बीकानेर. पश्चिमी राजस्थान का रेगिस्तानी मरुस्थल इलाका पानी की किल्लत से सदियों से जूझता रहा है. पीने के लिए पानी की कमी बारिश की नहीं होने के चलते हमेशा से यहां रही है और कई बार भीषण अकाल भी इस क्षेत्र के लोगों ने देखे हैं. लेकिन बदलते समय में धीरे-धीरे हुए क्रांतिकारी परिवर्तन के बीच यह क्षेत्र केवल मरुस्थलीय नहीं, बल्कि हरा-भरा भी होने लग गया है. रेगिस्तान से नखलिस्तान तक के सफर में इंदिरा गांधी नहर परियोजना एक जीवनदायिनी क्रांतिकारी परिवर्तन के रूप में सामने आई है.
वैसे तो पंजाब के हरिके बैराज से पश्चिमी राजस्थान के छोर तक इस नहर का क्षेत्र है. कभी बीकानेर रियासत के महाराजा गंगा सिंह ने इस क्षेत्र के लोगों के लिए पेयजल की भीषण दिक्कत को देखते हुए गंग कैनाल बनाई थी जो केवल रियासत के क्षेत्र गंगानगर तक सीमित थी और कालांतर में देश आजाद होने के बाद राजस्थान कैनाल का बनना उसी के चलते सफल हो पाया. यही राजस्थान कैनाल कालांतर में इंदिरा गांधी नहर के नाम से जानी जाने लगी. दरअसल, पिछले साल कोरोना महामारी के चलते नहरबंदी नहीं हुई थी. नहरबंदी का आशय यह है कि नहर की मरम्मत और टूट-फूट को दुरुस्त करने के लिए पानी की सप्लाई को नहर में बंद किया जाता है और उसे नहरबंदी कहते हैं. लेकिन इस साल इंदिरा गांधी नहर परियोजना के इतिहास में सबसे लंबी अवधि की नहरबंदी 7 मार्च से शुरू हुई जो कुल 84 दिन की है.
नहरबंदी से समझ आती है नहर की उपयोगिता...
दरअसल, हमेशा से ही आईजीएनपी को पश्चिमी राजस्थान की लाइफ लाइन कहा जाता है, क्योंकि इस नहर के आने के बाद कृषि और पेयजल की बड़ी दिक्कत दूर हो गई. ऐसे में जब अब नहर बंदी है तो पेयजल की सप्लाई भी एक दिन के अंतराल से हो रही है और कम मात्रा में पेयजल की सप्लाई और सिंचाई के लिए पानी की सप्लाई होने से इस नहर की उपयोगिता सामने आ रही है. वैसे तो पानी को बचाने के लिए सरकारी स्तर पर जागरूकता को लेकर कई प्रयास किए जाते हैं. लेकिन बावजूद उसके, पानी का अपव्यय कई बार देखा जाता है. कई बार ऐसा देखने में आता है कि हजारों लाखों लीटर पानी बेवजह यूं ही लापरवाही के चलते बहा दिया जाता है, क्योंकि नहर के चलते पानी की कमी महीन है. लेकिन इस नहर को बनाने वाले लोग उस वक्त एक एक बूंद पानी को तरसते हुए अपने काम को पूरा कर रहे थे.
खुद प्यासे शहीद हुए और अब करोड़ों लोगों की बुझ रही प्यास...
इंदिरा गांधी नहर परियोजना के सेवानिवृत्त अभियंता अरुण बैद कहते हैं कि पंजाब के हरिके बैराज से हरियाणा होते हुए पश्चिमी राजस्थान के श्रीगंगानगर से हनुमानगढ़ बीकानेर और ऊपरी छोर जैसलमेर तक इस नहर का दायरा है. वे कहते हैं कि प्रदेश के 10 जिलों के पौने दो करोड़ लोगों की प्यास इस नहर से बुझती है. बैद कहते हैं कि वैसे ही पश्चिमी राजस्थान में मौसम का मिजाज अलग रहता है, लेकिन गर्मी के मौसम में धूल के बवंडर और तपती लू और गर्मी की तपिश के बीच नहर के अभियंताओं और श्रमिकों ने इस नहर का निर्माण किया.
वे कहते हैं कि रेगिस्तानी इलाके में कई बार हालात ऐसे हुए कि साइट पर काम कर रहे श्रमिक और अभियंता लोगों की प्यास बुझाने के लिए काम करते करते खुद पानी की किल्लत से प्यासे ही शहीद हो गए. बैद कहते हैं कि नहर के मुख्य अभियन्ता स्तर के भी अधिकारी भी शहादत को पा गए. उन्होंने बताया कि सुदूर रेगिस्तानी इलाके में पीने का पानी श्रमिक और अधिकारी अपने पास ही रखते थे. लेकिन कई बार ऐसे हालात हुए जब रास्ता भटक कर वे लापता हो गए, क्योंकि धूल भरी आंधियों के चलते रास्ता खोजना बहुत कठिन था और सड़क तो थी नहीं और न ही उस वक्त संचार के कोई साधन थे. काम के दौरान शहादत पाने वाले कुछ लोगों के नाम पूछने पर उन्होंने कहा कि यह फेहरिस्त बहुत लंबी है और कइयों का तो रिकॉर्ड ही नहीं है. बैद कहते है आज करोडों लोगों की प्यास बुझाने वाले लोगों के लिए काम वाली साइट पर एक ऊंट गाड़ी पानी लेकर आती थी और जब तक दूसरी गाड़ी नहीं आ जाती तब तक पानी बचाकर रखना पड़ता था.
पानी की कल्पना करना किसी सपने जैसा था...
इंदिरा गांधी नहर परियोजना के कर्मचारी नेता कमल अनुरागी कहते हैं कि पश्चिमी राजस्थान के लिए इंदिरा गांधी नहर क्रांतिकारी बदलाव लेकर आई है. रेगिस्तानी धोरों में पानी की कल्पना करना किसी सपने जैसा था. वे कहते हैं कि महाराजा गंगा सिंह ने भागीरथ बनकर रेगिस्तान में गंग कैनाल का सपना साकार किया. बाद में देश आजाद होने के बाद 30 मार्च 1958 को तत्कालीन केंद्रीय मंत्री गोविंद बल्लभ पंत ने निर्माण कार्य की शुरुआत की. लेकिन इस नहर के पूरे प्रोजेक्ट की नींव देश आजाद होने से पहले ही बीकानेर रियासत की ओर से डाली जा चुकी थी.
अनुरागी कहते हैं कि रेगिस्तान को नखलिस्तान बनाने और रेतीले धोरों की जगह हरियाली यदि आज नजर आ रही है, लेकिन इस नहर को बनाने वाले इंजीनियर और श्रमिकों की शहादत हुई है. कमल कहते हैं कि 1971 के युद्ध के समय भी बमबारी के बीच नहर के अभियंता और श्रमिकों ने अपना काम नहीं रोका और कई बार तो सेना के जवान भी नहर के श्रमिकों और अधिकारियों के कैंप में रुके.
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कुल मिलाकर आज नहरबंदी के चलते पानी के लिए मच रहे हाहाकार के बीच इस बात को भी ध्यान में रखना जरूरी है कि इस नहर के चलते ही आज सुदूर राजस्थान में पानी की किल्लत अब
खत्म हुई है. इसका श्रेय इस नहर को बनाने वाले और इसकी परिकल्पना करने वाले लोगों की वजह से ही यह संभव हुआ है.
नहर एक नजर में : (फीडर की लंबाई)...
- पंजाब के हरिके बैराज से हरियाणा सीमा में कुल 204 किलोमीटर
- मुख्य नहर राजस्थान 445 किलोमीटर
- कुल 649 किलोमीटर लंबी है नहर
- 8000 किलोमीटर वितरण प्रणाली
इन जिलों को मिलता है सिंचाई का पानी...
पश्चिमी राजस्थान के 4 जिलों के अलावा 2 जिलों के कुछ भागों में नहर के पानी से सिंचाई होती है और कुल 16.17 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई नहरी पानी से होने के बाद किसान उन्नत हुए हैं.
इन जिलों की बुझती है प्यास...
पश्चिमी राजस्थान के पौने दो करोड़ की आबादी वाले 10 जिलों की प्यास इंदिरा गांधी नहर से बुझती है.