बताया कि अपने पिता की ख्वाहिश पूरा करने के लिए उनके निधन के बाद उनको मुखाग्नि दी और सामाजिक परपंरा के अनुसार पगड़ी की रस्म भी अदा की. उन्होंने कहा कि ये सभी बेटियों के हक का सम्मान है.

Daughter tied a turban after father death,  Chaksu News
बेटी ने बांधी पगड़ी

पढ़ें- कद से नहीं बल्कि काबिलियत से मिलता है मुकाम, तीन फीट की आरती ने IAS बन किया साबित

बता दें कि कुछ दिनों पहले लीना के पिता अशोक बेनीवाल का देहांत हो गया था. उनके पिता रेलवे में अधिकारी थे. लीना और योशिता दो बहने हैं. लिहाजा परिवार की जिम्मेदारी लीना के कंधों पर ही रही है. इस बीच जब पगड़ी की रस्म का मौका आया तो लीना ने पगड़ी और बेटी के बीच सदियों से बने फासले को मिटा दिया. सामाजिक स्वीकृति के बीच लीना के माथे पिता की पगड़ी बंधी तो उसका चेहरा बदलाव की रोशनी से दमक उठा.

बेटियां भी बेटों के जैसे सभी जिम्मेदारियों का निर्वहन करती हैंः सामाजिक कार्यकर्ता

इसको लेकर सामाजिक कार्यकर्ता रूपनारायण सांवरिया का कहना है कि अब समय भी बदल गया है. बेटियां भी घर की जिम्मेदारी निभा सकती हैं. पहले बेटों को ही पगड़ी रस्म का दस्तूर था क्योंकि पगड़ी की रस्म का अर्थ है परिवार के मुखिया के निधन के बाद पगड़ी के जरिए जिम्मेदारी का अंतरण. पहले बेटियांं घर से बाहर नहीं निकलती थी, अब वे बेटों के जैसे सभी जिमेदारियों का निर्वहन करने में सक्षम है.

मेरे पिता ने हमेशा मुझे बेटे से ज्यादा महत्व दियाः लीना बेनीवाल

डॉ. लीना बेनीवाल का कहना है कि मेरे पिता ने हमेशा मुझे बेटे से भी ज्यादा महत्व दिया. उन्होंने बेटी-बेटों में कोई फर्क नहीं किया. लेकिन उनके निधन के बाद पगड़ी दस्तूर का सवाल आया तो मुझे लगा मेरे दिवगंत पिता की ख्वाहिश पूरी होगी तो मैं ही पगड़ी की रस्म अदा करुंगी. उन्होंने बताया कि ये सभी बेटियों के हकों का सम्मान है और इस रस्म में मेरा समाज मेरे साथ खड़ा है.

चाकसू (जयपुर). भारतीय समाज में पगड़ी की रस्म से अकसर बेटियों को वंचित रखा जाता है. रस्म है कि पिता के अवसान के बाद पुत्र ही पिता की पगड़ी धारण करता है, लेकिन जयपुर जिले के चाकसू कस्बे की एलबीएस कॉलोनी में रहने वाली लीना बेनीवाल ने पिता के निधन के बाद पगड़ी की रस्म ऐसे निभाई और संपन्न की, जैसे कोई बेटा करता है.

पिता के देहांत के बाद बेटी ने बांधी पगड़ी

लीना ने पिता की पगड़ी अपने सिर पर बांध कर बदलाव की एक नई इबारत लिखी है. लीना पेशे से डॉक्टर हैं. उनका कहना है कि मेरा मकसद सिर्फ इतना ही है कि बेटियों को बराबरी का हक मिले. मेरे पिता ने हमेशा मुझे बेटे से भी ज्यादा महत्व दिया. उन्होंने बताया कि अपने पिता की ख्वाहिश पूरा करने के लिए उनके निधन के बाद उनको मुखाग्नि दी और सामाजिक परपंरा के अनुसार पगड़ी की रस्म भी अदा की. उन्होंने कहा कि ये सभी बेटियों के हक का सम्मान है.

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बेटी ने बांधी पगड़ी

पढ़ें- कद से नहीं बल्कि काबिलियत से मिलता है मुकाम, तीन फीट की आरती ने IAS बन किया साबित

बता दें कि कुछ दिनों पहले लीना के पिता अशोक बेनीवाल का देहांत हो गया था. उनके पिता रेलवे में अधिकारी थे. लीना और योशिता दो बहने हैं. लिहाजा परिवार की जिम्मेदारी लीना के कंधों पर ही रही है. इस बीच जब पगड़ी की रस्म का मौका आया तो लीना ने पगड़ी और बेटी के बीच सदियों से बने फासले को मिटा दिया. सामाजिक स्वीकृति के बीच लीना के माथे पिता की पगड़ी बंधी तो उसका चेहरा बदलाव की रोशनी से दमक उठा.

बेटियां भी बेटों के जैसे सभी जिम्मेदारियों का निर्वहन करती हैंः सामाजिक कार्यकर्ता

इसको लेकर सामाजिक कार्यकर्ता रूपनारायण सांवरिया का कहना है कि अब समय भी बदल गया है. बेटियां भी घर की जिम्मेदारी निभा सकती हैं. पहले बेटों को ही पगड़ी रस्म का दस्तूर था क्योंकि पगड़ी की रस्म का अर्थ है परिवार के मुखिया के निधन के बाद पगड़ी के जरिए जिम्मेदारी का अंतरण. पहले बेटियांं घर से बाहर नहीं निकलती थी, अब वे बेटों के जैसे सभी जिमेदारियों का निर्वहन करने में सक्षम है.

मेरे पिता ने हमेशा मुझे बेटे से ज्यादा महत्व दियाः लीना बेनीवाल

डॉ. लीना बेनीवाल का कहना है कि मेरे पिता ने हमेशा मुझे बेटे से भी ज्यादा महत्व दिया. उन्होंने बेटी-बेटों में कोई फर्क नहीं किया. लेकिन उनके निधन के बाद पगड़ी दस्तूर का सवाल आया तो मुझे लगा मेरे दिवगंत पिता की ख्वाहिश पूरी होगी तो मैं ही पगड़ी की रस्म अदा करुंगी. उन्होंने बताया कि ये सभी बेटियों के हकों का सम्मान है और इस रस्म में मेरा समाज मेरे साथ खड़ा है.

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