जयपुर. सरकारें हमेशा बच्चों की शिक्षा को लेकर बड़े-बड़े दावे करती है. लेकिन, शिक्षा के इन बड़े-बड़े दावों के बीच यह विषय उस वक्त ज्यादा गंभीर हो जाता है, जब प्रदेश की राजधानी से ही महज 15 किलोमीटर की दूरी पर इस तरह का नजारा देखने को मिलता है, जहां नन्हे मुन्ने बच्चे एक टीन शेड के नीचे पढ़ने को मजबूर हों. आमेर में शिश्यावास गांव के बच्चों को सर्दी, गर्मी और बारिश में टीन शेड के नीचे ही पढ़ना पड़ता है. बारिश के दिनों में टीन शेड से पानी टपकता है, लेकिन फिर भी बच्चे अपने भविष्य को उज्जवल बनाने के लिए पढ़ाई कर रहे हैं.
शिश्यावास गांव में आज 21वीं सदी में भी मूलभूत सुविधाओं का अभाव है. गांव में शिक्षा के नाम पर एकमात्र पांचवी तक का प्राथमिक विद्यालय है, जो कि 2 कमरों में चलाया जाता है. बारिश के दिनों में छत से पानी टपकता है. अध्यापक इन बच्चों को जैसे-तैसे करके पढ़ा रहे हैं. इस प्राथमिक विद्यालय में बिजली नहीं होने से भी गर्मी में बच्चों को बाहर टीन शेड के नीचे ही बैठकर पढ़ना पड़ता है. विद्यालय के ठीक सामने एक प्राचीन दरवाजा है, जो की पूरी तरह से जर्जर हालात में है. दरवाजे की हालात देखकर लगता है कि कभी भी यह गिर सकता है. इससे हमेशा हादसे का अंदेशा बना रहता है. विद्यालय में सुविधा और क्रमोन्नत के लिए कई बार जनप्रतिनिधियों और शिक्षा विभाग को भी ग्रामीणों ने अवगत कराया है, लेकिन फिर भी विद्यालय के हालात ज्यों के त्यों है.
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बच्चे शिक्षा से वंचित ना रह जाए, इसी डर से उच्च शिक्षा के लिए शिश्यावास के ग्रामीण अपने बच्चों को दूरदराज जंगल के रास्तों से स्कूल भेज रहे हैं. जहां कभी कोई हादसा भी हो जाए तो दूर-दूर तक आवाजें सुनने वाला कोई नहीं है. ऐसी चुनौतीपूर्ण राहों का सामना करते हुए बच्चे शिक्षा का सफर तय कर रहे हैं. इन रास्तों पर आने जाने के लिए वन विभाग की ओर से मनाही है. फिर भी शिक्षा के खातिर चुनौती का सामना करते हुए ग्रामीण अपने बच्चों को विद्यालय भेजने को मजबूर है. जंगल में खूंखार वन्यजीवों को देखकर बच्चे डर जाते हैं और कई बार तो जंगली जानवर रास्ते में मिल जाते हैं तो बच्चे वापस घर लौट जाते हैं.
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इतनी मुश्किलों के बावजूद भी इस गांव के बच्चे शिक्षा की राह पर चलकर अपनी मंजिलों को हासिल कर रहे हैं. इसी खौफनाक सफर को तय करके गांव के बच्चे कई विभागों में सरकारी नौकरियां कर रहे हैं. गांव की बेटियां विभिन्न सरकारी विभागों में नौकरी कर रही है, जहां सरकारे बच्चों की बेहतर शिक्षा के लिए बड़े-बड़े दावे करती है वहीं शिक्षा के ये हालात सरकार के दावों की पोल खोल रहे हैं.