जयपुर. श्रद्धालुओं ने शनि देव के मंदिर में सरसों के तेल से शनिदेव का अभिषेक किया. तेल की अखंड ज्योत जलाकर आराधना की. शनि जयंती पर व्रत उपवास रखकर शनिदेव की पूजा-अर्चना करने से कठिनाइयों का निवारण होता है.
शनि देव की पूजा करने से सुख-समृद्धि और खुशहाली भी मिलती है. जिसके चलते शनि जयंती पर श्रद्धालुओं ने उपवास रखकर अपने आराध्य देवी-देवता की पूजा-अर्चना के बाद शनि व्रत का संकल्प लिया.
शनि देव को प्रसन्न करने के लिए ऐसे करें पूजा
शनि देव का श्रृंगार कर विधि-विधान से पूजा करने के बाद काले रंग की वस्तुएं काला वस्त्र, काला तिल, सरसों का तेल या तिल का तेल, काला छाता अन्य काले रंग की वस्तुएं अर्पित की गई. लोगों ने शनि ग्रह से संबंधित वस्तुओं का दान भी किया.
कष्टों का होता है निवारण
शनि भगवान की पूजा-अर्चना और दान करने से शनि जनित कष्टों का निवारण होता है. शनि देव शीघ्र प्रसन्न होकर व्रत की मनोकामना को पूर्ण कर सुख-सौभाग्य में अभिवृद्धि करते हैं.
शनि देव की विधि-विधान से करें पूजा
जिन्हें जन्म कुंडली के अनुसार शनि ग्रह प्रतिकूल हो या शनि ग्रह की महादशा, अंतर्दशा, प्रत्यंतर दशा, शनि ग्रह की लड़ाई और साढ़ेसाती हो, उन्हें व्रत रखकर शनिदेव की पूजा का संकल्प लेकर शनि देव की विधि-विधान से पूजा करनी चाहिए.
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कोरोना काल में सोशल डिस्टेंसिंग के साथ पूजा
जोधपुर के चमत्कारिक दक्षिण मुख सिगनापुर सिद्ध शनि पीठ शनिधाम में सोशल डिस्टेंसिग और कोरोना गाइडलाइंस की पालना करते हुए शनि जयंती मनाई गई. इस अवसर पर शनिधाम में 11000 लीटर तेल से दक्षिण मुखी शनि देव के अभिषेक किया गया.
महंत हेमंत बोहरा ने बताया कि शनि जयंती पर चार योग एक साथ बन रहे हैं. नवग्रह स्वामी शनिदेव इस सृष्टि के न्यायाधीश हैं. मान्यताओं के अनुसार मनुष्य के कर्मों के अनुसार शनि देव उसे वैसा ही फल देते हैं, जैसा मनुष्य कर्म करता है. हर वर्ष जेष्ठ मास की अमावस्या को शनि जयंती मनाई जाती हैं.
चारभुजानाथ पर कोरोना मुक्ति के लिए ध्वजा चढ़ाई
भीलवाड़ा. शनि जयंती के मौके पर भीलवाड़ा शहर में स्थित भगवान श्री चारभुजा नाथ पर कोरोना से मुक्ति के लिए ध्वजा चढ़ाई गई. माहेश्वरी समाज श्री चारभुजा जी मंदिर ट्रस्ट के मीडिया प्रभारी महावीर समदानी ने बताया कि शनि अमावस्या व देव पीत्र कार्य अमावस्या के विशेष दिन पुराना शहर महेश्वरी सभा के अध्यक्ष कैलाश बाहेती के ओर से चारभुजा नाथ के लाल ध्वजा चरणों में रखकर उसे मंदिर के शिखर पर ले जाकर लहराई गई. इस अवसर भगवान चारभुजा नाथ को रजत जड़ित पोशाक पहनाई भी गई.