ETV Bharat / city

SPECIAL : शीतला सप्तमी पर भीलवाड़ा में निकाली जाती है जिंदा व्यक्ति की शवयात्रा...इस बार टूटी 500 साल की परंपरा - भीलवाड़ा इलाजी की डोल

भीलवाड़ा में शीतला सप्तमी पर सदियों से प्रतीकात्मक शव यात्रा निकाली जाती है. लोग एक दूसरे को गुलाल लगाकर ढोल-नगाड़े बजाते, नाचते गाते इस शव यात्रा में शामिल होते हैं. महिलाएं इस यात्राे से दूर रहती हैं. मृत्यु के उपहास का ये उत्सव इस बार कोरोना की भेंट चढ़ गया है.

Unique funeral procession bhilwara,  Sheetla Saptami in Bhilwara,  Unique funeral procession in Bhilwara
शवयात्रा का संदेश- अपने दुखों का अंतिम संस्कार कर दीजिए
author img

By

Published : Apr 3, 2021, 7:20 PM IST

भीलवाड़ा. मेवाड़ के प्रवेशद्वार भीलवाड़ा में शीतला सप्तमी के मौके पर करीब 5 सदी से जिंदा मुर्दे की शव यात्रा निकालने की परंपरा रही है. इस अनोखी शवयात्रा में सैकड़ों शहरवासी भाग लेते हैं. इस बार कोरोना संक्रमण के चलते यह यात्रा नहीं निकाली जा सकी. देखिये ये रिपोर्ट...

शीतला सप्तमी पर इस बार नहीं निकली इलाजी की डोल

भीलवाड़ा की शीतला सप्तमी शवयात्रा बहुत अनूठी होती है. इस शव यात्रा में एक व्यक्ति को अर्थी पर लेटाकर उसे कंधों पर उठाकर उसकी शव यात्रा निकाली जाती है. यह जिंदा व्यक्ति की शवयात्रा शहर के मुख्य मार्गों से होते हुए गाजे-बाजे और गीतों के साथ प्राचीन मंदिर के पास पहुंचती है. मंदिर के पीछे शव का अंतिम संस्कार किया जाता है. इस दौरान शवयात्री अर्थी से उठकर भाग जाता है.

Unique funeral procession bhilwara,  Sheetla Saptami in Bhilwara,  Unique funeral procession in Bhilwara
इलाजी की डोल यानी जिंदा व्यक्तिक की शवयात्रा

अंतर्राष्ट्रीय कलाकार बहरूपिया जानकीलाल भांड ने बताया कि भीलवाड़ा में करीब 500 साल से यह इलाजी की डोल निकाली जाती है. जानकी लाल ने बताया कि शहर में रहने वाली गेंदार नाम की एक वैश्या ने इस परंपरा की शुरुआत की थी. गेंदार की मौत के बाद स्थानीय लोग अपने स्तर पर मनोरंजन के लिए यह यात्रा निकालने लगे. संदेश था अपने अंदर की बुराइयों को निकालकर उनका अंतिम संस्कार कर देना अच्छी बात है. होली के आस-पास होने के कारण यह अच्छा संदेश देने वाली यात्रा हंसी-ठिठोली के वातावरण के साथ घुल-मिल गई.

Unique funeral procession bhilwara,  Sheetla Saptami in Bhilwara,  Unique funeral procession in Bhilwara
इस शवयात्रा के पीछे है गहरा मनोवैज्ञानिक संदेश

शवयात्रा में शहरभर के लोग शामिल होते हैं. जिंदा व्यक्ति की अर्थी चित्तौड़ वालों की हवेली से शुरू होती है. इसके बाद पुराने शहर के बाजारों से होती हुई बहाले में जाकर पूरी होती है. इस यात्रा से एक दिन पहले बहाले में भैरूंजी और इलाजी की प्रतिमाएं बनाई जाती हैं. इन प्रतिमाओं की पूजा-अर्चना भी भव्यता के साथ की जाती है. जानकी लाल ने बताया कि उन्होंने अपने पूरे जीवन में इस यात्रा का आयोजन देखा है. सिर्फ भीलवाड़ा में ही यह अनोखी यात्रा निकाली जाती है.

Unique funeral procession bhilwara,  Sheetla Saptami in Bhilwara,  Unique funeral procession in Bhilwara
होलिका का विवाह तय हुआ था इलाजी से

स्थानीय प्रशासन ने कोरोना गाइड लाइन का हवाला देते हुए इस बार यात्रा निकालने की अनुमति नहीं दी. शहरवासी डॉ महावीर प्रसाद ने बताया कि जो व्यक्ति शव बनता है उसे यात्रा के बाद ईनाम दिया जाता है. महावीर प्रसाद ने बताया कि यात्रा का उद्देश्य एक मनोवैज्ञानिक संदेश देना भी है. यही कि हम सुख-दुख में मजबूत रहें. चाहे कैसा भी दुख हो हम खुशी से जीवन जिएं.

कौन थे इलाजी

मान्यता है कि हिरण्यकश्यप की बहन होलिका का विवाह इलाजी से तय हुआ था. विवाह की तिथि पूर्णिमा निकली थी. इधर हिरण्यकश्यप अपने बेटे प्रहलाद की भक्ति से परेशान था. बेटे के मुंह से अपने दुश्मन नारायण का नाम बार-बार सुनकर हिरण्यकश्यप बहन होलिका के सामने प्रस्ताव रखता है कि वह प्रहलाद को गोद में लेकर अग्नि में प्रवेश करे. होलिका ने इंकार किया तो हिरण्यकश्यप ने उसके विवाह में खलल डालने की धमकी दी.

Unique funeral procession bhilwara,  Sheetla Saptami in Bhilwara,  Unique funeral procession in Bhilwara
शवयात्रा का संदेश- अपने दुखों का अंतिम संस्कार कर दीजिए

बेबस होलिका ने भाई की बात मान ली. वह प्रहलाद को गोद में लेकर अग्नि में बैठ गई. इसी दिन उनका विवाह भी था इसलिए इलाजी बारात लेकर आ गए थे. लेकिन उन्हें पता चला कि होलिका नहीं रही तो उन्होंने उस राख को ही अपने पूरे शरीर पर लपेट लिया. इलाजी ने होलिका के दुख में इलाजी पूरे जीवन अविवाहित रहे.

भीलवाड़ा. मेवाड़ के प्रवेशद्वार भीलवाड़ा में शीतला सप्तमी के मौके पर करीब 5 सदी से जिंदा मुर्दे की शव यात्रा निकालने की परंपरा रही है. इस अनोखी शवयात्रा में सैकड़ों शहरवासी भाग लेते हैं. इस बार कोरोना संक्रमण के चलते यह यात्रा नहीं निकाली जा सकी. देखिये ये रिपोर्ट...

शीतला सप्तमी पर इस बार नहीं निकली इलाजी की डोल

भीलवाड़ा की शीतला सप्तमी शवयात्रा बहुत अनूठी होती है. इस शव यात्रा में एक व्यक्ति को अर्थी पर लेटाकर उसे कंधों पर उठाकर उसकी शव यात्रा निकाली जाती है. यह जिंदा व्यक्ति की शवयात्रा शहर के मुख्य मार्गों से होते हुए गाजे-बाजे और गीतों के साथ प्राचीन मंदिर के पास पहुंचती है. मंदिर के पीछे शव का अंतिम संस्कार किया जाता है. इस दौरान शवयात्री अर्थी से उठकर भाग जाता है.

Unique funeral procession bhilwara,  Sheetla Saptami in Bhilwara,  Unique funeral procession in Bhilwara
इलाजी की डोल यानी जिंदा व्यक्तिक की शवयात्रा

अंतर्राष्ट्रीय कलाकार बहरूपिया जानकीलाल भांड ने बताया कि भीलवाड़ा में करीब 500 साल से यह इलाजी की डोल निकाली जाती है. जानकी लाल ने बताया कि शहर में रहने वाली गेंदार नाम की एक वैश्या ने इस परंपरा की शुरुआत की थी. गेंदार की मौत के बाद स्थानीय लोग अपने स्तर पर मनोरंजन के लिए यह यात्रा निकालने लगे. संदेश था अपने अंदर की बुराइयों को निकालकर उनका अंतिम संस्कार कर देना अच्छी बात है. होली के आस-पास होने के कारण यह अच्छा संदेश देने वाली यात्रा हंसी-ठिठोली के वातावरण के साथ घुल-मिल गई.

Unique funeral procession bhilwara,  Sheetla Saptami in Bhilwara,  Unique funeral procession in Bhilwara
इस शवयात्रा के पीछे है गहरा मनोवैज्ञानिक संदेश

शवयात्रा में शहरभर के लोग शामिल होते हैं. जिंदा व्यक्ति की अर्थी चित्तौड़ वालों की हवेली से शुरू होती है. इसके बाद पुराने शहर के बाजारों से होती हुई बहाले में जाकर पूरी होती है. इस यात्रा से एक दिन पहले बहाले में भैरूंजी और इलाजी की प्रतिमाएं बनाई जाती हैं. इन प्रतिमाओं की पूजा-अर्चना भी भव्यता के साथ की जाती है. जानकी लाल ने बताया कि उन्होंने अपने पूरे जीवन में इस यात्रा का आयोजन देखा है. सिर्फ भीलवाड़ा में ही यह अनोखी यात्रा निकाली जाती है.

Unique funeral procession bhilwara,  Sheetla Saptami in Bhilwara,  Unique funeral procession in Bhilwara
होलिका का विवाह तय हुआ था इलाजी से

स्थानीय प्रशासन ने कोरोना गाइड लाइन का हवाला देते हुए इस बार यात्रा निकालने की अनुमति नहीं दी. शहरवासी डॉ महावीर प्रसाद ने बताया कि जो व्यक्ति शव बनता है उसे यात्रा के बाद ईनाम दिया जाता है. महावीर प्रसाद ने बताया कि यात्रा का उद्देश्य एक मनोवैज्ञानिक संदेश देना भी है. यही कि हम सुख-दुख में मजबूत रहें. चाहे कैसा भी दुख हो हम खुशी से जीवन जिएं.

कौन थे इलाजी

मान्यता है कि हिरण्यकश्यप की बहन होलिका का विवाह इलाजी से तय हुआ था. विवाह की तिथि पूर्णिमा निकली थी. इधर हिरण्यकश्यप अपने बेटे प्रहलाद की भक्ति से परेशान था. बेटे के मुंह से अपने दुश्मन नारायण का नाम बार-बार सुनकर हिरण्यकश्यप बहन होलिका के सामने प्रस्ताव रखता है कि वह प्रहलाद को गोद में लेकर अग्नि में प्रवेश करे. होलिका ने इंकार किया तो हिरण्यकश्यप ने उसके विवाह में खलल डालने की धमकी दी.

Unique funeral procession bhilwara,  Sheetla Saptami in Bhilwara,  Unique funeral procession in Bhilwara
शवयात्रा का संदेश- अपने दुखों का अंतिम संस्कार कर दीजिए

बेबस होलिका ने भाई की बात मान ली. वह प्रहलाद को गोद में लेकर अग्नि में बैठ गई. इसी दिन उनका विवाह भी था इसलिए इलाजी बारात लेकर आ गए थे. लेकिन उन्हें पता चला कि होलिका नहीं रही तो उन्होंने उस राख को ही अपने पूरे शरीर पर लपेट लिया. इलाजी ने होलिका के दुख में इलाजी पूरे जीवन अविवाहित रहे.

ETV Bharat Logo

Copyright © 2025 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.