जयपुर. राजस्थान कांग्रेस के प्रभारी महासचिव अविनाश पांडे को राजस्थान का प्रभारी बने 3 साल हो चुके है. 3 साल पहले एआईसीसी के महासचिव अविनाश पांडे 4 मई, 2017 को राजस्थान के प्रभारी बने और प्रदेश कांग्रेस के नेताओं के साथ उनकी पहली बैठक 14 मई को हुई. जिस समय पांडे को राजस्थान का प्रभारी बनाया गया. उस समय राजस्थान में कांग्रेस के पास 200 में से महज 23 सीटें थी, उनमें से भी दो सीटें वो थी. जो उप चुनाव में पार्टी ने जीती थी.
ऐसे में जिस पार्टी का नेतृत्व पांडे करने आए थे, उसके पास एक मजबूत विपक्ष भी नहीं था. तो वहीं पार्टी दो धड़ों में राजस्थान में बंटी हुई थी, ऐसे में राजस्थान के प्रदेश प्रभारी अविनाश पांडे ने सूझबूझ के साथ दोनों धड़ों के प्रमुखों सचिन पायलट की युवा ताकत और अशोक गहलोत के एक्सपीरियंस को साथ लेकर और अपने विचारों से प्रभारियों के साथ मैदान में ताल ठोक दी.
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नतीजा यह हुआ कि राजस्थान में विधानसभा चुनाव से पहले हुए मांडलगढ़ विधानसभा उपचुनाव और फिर अजमेर और अलवर की लोकसभा उपचुनाव में कांग्रेस को जीत मिली. माना जाता है कि इन दोनों जीतों से ही राजस्थान कांग्रेस पार्टी में उत्साह का नया संचार हुआ और यहीं से लगने लगा कि राजस्थान में कांग्रेस विधानसभा में जीत दर्ज करेगी. दोनों धड़ों को साथ लेते हुए इस तरह से अविनाश पांडे ने रणनीति बनाई की 163 सीटें जीतने वाली भाजपा को विधानसभा का चुनाव हारना पड़ा.
एक बार तो हालात यह बन गए थे कि हर कोई यह कहता दिखाई दे रहा था कि, राजस्थान में कांग्रेस की 150 सीटें भी आ सकती है. हालांकि अंत में कांग्रेस की 101 सीट आई, जिससे प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनी और अविनाश पांडे के सर पर भी इस जीत का सेहरा बांधा गया. नतीजा यह हुआ कि चुनाव के बाद आज करीब डेढ़ साल बाद भी पांडे प्रदेश के प्रभारी हैं और इतने सहज हैं कि हर कांग्रेस कार्यकर्ता यहीं चाहता है कि वह आगे भी प्रदेश के प्रभारी बने रहे.
विधानसभा चुनाव से पहले मेरा बूथ मेरा गौरव के जरिए पार्टी कार्यकर्ताओं को किया एकजुट-
विधानसभा चुनाव से पहले राजस्थान में कांग्रेस पार्टी की ओर से मेरा बूथ मेरा गौरव कार्यक्रम शुरू हुआ. यह कार्यक्रम अविनाश पांडे की ही देन रहा और इसके माध्यम से पार्टी ने कार्यकर्ताओं को मोबिलाइज किया और काम में जुट गया. हालांकि इस कार्यक्रम में कई जगह कांग्रेस के कार्यकर्ताओं में आपसी गुटबाजी और द्वंद भी दिखाई दिया. लेकिन इसे भी पांडे ने सकारात्मक तरीके से लिया और कार्यकर्ताओं को बेहतर काम करने के लिए और सकारात्मक प्रतिद्वंद्विता के साथ काम करने के लिए प्रोत्साहित किया.
शक्ति कार्यक्रम के जरिए सक्रिय कार्यकर्ताओं को जोड़ा पार्टी से-
राजस्थान विधानसभा चुनाव से पहले शक्ति कार्यक्रम शुरू किया गया है. इसके माध्यम से बड़ी संख्या में कांग्रेस को नए कार्यकर्ता मिले. तो वही शक्ति प्रोजेक्ट के माध्यम से पार्टी कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षण देने का काम भी पांडे की ही टीम ने किया है.
हाईटेक वॉर रूम के जरिए पल-पल रखी चुनाव पर नजर-
विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस पार्टी पूरे देश में ईवीएम पर सवाल उठा रही थी. उसे संदेह था कि ईवीएम में छेड़छाड़ हो सकती है. इसी के चलते राजस्थान में भी कोई ईवीएम में गड़बड़ ना हो और राजस्थान विधानसभा के चुनाव में वोटिंग से पहले रणनीति बनाने और फिर वोटिंग के दिन हर गड़बड़ को रोकने के लिए राजस्थान प्रदेश कांग्रेस में हाईटेक वॉर रूम बनाया गया.
राजस्थान के इतिहास में ऐसा पहली बार देखा गया कि वाररूम में बैठकर इस तरह से चुनाव की कमान संभाली गई. जहां गहलोत और पायलट पूरे प्रदेश में घूम-घूम कर वोट बढ़ाने का काम कर रहे थे. वहीं अपनी रणनीति से पांडे ने प्रदेश में फिर से कांग्रेस की सरकार बनाने में अहम भूमिका इसी वॉर रूम में बैठकर निभाई है. साथ ही पूरे चुनाव की पल-पल की मॉनिटरिंग का काम उन्होंने अपने हाईटेक वॉर रूम से ही किया.
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लोकसभा चुनाव ने छोड़ी कसक-
वैसे तो अविनाश पांडे ने राजस्थान के प्रभारी बनने के बाद केवल सफलता का ही स्वाद चखा था, लेकिन लोकसभा चुनाव में अविनाश पांडे कुछ नहीं कर सके. ऐसे में लोकसभा चुनाव में हार की कसक भी अविनाश पांडे को है.
अब सरकार और पार्टी के कोआर्डिनेशन का काम भी देख रहे हैं अविनाश पांडे-
वैसे तो सरकार बनने के बाद पार्टी कोई भी हो वह गौण हो जाती है, लेकिन राजस्थान में सरकार बनने के बाद भी प्रदेश प्रभारी अविनाश पांडे की जरूरत कम नहीं हुई है. क्योंकि प्रदेश में अब भी यदा-कदा पार्टी गहलोत पायलट कैंप में बड़ी नजर आती है, ऐसे में इन दोनों के बीच कड़ी के तौर पर अविनाश पांडे ही सरकार और पार्टी के बीच सामंजस्य का काम देख रहे हैं. कोआर्डिनेशन कमेटी के अध्यक्ष अविनाश पांडे ही हैं तो वहीं प्रदेश में होने वाली राजनीतिक नियुक्तियों को लेकर भी अविनाश पांडे की राय मानी जाती है.