जयपुर. देश में सौर ऊर्जा के मामले में राजस्थान में असीम संभावना है. वहीं प्रदेश के ऊर्जा मंत्री बीडी कल्ला कहते हैं कि राजस्थान बिजली के क्षेत्र में लगभग आत्मनिर्भरता की स्थिति पर पहुंच चुका है और रात में तो बिजली का अधिक उत्पादन है. हालांकि ऊर्जा मंत्री बीडी कल्ला के इस बयान के बावजूद प्रदेश के बिजली उपभोक्ताओं को आसपास के 5 पड़ोसी राज्यों की तुलना में बिजली महंगी दरों पर दी जा रही है. सुनने में अजीब है लेकिन यही 100 प्रतिशत कड़वा सच है.
बिजली में आत्मनिर्भर राजस्थान लेकिन उपभोक्ता को राहत में पिछड़ा
सौर ऊर्जा और पवन ऊर्जा के मामले में होने वाले बिजली उत्पादन में राजस्थान देश के टॉप 5 राज्यों में शामिल है लेकिन फिर भी सबसे महंगी बिजली राजस्थान के उपभोक्ताओं को ही मिल रही है. दिल्ली, हरियाणा, गुजरात, मध्य प्रदेश और पंजाब से यदि राजस्थान की तुलना की जाए तो राजस्थान के उपभोक्ता खुद को बिजली के मामले में ठगा सा महसूस कर रहे हैं. इन पांचों प्रदेशों में उपभोक्ताओं को राजस्थान की तुलना में कम दरों पर बिजली उपलब्ध कराई जा रही है. जबकि राजस्थान के बिजली उपभोक्ताओं को इन पांचों राज्य के बिजली उपभोक्ताओं की तुलना में अधिक दरों से बिजली का भुगतान करना पड़ता है. यह स्थिति तो तब है जब दिल्ली, हरियाणा, मध्य प्रदेश और पंजाब में सौर ऊर्जा और पवन ऊर्जा उत्पादन की संभावना राजस्थान की तुलना में बहुत कम है.
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आलम यह है कि आत्मनिर्भर प्रदेशों में बिजली की दर 4 रुपए प्रति यूनिट तक है. राजस्थान में 96 प्रतिशत उत्पादन के बावजूद उपभोक्ताओं को इससे कई महंगी दरों पर बिजली का भुगतान करना पड़ता है.
राज्यों में इस प्रकार है बिजली की दरें
किसानों को सर्वाधिक सब्सिडी लेकिन आम उपभोक्ता परेशान, ये कैसा न्याय
राजस्थान में आम उपभोक्ताओं को महंगी दरों पर बिजली (electricity rates in Rajasthan) मिलने के कई कारण हैं. खासतौर पर बिजली के बिल में स्थाई शुल्क और सेस मिलाकर मात्र 55 यूनिट बिजली का बिल ही 720 रुपये यानी 13.34 पैसे प्रति यूनिट तक पहुंच जाता है. राजस्थान में सर्वाधिक सब्सिडी किसान को दी जाने वाली बिजली पर ही मिलती है.
ऊर्जा मंत्री बीडी कल्ला के अनुसार अन्य प्रदेशों की तुलना में राजस्थान किसानों को सबसे सस्ती बिजली दे रहा है लेकिन इसका इसका असर आम मध्यमवर्गीय बिजली उपभोक्ताओं पर पड़ रहा है. खासतौर पर प्रदेश के 1 करोड़ 20 लाख घरेलू उपभोक्ताओं पर बिजली बिल का भार पड़ रहा है. राजस्थान में कुल 1 करोड़ 53 लाख बिजली उपभोक्ता है. जिनमें 14 लाख 41 हजार कृषि कनेक्शन शामिल हैं. इन्हीं कृषि कनेक्शन पर सर्वाधिक सब्सिडी प्रदेश सरकार देती है.
राजस्थान में मांग की तुलना में 96 प्रतिशत उत्पादन, अन्य राज्यों की तुलना में ये है उत्पादन स्थिति
अक्षय ऊर्जा की असीम संभावनाओं के चलते राजस्थान में रोजाना करीब 2600 लाख यूनिट बिजली की आवश्यकता होती है. इस लिहाज से राजस्थान में उत्पादन प्रतिदिन करीब 250 लाख यूनिट औसतन है. राजस्थान में मतलब मांग की तुलना में 96 प्रतिशत उत्पादन होता है. ऊर्जा मंत्री बीडी कल्ला कहते हैं कि रात को तो राजस्थान के पास एक्सेस बिजली होती है. फिर भी प्रदेश के उपभोक्ताओं को महंगी बिजली मिले तो सवाल उठना लाजमी है.
बढ़ता घाटा और कुप्रबंधन है बड़ा कारण
राजस्थान में बिजली के अच्छे उत्पादन के बावजूद महंगी दरों पर बिजली मिलने का एक बड़ा कारण कुप्रबंधन और बिजली कंपनियों पर बढ़ता घाटा है. वर्तमान बिजली कंपनियां 80 हजार करोड़ से अधिक का घाटा झेल रही है. जबकि नवंबर 2015 में तत्कालीन वसुंधरा राजे सरकार ने केंद्र सरकार की उदय योजना के तहत तीनों कंपनियों के इस घाटे को 60 हजार करोड़ का समायोजन करवा दिया था लेकिन ऊर्जा मंत्री के अनुसार समायोजन के बाद भी जो ब्याज लग रहा है, उसके कारण घाटा लगातार बढ़ रहा है. वहीं किसानों को दिए जाने वाले सर्वाधिक सब्सिडी के कारण भी अन्य उपभोक्ताओं को राहत नहीं मिल पा रही है.
मंत्री ने डाला विनियामक आयोग पर जिम्मा लेकिन घाटा कम करने की जिम्मेदारी तो आपकी
इस मसले पर ईटीवी भारत से खास बातचीत में ऊर्जा मंत्री बीडी कल्ला कहते हैं कि राजस्थान राज्य विनियामक आयोग आमजन की सुनवाई कर के जो दरें तय करता है, उसके अनुरूप बिजली की दरों का निर्धारण होता है. ऐसे में सरकार इसमें क्या करें लेकिन यह भी सही है कि आयोग बिजली कंपनियों के मौजूदा घाटे और आर्थिक हालात को देखकर ही बिजली की दरों का निर्धारण करता है. अब कंपनियों को घाटे से उबारने की जिम्मेदारी सरकार और डिस्कॉम प्रबंधन की है, जिसमें वो पूरी तरह फेल साबित हुई.
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आज भी प्रदेश में भरतपुर, धौलपुर और करौली और दौसा सहित ऐसे कई जिले हैं, जहां पर बिजली छीजत के आंकड़े 25 से 35 फीसदी तक है. मतलब डिस्कॉम बिजली की रेट कम करें और महंगी बिजली उत्पादन की तुलना में सौर उत्पादन पर अधिक ध्यान दें तो राजस्थान में भी बिजली की दरों में कमी लाई जा सकती है.