जयपुर. अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस हर साल 11 अक्टूबर को मनाया जाता है. इस दिन को मनाने का मूल उद्देश्य बालिकाओं के सामने आने वाली चुनौतियां और उनके अधिकारों के संरक्षण के बारे में लोगों को जागरूक करना. लेकिन वर्तमान में इन सब से ज्यादा जरूरी, इन मासूमों को समाज के दरिंदों से बचाना. इसको लेकर बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ की स्टेट ब्रांड एम्बेसडर ने ईटीवी भारत से खास बातचीत की.
उन्होंने कहा कि देश में हर 16 मिनट में एक मासूम से साथ दरिंदगी होती है. ऐसे में देश में जब तक न्याय प्रक्रिया में तेजी और सख्त सजा का प्रावधान नहीं होगा, तब तक इसकी संख्या में कमी नहीं आएगी. डॉ. अनुपमा सोनी कहती हैं कि राजस्थान में ही नहीं बल्कि देश भर में लगातार महिलाओं और बच्चियों पर अत्याचार की घटनाएं बढ़ रहीं हैं. बेटियां आज देश भर में खुद को असुरक्षित महसूस करती हैं. मेरे मन में भी डर है, क्योंकि मैं भी एक छोटी बच्ची की मां हूं, मेरी बच्ची को घर से बाहर भेजते हुए मुझे भी चिंता रहती है और इस चिंता को खत्म करने के लिए सख्त और कठोर कदम उठाने होंगे.
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साथ ही सबसे महत्वपूर्ण है कि लीगल एक्शन फास्ट करना होगा. अगर पुलिस फोर्स में महिलाएं होंगी तो महिलाओं की पीड़ा को जल्दी समझ आ जाएगा और उन्हें न्याय जल्दी मिलेगा. डॉ. अनुपमा सोनी ने कहा कि हम कई बार देखते हैं कि महिलाएं पुलिस थाने में अपना मुकदमा दर्ज कराने जाती हैं, लेकिन पुलिस का जो व्यवहार होता है, वह बहुत अलग होता है.
सिस्टम में बदलाव की बहुत ज्यादा जरूरत...
कई बार महिलाओं को आत्मग्लानि भी होती है, जो घटना उनके साथ हुई है उसके लिए न्याय मिलने की बजाए उन्हें टॉर्चर किया जाता है. कई जगह पर हाई प्रोफाइल लोग होते हैं जिनकी वजह से पुलिस भी मुकदमा दर्ज नहीं करती है. कई बार महिलाओं पर ही उंगली उठाई जाती है. अगर इस तरह का माहौल रहेगा तो महिलाएं कैसे खुद को सुरक्षित महसूस करेंगी. ऐसे में सिस्टम में बदलाव की बहुत ज्यादा जरूरत है.
वन स्टॉप क्राइसिस की जो बात करते हैं, इसके लिए एक सेंटर होना चाहिए जहां पर महिला बेझिझक अपनी कंप्लेंट को रजिस्टर करा सकें. उससे 50 तरह के सवाल नहीं किए जाएं. एक तरफ तो महिला पीड़ित है, दूसरी तरफ उसके ऊपर सवाल किए जाते कि क्यों गई थी, कहां गई थी. इससे उसका खुद का मनोबल टूटता है, परिवार का भी मनोबल टूटता है.
इसके लिए खास तौर से विशेष कोर्ट होना चाहिए जहां महिलाओं की समस्याओं को सुना जाए. महिलाओं की न्याय की बात हो, जिससे जल्दी से जल्दी महिलाओं को न्याय मिले और दोषियों को अगर समय पर कठोर सजा मिलेगी, तो अन्य लोगों को भी इस तरह की दुष्कर्म जैसी घटना को अंजाम देने से पहले सोचना पड़ेगा. कई बार ऐसा देखा जाता है कि महिलाओं को समय पर न्याय नहीं मिलता है.
लोगों को मानसिकता बदलने की जरूरत...
जब तक सरकार इसको लेकर गंभीर नहीं होगी, तब तक देश की आधी आबादी की न्याय की बात करना बेमानी होगी. राजस्थान में समानता के अधिकार की बात करें, तो सबसे पहले घर से महिलाओं के अधिकारों की बात होनी चाहिए. आज अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस पर हम बात कर रहे हैं, लेकिन आज की तारीख में महिलाओं को समानता का अधिकार नहीं मिलता है. लोगों की मानसिकता बदलने की जरूरत है और मुझे खुशी है कि अब मानसिकता बदलने लगी है.
राजस्थान में महिलाओं को लेकर पहले जो मानसिकता थी, उसमें बदलाव जरूर आया है. पहले बेटियों को जन्म देने से पहले ही खत्म कर दिया जाता था या अगर कोई बेटी जन्म में ले ली थी तो उसको मरने के लिए छोड़ दिया जाता था, लेकिन अब उसमें काफी सुधार आया है. यही वजह है कि जो लड़के और लड़कियों के बीच में सेक्स अनुपात है, उसमें भी काफी ज्यादा सुधार हुआ है. डॉ. अनुपमा बताती है कि केंद्र सरकार और राज्य सरकार बच्चियों के दुष्कर्म पर राजनीति करने की बजाए, दोषियों को कैसे फास्ट सजा मिले इस पर गंभीरता से विचार करना चाहिए. तब जकर बालिका दिवस मनाना सार्थक होगा.