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राज्य अभलेखागार की नई पहल...अब एक क्लिक में देख सकेंगे शताब्दियों पुराने दस्तावेज और अभिलेख

वैसे तो राजस्थान और भारत का इतिहास काफी समृद्ध है. लेकिन, आज भी इतिहास के कई पन्ने हमसे अछूते हैं. दरअसल इसका कारण है उस वक्त की लिखी भाषा का हमें ज्ञान नहीं होना और ऐसे अनछुए पहलुओं से रूबरू होने का कभी कोई मौका नहीं मिलना. लेकिन, अब दुनिया में कहीं भी बैठे इतिहास के कई ऐसे पन्नों को हम पलक झपकते ही अपने कंप्यूटर पर देख सकते हैं.

बीकानेर न्यूज, bikaner news, State archives news
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Published : Aug 14, 2019, 3:42 PM IST

बीकानेर. बात जब आजादी के जश्न की चल रही है, तो इतिहास के उन पन्नों को भी याद करना जरूरी है, जिनके चलते हम आज आजाद भारत में खुली सांसें ले रहे हैं. दरअसल इतिहास के पन्नों से आमजन को रूबरू करवाने के लिए बीकानेर स्थित राजस्थान राज्य अभिलेखागार ऐसे दस्तावेजों और अभिलेखों को डिजिटलाइजेशन के माध्यम से आमजन तक पहुंचाने का एक प्रयास कर रहा है.

राज्य अभलेखागार की नई पहल

इस प्रयास के तहत अब दुनिया भर में कहीं भी बैठा व्यक्ति अपने कंप्यूटर स्क्रीन पर पलक झपकते ही इन दस्तावेजों को आसानी से पढ़ सकता है. अभिलेखागार के निदेशक डॉ. महेंद्र खड़गावत कहते हैं कि अब तक हमने सवा करोड़ दस्तावेजों का डिजिटलाइजेशन कर दिया है जिससे आम आदमी अब कहीं भी बैठ कर दस्तावेजों को न सिर्फ देख सकता है बल्कि पढ़ भी सकता है और इसके महत्व को भी समझ सकता है. तकनीक के साथ इतिहास को जोड़कर की गई इस पहल को दुनिया भर में समर्थन भी मिल रहा है.

पढ़े- जयपुर में कश्मीरी विद्यार्थियों से ईटीवी भारत की खास-बातचीत

स्वतंत्रता सेनानियों की खुद की आवाज में रिकॉर्ड किए गए भाषण भी है शामिल

अभिलेखागार में भारतीय इतिहास के कई पन्ने संग्रहित है जो हमारे समृद्ध और गौरवशाली इतिहास को बयां करते हैं. स्वाधीनता संग्राम में राजस्थान की रियासतों के समय किए गए आंदोलन के साथ ही देश भर में अलग-अलग जगहों पर स्वतंत्रता सेनानियों की ओर से किए गए आंदोलन और यहां तक कि स्वाधीनता सेनानियों की वॉइस रिकॉर्ड भी इस अभिलेखागार में सुरक्षित हैं और वे पूरी तरह से डिजिटलाइजेशन के साथ ऑनलाइन कर दिए गए हैं. जिसमें तकरीबन 200 से ज्यादा स्वतंत्रता सेनानियों की खुद की आवाज में रिकॉर्ड किए गए भाषण और महत्वपूर्ण वार्तालाप भी शामिल है. लेकिन हर किसी के लिए यहां आकर इतिहास के उन पन्नों को देखना संभव नही है.

खड़गावत के मुताबिक पहले साल में 300 से 400 शोधार्थी और आमजन अभिलेखागार में विजिट करते थे और ऐतिहासिक अभिलेखों और दस्तावेजों का निरीक्षण करते थे लेकिन डिजिटलाइजेशन के बाद अब हर रोज 400 से 500 व्यक्ति इन दस्तावेजों का अध्ययन करते हैं. राजस्थान की आजादी से पहले की 22 रियासतों के साथ ही देश के महत्वपूर्ण युद्ध, संधियों से जुड़े दस्तावेज आज भी अभिलेखागार में सुरक्षित और संग्रहित हैं. इन दस्तावेजों को धीरे धीरे डिजिटलाइजेशन के मोड पर लाते हुए ऑनलाइन संग्रहित किया जा रहा है. सवा करोड़ दस्तावेजों को ऑनलाइन करने के बाद अब हर रोज तकरीबन चार से पांच हजार दस्तावेजों को ऑनलाइन करने का काम अभिलेखागार में चल रहा है.

बीकानेर और राजस्थान की जमीनों के दस्तावेज भी संग्रहित किए जा रहे हैं ऑनलाइन

इन दस्तावेजों के अलावा बीकानेर और राजस्थान के जमीनों के दस्तावेज भी ऑनलाइन संग्रहित किए जा रहे हैं. निदेशक खडगावत कहते हैं कि 1953 से पहले जमीनों के दस्तावेज भी अभिलेखागार में सुरक्षित और संग्रहीत हैं और आज भी पुराने जमीनों के पट्टे अभिलेख के लिए हर रोज लोग अभिलेखागार आते हैं और अपने सालों पुराने पट्टे के दस्तावेज की प्रति लेकर जाते हैं.

पढे़- अजमेर : डॉलर एक्सचेंज के नाम पर 93 हजार ले उड़े अज्ञात बदमाश

दरअसल, रियासत कालीन समय में जारी जमीन के पट्टों की नकल आज भी अभिलेखागार में संग्रहित है और पलक झपकते ही यह दस्तावेज उस व्यक्ति को उपलब्ध करवा दिया जाता है. जबकि डिजिटलाइजेशन से पहले किसी व्यक्ति को यह बताने में भी 6 महीने तक का समय लग जाता था उसका पट्टा रिकॉर्ड में है या नहीं लेकिन अब आवेदन करने के साथ ही उस व्यक्ति को कुछ ही घंटों के भीतर उसके पट्टे की प्रतिलिपि उपलब्ध करवा दी जाती है. खडगावत कहते हैं कि इन सभी दस्तावेजों की माइक्रो फिल्म भी बनाई गई है और 500 साल तक यह रिकॉर्ड किसी भी कीमत पर नष्ट नहीं हो इसको लेकर भी उपाय कर लिए गए हैं.

बीकानेर. बात जब आजादी के जश्न की चल रही है, तो इतिहास के उन पन्नों को भी याद करना जरूरी है, जिनके चलते हम आज आजाद भारत में खुली सांसें ले रहे हैं. दरअसल इतिहास के पन्नों से आमजन को रूबरू करवाने के लिए बीकानेर स्थित राजस्थान राज्य अभिलेखागार ऐसे दस्तावेजों और अभिलेखों को डिजिटलाइजेशन के माध्यम से आमजन तक पहुंचाने का एक प्रयास कर रहा है.

राज्य अभलेखागार की नई पहल

इस प्रयास के तहत अब दुनिया भर में कहीं भी बैठा व्यक्ति अपने कंप्यूटर स्क्रीन पर पलक झपकते ही इन दस्तावेजों को आसानी से पढ़ सकता है. अभिलेखागार के निदेशक डॉ. महेंद्र खड़गावत कहते हैं कि अब तक हमने सवा करोड़ दस्तावेजों का डिजिटलाइजेशन कर दिया है जिससे आम आदमी अब कहीं भी बैठ कर दस्तावेजों को न सिर्फ देख सकता है बल्कि पढ़ भी सकता है और इसके महत्व को भी समझ सकता है. तकनीक के साथ इतिहास को जोड़कर की गई इस पहल को दुनिया भर में समर्थन भी मिल रहा है.

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स्वतंत्रता सेनानियों की खुद की आवाज में रिकॉर्ड किए गए भाषण भी है शामिल

अभिलेखागार में भारतीय इतिहास के कई पन्ने संग्रहित है जो हमारे समृद्ध और गौरवशाली इतिहास को बयां करते हैं. स्वाधीनता संग्राम में राजस्थान की रियासतों के समय किए गए आंदोलन के साथ ही देश भर में अलग-अलग जगहों पर स्वतंत्रता सेनानियों की ओर से किए गए आंदोलन और यहां तक कि स्वाधीनता सेनानियों की वॉइस रिकॉर्ड भी इस अभिलेखागार में सुरक्षित हैं और वे पूरी तरह से डिजिटलाइजेशन के साथ ऑनलाइन कर दिए गए हैं. जिसमें तकरीबन 200 से ज्यादा स्वतंत्रता सेनानियों की खुद की आवाज में रिकॉर्ड किए गए भाषण और महत्वपूर्ण वार्तालाप भी शामिल है. लेकिन हर किसी के लिए यहां आकर इतिहास के उन पन्नों को देखना संभव नही है.

खड़गावत के मुताबिक पहले साल में 300 से 400 शोधार्थी और आमजन अभिलेखागार में विजिट करते थे और ऐतिहासिक अभिलेखों और दस्तावेजों का निरीक्षण करते थे लेकिन डिजिटलाइजेशन के बाद अब हर रोज 400 से 500 व्यक्ति इन दस्तावेजों का अध्ययन करते हैं. राजस्थान की आजादी से पहले की 22 रियासतों के साथ ही देश के महत्वपूर्ण युद्ध, संधियों से जुड़े दस्तावेज आज भी अभिलेखागार में सुरक्षित और संग्रहित हैं. इन दस्तावेजों को धीरे धीरे डिजिटलाइजेशन के मोड पर लाते हुए ऑनलाइन संग्रहित किया जा रहा है. सवा करोड़ दस्तावेजों को ऑनलाइन करने के बाद अब हर रोज तकरीबन चार से पांच हजार दस्तावेजों को ऑनलाइन करने का काम अभिलेखागार में चल रहा है.

बीकानेर और राजस्थान की जमीनों के दस्तावेज भी संग्रहित किए जा रहे हैं ऑनलाइन

इन दस्तावेजों के अलावा बीकानेर और राजस्थान के जमीनों के दस्तावेज भी ऑनलाइन संग्रहित किए जा रहे हैं. निदेशक खडगावत कहते हैं कि 1953 से पहले जमीनों के दस्तावेज भी अभिलेखागार में सुरक्षित और संग्रहीत हैं और आज भी पुराने जमीनों के पट्टे अभिलेख के लिए हर रोज लोग अभिलेखागार आते हैं और अपने सालों पुराने पट्टे के दस्तावेज की प्रति लेकर जाते हैं.

पढे़- अजमेर : डॉलर एक्सचेंज के नाम पर 93 हजार ले उड़े अज्ञात बदमाश

दरअसल, रियासत कालीन समय में जारी जमीन के पट्टों की नकल आज भी अभिलेखागार में संग्रहित है और पलक झपकते ही यह दस्तावेज उस व्यक्ति को उपलब्ध करवा दिया जाता है. जबकि डिजिटलाइजेशन से पहले किसी व्यक्ति को यह बताने में भी 6 महीने तक का समय लग जाता था उसका पट्टा रिकॉर्ड में है या नहीं लेकिन अब आवेदन करने के साथ ही उस व्यक्ति को कुछ ही घंटों के भीतर उसके पट्टे की प्रतिलिपि उपलब्ध करवा दी जाती है. खडगावत कहते हैं कि इन सभी दस्तावेजों की माइक्रो फिल्म भी बनाई गई है और 500 साल तक यह रिकॉर्ड किसी भी कीमत पर नष्ट नहीं हो इसको लेकर भी उपाय कर लिए गए हैं.

Intro:वैसे तो राजस्थान और भारत का इतिहास काफी समृद्ध है लेकिन आज भी इतिहास के कई पन्ने हमसे अछूते हैं। दरअसल इसका कारण है उस वक्त की लिखी भाषा का हमें ज्ञान नहीं होना और ना ही ऐसे अनछुए पहलुओं से रूबरू होने का कभी कोई मौका मिला नहीं मिल पाता। लेकिन अब दुनिया में कहीं भी बैठे इतिहास के कई ऐसे पन्नों को हम पलक झपकते ही अपने कंप्यूटर पर देख सकते हैं।











Body:बीकानेर। बात जब आजादी के जश्न की चल रही है तो इतिहास के उन पन्नों को भी याद करना जरूरी है जिनके चलते हम आज आजाद भारत में खुली सांसें ले रहे हैं। दरअसल इतिहास के पन्नों से आमजन को रूबरू करवाने के लिए बीकानेर स्थित राजस्थान राज्य अभिलेखागार ऐसे दस्तावेजों और अभिलेखों को डिजिटलाइजेशन के माध्यम से आमजन तक पहुंचाने का एक प्रयास कर रहा है इस प्रयास के तहत अब दुनिया भर में कहीं भी बैठा व्यक्ति अपने कंप्यूटर स्क्रीन पर पलक झपकते ही इन दस्तावेजों को आसानी से पढ़ सकता है। अभिलेखागार के निदेशक डॉ महेंद्र खडगावत कहते हैं कि अब तक हमने सवा करोड़ दस्तावेजों का डिजिटलाइजेशन कर दिया है जिससे आम आदमी अब कहीं नहीं बैठा दस्तावेजों को न सिर्फ देख सकता है बल्कि पड़ सकता है और इसके महत्व को भी समझ सकता है। तकनीक के साथ इतिहास को जोड़कर की गई इस पहल को दुनिया भर में समर्थन भी मिल रहा है दरअसल अभिलेखागार में भारतीय इतिहास के कई पन्ने संग्रहित है जो हमारे समृद्ध और गौरवशाली इतिहास को बयां करते हैं। स्वाधीनता संग्राम में राजस्थान की रियासतों के समय किए गए आंदोलन साथ ही देश भर में अलग-अलग जगहों पर स्वतंत्रता सेनानियों की ओर से किए गए आंदोलन और यहां तक कि स्वाधीनता सेनानियों की वॉइस रिकॉर्ड भी इस अभिलेखागार में सुरक्षित हैं और वे पूरी तरह से डिजिटलाइजेशन के साथ ऑनलाइन कर दिए गए हैं जिसमें तकरीबन 200 से ज्यादा स्वतंत्रता सेनानियों की खुद की आवाज में रिकॉर्ड किए गए भाषण और महत्वपूर्ण वार्तालाप भी शामिल है। लेकिन हर किसी के लिए यहां आकर इतिहास के उन पन्नों को देखना संभव नही है। खडगावत के मुताबिक पहले साल में 300 से 400 शोधार्थी और आमजन अभिलेखागार की विजिट करते थे और ऐतिहासिक अभिलेखों और दस्तावेजों का निरीक्षण करते थे लेकिन डिजिटलाइजेशन के बाद अब हर रोज 400 से 500 व्यक्ति इन दस्तावेजों का अध्ययन करते हैं। राजस्थान की आजादी से पहले की 22 रियासतों के साथ ही देश के महत्वपूर्ण युद्ध, संधियों से जुड़े दस्तावेज आज भी अभिलेखागार में सुरक्षित और संग्रहित हैं। इन दस्तावेजों को धीरे धीरे डिजिटलाइजेशन के मोड पर लाते हुए ऑनलाइन संग्रहित किया जा रहा है। सवा करोड़ दस्तावेजों को ऑनलाइन करने के बाद अब हर रोज तकरीबन चार से पांच हजार दस्तावेजों को ऑनलाइन करने का काम अभिलेखागार में चल रहा है।



Conclusion:
इन दस्तावेजों के अलावा बीकानेर और राजस्थान के जमीनों के दस्तावेज भी ऑनलाइन संग्रहित किए जा रहे हैं। निदेशक खडगावत कहते हैं कि 1953 से पहले जमीनों के दस्तावेज भी अभिलेखागार में सुरक्षित और संग्रहीत हैं और आज भी पुराने जमीनों के पट्टे अभिलेख के लिए हर रोज लोग अभिलेखागार आते हैं और अपने सालों पुराने पट्टे के दस्तावेज की प्रति लेकर जाते हैं दरअसल रियासत कालीन समय में जारी जमीन के पट्टों की नकल आज भी अभिलेखागार में संग्रहित है और पलक झपकते ही यह दस्तावेज उस व्यक्ति को उपलब्ध करवा दिया जाता है। जबकि डिजिटलाइजेशन से पहले किसी व्यक्ति को यह बताने में भी 6 महीने तक का समय लग जाता था उसका पट्टा रिकॉर्ड में है या नहीं लेकिन अब आवेदन करने के साथ ही उस व्यक्ति को कुछ ही घंटों के भीतर उसके पट्टे की प्रतिलिपि उपलब्ध करवा दी जाती है। खडगावत कहते हैं कि इन सभी दस्तावेजों की माइक्रो फिल्म भी बनाई गई है और 500 साल तक यह रिकॉर्ड किसी भी कीमत पर नष्ट नहीं हो इसको लेकर भी उपाय कर लिए गए हैं।

बाइट 1 महेंद्र खडगावत निदेशक राज्य अभिलेखागार



बाइट 2 महेंद्र खडगावत निदेशक राज्य अभिलेखागार
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