जयपुर. इंदौर बीते 5 साल से स्वच्छता सर्वेक्षण में अव्वल आ रहा है. सफाई और कचरा निस्तारण के मामले में लगातार नए कीर्तिमान स्थापित कर रहा है. जबकि प्रदेश की राजधानी जयपुर में व्यवस्थाओं को सुधारने के नाम पर दो नगर निगम तो कर दिए, लेकिन हालात में कोई सुधार नहीं हुआ. यही कारण है कि दो निगम बनने के बाद रैंक और गिर गई. फिलहाल, स्वच्छता सर्वेक्षण की टीम कभी भी शहर में दस्तक दे सकती है, लेकिन घर-घर कचरा संग्रहण करने की प्रणाली से लेकर कचरे को निस्तारित करने के प्लांट्स की कमी शहर के 1000 से ज्यादा अंकों पर भारी पड़ेगी.
स्वच्छता सर्वेक्षण में पूरे भारत में लगातार पहले नंबर पर रहने वाले इंदौर की कार्यप्रणाली, कचरा प्रबंधन और प्रोसेसिंग की तुलना में जयपुर में कचरे को निस्तारित करना तो दूर की बात घर-घर कचरा संग्रहण (Door to door garbage collection in Jaipur) में ही दोनों निगम फेल हो रहे हैं. कचरे का सेग्रीगेशन नहीं हो पा रहा. व्यवसायिक क्षेत्रों में सफाई नहीं हो रही. नाले और वाटर बॉडी को कचरे से मुक्त करने पर कोई काम नहीं हो रहा. यही नहीं बिल्डिंग मटेरियल वेस्ट को निस्तारित करने के लिए प्लांट कागजों तक ही सीमित है. जबकि इंदौर की डोर टू डोर कचरा संग्रहण प्रणाली, सीएंडडी वेस्ट प्लांट, एमआरएफ सेंटर और बायो सीएनजी प्लांट शहर को अव्वल बनाने में मुख्य भूमिका अदा करते हैं.
घर-घर कचरा संग्रहण प्रणाली: नगर निगम इंदौर की ओर से पूरे शहर में घर-घर कचरा संग्रहण कार्य नगर निगम के वाहनों से किया जा रहा है. इस कार्य में नगर निगम के कुल 800 छोटे-बड़े सभी प्रकार वाहन लगे हुए हैं. नगर निगम इंदौर में कुल 19 जोन और 85 वार्ड हैं. प्रत्येक वाहन जियो टैगिंग और जियोफेनसिंग से मॉनिटर किया जाता है. प्रत्येक वाहन का एक रूट मैप निर्धारित है. उसको उसी रूट मैप के अनुसार कचरा संग्रहण कार्य करना होता है. यदि वो वाहन किसी स्थान पर 5 मिनट से ज्यादा रुकता है या अपने निर्धारित रूट से अलग, निर्धारित गति सीमा से तेज चलता है तो नगर निगम में स्थापित इंटीग्रेटेड कंट्रोल कमांड सेंटर पर पॉपअप शो हो जाता है.
इसकी मॉनिटरिंग इंटीग्रेटेड कमांड सेंटर से प्रत्येक जोन के लिए एक एलईडी मय ऑपरेटर लगा हुआ है, जो ये निर्धारित करता है कि वाहन नियमित, समय के अनुसार और निर्धारित रूट के सभी घरों से कचरा संग्रहण कार्य करें. कचरा संग्रहण में लगे हुए वाहन लगभग 800 से 1000 घरों का कचरा संग्रहण करता है. एक वाहन की क्षमता लगभग 500 से 600 किलो है. कचरा संग्रहण का कार्य 100 प्रतिशत सोर्स सेग्रीगेशन के आधार पर किया जाता है. इसमें 6 अलग-अलग तरह का कचरा लिया जाता है. जिसमें सूखा कचरा, गीला कचरा, प्लास्टिक कचरा, ई-वेस्ट (E-waste), डोमेस्टिक बायो वेस्ट (Domestic Bio waste) और हाजार्ड वेस्ट (hazard waste) शामिल है.
बता दें, प्रत्येक वाहन में 6 डस्टबिन लगे हुए हैं. नगर निगम इंदौर की ओर से प्रत्येक घर, बाजार, प्रतिष्ठान, कच्ची बस्ती, थड़ी- ठेला से एक निर्धारित यूजर चार्ज लिया जाता है. प्रत्येक वाहन को कचरा संग्रहण कर निर्धारित कचरा ट्रांसफर स्टेशन पर कचरा डंप करना होता है. वहां कुल 10 ट्रांसफर स्टेशन बने हुए हैं. इन पर गीला और सूखा कचरा अलग-अलग डंप किया जाता है. बाद में यहां से कैप्सूल के माध्यम से कचरा ट्रांसपोर्ट कर डंप साइट पर प्रोसेसिंग के लिए ले जाया जाता है. प्रत्येक कैप्सूल की क्षमता 10 से 11 टन होती है. प्रत्येक ट्रांसफर station की क्षमता लगभग 100 से 125 टन प्रति दिन है. इस कार्य पर नगर निगम का कुल खर्चा लगभग 1200 से 1300 रुपए प्रति टन आता है. इसमें सभी प्रकार के वाहन, डीजल, ड्राइवर, मरम्मत शामिल हैं.
स्वच्छता मित्र : नगर निगम इंदौर की ओर से प्रत्येक स्वच्छता मित्र को एक निर्धारित बीट 800 मीटर निर्धारित की हुई है. इसमें निर्धारित व्यक्ति को ही कार्य करना होता है. नगर निगम इंदौर में कुल 7000 स्वच्छता मित्र हैं. कचरा संग्रहण में लगे प्रत्येक वाहन के साथ एक हेल्पर की व्यवस्था की हुई है. लेकिन घरों से कचरा उपभोक्ता को खुद वाहन में डालना होता है. हेल्पर का कार्य यदि गाड़ी से कोई कचरा गिरने की स्थिति में होता है तो उसे नियमित करना, कचरा फुल होने पर कंपार्टमेंट को बंद करना, यदि कोई बच्चा या सीनियर सिटीजन कचरा लेकर आता है तो उसकी सहायता करना होता है. कचरा संग्रहण का कार्य आवासीय क्षेत्रों में सुबह से दोपहर 12 बजे तक और दोपहर-शाम को बाजारों में किया जाता है. यदि कोई प्रतिष्ठान और बाजार जो 10:00 बजे बाद खुलते हैं, तो वो अपना कचरा निर्धारित दो डस्टबिन में ही रखते हैं और निगम का वाहन आने पर उसमें डालते हैं. ये सभी कार्य स्वास्थ्य शाखा संपादित करती है.
C&D वेस्ट प्लांट : नगर निगम इंदौर की ओर से पीपीपी मॉडल पर डंप साइट देवगुराडिया में 100 टन प्रति दिन क्षमता का C & D वेस्ट प्लांट लगाया गया है. इस तरह के निगम क्षेत्र में कुल 4 प्लांट संचालित हैं. वर्तमान में ये प्लांट 60 से 70 टन प्रति दिन C&D वेस्ट को प्रोसेस कर रहा है. प्लांट स्थापित करने और संचालित करने का सारा खर्चा कंपनी की ओर से वहन किया जाता है. नगर निगम इंदौर ने कंपनी को एक क्रशर और शेड निर्माण करके दिया है और इसका रखरखाव कंपनी खुद करती है. नगर निगम क्षेत्राधिकार में यदि कोई व्यक्ति या प्रतिष्ठान C&D वेस्ट जनरेट करता है तो उसको इसकी सूचना नगर निगम को देनी होती है. बाद में प्राइवेट कंपनी के प्रतिनिधि उस व्यक्ति या प्रतिष्ठान से संपर्क करते हैं और वहां के C&D वेस्ट को उठाने के लिए निर्धारित शुल्क ₹700 प्रति ट्रॉली लेकर सारा वेस्ट साइट पर प्रोसेसिंग के लिए लाया जाता है.
इसमें लगे सभी साधन संसाधन इनका रखरखाव, डीजल, ड्राइवर कंपनी वहन करती है. रॉयल्टी के रूप में कंपनी नगर निगम को 75 हजार रुपए प्रति महीना राजस्व देती है. नगर निगम की ओर से ये प्रावधान किया गया है कि जो भी निर्माण कार्य होंगे, उनमें 20 फीसदी सामग्री C&D वेस्ट से रीसायकल प्लांट से बनी निर्माण सामग्री लेनी होगी. इसका उपयोग अनिवार्य रूप से करना होगा. इस कार्य का पर्यवेक्षण अभियांत्रिकी की पर्यावरण शाखा की ओर से किया जाता है.
MRF सेंटर : नगर निगम इंदौर ने डंपसाइट देवगुराडिया में ही पीपीपी मॉडल पर एमआरएफ सेंटर भी स्थापित किया हुआ है. जिसकी क्षमता 300 टन प्रति दिन है. इस प्लांट का समस्त इंफ्रास्ट्रक्चर मशीनरी प्राइवेट कंपनी की ओर से वहन की जाती है. ये प्लांट आधुनिक और 12 घंटे वर्किंग कंडीशन में रहता है. इस प्लांट से 13 प्रकार के कचरे को अलग-अलग किया जाता है और प्रोसेस कचरे से जो आय प्राप्त होती है, वो कंपनी की होती है. इसके बदले कंपनी नगर निगम को 1.50 करोड़ रुपए प्रतिवर्ष रॉयल्टी के रूप में भुगतान करती है. सूखे कचरे को नगर निगम के ट्रांसफर स्टेशन से एमआरएफ सेंटर तक पहुंचाने की जिम्मेदारी नगर निगम इंदौर की रहती है. इस कार्य का पर्यवेक्षण अभियांत्रिकी की पर्यावरण शाखा की ओर से किया जाता है.
BIO CNG प्लांट : नगर निगम इंदौर ने डंपसाइट देवगुराडिया में ही पीपीपी मॉडल पर BIO CNG PLANT भी बना रखा है. जिसकी क्षमता 500 टन प्रतिदिन है. इस प्लांट का सारा इंफ्रास्ट्रक्चर प्राइवेट कंपनी की ओर से वहन किया गया है. ये प्लांट पूरी तरह आधुनिक तकनीक पर आधारित है और 24 घंटे वर्किंग कंडीशन में रहता है. इस प्लांट से 1200 बसों के लिए पर्याप्त 17 हजार किलो BIO CNG और 100 टन कंपोस्ट बनता है. इससे जो आय प्राप्त होती है, वो कंपनी की होती है. इसके बदले कंपनी नगर निगम को 2.50 करोड़ रुपए प्रतिवर्ष रॉयल्टी के रूप में भुगतान करती है. गीले कचरे को नगर निगम के ट्रांसफर स्टेशन से BIO CNG प्लांट तक पहुंचाने की जिम्मेदारी नगर निगम इंदौर की होती है. इस कार्य का पर्यवेक्षण अभियांत्रिकी की पर्यावरण शाखा की ओर से किया जाता है.
इंदौर नगर निगम की इस कार्यशैली के चलते सर्वेक्षण से जुड़े सवालों में शहरवासी भी बढ़-चढ़कर अपने शहर के लिए पॉजिटिव रिस्पांस देते हैं. इंदौर और जयपुर की स्वच्छता व्यवस्था में तुलना की गई तो ग्रेटर महापौर ने सबसे बड़ी कमी अधिकारियों की बताई. उन्होंने कहा कि जयपुर इंदौर से बहुत सुंदर है, फिर भी इंदौर साफ सुथरा है. इसका कारण है कि वहां सफाई के प्रति अधिकारी समर्पित हैं. हर दिन उनकी फील्ड में ड्यूटी होती हैं और वो वास्तविकता में ड्यूटी कर रहे होते हैं. साथ ही वहां जनता भी अपने शहर के प्रति जागरूक है. जहां तक कचरे को निस्तारित करने के प्लांट का सवाल है तो जयपुर में भी 1 से 2 साल में ये प्लांट बनकर तैयार हो जाएंगे. लेकिन सबसे ज्यादा जरूरी है मॉनिटरिंग. यदि अधिकारी दफ्तर से निकलकर लगातार मॉनिटरिंग करेंगे, तो निश्चित रूप से स्वच्छता में सुधार आएगा.
बहरहाल, बीते पांच सालों में तीन बार निगम के अधिकारी सफाई व्यवस्था परखने और सीखने के लिए इंदौर गए. एक बार तो अधिकारियों की एक टीम चंडीगढ़ भी गई. इसमें लाखों रुपए खर्च किए, लेकिन इन यात्राओं से शहर और यहां की जनता को कोई लाभ नहीं हुआ. ये यात्राएं सैर सपाटे से ज्यादा और कुछ नहीं रहीं क्योंकि अधिकारी वापस लौटकर किसी भी योजना को मूर्तरूप नहीं दे पाए. हालांकि ये साफ है कि जयपुर में अभी ग्रेटर निगम क्षेत्र में डोर टू डोर कचरा संग्रहण का काम कर रही बीवीजी कंपनी बेहतर काम नहीं कर पा रही और न ही जयपुर में इंदौर की तर्ज पर C&D वेस्ट प्लांट और बायो सीएनजी प्लांट है. ऐसे में इस बार भी जयपुर की रैंक में सुधार हो पाएगा, ये सवाल ही बना हुआ है.