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CM का PM को पत्र, बीआर एक्ट के प्रावधानों में किए संशोधनों पर पुनर्विचार की मांग की

मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखा है. पत्र में गहलोत ने बैंकिग रेगुलेशन (बीआर) एक्ट के कुछ प्रावधानों में किए गए संशोधनों पर पुनर्विचार करने की मांग की.

बी.आर. एक्ट के प्रावधान, B.R. Provisions of act
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत
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Published : Oct 20, 2020, 6:17 PM IST

जयपुर. मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखा है. गहलोत ने बैंकिग रेगुलेशन (बी.आर.) एक्ट के कुछ प्रावधानों में किए गए संशोधनों को राज्य के सहकारी बैंकों और सहकारिता की मूल भावना को विपरीत रूप से प्रभावित करने वाला बताते हुए इन पर पुनर्विचार करने तथा पूर्व की व्यवस्था बहाल करने का आग्रह किया है.

सीएम अशोक गहलोत ने पत्र में लिखा है कि संसद में हाल ही में पारित बिल संख्या 56 के माध्यम से बी.आर. एक्ट के सेक्शन 10 और 10 ए को सहकारी बैंकों के लिए प्रभावी कर दिया गया है. इन संशोधनों के माध्यम से सहकारी बैंको के संचालक मंडल के 51 प्रतिशत सदस्यों के पास प्रोफेशनल अनुभव होना आवश्यक कर दिया गया है जो कि व्यवहारिक रूप से संभव नहीं है.

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उन्होंने कहा कि सहकारी बैंकों को वाणिज्यिक बैंकों की भांति शेयर और प्रतिभूतियां जारी करने का अधिकार शेयरधारकों के प्रतिनिधित्व ‘एक व्यक्ति - एक वोट’ के सहकारी सिद्धांत के विपरीत उसकी शेयरधारिता से अधिक प्रतिशत पर जो कि समय-समय पर सेक्शन 12 के अन्तर्गत आरबीआई की ओर से निर्धारित की जाएगी. जो कि सहकारिता के मूल सिद्धान्तों के विपरीत है. मुख्यमंत्री ने पत्र में कहा कि राजस्थान सहकारी सोसायटी अधिनियम, 2001 के विभिन्न प्रावधानों में समिति के पदाधिकारियों की ओर से निर्धारित कर्तव्य और मापदंड में किसी प्रकार की त्रुटि करने पर संचालक मंडल को भंग करने का अधिकार रजिस्ट्रार सहकारी समितियां में निहित है.

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सहकारी बैंकों में वित्तीय अनियमितता पाये जाने पर आरबीआई की अनुशंषा पर रजिस्ट्रार, सहकारी समितियां की ओर से संचालक मंडल को भंग करने के प्रावधान हैं. संशोधन के बाद ये समस्त अधिकार आरबीआई को दे दिए गए हैं. परिवर्तित व्यवस्था से सहकारी बैंकों पर राज्य सरकार के सहकारी विभाग का प्रभावी नियंत्रण नहीं रह पाएगा. सीएम गहलोत ने लिखा कि कई संशोधन सहकारिता के मूल सिद्धांतों के विपरीत हैं. उन्होंने प्रधानमंत्री से आग्रह किया है कि सहकारी बैंकों में ग्रामीण पृष्ठभूमि के सदस्यों को देखते हुए प्रोफेशनल अनुभव आवश्यक होने की शर्त और अन्य संशोधनों पर सहकारी बैंकों और सहकारिता की मूल भावना के हित में पुनर्विचार करते हुए पूर्व की व्यवस्था बहाल की जाए.

जयपुर. मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखा है. गहलोत ने बैंकिग रेगुलेशन (बी.आर.) एक्ट के कुछ प्रावधानों में किए गए संशोधनों को राज्य के सहकारी बैंकों और सहकारिता की मूल भावना को विपरीत रूप से प्रभावित करने वाला बताते हुए इन पर पुनर्विचार करने तथा पूर्व की व्यवस्था बहाल करने का आग्रह किया है.

सीएम अशोक गहलोत ने पत्र में लिखा है कि संसद में हाल ही में पारित बिल संख्या 56 के माध्यम से बी.आर. एक्ट के सेक्शन 10 और 10 ए को सहकारी बैंकों के लिए प्रभावी कर दिया गया है. इन संशोधनों के माध्यम से सहकारी बैंको के संचालक मंडल के 51 प्रतिशत सदस्यों के पास प्रोफेशनल अनुभव होना आवश्यक कर दिया गया है जो कि व्यवहारिक रूप से संभव नहीं है.

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उन्होंने कहा कि सहकारी बैंकों को वाणिज्यिक बैंकों की भांति शेयर और प्रतिभूतियां जारी करने का अधिकार शेयरधारकों के प्रतिनिधित्व ‘एक व्यक्ति - एक वोट’ के सहकारी सिद्धांत के विपरीत उसकी शेयरधारिता से अधिक प्रतिशत पर जो कि समय-समय पर सेक्शन 12 के अन्तर्गत आरबीआई की ओर से निर्धारित की जाएगी. जो कि सहकारिता के मूल सिद्धान्तों के विपरीत है. मुख्यमंत्री ने पत्र में कहा कि राजस्थान सहकारी सोसायटी अधिनियम, 2001 के विभिन्न प्रावधानों में समिति के पदाधिकारियों की ओर से निर्धारित कर्तव्य और मापदंड में किसी प्रकार की त्रुटि करने पर संचालक मंडल को भंग करने का अधिकार रजिस्ट्रार सहकारी समितियां में निहित है.

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सहकारी बैंकों में वित्तीय अनियमितता पाये जाने पर आरबीआई की अनुशंषा पर रजिस्ट्रार, सहकारी समितियां की ओर से संचालक मंडल को भंग करने के प्रावधान हैं. संशोधन के बाद ये समस्त अधिकार आरबीआई को दे दिए गए हैं. परिवर्तित व्यवस्था से सहकारी बैंकों पर राज्य सरकार के सहकारी विभाग का प्रभावी नियंत्रण नहीं रह पाएगा. सीएम गहलोत ने लिखा कि कई संशोधन सहकारिता के मूल सिद्धांतों के विपरीत हैं. उन्होंने प्रधानमंत्री से आग्रह किया है कि सहकारी बैंकों में ग्रामीण पृष्ठभूमि के सदस्यों को देखते हुए प्रोफेशनल अनुभव आवश्यक होने की शर्त और अन्य संशोधनों पर सहकारी बैंकों और सहकारिता की मूल भावना के हित में पुनर्विचार करते हुए पूर्व की व्यवस्था बहाल की जाए.

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