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लॉकडाउनः मंदी झेल रहा बीकानेर का ऊन उद्योग

बीकानेर में कभी एशिया की सबसे बड़ी ऊन मंडी हुआ करती थी, लेकिन धीरे-धीरे खत्म होते चारागाह और भेड़ों की घटती जनसंख्या के चलते यहां उनका उत्पादन नाम मात्र रह गया और एशिया की सबसे बड़ी ऊन मंडी बीकानेर में अब केवल विदेशों से आयातित ऊन से धागा बनाने का काम होता है.

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फिर मंदी में बीकानेर का ऊन उद्योग...
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Published : May 20, 2020, 9:15 AM IST

बीकानेर. बीकानेर की वैश्विक स्तर पर पहचान कई मायनों से है. यहां के भुजिया और रसगुल्ला का स्वाद पूरी दुनिया में मशहूर है तो हजार हवेलियों के इस शहर को देखने के लिए दुनिया भर से पर्यटक हर साल आते हैं. ऐसी ही एक पहचान बीकानेर में ऊन उद्योग के रूप में भी है.

फिर मंदी में बीकानेर का ऊन उद्योग...

दरअसल, बीकानेर में कभी एशिया की सबसे बड़ी ऊन मंडी हुआ करती थी, लेकिन धीरे-धीरे खत्म होते चारागाह और भेड़ों की घटती जनसंख्या के चलते यहां उनका उत्पादन नाम मात्र रह गया और एशिया की सबसे बड़ी ऊन मंडी बीकानेर में अब केवल विदेशों से आयातित ऊन से धागा बनाने का काम होता है.

करीब 10 साल पहले आई वैश्विक मंदी के चलते बीकानेर की उद्योग को काफी संकट झेलना पड़ा और इस संकट से अभी तक यहां का उद्योग निकल नहीं पाया. धीरे-धीरे रफ्तार पकड़ने की तैयारी कर रहा उद्योग अभी पूरी तरह संभाला ही नहीं था, कि अब कोरोना महामारी के बाद ऊन उद्योग बुरे संकट में आ गया है.

पढ़ेंः कांग्रेस इतनी ओछी राजनीति करेगी ये पता नहीं था, महामारी को भी राजनीति का हथियार बना लियाः सतीश पूनिया

बता दें, कि बीकानेर में यूरोप और मिडिल ईस्ट के कई देशों से उनका आयात किया जाता है जो मुंबई और मुंद्रा पोर्ट पर कन्टेंनर के जरिये उतरती है और वहां से सड़क मार्ग से ट्रकों में ऊन बीकानेर पहुंचती है. बीकानेर में करीब ऊन धागा बनाने वाली 100 से ज्यादा फैक्ट्रियां हैं. जहां हर दिन करीब 30 हजार किलो धागे का निर्माण किया जाता है. इस धागे को उत्तरप्रदेश के भदोही में भेजा जाता है जहां कारपेट का निर्माण होता है और वहां से निर्मित कारपेट को अलग-अलग देशों में निर्यात किया जाता है.

15 सौ करोड़ का टर्नओवर...

ऊन व्यवसायी राजाराम सारड़ा कहते हैं, कि साल के 15 सौ करोड़ के टर्नओवर का यह व्यवसाय अब धीरे-धीरे बीकानेर से खत्म हो रहा है. सारड़ा बताते हैं, कि बीकानेर में तकरीबन 100 फैक्ट्रियां हैं जिनमें साढ़े पांच सौ से ज्यादा कार्ड मशीन लगी हुई है और एक मशीन में हर रोज 1000 किलो धागे का निर्माण होता है. आमतौर पर 300 से साढ़े तीन सौ कार्ड से हर दिन उत्पादन होता है. सारड़ा ने कहा, कि कोरोना के बाद केंद्र सरकार ने आर्थिक पैकेज की घोषणा की है लेकिन सीधे तौर पर ऊन उद्योग को लेकर किसी तरह की कोई घोषणा नहीं है और बिना किसी सरकारी राहत पैकेज के अब यह उद्योग खत्म हो जाएगा.

पढ़ेंः कोरोना विस्फोटः पाली में 69 नए पॉजिटिव मरीज आए सामने, अब आंकड़ा 201

पूरे देश में औद्योगिक इकाइयों के बंद होने के बाद मजदूरों के सामने रोजी-रोटी का संकट छा गया है और ऐसे में मजदूर भी अपने घर की ओर लौटने लगे हैं. कुछ ऐसा ही हाल ऊन उद्योग के साथ भी है बीकानेर में सीधे तौर पर इन औद्योगिक इकाइयों के अलावा कच्ची ऊन को मशीन में काम में लेने से पहले सफाई के लिए संचालित ऊन की दो सौ से ज्यादा कोटड़ियों में काम करने वाली मजदूरों के सामने भी रोजी रोटी का संकट है.

फैक्ट्री मालिक श्रमिक को वेतन नहीं दे रहे है...

हालांकि सरकार ने सीधे तौर पर किसी भी श्रमिक का भुगतान नहीं रोकने को लेकर दिशा-निर्देश दिए हैं, लेकिन हकीकत यह है कि बंद फैक्ट्री होने के चलते फैक्ट्री मालिक हर श्रमिक को वेतन नहीं दे रहे है. वहीं, कच्ची ऊन को साफ करने के काम में बड़ी संख्या में महिलाएं हैं जो दिहाड़ी पर काम करती है. ऐसे में ऊन उद्योग में आए ठहराव के बाद पिछले दो महीनों से इन श्रमिकों के सामने भी रोजी रोटी का संकट आ गया है.

व्यवसायी सुनील कहते हैं, कि करीब 25 हजार के करीब प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष श्रमिक बीकानेर में इस उद्योग से जुड़े हुए हैं. इन श्रमिकों में ज्यादातर बंगाल और बिहार से रोजगार के लिए आए लोग अब अपने घर जाने की बाट जो रहे हैं, हालांकि अब लॉकडाउन में दी गई छूट के बाद ऊन की कुछ फैक्ट्रियां चालू हुई है. लेकिन तीन की जगह इनमें अभी एक ही शिफ्ट में काम शुरू हुआ है. ऐसे में अब कोरोना का इफेक्ट नजर आने लग गया है.

बीकानेर. बीकानेर की वैश्विक स्तर पर पहचान कई मायनों से है. यहां के भुजिया और रसगुल्ला का स्वाद पूरी दुनिया में मशहूर है तो हजार हवेलियों के इस शहर को देखने के लिए दुनिया भर से पर्यटक हर साल आते हैं. ऐसी ही एक पहचान बीकानेर में ऊन उद्योग के रूप में भी है.

फिर मंदी में बीकानेर का ऊन उद्योग...

दरअसल, बीकानेर में कभी एशिया की सबसे बड़ी ऊन मंडी हुआ करती थी, लेकिन धीरे-धीरे खत्म होते चारागाह और भेड़ों की घटती जनसंख्या के चलते यहां उनका उत्पादन नाम मात्र रह गया और एशिया की सबसे बड़ी ऊन मंडी बीकानेर में अब केवल विदेशों से आयातित ऊन से धागा बनाने का काम होता है.

करीब 10 साल पहले आई वैश्विक मंदी के चलते बीकानेर की उद्योग को काफी संकट झेलना पड़ा और इस संकट से अभी तक यहां का उद्योग निकल नहीं पाया. धीरे-धीरे रफ्तार पकड़ने की तैयारी कर रहा उद्योग अभी पूरी तरह संभाला ही नहीं था, कि अब कोरोना महामारी के बाद ऊन उद्योग बुरे संकट में आ गया है.

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बता दें, कि बीकानेर में यूरोप और मिडिल ईस्ट के कई देशों से उनका आयात किया जाता है जो मुंबई और मुंद्रा पोर्ट पर कन्टेंनर के जरिये उतरती है और वहां से सड़क मार्ग से ट्रकों में ऊन बीकानेर पहुंचती है. बीकानेर में करीब ऊन धागा बनाने वाली 100 से ज्यादा फैक्ट्रियां हैं. जहां हर दिन करीब 30 हजार किलो धागे का निर्माण किया जाता है. इस धागे को उत्तरप्रदेश के भदोही में भेजा जाता है जहां कारपेट का निर्माण होता है और वहां से निर्मित कारपेट को अलग-अलग देशों में निर्यात किया जाता है.

15 सौ करोड़ का टर्नओवर...

ऊन व्यवसायी राजाराम सारड़ा कहते हैं, कि साल के 15 सौ करोड़ के टर्नओवर का यह व्यवसाय अब धीरे-धीरे बीकानेर से खत्म हो रहा है. सारड़ा बताते हैं, कि बीकानेर में तकरीबन 100 फैक्ट्रियां हैं जिनमें साढ़े पांच सौ से ज्यादा कार्ड मशीन लगी हुई है और एक मशीन में हर रोज 1000 किलो धागे का निर्माण होता है. आमतौर पर 300 से साढ़े तीन सौ कार्ड से हर दिन उत्पादन होता है. सारड़ा ने कहा, कि कोरोना के बाद केंद्र सरकार ने आर्थिक पैकेज की घोषणा की है लेकिन सीधे तौर पर ऊन उद्योग को लेकर किसी तरह की कोई घोषणा नहीं है और बिना किसी सरकारी राहत पैकेज के अब यह उद्योग खत्म हो जाएगा.

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पूरे देश में औद्योगिक इकाइयों के बंद होने के बाद मजदूरों के सामने रोजी-रोटी का संकट छा गया है और ऐसे में मजदूर भी अपने घर की ओर लौटने लगे हैं. कुछ ऐसा ही हाल ऊन उद्योग के साथ भी है बीकानेर में सीधे तौर पर इन औद्योगिक इकाइयों के अलावा कच्ची ऊन को मशीन में काम में लेने से पहले सफाई के लिए संचालित ऊन की दो सौ से ज्यादा कोटड़ियों में काम करने वाली मजदूरों के सामने भी रोजी रोटी का संकट है.

फैक्ट्री मालिक श्रमिक को वेतन नहीं दे रहे है...

हालांकि सरकार ने सीधे तौर पर किसी भी श्रमिक का भुगतान नहीं रोकने को लेकर दिशा-निर्देश दिए हैं, लेकिन हकीकत यह है कि बंद फैक्ट्री होने के चलते फैक्ट्री मालिक हर श्रमिक को वेतन नहीं दे रहे है. वहीं, कच्ची ऊन को साफ करने के काम में बड़ी संख्या में महिलाएं हैं जो दिहाड़ी पर काम करती है. ऐसे में ऊन उद्योग में आए ठहराव के बाद पिछले दो महीनों से इन श्रमिकों के सामने भी रोजी रोटी का संकट आ गया है.

व्यवसायी सुनील कहते हैं, कि करीब 25 हजार के करीब प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष श्रमिक बीकानेर में इस उद्योग से जुड़े हुए हैं. इन श्रमिकों में ज्यादातर बंगाल और बिहार से रोजगार के लिए आए लोग अब अपने घर जाने की बाट जो रहे हैं, हालांकि अब लॉकडाउन में दी गई छूट के बाद ऊन की कुछ फैक्ट्रियां चालू हुई है. लेकिन तीन की जगह इनमें अभी एक ही शिफ्ट में काम शुरू हुआ है. ऐसे में अब कोरोना का इफेक्ट नजर आने लग गया है.

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