जयपुर. ग्रेटर निगम (Jaipur Municipal Corporation Greater) आयुक्त ने विद्युत एवं सार्वजनिक प्रकाश की तीनों समिति, महिला एवं बाल विकास समिति, लोक वाहन समिति, लाइसेंस समिति, उद्यान विकास एवं पर्यावरण समिति, फायर समिति, पशु नियंत्रण एवं संरक्षण समिति, सांस्कृतिक समिति और होर्डिंग एवं नीलामी समिति के लिए राज्य सरकार से मार्गदर्शन मांगा था, जिसका जवाब अब तक नहीं आया है.
11 समितियां शक्ति विहीन : ग्रेटर नगर निगम में बनाई गई 21 समितियों में से कार्यकारिणी समिति, वित्त समिति, स्वास्थ्य और स्वच्छता की तीनों समितियां, भवन अनुज्ञा एवं संकर्म समिति, गंदी बस्ती सुधार समिति, एनयूएलएम समिति, नियम और उप नियम समिति और अपराधों का शमन एवं समझौता समिति वर्किंग में है. जबकि 11 समितियों के लिए आयुक्त ने राज्य सरकार से मार्गदर्शन मांगा था, जो अब तक नहीं मिला है. ऐसे में ये समितियां नाम मात्र की रह गई है.
उपमहापौर पुनीत कर्णावट ने कहा कि नगर निगम चुने हुए जनप्रतिनिधियों की संस्था है. अधिनियम जो अधिकार देता है, उसी के तहत समितियों का गठन किया गया था. समितियों को विधिवत रूप से साधारण सभा में पास कराया गया. जिन पर राज्य सरकार ने अलोकतांत्रिक तरीके से रोक लगा दी थी. इस पर कोर्ट का दरवाजा खटखटाने के बाद कोर्ट ने राज्य सरकार के आदेश पर रोक लगा दी. लेकिन कोर्ट के आदेशों के बावजूद भी राज्य सरकार के इशारे पर ग्रेटर नगर निगम के अधिकारी निगम की समितियों को ठीक तरह से काम नहीं करने दे रहे.
उन्होंने कार्य क्षेत्र निर्धारित नहीं होने का हवाला देते हुए 11 समितियों के काम करने पर रोक लगा दी. जबकि हाईकोर्ट के निर्देश के बाद इन्हीं कमिश्नर ने सभी समितियों को रूम अलॉट किए, समिति चेयरमैन को मिलने वाली गाड़ी अलॉट की, सेक्रेटरी बनाएं और इनकी पहली मीटिंग भी हुई. फिर अचानक एक दिन किन्ही कारणों से एक पत्र लिख दिया. जिस पत्र का जवाब आज तक राज्य सरकार की ओर से नहीं दिया गया है.
कर्णावट ने बताया कि पहले 2015 में और फिर 2018 में राज्य सरकार ने स्पष्ट किया है कि कौन सी समिति क्या कार्य करेगी. वो आदेश वापस नहीं लिए गए, तो आज भी मान्य हैं. ऐसे में समितियों की शक्तियों पर लगाई गई रोक पूरी तरह से गैरकानूनी है. कमिश्नर के पास ऐसा कोई अधिकार नहीं है कि वो साधारण सभा से चुनी गई समितियों को काम करने से रोक दे. इस प्रकरण को नियम उप-नियम समिति के तहत लेकर आएंगे और आवश्यकता पड़ी तो कोर्ट का दरवाजा भी खटखटाएंगे. साथ ही जनता के बीच जाकर राज्य सरकार के इस तुगलकी फरमान का विरोध करेंगे.
बता दें कि बीते साल 28 जनवरी को ग्रेटर निगम की पहली साधारण सभा की बैठक में 21 समितियों का गठन किया था. जबकि 7 समितियों को अनुमोदन के लिए राज्य सरकार को भेजा गया था. 25 फरवरी को राज्य सरकार ने सभी समितियों को निरस्त कर दिया. इसके बाद मामला कोर्ट में चला गया. वहीं 26 मार्च को हाईकोर्ट ने ग्रेटर नगर निगम की समितियों को रद्द करने के आदेश पर रोक लगा दी, जिसके बाद आयुक्त यज्ञमित्र सिंह देव ने 21 में से 11 समितियों को लेकर सरकार से मार्गदर्शन मांगते हुए इनकी पावर्स छीन ली.