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कई राज्यों में चलता था भरतपुर रियासत का 'सिक्का', 258 वर्ष पूर्व महाराजा सूरजमल ने खुद की टकसाल में गढ़वा कर धनतेरस पर जारी किया था पहला सिक्का

रियासत काल में भरतपुर और डीग में सिक्के डालने की टकसालें थीं. इन टकसालों में सबसे पहले वर्ष 1763 में चांदी और तांबे के पहले सिक्के ढाले गए और उन्हें महाराजा सूरजमल ने धनतेरस के अवसर पर जारी किया था. भरतपुर रियासत के सिक्कों के स्वर्णिम इतिहास पर खास खबर.

Maharaja Surajmal, bharatpur princely coin
भरतपुर रियासत का 'सिक्का'
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Published : Nov 2, 2021, 2:43 PM IST

भरतपुर. धनतेरस के पर्व पर जिले में चांदी के सिक्के की खरीदारी का वर्षों से प्रचलन है. धनतेरस पर खरीदे गए इस चांदी के सिक्के का दीपावली के अवसर पर लक्ष्मी और गणेश जी के साथ में पूजन किया जाता है. बता दें, रियासत काल में भरतपुर और डीग में सिक्के डालने की टकसालें थीं. इन टकसालों में सबसे पहले वर्ष 1763 में चांदी और तांबे के पहले सिक्के ढाले गए और उन्हें महाराजा सूरजमल ने धनतेरस के अवसर पर जारी किया था.

भरतपुर रियासत का 'सिक्का'

258 वर्ष पूर्व जारी हुआ था रियासत का पहला सिक्का

इतिहासकार रामवीर वर्मा ने बताया कि महाराजा सूरजमल ने वर्ष 1763 में भरतपुर और डीग में दो टकसाल स्थापित की. इन दोनों टकसालों में चांदी और तांबे के सिक्के ढालने का कार्य शुरू किया गया. महाराजा सूरजमल ने भरतपुर रियासत का सबसे पहला सिक्का 1763 में धनतेरस के अवसर पर जारी किया. यह चांदी का सिक्का था और इसका वजन 171.86 ग्रेन था. बाद में 174.70 ग्रेन का भी चांदी का सिक्का ढाला गया, जिसके 100 रुपयों का मूल्य 99.819 कलदार रुपयों के बराबर था. वहीं, तांबे के सिक्के का वजन 280.4 ग्रेन था, जिसकी तोल 18 माशा थी. इतिहासकार रामवीर वर्मा ने बताया कि भरतपुर राज्य में 1 माशा 8 रत्ती के बराबर होता था.

Maharaja Surajmal, bharatpur princely coin
भरतपुर रियासत का 'सिक्का'

पढ़ें- धनतेरस 2021: सोना-चांदी और पीतल के बरतन की खरीदारी शुभ, इन चीजों की खरीदारी से बचें

ऐसे थे सिक्के

इतिहासकार रामवीर वर्मा ने बताया कि चांदी और तांबे के सिक्कों को उस समय आधुनिक तरीके से नहीं तराशा जाता था बल्कि एक डाई के माध्यम से सिक्कों पर प्रतीक चिह्न बनाए जाते थे. सिक्कों पर चांद, सितारे, फूल, कटार और लाठी जैसे प्रतीक चिह्न होते थे. इतिहासकार रामवीर वर्मा ने बताया कि उस समय भरतपुर रियासत स्वतंत्र रियासत थी. लेकिन मुद्रा प्रचलन में सरलता रहे इसलिए भरतपुर रियासत के सिक्के के एक ओर दिल्ली के शाह का नाम भी अंकित होता था. भरतपुर रियासत के सिक्के 1763 से वर्ष 1910 तक प्रचलन में रहे.

Maharaja Surajmal, bharatpur princely coin
भरतपुर रियासत का 'सिक्का'

कई रियासतों में चलता था

रामवीर वर्मा ने बताया कि रियासत काल में सभी रियासतों में खुद के सिक्के नहीं चलते थे. यह भरतपुर रियासत का गौरवशाली समय था कि उसकी खुद की टकसाल थी और उन में सिक्के ढाले जाते थे. रामवीर वर्मा ने बताया कि भरतपुर रियासत के चांदी के सिक्के हरियाणा, बुलंदशहर, मेरठ, धौलपुर, करौली, चंबल पार के राज्यों तक चलते थे.

भरतपुर. धनतेरस के पर्व पर जिले में चांदी के सिक्के की खरीदारी का वर्षों से प्रचलन है. धनतेरस पर खरीदे गए इस चांदी के सिक्के का दीपावली के अवसर पर लक्ष्मी और गणेश जी के साथ में पूजन किया जाता है. बता दें, रियासत काल में भरतपुर और डीग में सिक्के डालने की टकसालें थीं. इन टकसालों में सबसे पहले वर्ष 1763 में चांदी और तांबे के पहले सिक्के ढाले गए और उन्हें महाराजा सूरजमल ने धनतेरस के अवसर पर जारी किया था.

भरतपुर रियासत का 'सिक्का'

258 वर्ष पूर्व जारी हुआ था रियासत का पहला सिक्का

इतिहासकार रामवीर वर्मा ने बताया कि महाराजा सूरजमल ने वर्ष 1763 में भरतपुर और डीग में दो टकसाल स्थापित की. इन दोनों टकसालों में चांदी और तांबे के सिक्के ढालने का कार्य शुरू किया गया. महाराजा सूरजमल ने भरतपुर रियासत का सबसे पहला सिक्का 1763 में धनतेरस के अवसर पर जारी किया. यह चांदी का सिक्का था और इसका वजन 171.86 ग्रेन था. बाद में 174.70 ग्रेन का भी चांदी का सिक्का ढाला गया, जिसके 100 रुपयों का मूल्य 99.819 कलदार रुपयों के बराबर था. वहीं, तांबे के सिक्के का वजन 280.4 ग्रेन था, जिसकी तोल 18 माशा थी. इतिहासकार रामवीर वर्मा ने बताया कि भरतपुर राज्य में 1 माशा 8 रत्ती के बराबर होता था.

Maharaja Surajmal, bharatpur princely coin
भरतपुर रियासत का 'सिक्का'

पढ़ें- धनतेरस 2021: सोना-चांदी और पीतल के बरतन की खरीदारी शुभ, इन चीजों की खरीदारी से बचें

ऐसे थे सिक्के

इतिहासकार रामवीर वर्मा ने बताया कि चांदी और तांबे के सिक्कों को उस समय आधुनिक तरीके से नहीं तराशा जाता था बल्कि एक डाई के माध्यम से सिक्कों पर प्रतीक चिह्न बनाए जाते थे. सिक्कों पर चांद, सितारे, फूल, कटार और लाठी जैसे प्रतीक चिह्न होते थे. इतिहासकार रामवीर वर्मा ने बताया कि उस समय भरतपुर रियासत स्वतंत्र रियासत थी. लेकिन मुद्रा प्रचलन में सरलता रहे इसलिए भरतपुर रियासत के सिक्के के एक ओर दिल्ली के शाह का नाम भी अंकित होता था. भरतपुर रियासत के सिक्के 1763 से वर्ष 1910 तक प्रचलन में रहे.

Maharaja Surajmal, bharatpur princely coin
भरतपुर रियासत का 'सिक्का'

कई रियासतों में चलता था

रामवीर वर्मा ने बताया कि रियासत काल में सभी रियासतों में खुद के सिक्के नहीं चलते थे. यह भरतपुर रियासत का गौरवशाली समय था कि उसकी खुद की टकसाल थी और उन में सिक्के ढाले जाते थे. रामवीर वर्मा ने बताया कि भरतपुर रियासत के चांदी के सिक्के हरियाणा, बुलंदशहर, मेरठ, धौलपुर, करौली, चंबल पार के राज्यों तक चलते थे.

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