जयपुर. कहने को तो बचपन तनाव मुक्त होता है और यह मनुष्य के जीवन का एक ऐसा चरण होता है जब उसका शारीरिक, मानसिक और बौद्धिक विकास होता है. बचपन में मनुष्य का पालन-पोषण और उसके ओर से ग्रहण की गई विद्या ही उसे जीवन में एक संघर्षशील और सफल इंसान बनाती है. लेकिन यदि बचपन में ही किसी मासूम को यौन शोषण का शिकार होना पड़े तो उस पर क्या बीतती है और उसका संपूर्ण जीवन किस तरह से डर के साए में बीतता है.
सरकार की ओर से मासूमों के लिए अनेक कानून बनाए गए हैं और साथ ही मासूमों के अनेक मौलिक अधिकार भी हैं. मासूमों के अधिकारों की पालना कराने के लिए बाल आयोग, बाल संरक्षण आयोग सहित अनेक आयोग भी कार्यरत हैं, लेकिन इसके बावजूद भी मासूमों के साथ होने वाले यौन शोषण के प्रकरणों पर लगाम लगाने में असफल साबित हो रहे हैं.
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राजस्थान में मासूमों के साथ होने वाले यौन शोषण के प्रकरण सरकार के तमाम दावों को खोखला साबित करते हैं. राजस्थान की 9 पुलिस रेंज में मासूम बच्चों के साथ होने वाले यौन शोषण के प्रकरणों पर यदि निगाह डाला जाए तो राजस्थान में औसतन प्रतिमाह 100 मासूम बच्चियां यौन शोषण का शिकार होती हैं. मासूम बच्चियों के साथ होने वाले यौन शोषण के यह वह प्रकरण हैं जो पुलिस में दर्ज होते हैं और ना जाने कितने ही ऐसे प्रकरण होते हैं, जो लोकलाज के भय से पुलिस तक पहुंच भी नहीं पाते हैं.
हालांकि, पूर्व में मासूम बच्चों के साथ होने वाले यौन शोषण के प्रकरणों की पुलिस में शिकायत काफी कम हुआ करती थी, लेकिन पुलिस और विभिन्न संस्थाएं जो मासूम बच्चियों के लिए काम करती हैं, उनके द्वारा चलाए गए जागरूकता अभियान के चलते अब शिकायतें पुलिस तक पहुंचने लगी है. पुलिस भी पॉक्सो एक्ट के प्रकरणों में त्वरित कार्रवाई करते हुए आरोपियों को गिरफ्तार कर सलाखों के पीछे पहुंचाने का काम कर रही है.
राजस्थान में पॉक्सो एक्ट के तहत IPC की धारा 376 में दर्ज प्रकरणों पर एक नजरः
इन जिलों में यौन शोषण के प्रकरणों में दर्ज की गई बढ़ोतरी
राजस्थान में कुछ जिले ऐसे हैं, जहां पर मासूम बच्चियों के साथ यौन शोषण के प्रकरणों में वर्ष 2020 में काफी बढ़ोतरी दर्ज की गई है. यह बढ़ोतरी वर्ष 2020 में जनवरी से लेकर मई महीने तक के दर्ज प्रकरणों के आधार पर है. जयपुर पुलिस कमिश्नरेट के पश्चिम जिले में बच्चियों के साथ यौन शोषण के प्रकरणों में 33 फीसदी से अधिक की वृद्धि दर्ज की गई है.
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इसके साथ ही जयपुर ग्रामीण में 25 फीसदी, भिवाड़ी जिले में 75 फीसदी, धौलपुर में 23 फीसदी से अधिक, करौली में 66 फीसदी से अधिक, जोधपुर पुलिस कमिश्नरेट के पश्चिम जिले में 83 फीसदी से अधिक, जोधपुर ग्रामीण में 66 फीसदी से अधिक, बाड़मेर में 64 फीसदी से अधिक, सिरोही में 30 फीसदी, कोटा ग्रामीण में 30 फीसदी, बूंदी में 33 फीसदी से अधिक, झालावाड़ में 23 फीसदी से अधिक, बारां में 6 फीसदी से अधिक और उदयपुर में 13 फीसदी से अधिक की वृद्धि मासूम बच्चियों के साथ यौन शोषण के प्रकरणों में दर्ज की गई है.
केस ऑफिसर स्कीम के तहत की जाती है प्रकरण की जांच
प्रदेश में मासूम बच्चियों के साथ यौन शोषण करने वाले आरोपियों को सख्त से सख्त सजा दिलाने के लिए राजस्थान पुलिस की ओर से केस ऑफिसर स्कीम के तहत जांच की जाती है. केस ऑफिस स्कीम के तहत पूरे प्रकरण में जल्द साक्ष्य एकत्रित कर और बयान व शिनाख्त परेड करवा कर कम से कम समय में कोर्ट में आरोपी के खिलाफ पुलिस की ओर से चालान पेश किया जाता है. कोर्ट में पुलिस की ओर से जल्द चालान पेश करने के बाद मासूम बच्चियों के साथ यौन शोषण करने वाले आरोपियों को कोर्ट की ओर से जल्द सख्त सजा सुनाई जाती है.
मासूमों के साथ उनके परिजनों की भी की जाती है काउंसलिंग
मासूमों के साथ होने वाले यौन शोषण के खिलाफ काम करने वाली चाइल्ड लाइन संस्था के डायरेक्टर कमल किशोर ने ईटीवी भारत को बताया कि प्रदेश में मासूम बच्चियों के साथ होने वाले यौन शोषण के प्रकरणों में से 80 फीसदी प्रकरण ऐसे होते हैं, जिसमें कोई बेहद करीबी ही मासूमों के साथ दरिंदगी की वारदात को अंजाम देता है. ऐसे में दरिंदगी का शिकार हुई मासूम बच्चियां किसी को भी अपने साथ हुई दरिंदगी के बारे में बताने से डरती है और यदि हिम्मत जुटाकर बता भी देती हैं तो फिर लोक लाज के भय से मामले को परिवार के अंदर ही दबाने का प्रयास किया जाता है.
हालांकि, पॉक्सो एक्ट के बारे में जागरूकता फैलाने के बाद अब लोग मासूम बच्चियों के साथ होने वाले यौन शोषण की शिकायत चाइल्ड लाइन, पुलिस या फिर अन्य संस्थाओं को करने लगे हैं. पॉक्सो एक्ट की एक अच्छी बात यह भी है कि मासूमों के साथ होने वाली दरिंदगी की शिकायत मिलने के 24 घंटे के भीतर यदि संबंधित व्यक्ति की ओर से प्रकरण में कोई कार्रवाई नहीं की जाती है तो वह भी पॉक्सो एक्ट के तहत दोषी माना जाता है.
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कमल किशोर ने बताया कि जिन मासूम बच्चियों के साथ दरिंदगी होती है उनकी और उनके परिवार के सदस्यों की काउंसलिंग कर उन्हें कोर्ट में अपना पक्ष मजबूत तरीके से रखने को जागरूक किया जाता है. साथ ही किसी के भी दवाब में आकर अपने बयान नहीं बदलने को कहा जाता है.
किशोर का कहना है कि लेकिन अफसोस की बात यह है कि पॉक्सो एक्ट के बारे में जागरूकता होने के बावजूद भी कई मामले दबा दिए जाते हैं. मासूमों के साथ होने वाली दरिंदगी के प्रकरणों पर त्वरित कार्रवाई करने के लिए पॉक्सो एक्ट तो बना दिया गया है, लेकिन मासूमों के साथ होने वाली दरिंदगी की वारदातें थमने की बजाए लगातार बढ़ती ही जा रही है.