जयपुर. जयपुर नगर निगम को भ्रष्टाचार का गढ़ कहा जाता है. क्या वाकई यही स्थिति है. आखिर किस तरह कचरे से कमीशनखोरी का कारोबार संभव है. ईटीवी भारत ने इसी की पड़ताल की.
डोर टू डोर कचरा कलेक्शन और ट्रांसपोर्टेशन में कई लूप पोल्स रहते हैं. जहां से कमीशन का खेल शुरू हो जाता है. लेकिन कमीशन की गुंजाइश तब रहती है, जब किसी कार्य को संपादित करने में कोई डिफेक्ट छोड़ा गया हो.
जयपुर नगर निगम के संदर्भ में अगर बात की जाए तो सभी गाड़ियों में व्हीकल ट्रैकिंग सिस्टम होना चाहिए, सेग्रीगेशन की व्यवस्था होनी चाहिए, ओपन कचरा डिपो उठने चाहिएं, शहर में लिटरबिन और डस्टबिन होने चाहिएं और सही तरीके से ट्रांसफर स्टेशन बनकर उसका आगे डिस्पोज होना चाहिए. इन तमाम पॉइंट्स पर 2017 से लेकर अब तक पालना नहीं हो रही है. जिसका नुकसान जयपुर की जनता को उठाना पड़ता है. इसी कारण कमीशन का खेल चलता है.
अधिकांश बिलों का भुगतान ऑन अकांउट
वहीं जयपुर में जो कंपनी काम कर रही है, उसके अधिकांश बिलों का भुगतान ऑन अकाउंट किया गया है. यानी कि एडवांस के रूप में किया गया है, उनके अधिकतर बिल का वेरिफिकेशन भी नहीं हुआ है. तो जब बिल्स का वेरिफिकेशन ही नहीं हुआ है, तो निरंतर रूप से उसका भुगतान कैसे किया जा रहा है.
डोर-टू-डोर गार्बेज कलेक्शन देशव्यापी
जयपुर नगर निगम में सालों पहले डोर टू डोर कचरा कलेक्शन का काम कर चुके विवेक अग्रवाल ने बताया कि डोर टू डोर गार्बेज कलेक्शन का काम पूरे देश में व्यापक स्तर पर हो रहा है. जयपुर में बीवीजी कंपनी को 1700 से ज्यादा रुपए प्रत्येक टन पर दिए जाते हैं. प्रयागराज में डोर टू डोर कचरा संग्रहण और ट्रांसपोर्टेशन के लिए की परफॉर्मेंस इंडिकेटर तय किए हुए हैं. उसी के आधार पर कंपनी को भुगतान किया जाता है. यदि जयपुर को भी सही सेवाएं लेनी है, तो यहां भी केपीआई फॉलो होना चाहिए. उसी के आधार पर भुगतान होना चाहिए. उन्होंने कहा कि निगम में जो भ्रष्टाचार हो रहा है उसके लिए कंपनी ही नहीं निगम में नीचे से ऊपर तक वैल्यू चैन में जो जुड़ा हुआ है, वो सभी इसके लिए दोषी हैं.
निगम सीधे पब्लिक से डील करते हैं
जब नीचे से ऊपर तक वैल्यू चैन से जुड़े हर व्यक्ति को दोषी ठहराए जाने की बात की गई, तो ईटीवी भारत ने नगर निगम में दो बार कमिश्नर रह चुके पूर्व आईएएस अधिकारी दामोदर शर्मा से भी बात की. उन्होंने बताया कि जयपुर नगर निगम हो चाहे देश के दूसरे राज्यों के नगर निगम, ये सीधे तौर पर पब्लिक से डील करते हैं. जनता के हित के काम करते हैं. प्रमुख रूप से इनका काम सफाई का है. इसके अलावा स्ट्रीट लाइट का मेंटेनेंस, नाली-सड़क निर्माण और दूसरे कंस्ट्रक्शन एक्टिविटी भी रहती है. बीते 10-15 साल से निगम द्वारा जो भी कंस्ट्रक्शन या दूसरे कार्य किए जा रहे हैं, उनकी सही तरह से गणना होना और कार्य की गुणवत्ता का आकलन करना मुश्किल हो गया है. क्योंकि ये बड़े स्तर पर कार्य किया जाता है. इसमें कई अधिकारी कर्मचारी और पार्षद भी जुड़े होते हैं.
निगम में हर स्तर पर कमीशन का खेल
दामोदर शर्मा कहते हैं कि जहां तक भ्रष्टाचार की बात की जाए इस संबंध में जितना कहा जाए उतना कम है. यही वजह है कि निगम के लिए कहा जाता है कि यहां नीचे से ऊपर तक कमीशन फिक्स होता है. जब किसी को पकड़े तभी पता चलता है. वर्तमान में जिस तरह का मामला सामने आया है, उसे सरकार को एसीडी में देना चाहिए और वही मामले की तह तक जांच करे. यही सुझाव है कि इस तरह के कार्यों का थर्ड पार्टी पेमेंट हो, डीएलबी के अधिकारियों की मॉनिटरिंग में कमेटी बनाकर भुगतान हो.
कागजों में कर्मचारी दर्शाने में भी खेल
नगर निगम में भ्रष्टाचार की कलई किस हद तक खुली हुई है, इसका अंदाजा वर्तमान प्रकरण और निगम से जुड़कर काम कर चुके लोगों के बयानों से लगाया जा सकता है. वहीं इस पर और प्रकाश डालते हुए पूर्व महापौर ज्योति खंडेलवाल ने भी कहा कि जब उन्हें महापौर बनने का मौका मिला, तब सामने आया कि निगम में बहुत ज्यादा करप्शन था. उस दौर में सफाई व्यवस्था को बेहतर करने के लिए प्रहरी प्रोटेक्शन के माध्यम से अस्थाई सफाई कर्मचारी लगाए गए थे. कागजों में कर्मचारी कुछ और दर्शाए जाते थे. जबकि फील्ड में ये स्थिति देखने को नहीं मिलती थी. जो कर्मचारी लगे थे, उन्हें भी निगम द्वारा ईएसआई पीएफ का पैसा दिया जा रहा था.
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उद्यान-स्ट्रीट लाइट तक करप्शन
ज्योति खंडेलवाल कहती हैं कि कंपनी कर्मचारियों तक वो पैसा नहीं पहुंचाती थी. इसके अलावा उद्यान, स्ट्रीट लाइट के मामलों में भी करप्शन देखने को मिला. उन्होंने कहा कि इस तरह की स्थिति मॉनिटरिंग की कमी से बनती है. उनके सामने जब भी इस तरह के मामले आए, तब उन मामलों को उठाया गया. यही वजह है कि उन पर निगम कमिश्नर के साथ नहीं बनने तक के आरोप लगाए गए. 10 सीईओ भी उनके कार्यकाल में बदले. यही नहीं कई प्रकरण में एसीबी और सीबीआई तक का दरवाजा भी खटखटाया गया. यहां तक कि प्रधानमंत्री तक भी अपनी शिकायत लेकर गई. इसी का परिणाम रहा कि निगम में बहुत ज्यादा ट्रांसपेरेंसी आ गई.
बहरहाल, नगर निगम यदि भ्रष्टाचार खत्म करना है तो उसका यही रास्ता है कि एसीबी तक शिकायत दर्ज कराई जाए. यदि वहां भी सुनवाई नहीं होती, तो जनता की अदालत में जाकर जनता का साथ लेकर, लड़ाई लड़ नगर निगम को भ्रष्टाचार मुक्त किया जा सकता है.