बीकानेर. जिले के महाराजा गंगा सिंह विश्वविद्यालय की स्थापना 17 साल पूर्व हुई थी. उस समय बीकानेर विश्वविद्यालय के नाम से इसका गठन किया गया था. बाद में बीकानेर के महाराजा और जिले के भगीरथ कहे जाने वाले महाराजा गंगा सिंह के नाम से इस विवि का नामकरण किया गया. क्षेत्रफल और संबद्ध कॉलेजों की संख्या के अनुपात में यह विश्वविद्यालय प्रदेश के बड़े विश्वविद्यालयों में शुमार है.
शिक्षा के दृष्टिकोण से बीकानेर में समग्र विकास देखने को मिला है. बीकानेर प्रदेश का ऐसा पहला जिला है जहां एकेडमिक, वेटरनरी, टेक्निकल और एग्रीकल्चर की यूनिवर्सिटी स्थापित है. लेकिन जिले में एकेडमिक यूनिवर्सिटी के रूप में महाराजा गंगा सिंह विश्वविद्यालय की स्थापना के लिए लंबे समय तक संघर्ष और आंदोलन चला. उसी की परिणीति है कि साल 2003 में बीकानेर में महाराजा गंगा सिंह विश्वविद्यालय की स्थापना हुई. इन 17 सालों में यह विश्वविद्यालय शुरुआती डेढ़ दशक तक अपने पूरे स्वरूप में नहीं आ पाया और केवल विवि के बड़े भूभाग पर स्थापना के अलावा इसका कोई महत्व नजर नहीं आया है.
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12 साल से नहीं स्थायी परीक्षा नियंत्रक
वर्तमान में प्रोफेसर विनोद कुमार सिंह विश्वविद्यालय के कुलपति हैं. अब तक विवि कुल 6 स्थायी कुलपति देख चुका है. किसी भी विश्वविद्यालय के लिए दो पद बेहद महत्वपूर्ण होते हैं. उनमें एक होता है कुलपति और दूसरा होता है परीक्षा नियंत्रक. महाराजा गंगा सिंह विश्वविद्यालय में 17 सालों में एक बार स्थायी परीक्षा नियंत्रक की नियुक्ति हुई थी लेकिन उनके निधन के बाद करीब 12 सालों से इस विश्वविद्यालय में आज तक स्थायी परीक्षा नियंत्रक की नियुक्ति नहीं हो पाई है.
परीक्षा नियंत्रक पद के लिए एक स्थायी व्यक्ति की तलाश
बीकानेर संभाग के बीकानेर हनुमानगढ़, श्रीगंगानगर, चुरू सहित 4 जिलों के करीब 424 कॉलेज इस विश्वविद्यालय से संबद्धता रखते हैं. हजारों विद्यार्थियों की हर साल परीक्षा करवाने वाला यह विश्वविद्यालय परीक्षा नियंत्रक पद के लिए एक स्थायी व्यक्ति नहीं तलाश कर पाया और जुगाड़ से काम चलाया जा रहा है. कुलाधिपति और राज्यपाल कलराज मिश्र लगातार विश्वविद्यालय में शैक्षणिक गतिविधियों के पोषण और कामकाज को लेकर पूरी मॉनिटरिंग करते हैं.
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वहीं दूसरी और प्रदेश के उच्च शिक्षा मंत्री भंवर सिंह भाटी बीकानेर से ही हैं. बावजूद इसके उनके गृह क्षेत्र में उच्च शिक्षा का सबसे बड़ा केंद्र आज भी अपने पूर्ण मूल स्वरूप में नजर नहीं आ रहा है. विश्वविद्यालय में आंदोलनरत छात्र नेता भी मानते हैं कि यह विश्वविद्यालय जिस स्वरुप में होना चाहिए था, उसमें आज भी कमी है.
तत्कालीन आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाने वाले एडवोकेट डॉ. अशोक भाटी कहते हैं कि विश्वविद्यालय के लिए आंदोलन किया गया था. तब यह परिकल्पना की गई थी कि इसका स्वरूप तक्षशिला और नालंदा जैसे विश्वविद्यालय के रूप में हो लेकिन 17 साल बाद भी विश्वविद्यालय में परीक्षा जैसे महत्वपूर्ण काम के लिए भी स्थायी व्यक्ति नहीं नियुक्त है और भौगोलिक भू भाग संरचना विकास के अलावा विश्वविद्यालय में ज्यादा विकास नजर नहीं आया.
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आंदोलन में शामिल रहीं और वर्तमान में विश्वविद्यालय में गेस्ट फैकल्टी के तौर पर काम कर रही डॉ. सीमा जैन कहती हैं इस बात का दुख होता है कि जिस विश्वविद्यालय के लिए लंबे समय तक संघर्ष किया, आज उसके ऐसे दिन आ गए हैं कि वहां परीक्षा नियंत्रक और अन्य पदों पर स्थाई भर्ती भी नहीं है. गेस्ट फैकल्टी और जुगाड़ से ही काम चलाया जा रहा है.
4 साल से विश्वविद्यालय के उप कुलसचिव संभाल रहे जिम्मेदारी
माकपा से जुड़े तत्कालीन समय में आंदोलन में वाममोर्चा की अग्रणी पंक्ति में रहे एडवोकेट बजरंग छिपा कहते हैं कि जिस विश्वविद्यालय की परिकल्पना करके आंदोलन किया गया था. उसके मुताबिक आज विश्वविद्यालय में कोई भी शैक्षणिक माहौल नहीं है और जिलों के उच्च शिक्षा का केंद्र, उच्च शिक्षा मंत्री के गृह क्षेत्र में होते हुए भी पिछड़ा हुआ है. पिछले 12 सालों से खाली पड़े परीक्षा नियंत्रक के पद पर अभी तक नियुक्ति नहीं हुई है और 4 साल से विश्वविद्यालय के उप कुलसचिव को इस पद की जिम्मेदारी को निभाना पड़ रहा है. अब हालात और बिगड़ जाएंगे जब आने वाली जुलाई में वे भी सेवानिवृत्त हो जाएंगे. ऐसे में विश्वविद्यालय में स्थायी परीक्षा नियंत्रक की नियुक्ति जल्द न की गई तो परेशानी खड़ी जाएगी.
वहीं विश्वविद्यालय में 5 माह पूर्व बतौर कुलपति नियुक्त हुए प्रोफेसर विनोद कुमार सिंह बताते हैं कि यह सही है कि विश्वविद्यालय में स्थायी परीक्षा नियंत्रक की नियुक्ति लंबे समय से नहीं हुई है. इस कमी को वह भी महसूस कर रहे हैं और किसी ऐसे व्यक्ति की तलाश में हैं जो भरोसेमंद हो क्योंकि परीक्षा का काम बहुत महत्वपूर्ण व गोपनीयहोता है. प्रो. विनोद कुमार सिंह कहते हैं कि आगामी एक-दो महीने में वह परीक्षा नियंत्रक की नियुक्ति कर लेंगे.