जयपुर. पंजाब में सरकार गंवा चुकी कांग्रेस अब हार के कारणों को टटोलने में लगी है. इसके साथ ही पंजाब हारने का असर अब राजस्थान कांग्रेस के नेताओ में भी दिखने लगा है. कारण साफ है कि आम आदमी पार्टी ( Aap In Rajasthan) की अभी देश मे दो राज्यों दिल्ली और पंजाब में सरकार है और दोनों ही राज्यो में आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस पार्टी को ही सत्ता से बेदखल किया है. मतलब साफ है कि आम आदमी पार्टी का विस्तार अगर किसी राज्य में हो रहा है तो वो कांग्रेस का वोट ही आम आदमी पार्टी में शिफ्ट होता है.
दिल्ली से इसकी शुरुआत हुई. जहां 3 बार लगातार मुख्यमंत्री रहीं शिला दीक्षित को हटाकर आम आदमी पार्टी ने दिल्ली की सत्ता पर कब्जा किया. पंजाब में भी कांग्रेस का मामला आप ने बिगाड़ दिया. यहां भी दिल्ली की ही तरह केवल सत्ता से बेदखल ही नहीं किया बल्कि अर्श से फर्श पर ला पटका.
राहत की बात सिर्फ एक!: वैसे तो आम आदमी पार्टी सीधे तौर पर नुकसान कांग्रेस को कर रही है लेकिन राजस्थान इससे अभी अछूता है. ऐसा नहीं है क्या आम आदमी पार्टी ने पिछले विधानसभा चुनाव में राजस्थान में पैर पसारने का प्रयास नहीं किया. लेकिन कांग्रेस और भाजपा के बीच आम आदमी पार्टी राजस्थान में अपना प्रभाव नहीं छोड़ पाई. पिछले विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी ने अपना पूरा जोर लगाया. उस समय कुमार विश्वास (पहले आम आदमी पार्टी के बड़े नेता रहे) और बाद में दिल्ली सरकार में नंबर दो माने जाने वाले मनीष सिसोदिया को राजस्थान की कमान सौंपी गई थी. उसका भी कोई फायदा नहीं मिल सका और पार्टी न तो कोई सीट जीत स्की न ही उसका राजस्थान में आधार बन सका.
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'आप फोबिया' क्यों?: अब तक तो कांग्रेस पार्टी राजस्थान में आम आदमी पार्टी को रोकने में कामयाब रही है. एक वजह उनके पास राजस्थान का कोई चेहरा न होना अहम कारण है. तो आखिर फोबिया (Aap phobia in Rajasthan Congress ) का कारण है क्या? जानकार मानते हैं कि अगर आम आदमी पार्टी ने राजस्थान के ही किसी बड़े चेहरे को (कांग्रेसी या अन्य दल से तोड़) अपने साथ मिलाने में कामयाबी प्राप्त कर ली और उसी चेहरे को अगर मुख्यमंत्री का दावेदार घोषित कर दिया तो फिर कांग्रेस के लिए दिक्कत पैदा हो सकती है. इसी फोबिया से इन दिनों राजस्थान कांग्रेस मुख्यालय पर जुटे कांग्रेसी ग्रसित दिख रहे हैं. मिल रहें हैं तो आम आदमी पार्टी की ही चर्चा हो रही है.
ऑफ कैमरा कुछ और ऑन कैमरा कुछ और: आप का जिक्र ऑफ कैमरा खूब हो रहा है. उसे एक विकल्प के तौर पर दबे छुपे अंदाज में देखा जाने लगा है लेकिन ऑन कैमरा ऐसा कोई मानने को तैयार नहीं है. कैमरे के सामने आते ही ये नेता राजस्थान में भाजपा और कांग्रेस के अलावा किसी दूसरी पार्टी के विकल्प से इनकार करते हैं. विश्वस्त सूत्रों के मुताबिक राजस्थान कांग्रेस के एक बड़े नेता समेत कुछ अन्य नेताओं ने मनीष सिसोदिया से मुलाकात भी की है.
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तीसरे मोर्चे का समीकरण: राजस्थान में अब तक कांग्रेस और भाजपा के बीच ही सीधी टक्कर रही है, लेकिन ऐसा नही की राजस्थान में तीसरे दल (Third Front In Rajasthan) ने कभी प्रयास नही किया. हकीकत ये है कि तमाम कोशिशों के बाद भी किसी तीसरे दल को कामयाबी नही मिली. एक बसपा ही लगातार राजस्थान में कुछ सीटें जीतने में कामयाब रही है. हालांकि क्रेडिट में डेंट भी लगा है. इसका एक अहम कारण बसपा विधायक हैं जो ऐन मौके पर कांग्रेस का हाथ थाम लेते हैं तो दूसरी अहम वजह बसपा सुप्रीमो की गिरती साख है. साख गिरने की वजह बड़े चुनावों में पार्टी का गिरता प्रदर्शन है.
मायावती की बसपा के अलावा किरोड़ी लाल मीणा, हनुमान बेनीवाल और घनश्याम तिवारी राजस्थान में तीसरा मोर्चा बनाने का विफल प्रयास कर चुके हैं. यही कारण है कि चाहें कांग्रेस के नेता हों या भाजपा के पूरी तरह से आश्वस्त हैं कि राजस्थान की जनता किसी तीसरे विकल्प में भरोसा नहीं करेगी.
राजनीति में अकसर एक जुमला बड़ी शिद्दत से कहा जाता है- राजनीति संभावनाओं और समीकरणों का खेल है. बस यही संभावनाएं और समीकरण आम आदमी पार्टी को लेकर कांग्रेस में फोबिया क्रियेट कर रहा है. समीकरणों में अगर आम आदमी पार्टी ने राजस्थान के ही किसी बड़े नेता को चेहरा बनाने का दांव खेल लिया तो पार्टी को बड़ी दिक्कत का सामना करना पड़ सकता है.