जयपुर. भाद्रपद कृष्ण पक्ष की एकादशी के व्रत (Aja Ekadashi 2022) को रखने को लेकर इस बार कंफ्यूजन है. एकादशी तिथि 22 को पूरे दिन रहेगी, लेकिन व्रत 23 को रखा जाएगा. ऐसा इसलिए क्योंकि मंगलवार को एकादशी तिथि सूर्योदय के पहले और बाद तक रहेगी और शास्त्रों में उदियात के समय रहने वाली तिथि को ही महत्व दिया गया है. वहीं, द्वादशी तिथि के साथ होने से इसी दिन किया व्रत अधिक फलदाई बताया गया है. ज्योतिषाचार्यों की मानें तो ये दोनों तिथियां भगवान विष्णु को प्रिय है, इसलिए उनकी उपासना के लिए 23 अगस्त उत्तम है.
भाद्रपद कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को अजा एकादशी भी कहते हैं. जो व्यक्ति अजा एकादशी का व्रत सच्ची श्रद्धा और नियम सहित करता है उसे अश्वमेघ यज्ञ के समान फल प्राप्त होता है. धार्मिक मान्यता के अनुसार, एकादशी तिथि भगवान विष्णु को बेहद प्रिय है. इसलिए इस दिन उनकी पूजा आराधना की जाती है. हालांकि, एकादशी के दिन कुछ नियमों का पालन करना आवश्यक हो जाता है. इस व्रत में विष्णु जी की पूजा-अर्चना की जाती है. मान्यता है कि अजा एकादशी की कथा व्रत सुनने-पढ़ने से अश्वमेध यज्ञ के फल की प्राप्ति होती है.
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अजा एकादशी व्रत के नियम :
- अजा एकादशी व्रत के दिन सूर्योदय के पहले ही स्नान आदि करके व्रत और पूजा का संकल्प लें.
- अजा एकादशी व्रत से एक दिन पहले चावल न खाएं और सूर्यास्त के पहले ही भोजन कर लें. सूर्यास्त के बाद कुछ भी न खाएं.
- अजा एकादशी व्रत में पूरे दिन व्रत रखते भगवान विष्णु का ध्यान करें.
- घर-परिवार, पास पड़ोस में किसी भी तरह के वाद विवाद न करें.
- व्रत के दिन किसी को कटु वचन और अपशब्द न कहें.
- अजा एकादशी व्रत की रात में जागरण करें और भगवान विष्णु का ध्यान करते हुए भजन, कीर्तन और उनके मंत्रों का जाप करें.
वहीं, भाद्रपद की द्वादशी पर बछ बारस या गोवत्स द्वादशी व्रत पुत्र की लंबी उम्र के लिए रखा जाता है. इस वर्ष ये त्योहार 23 अगस्त मंगलवार को ही पड़ रहा है. बछ बारस पर गौ माता और बछड़े की पूजा की जाती है. ये त्योहार संतान की कामना और उसकी सुरक्षा के लिए किया जाता है. इसमें गाय-बछड़ा और बाघ-बाघिन की मूर्तियां बना कर उनकी पूजा की जाती है. व्रत के दिन शाम को बछड़े वाली गाय की पूजा कर कथा सुनी जाती है फिर प्रसाद ग्रहण किया जाता है.
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कई पुराणों में गौ के अंग-प्रत्यंग में देवी-देवताओं की स्थिति का विस्तृत वर्णन प्राप्त होता है. पद्म पुराण में गौ माता का वर्णन-पद्म पुराण के अनुसार गाय के मुख में चारों वेदों का निवास हैं. उसके सींगों में भगवान शंकर और विष्णु सदा विराजमान रहते हैं. गाय के उदर में कार्तिकेय, मस्तक में ब्रह्मा, ललाट में रुद्र, सीगों के अग्र भाग में इन्द्र, दोनों कानों में अश्विनीकुमार, नेत्रों में सूर्य और चंद्र, दांतों में गरुड़, जिह्वा में सरस्वती, अपान (गुदा) में सारे तीर्थ, मूत्र-स्थान में गंगा जी, रोमकूपों में ऋषिगण, पृष्ठभाग में यमराज, दक्षिण पार्श्व में वरुण एवं कुबेर, वाम पार्श्व में महाबली यक्ष, मुख के भीतर गंधर्व, नासिका के अग्रभाग में सर्प, खुरों के पिछले भाग में अप्सराएं स्थित हैं. अन्य पुराणों में वर्णन हैं कि बछ बारस या गोवत्स द्वादशी व्रत कार्तिक, माघ, वैशाख और श्रावण महीनों की कृष्ण द्वादशी को होता है.