जयपुर. कोई उन्हें राजस्थान का गांधी, राजनीति का चाणक्य और जादूगर कहे जाने वाले मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का आज जन्मदिन (CM Ashok Gehlot Birthday) है. गहलोत आज 71वां जन्मदिन मना रहे हैं. इस मौके पर उनके शुभचिंतकों के बधाई देने का तातां लगा हुआ है. सुबह मुख्यमंत्री निवास पत्नी सुनीता गहलोत ने तिलक लगा कर सीएम गहलोत को जन्मदिन की बधाई दी.
3 मई, 1951 को जोधपुर में जन्म: 3 मई, 1951 को जोधपुर में लक्ष्मण सिंह गहलोत के घर पैदा हुए अशोक गहलोत के बारे में किसी को नहीं पता था कि यही बच्चा भविष्य में देश की राजनीति के आसमान को छुएगा. देश के बहुत से ऐसे लोग हैं जिन्हें राजनीति का चाणक्य कहा जाता है. उनमें एक नाम अशोक गहलोत का भी है. खुद की पार्टी के ही नहीं बल्कि अन्य राजनीति दल भी गहलोत की राजनीतिक कुशलता के कायल हैं. अपने 50 साल के राजनीतिक जीवन में जो मुकाम गहलोत ने हासिल किया, वो मुकाम बहुत ही कम नेता हासिल कर पाते हैं. छात्र जीवन से ही महात्मा गांधी के विचारों से प्रभावित होकर समाज सेवा में जुड़े. बाद में कांग्रेस में आए और फिर उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. गहलोत के पिता लक्ष्मण सिंह जादूगर थे. गहलोत खुद भी कई बार कह चुके हैं कि अगर वे राजनीति में नहीं आते, तो जादूगर होते.
तीसरी बार मुख्यमंत्री: अपनी सादगी और गांधीवादी विचारधारा के लिए पहचाने जाने वाले गहलोत ने विज्ञान और कानून में स्नातक की डिग्री प्राप्त की. इसके बाद अर्थशास्त्र विषय में स्नातकोत्तर किया. गहलोत अब तक करीब 4 दशक का सफल राजनीतिक जीवन तय कर चुके हैं. गहलोत लगातार कार्य करने के लिए जाने जाते हैं और लोगों का दुख दर्द जानने के लिए उनसे सीधी मुलाकात में विश्वास रखते हैं. विद्यार्थी जीवन से ही राजनीति और समाजसेवा में सक्रिय रहे गहलोत को जादू और घूमना-फिरना पसंद है. अपनी सरल और सहज कार्यशैली से सबको प्रभावित करने वाले गहलोत तीसरी बार प्रदेश के मुख्यमंत्री बने (Ashok Gehlot became CM for the third time in Rajasthan) हैं. गहलोत 1 दिसम्बर, 1998 से 8 दिसम्बर, 2003 तक पहली बार और 13 दिसम्बर, 2008 से 13 दिसम्बर, 2013 तक दूसरी बार राजस्थान के मुख्यमंत्री रहे. वहीं 17 दिसम्बर, 2018 को गहलोत ने तीसरी बार प्रदेश के मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ ली.
जननायक के रूप में पहचान: गहलोत उनकी जनकल्याणकारी योजनाओं और विकास कार्यों के लिए जाने जाते हैं. सीएम गहलोत ने ना केवल सियासी संकटों को मात दी बल्कि कोरोना जैसी महामारी के दौरान भी कुशल शासकीय दक्षता का परिचय दिया. प्रदेश में निशुल्क दवा योजना, निशुल्क जांच योजना, वृद्धावस्था पेंशन योजना, मुख्यमंत्री चिरंजीवी योजना, आरटीआई कानून, जैसे कई महत्वपूर्ण फैसले बतौर मुख्यमंत्री रहते हुए गहलोत ने लिए. जयपुर में मेट्रो, बाड़मेर में रिफाइनरी जैसे बड़े प्रोजेक्ट भी गहलोत सरकार में ही लाए गए. जनकल्याणकारी सोच रखने की के चलते प्रदेश में उन्हें उनके चाहने वाले जननायक के रूप में पुकारते हैं.
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गहलोत का राजनीतिक सफर (Political Journey of CM Ashok Gehlot) :
- गहलोत सबसे पहले 1980 में 7वीं लोकसभा के लिए जोधपुर संसदीय क्षेत्र से निर्वाचित हुए 8वीं, 10वीं, 11वीं और 12वीं लोकसभा में भी जोधपुर क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया
- गहलोत 1999, 2003, 2008, 2013 और 2018 में सरदारपुरा विधानसभा क्षेत्र से विधायक चुने गए
- इन्दिरा गांधी, राजीव गांधी और पीवी नरसिम्हा राव के मंत्रीमण्डल में केन्द्रीय मंत्री के रूप में कार्य किया
- 2 सितम्बर, 1982 से 7 फरवरी, 1984 की अवधि तक इन्दिरा गांधी सरकार में पर्यटन और नागरिक उड्डयन उपमंत्री रहे
- 7 फरवरी, 1984 से 31 अक्टूबर, 1984 की अवधि तक खेल मंत्रालय में कार्य किया
- 12 नवम्बर, 1984 से 31 दिसम्बर, 1984 की अवधि तक फिर इसी मंत्रालय में कार्य किया
- 31 दिसम्बर, 1984 से 26 सितम्बर, 1985 की अवधि तक गहलोत ने केन्द्रीय पर्यटन और नागरिक उड्डयन राज्य मंत्री के रूप में कार्य किया
- 21 जून, 1991 से 18 जनवरी, 1993 तक कपड़ा मंत्रालय का स्वतंत्र प्रभार रहा
- जून, 1989 से नवम्बर, 1989 के बीच गहलोत राजस्थान सरकार में गृह तथा जन स्वास्थ्य अभियांत्रिकी विभाग के मंत्री रहे
- जनवरी, 2004 से 16 जुलाई, 2004 तक अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी में विशेष आमंत्रित सदस्य के रूप में कार्य किया
- 17 जुलाई, 2004 से 18 फरवरी, 2009 तक अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के महासचिव के रूप में कार्य किया
- 30 मार्च, 2018 को तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने गहलोत को अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के महासचिव के पद पर मनोनीत किया
- गहलोत तीन बार प्रदेश कांग्रेस कमेटी के भी अध्यक्ष रहे
- महज 34 साल की उम्र में गहलोत पहली बार प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष बने थे
राजस्थान एनएसयूआई के पहले अध्यक्ष: गहलोत वर्ष 1979 से 1982 के बीच जोधपुर शहर की जिला कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष रहे. साथ ही वर्ष 1982 में राजस्थान प्रदेश कांग्रेस कमेटी के महासचिव भी रहे. गरीबों और पिछड़े वर्ग की सेवा को तत्पर गहलोत ने पश्चिम बंगाल के बंगांव और 24 परगना जिलों में साल 1971 में बांग्लादेश युद्ध के दौरान आयोजित शरणार्थी शिविरों में काम किया. समाज सेवा में गहरी रूचि रखने वाले गहलोत ने तरूण शान्ति सेना की ओर से सेवाग्राम, वर्धा, औरंगाबाद, इन्दौर तथा अनेक जगहों पर आयोजित शिविरों में सक्रिय रूप से कार्य किया और कच्ची बस्ती क्षेत्रों के विकास के लिए अपनी सेवाएं दी. नेहरू युवा केन्द्र के माध्यम से गहलोत ने प्रौढ शिक्षा के विस्तार में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया. राजस्थान कांग्रेस के इतिहास में गहलोत सबसे युवा प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष रह चुके हैं. पहली बार सांसद बनने के बाद उन्हें प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया था. गहलोत पहली बार सितंबर 1985 से जून 1989 के बीच अध्यक्ष रहे. उसके बाद दूसरी बार 1 दिसंबर, 1994 से जून, 1997 तक प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष रहे और तीसरी बार जून 1997 से लेकर 14 अप्रैल 1999 तक अध्यक्ष रहे.
तीन बार केंद्र में मंत्री: गहलोत इंदिरा गांधी, राजीव गांधी और नरसिम्हा राव की सरकार में मंत्री रहे. अशोक गहलोत 2 सितंबर, 1982 से 7 फरवरी 1984 की अवधि तक इंदिरा गांधी की सरकार में पर्यटन और नागरिक उड्डयन उपमंत्री रहे. 31 दिसंबर 1984 से 26 सितंबर 1985 की अवधि तक गहलोत केंद्रीय पर्यटन और नागरिक पूर्व राज्य मंत्री रहे . 21 जून 1993 से 18 जनवरी 1993 तक गहलोत केंद्र में कपड़ा मंत्री रहे और जून 1989 से नवंबर 1989 के बीच राजस्थान की कांग्रेस सरकार में कैबिनेट मंत्री भी रहे .
दिग्गजों को पछाड़ कर बने पहली बार मुख्यमंत्री: गहलोत की जादूगरी का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि 1998 में बंपर बहुमत के बाद जब मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित करने की बात आई, तो कांग्रेस आलाकमान ने भी युवा गहलोत को हरी झंडी दे दी. जबकि उस वक्त प्रदेश में परसराम मदेरणा, पंडित नवल किशोर शर्मा, राजेश पायलट, कुंवर नटवर सिंह, बलराम जाखड़ और बूटा सिंह जैसे दिग्गज नेता मौजूद थे. जिनकी सीधी पहुंच कांग्रेस आलाकमान तक थी, लेकिन यह गहलोत की जादूगरी का असर था कि दिग्गजों के नाम को किनारे कर उन्हें पहली बार मुख्यमंत्री बनाया और उसके बाद 2008 में भी विरोधियों को पीछे छोड़ते हुए दूसरी बार मुख्यमंत्री बने. साल 2018 में भी सचिन पायलट जैसे युवा और जनाधार वाले नेता को किनारे कर कांग्रेस आलाकमान ने तीसरी बार भी गहलोत पर विश्वास जताया.
इसलिए कहा जाता है राजनीति का जादूगर: गहलोत को राजनीति का जादूगर इसलिए भी कहा जाता है कि जब-जब सरकार पर संकट आया, तो उन्होंने संकटमोचक की भूमिका निभाई और अपनी जादूगरी कमाल भी दिखाया. साल 2008 में जब पार्टी के 96 विधायक ही चुनाव जीत कर आए थे, तब गहलोत ने अपनी राजनीतिक समझ का परिचय हुए बसपा के 6 विधायकों को तोड़कर कांग्रेस में शामिल करा लिया था. साल 2018 में भी गहलोत ने बसपा के सभी 6 विधायकों को कांग्रेस में शामिल करा लिया. हालांकि बसपा की ओर से दलबदल की अपील सुप्रीम कोर्ट में चल रही है. साल 2020 में जब सचिन पायलट कैंप ने बगावत करते हुए मानेसर में डेरा डाल दिया था, तब सरकार अल्पमत में आ गई थी. लेकिन गहलोत ने अपनी राजनीतिक सूझबूझ के चलते न केवल सरकार को बचाया बल्कि विधानसभा में बहुमत भी साबित किया.
गांधी परिवार के करीबी: गहलोत कांग्रेस परिवार के हमेशा से ही करीबी रहे हैं. वर्तमान में सोनिया गांधी के सबसे भरोसेमंद लोगों में गहलोत का नाम शामिल है. गहलोत की जब से कांग्रेस में एंट्री हुई है, तब से ही गहलोत गांधी परिवार के प्रति हमेशा निष्ठावान रहे हैं. इंदिरा गांधी से लेकर संजय गांधी, राजीव गांधी और सोनिया गांधी के प्रति उनकी निष्ठा किसी से छिपी नहीं है. गांधी परिवार जब भी किसी संकट में फंसता है, तो गहलोत उनके लिए संकटमोचक की भूमिका में सबसे आगे रहते हैं.
देर रात तक चलता है काम: गहलोत को नजदीक से जानने वाले बताते हैं कि गहलोत के कार्य करने का तरीका बेहद ही अलग है. वो बहुत ही कम नींद लेते हैं और देर रात तक काम करते हैं. सुबह 5 बजे उठकर फिर से काम में जुट जाते हैं. इसीलिए उन्हें 24 घंटे का राजनीतिज्ञ भी कहा जाता है. गहलोत के कार्यकाल में यह भी चलन हमेशा से रहा की जब भी कोई सरकार का बड़ा फैसला होना है या कोई तबादला सूची जारी होनी है, तो वह भी हमेशा देर रात को ही जारी होती है. गहलोत ने कोरोना काल के दौरान खुद के कोरोना पॉजिटिव होने के बावजूद भी अपने काम की गति को कम नहीं होने दिया. आइसोलेशन में भी सीएम गहलोत ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए लगातार कोरोना संक्रमण की मॉनिटरिंग की. कोरोना संकट काल के दौरान गहलोत ने करीब 500 से ज्यादा वीसी के जरिए बैठक कर प्रदेश की आम आवाम को महामारी से सुरक्षित निकाला.