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केंद्रीय गृह मंत्रालय ने डीजीपी को लिखा पत्र, महिला उत्पीड़न मामलों को लेकर समितियों के गठन की मांगी रिपोर्ट

केंद्रीय गृह मंत्रालय ने राज्य के डीजीपी से कार्यस्थल पर महिलाओं के साथ होने वाले उत्पीड़न के मामलों को लेकर बनने वाले कमेटियों की रिपोर्ट मांगी है. सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के बाद गृह मंत्रालय ने राज्य सरकार के गृह विभाग के जरिए डीजीपी को पत्र लिखकर आंतरिक शिकायत कमेटियों के गठन की जानकारी मांगी है.

केंद्रीय गृह मंत्रालय ने डीजीपी को लिखा पत्र
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Published : Jul 2, 2019, 5:06 PM IST

जयपुर. देश में 9 दिसंबर 2013 को कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न अधिनियम पारित किया गया. यह नियम उन संस्थानों में लागू किया गया था. जहां 10 से अधिक लोग काम करते हैं. इस नियम के तहत संस्थान को एक कमेटी का गठन करना होगा. जो कार्यस्थल पर महिलाओं के साथ होने वाले यौन उत्पीड़न के मामलों की शिकायत को सुनेगी और उसकी जांच करेगी. सुप्रीम कोर्ट के जारी निर्देशों के बाद केंद्रीय गृह मंत्रालय ने सभी राज्यों के डीजीपी को पत्र लिखकर कमेटियों की रिपोर्ट मांगी है. अब राज्य के डीजीपी इसकी तथ्यात्मक रिपोर्ट तैयार करके केंद्रीय गृह मंत्रालय के पास भेजेंगे.

केंद्रीय गृह मंत्रालय ने डीजीपी को लिखा पत्र, कार्यस्थल पर महिला उत्पीड़न मामलों को लेकर समितियों के गठन की मांगी रिपोर्ट

कार्यस्थल पर महिला उत्पीड़न रोकने वाला कानून-:

  • कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न रोकथाम निषेध और निवारण अधिनियम 2013 में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित विशाखा दिशा निर्देशों को अभिक्रमित कर दिया गया था. महिलाओं के यौन उत्पीड़न को रोकने के लिए लोकसभा द्वारा 3 सितंबर 2012 और राज्यसभा द्वारा 26 जनवरी 2013 को यह अधिनियम पारित किया गया था. जिसके बाद 9 दिसंबर 2013 को अधिनियम लागू हुआ. लेकिन अधिनियम को राष्ट्रपति की सहमति 23 अप्रैल 2013 को मिली.
  • इस अधिनियम के प्रावधानों में सभी कार्यस्थल में 10 से अधिक कर्मचारियों के लिए वहां की शिकायतों के निपटारे हेतु एक अनिवार्य शिकायत समिति होनी चाहिए.
  • कर्मचारियों की बीच की दो सदस्यों को सामाजिक कार्य किया कानूनी ज्ञान का अनुभव होना चाहिए.
  • साथ ही शिकायत समिति का एक सदस्य एवं उत्पीड़न से संबंधित मुद्दों से संबंधित गैर सरकारी संगठनों से होना चाहिए. नामांकित सदस्यों में से 50% महिलाएं होनी चाहिए.
  • कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न के मामलों में 90 दिनों के अंदर वहां की शिकायत समिति द्वारा हल करना होगा. अन्यथा जुर्माना लगाया जाएगा. जिससे कार्यालय का पंजीकरण या लाइसेंस रद्द हो सकता है.
  • यौन उत्पीड़न के आरोपी व्यक्ति को बर्खास्त किया जा सकता है. इसके अलावा अगर आरोप झूठे साबित होते हैं तो शिकायतकर्ता को इसी तरह की सजा का सामना करना पड़ सकता है. अधिनियम के तहत उनकी भूमिका और कर्तव्यों का उल्लंघन करने के मामले में दोषी व्यक्ति को 50 हजार रुपए का जुर्माना लगाया जा सकता है.
  • दंड के रूप में 1 से 3 साल तक का कारावास या जुर्माना हो सकता है. जैसा की यौन उत्पीड़न को एक अपराध माना जाता है. इसलिए पुलिस को अपराधियों की रिपोर्ट करनी चाहिए.

केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा दिए गए पत्र के बाद अब राज्य गृह मंत्रालय और पुलिस मुख्यालय प्रदेश में यौन उत्पीड़न से जुड़ी कमेटियों की रिपोर्ट तैयार करने में जुट गया है. रिपोर्ट तैयार होने के बाद केंद्रीय गृह मंत्रालय के पास भेजी जाएगी.

जयपुर. देश में 9 दिसंबर 2013 को कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न अधिनियम पारित किया गया. यह नियम उन संस्थानों में लागू किया गया था. जहां 10 से अधिक लोग काम करते हैं. इस नियम के तहत संस्थान को एक कमेटी का गठन करना होगा. जो कार्यस्थल पर महिलाओं के साथ होने वाले यौन उत्पीड़न के मामलों की शिकायत को सुनेगी और उसकी जांच करेगी. सुप्रीम कोर्ट के जारी निर्देशों के बाद केंद्रीय गृह मंत्रालय ने सभी राज्यों के डीजीपी को पत्र लिखकर कमेटियों की रिपोर्ट मांगी है. अब राज्य के डीजीपी इसकी तथ्यात्मक रिपोर्ट तैयार करके केंद्रीय गृह मंत्रालय के पास भेजेंगे.

केंद्रीय गृह मंत्रालय ने डीजीपी को लिखा पत्र, कार्यस्थल पर महिला उत्पीड़न मामलों को लेकर समितियों के गठन की मांगी रिपोर्ट

कार्यस्थल पर महिला उत्पीड़न रोकने वाला कानून-:

  • कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न रोकथाम निषेध और निवारण अधिनियम 2013 में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित विशाखा दिशा निर्देशों को अभिक्रमित कर दिया गया था. महिलाओं के यौन उत्पीड़न को रोकने के लिए लोकसभा द्वारा 3 सितंबर 2012 और राज्यसभा द्वारा 26 जनवरी 2013 को यह अधिनियम पारित किया गया था. जिसके बाद 9 दिसंबर 2013 को अधिनियम लागू हुआ. लेकिन अधिनियम को राष्ट्रपति की सहमति 23 अप्रैल 2013 को मिली.
  • इस अधिनियम के प्रावधानों में सभी कार्यस्थल में 10 से अधिक कर्मचारियों के लिए वहां की शिकायतों के निपटारे हेतु एक अनिवार्य शिकायत समिति होनी चाहिए.
  • कर्मचारियों की बीच की दो सदस्यों को सामाजिक कार्य किया कानूनी ज्ञान का अनुभव होना चाहिए.
  • साथ ही शिकायत समिति का एक सदस्य एवं उत्पीड़न से संबंधित मुद्दों से संबंधित गैर सरकारी संगठनों से होना चाहिए. नामांकित सदस्यों में से 50% महिलाएं होनी चाहिए.
  • कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न के मामलों में 90 दिनों के अंदर वहां की शिकायत समिति द्वारा हल करना होगा. अन्यथा जुर्माना लगाया जाएगा. जिससे कार्यालय का पंजीकरण या लाइसेंस रद्द हो सकता है.
  • यौन उत्पीड़न के आरोपी व्यक्ति को बर्खास्त किया जा सकता है. इसके अलावा अगर आरोप झूठे साबित होते हैं तो शिकायतकर्ता को इसी तरह की सजा का सामना करना पड़ सकता है. अधिनियम के तहत उनकी भूमिका और कर्तव्यों का उल्लंघन करने के मामले में दोषी व्यक्ति को 50 हजार रुपए का जुर्माना लगाया जा सकता है.
  • दंड के रूप में 1 से 3 साल तक का कारावास या जुर्माना हो सकता है. जैसा की यौन उत्पीड़न को एक अपराध माना जाता है. इसलिए पुलिस को अपराधियों की रिपोर्ट करनी चाहिए.

केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा दिए गए पत्र के बाद अब राज्य गृह मंत्रालय और पुलिस मुख्यालय प्रदेश में यौन उत्पीड़न से जुड़ी कमेटियों की रिपोर्ट तैयार करने में जुट गया है. रिपोर्ट तैयार होने के बाद केंद्रीय गृह मंत्रालय के पास भेजी जाएगी.

Intro:

जयपुर

केंद्रीय गृहमंत्रालय ने मांगी डीजीपी से रिपोर्ट , प्रदेश में कार्यस्थल पर महिला उत्पीड़न के मामलों को लेकर बनने वाली समितियों के गठन की मांगी रिपोर्ट

एंकर:- केंद्रीय गृह मंत्रालय ने राज्य के डीजीपी से कार्यस्थल पर महिलाओं के साथ होने वाले उत्पीड़न के मामलों को लेकर बनने वाले कमेटियों की रिपोर्ट मांगी है , गृह मंत्रालय ने राज्य सरकार के गृह विभाग के जरिए डीजीपी को पत्र लिखकर आंतरिक शिकायत कमेटियों के गठन की जानकारी मांगी है , गृह मंत्रालय ने रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के मद्देनजर देश के सभी राज्यों के डीजीपी से मांगी है ।


Body:VO:- 9 दिसंबर 2013 को कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न अधिनियम को पारित किया गया , जिन संस्थानों में 10 से अधिक लोग काम करते हैं वहां पर यह नियम लागू किया गया था इस नियम के तहत संस्थान को एक कमेटी का गठन करना होगा जो कार्यस्थल पर महिलाओं के साथ होने वाले यौन उत्पीड़न के मामलों की शिकायत को सुनेगी और उसकी जांच करेगी सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी निर्देशों की पालना राज्य में कितनी हो रही है कितनी नहीं इसकी वस्तु स्थिति की रिपोर्ट के लिए केंद्रीय गृह मंत्रालय ने देश के सभी राज्यों के डीजीपी को पत्र लिखकर रिपोर्ट मांगी है केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा भेजा गया पत्र राज्य गृह विभाग के जरिए डीजीपी के पास भेजा गया है अब राज्य के डीजीपी इसकी तथ्यात्मक रिपोर्ट तैयार करके केंद्रीय गृह मंत्रालय के पास भेजेंगे ,

कार्यस्थल पर महिला उत्पीड़न रोकने वाला कानून
- कार्यस्थल पर महिलाओं की यौन उत्पीड़न रोकथाम निषेध और निवारण अधिनियम 2013 में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित विशाखा दिशा निर्देशों को अभिक्रमित कर दिया गया था महिलाओं के यौन उत्पीड़न को रोकने के लिए लोकसभा द्वारा 3 सितंबर 2012 को और राज्यसभा द्वारा 26 जनवरी 2013 को यह अधिनियम पारित किया गया यह अधिनियम 9 दिसंबर 2013 को लागू हुआ लेकिन इस अधिनियम को राष्ट्रपति की सहमति 23 अप्रैल 2013 को मिली
- इस अधिनियम के प्रावधानों में सभी कार्य स्थल में 10 से अधिक कर्मचारियों के लिए वहां की शिकायतों के निपटारे हेतु एक अनिवार्य शिकायत समिति होनी चाहिए
- कर्मचारियों की बीच की दो सदस्यों को सामाजिक कार्य किया कानूनी ज्ञान का अनुभव होना चाहिए
- साथ ही शिकायत समिति का एक सदस्य एवं उत्पीड़न से संबंधित मुद्दों से संबंधित गैर सरकारी संगठनों से होना चाहिए नामांकित सदस्यों में से 50% महिलाएं होनी चाहिए
- कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न के मामलों में 90 दिनों के अंदर वहां की शिकायत समिति द्वारा हल करना होगा अन्यथा जुर्माना लगाया जाएगा जिससे कार्यालय का पंजीकरण या लाइसेंस रद्द हो सकता है
- यौन उत्पीड़न के आरोपी व्यक्ति को बर्खास्त किया जा सकता है इसके अलावा अगर आरोप झूठे साबित होते हैं तो शिकायतकर्ता को इसकी इसी तरह की सजा का सामना करना पड़ सकता है - अधिनियम के तहत उनकी भूमिका और कर्तव्यों का उल्लंघन करने के मामले में दोषी व्यक्ति को ₹50000 का जुर्माना लगाया जा सकता है
- दंड के रूप में 1 से 3 साल तक का कारावास या जुर्माना हो सकता है जैसा कि यौन उत्पीड़न को एक अपराध माना जाता है इसलिए पुलिस को अपराधियों की रिपोर्ट करनी चाहिए


Conclusion:VO:- केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा दिए गए पत्र के बाद अब राज्य गृह मंत्रालय और पुलिस मुख्यालय प्रदेश में यौन उत्पीड़न से जुड़ी कमेटियों की रिपोर्ट तैयार करने में जुट गया है रिपोर्ट तैयार होने के बाद अभी है केंद्रीय गृह मंत्रालय के पास भेजी जाएगी।
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