जयपुर. देश में पीरियड फिल्मों पर हमेशा से विवादों का साया मंडराता रहा है. फिल्म 'जोधा अकबर' हो 'पद्मावत' हो या अक्षय कुमार की आने वाली फिल्म 'पृथ्वीराज'. इस फिल्म के रिलीज होने से पहले ही राजस्थान में गुर्जर समाज ने फिल्म में पृथ्वीराज चौहान को राजपूत बताए जाने पर विरोध (Prithviraj Chauhan caste controversy) दर्ज कराया है. वहीं, राजपूत समाज ने कहा है कि पृथ्वीराज राजपूत थे.
श्री क्षात्र पुरुषार्थ फाउंडेशन ने गुर्जर समाज के इस बयान पर कहा है कि पृथ्वीराज चौहान राजपूत थे. गुर्जर क्षेत्र जीतने के कारण गुर्जराधिपति कहलाये. साथ ही उन्होंने कहा कि पहले अंग्रेज, फिर वामपंथी और राजनीतिक दलों के अलावा फिल्मों में भी इतिहास को तोड़मरोड़ कर पेश किया जाता रहा है.
ईटीवी भारत से खास बातचीत में श्री क्षात्र पुरुषार्थ फाउंडेशन के संरक्षक महावीर सिंह सरवड़ी ने बताया कि ऐतिहासिक महापुरुष किसी जाति और समुदाय की संपत्ति ना होकर राष्ट्रीय नायक हैं. उनके इतिहास और वंशगत पहचान पर विवाद अपनी राजनीति का पोषण करने का प्रयास ना केवल निंदनीय है, बल्कि सामाजिक अपराध भी है. ये दुर्भाग्यपूर्ण है कि पहले तथाकथित वामपंथियों ने ये प्रयास किया और वर्तमान में तथाकथित दक्षिणपंथी भी ऐसे प्रयासों को प्रोत्साहित कर रहे हैं.
पृथ्वीराज ने गुर्जर क्षेत्र भी जीता, इसलिए गुर्जराधिपति कहलाए
उन्होंने उदाहरण देते हुए बताया कि मेवाड़ की स्वतंत्रता के नायक राणा पूंजा जी सोलंकी की वंशगत पहचान बदल कर उन्हें भील घोषित किया गया. राष्ट्र की आवश्यकता के लिए अपनी संतान का बलिदान देने वाली क्षत्राणी पन्नाधाय खींची को गुर्जर बताया गया. पूर्वी उत्तरप्रदेश के नायक महाराजा सुहेलदेव बैंस को पासी या राजभर घोषित किया गया और उनके नाम पर एक जातिवादी राजनीतिक दल ही बना दिया गया है. गुर्जर क्षेत्र को गुर्जर जाति के साथ जोड़ कर सम्राट पृथ्वीराज चौहान को गुर्जर घोषित करने का षड्यंत्र चल रहा है. जबकि पृथ्वीराज मूल रूप से अजमेर के थे. उन्होंने गुर्जर क्षेत्र भी जीता था. इसी वजह से वे गुर्जराधिपति कहलाए.
महावीर सिंह ने कहा कि आजादी से पहले अंग्रेजों ने खुद को श्रेष्ठ सिद्ध करने के लिए इतिहास को विकृत करने का प्रयास किया. आजादी के बाद तत्कालीन वामपंथी राजनीतिक दलों ने भी पश्चिम परस्त इतिहासकारों का उपयोग कर इतिहास को विकृत करने का प्रयास किया और सांप्रदायिक तुष्टिकरण की नीति के तहत उसे कमतर करने के लिए मिथक गढ़े गए. वहीं अब ऐतिहासिक पृष्ठभूमि से मिलते जुलते नामों के आधार पर बहुत सारा तथ्यहीन साहित्य छपवाया और बंटवाया जा रहा है. फिल्मों में और सोशल मीडिया पर भी ऐसी मुहीम जारी है. तुष्टिकरण की इस मुहीम के चलते जातिगत टकराव और विद्वेष में बढ़ोतरी हुई है. जो देश की एकता और अखंडता के लिए घातक है. राजनेता, सामाजिक संगठन, साहित्यकार, फिल्मकार और विभिन्न समाजों के शरारती तत्व इतिहास को विकृत करने का प्रयास कर रहे हैं.
अधिसूचित जातियों में गुर्जर जाति का उल्लेख तक नहीं
उन्होंने बताया कि गुजरात सरकार का पर्यटन विभाग जिस मोढेरा मन्दिर को 2 वर्ष पूर्व सोलंकी राजपूतों की ओर से निर्मित बता रहा था, वो उसे गुर्जरों की ओर से निर्मित बताते हुए ट्वीट करता है और फिर डिलीट कर देता है. गुजरात में राज्य सरकार ने तो अपनी वेबसाइट पर ही गुजरात को गुर्जरों की भूमि बता कर परमार, प्रतिहार, सोलंकी, चौहान क्षत्रिय वंशों को गुर्जर बता दिया. जबकि वस्तुस्थिति ये है कि आज भी गुजरात में गुर्जर जाति की जनसंख्या नगण्य है और गुजरात सरकार की ओर से अधिसूचित जातियों में गुर्जर जाति का उल्लेख तक नहीं है. इसके लिए गुजरात के मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर अवगत करवा चुके हैं. उन्होंने सभी समाजों के समझदार तबके से अपील करते हुए कहा कि अपने समाज के उपद्रवी तत्वों पर अंकुश लगाएं. अन्यथा गैर जिम्मेदार लोग अपने-अपने समाजों की छवि को धूमिल करेंगे और समाजों में टकराव भी बढ़ाएंगे. उन्होंने इस प्रकरण में भी प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर संवैधानिक तरीके से लड़ाई लड़ने की बात कही.
वहीं पृथ्वीराज चौहान पर किताब लिख चुके वीरेंद्र सिंह राठौड़ ने कहा कि इतिहास में कोई भी व्यक्ति केवल स्थान से गुर्जर रहा है, जाति-जनजाति से नहीं. जहां तक पृथ्वीराज चौहान की वास्तविक जाति का प्रश्न है, प्राचीन इतिहास में राजाओं की जाति बताने का चलन ही नहीं था. चूंकि राजा पूरे राज्य का होता है. वो सभी जाति-जनजाति से ऊपर उठकर होता है. हालांकि पृथ्वीराज रासो में इस बात के स्पष्ट संकेत मिलते हैं कि पृथ्वीराज चौहान जाति से राजपूत थे. हालांकि उसमें भी कहीं पर सीधे तौर पर लिखा नहीं गया. लेकिन उनके रिश्तेदार, सैनिक और चौहानों को स्पष्ट रूप से राजपूत बताया गया है.
उन्होंने वर्तमान राजस्थान सरकार के पूर्व शिक्षा मंत्री पर भी पाठ्यक्रम में बदलाव कर महाराणा प्रताप की महानता से प्रेरित हो मुगल सेनापति अब्दुर्रहीम खानखाना के संत रहीम बनने की घटना का विवरण पाठ्यक्रम से हटाने का आरोप लगाया.