भीलवाड़ा. बारठ परिवार की महिला सरला कंवर ने ईटीवी भारत से चर्चा में कहा कि हमारे पुरखों ने जो काम किया है, उस पर हम आज भी गर्व करते हैं. आज भी देश पर कोई संकट आ जाए तो मैं बंदूक उठाने से भी नहीं चूकूंगी. बारठ परिवार को देशभक्ति विरासत में मिली है.
यही वजह है कि राष्ट्रीय कवि ने बारठ परिवार को कोहिनूर बताया है. देश को आजाद करवाने के लिए स्वतंत्रता आंदोलन चला. आजादी के आंदोलन की सैकड़ों कहानियां कही-सुनी जाती हैं. जिन्हें सुनकर सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है. ब्रिटिश हुकूमत ने क्रांतिकारियों को यातनाएं दीं लेकिन वे न टूटे और न झुके. इंकलाब जिंदाबाद और भारत माता की जय के नारे लगाते हुए आगे बढ़ते गए.
ईटीवी भारत की टीम भीलवाड़ा जिले के शाहपुरा क्षेत्र में पहुंची. यहां देश के स्वतंत्रता संग्राम में बढ़ चढ़कर हिस्सा लेने वाले बारठ परिवार की हवेली है. यह हवेली अब संग्रहालय बन चुकी है. हवेली में बारठ परिवार की जीवन गाथा के साथ संरक्षित है उन वीरों की पगड़ी. बारठ परिवार ने गांधीजी के नेतृत्व में हर आंदोलन में हिस्सा लिया. पूर्ववर्ती वसुंधरा राजे सरकार के समय बारठ परिवार के बलिदान के लिए एक पैनोरमा बनाने की घोषणा हुई थी, लेकिन यह नहीं बन सका. बारठ परिवार के वीरों पर डाक टिकट भी जारी नहीं हो सका.
बारठ परिवार की वीरगाथा
शाहपुरा में ईटीवी भारत की टीम की मुलाकात हुई राष्ट्र कवि कैलाश मंडेला से. मंडेला ने स्वतंत्रता आंदोलन में बारठ परिवार की वीर गाथा सुनाई. देश को अंग्रेजों की दासता से मुक्त कराने के लिए सन 1857 की सशस्त्र क्रांति के विफल हो जाने पर देश में घोर निराशा और अंधकार छा गया था. ऐसा प्रतीत होने लगा कि मानो भारत वासियों में स्वतंत्रता की भावना ही लुप्त हो गई है. उस समय क्रांति के जन नेता केसरी सिंह बारठ ने देश की स्वतंत्रता के लिए सर्वप्रथम क्रांति की बुझी हुई अग्नि को पुनः प्रज्वलित किया. उन्होंने स्वामी दयानंद और महान क्रांतिकारी श्यामजी कृष्ण वर्मा, अरविंद और लोकमान्य तिलक से प्रेरणा पाकर राजस्थान में सशस्त्र क्रांति के लिए प्रबल प्रयत्न करना प्रारंभ किया था.
केसरी सिंह बारठ
केसरी सिंह बारहठ का जन्म 21 नवंबर 1872 को शाहपुरा के पास देवपुरा गांव में हुआ था. इनका निधन 14 अगस्त 1941 को हुआ. उन्होंने प्रथम गिरफ्तारी शाहपुरा से 21 मार्च 1914 को दी, उन्हें 20 वर्ष का कारावास हुआ. उन्होंने हजारीबाग जेल में समय बिताया. 1919 में हजारीबाग जेल से रिहा होने के बाद भी वे लगातार स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेते रहे. रासबिहारी बोस ने क्रांतिकारी केसरी सिंह बारठ के लिए कहा था कि केसरी सिंह के सारे परिवार ने त्याग का जो उदाहरण पेश किया है, वह आधुनिक राजस्थान में अनन्य है. देशभर में भी उसकी मिसाल शायद ही मिले. वे राजस्थान के योगी अरविंद थे.
वीरवर जोरावर सिंह बारठ
केसरी सिंह बारठ के छोटे भाई जोरावर सिंह बारट भी स्वतंत्रता आंदोलन में अपने भाई के साथ कूद पड़े. उनका जन्म शाहपुरा के पास देव खेड़ा गांव में 12 सितंबर 1893 को हुआ था. जब रासबिहारी बोस ने लॉर्ड हार्डिंग पर बम फेंककर ब्रिटिश चूलों को हिलाने की योजना तैयार की तब जोरावर सिंह और प्रताप सिंह बारठ को बुलावा भेजा. दिनांक 23 दिसंबर 1912 को जब ब्रिटिश साम्राज्यवाद की शक्ति के प्रतीक वायसराय लॉर्ड हार्डिंग का भव्य जुलूस दिल्ली की चांदनी चौक में पहुंचा तो जोरावर सिंह बारठ ने बुर्के से बम फेंककर वायसराय को रुधिर स्नान करा दिया. उस समय केसरी सिंह बारहठ के बेटे प्रताप सिंह बारठ भी उनके साथ थे. संसार के सभी गुलाम देशों में राजनीतिक भूकंप छा गया. जोरावर सिंह ने 27 वर्ष तक मध्यप्रदेश के मालवा और राजस्थान में फरारी काटी. 17 अक्टूबर 1939 को उनका देहांत हो गया.
प्रताप सिंह बारठ
प्रताप केसरी सिंह बारठ के बेटे थे. उन्होंने भी देश की स्वाधीनता के लिए अपने प्राणों की आहुति दी. उनका जन्म 24 मई 1893 को हुआ और देश को आजाद करवाने के जज्बे के साथ 24 मई 1918 को 25 वर्ष की आयु में ही वे शहीद हो गए. प्रताप सिंह बारठ के किससे आज भी सुनाए जाते हैं.
केसरी सिंह बारठ की बेटी की पोती ने कहा..
राजस्थान में स्वाधीनता आंदोलन में सिरमौर रहे केसरी सिंह बारठ की बेटी की पौत्री सरला कंवर ने ईटीवी भारत से खास बातचीत में कहा कि मैं पाली जिले के पिनावरी गांव की रहने वाली हूं. मैं केसरी सिंह जी बारठ की बेटी सौभाग्य मणि की पौत्री हूं. मुझे गर्व है कि मेरी शादी इसी क्षेत्र में हुई है. जब मैं छोटी थी तब मेरी दादी मुझे स्वाधीनता आंदोलन के किस्से सुनाती थी. कहती थी कि तेरी शादी शाहपुरा क्षेत्र में ही करवाऊंगी. मेरी शादी यहां होने के बाद मैं शाहपुरा की इस हवेली के बारे में सुनती हूं तो मेरा सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है. हमारे परिवार के बुजुर्गों ने देश के स्वतंत्रता आंदोलन में कितना काम किया. हमारे पुरखों की तरह मैं भी तैयार हूं. मैं भले ही महिला हूं. लेकिन बंदूक उठाने के लिए आज भी तैयार हूं. देश पर विपत्ति आने पर मैं प्राणों की आहुति दे सकती हूं.
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बारठ परिवार की हवेली राष्ट्रीय संग्रहालय
त्याग तपस्या और बलिदान की भूमि शाहपुरा में बारठ परिवार की हवेली में राष्ट्रीय संग्रहालय है. प्रताप सिंह बारहठ संस्थान के सचिव कैलाश सिंह जाड़ावत ने कहा कि आजादी और लोकतंत्र की मजबूती के लिए पूरे बारहठ परिवार ने अपने प्राणों की आहुति दी. रासबिहारी बोस ने यहां तक कहा था कि देश में शायद ही केसरी सिंह बारहठ के अलावा कोई परिवार ऐसा होगा जिसमें पिता के कहने पर भाई, पुत्र और दामाद क्रांति के रास्ते पर चल पड़े. ऐसे क्रांतिकारी शाहपुरा क्षेत्र के देव खेड़ा के जागीरदार थे. जिन्होंने राजस्थान के सशक्त क्रांति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
उन्होंने कहा कि इस हवेली को आजादी के बाद संग्रहालय में तब्दील किया गया. जोरावर सिंह बारहठ केसरी सिंह बारहठ के छोटे भाई थे, जिन्होंने लावर्ड होल्डिंग पर 23 दिसंबर 1912 को बम फेंका था. तब अंग्रेज हुकूमत में तहलका मचा दिया था. यह ऐसी घटना थी जिसके बाद अंग्रेज डर गए थे और देश छोड़कर जाने की चाह कई अफसर स्वीकार कर चुके थे. यह पहली घटना थी. इसके बाद क्रांतिकारियों में नया जोश पैदा हुआ. केसरी सिंह बारहठ ने अपने छोटे भाई व अपने बेटे प्रताप सिंह बारहठ को भी क्रांति के पथ पर आगे बढ़ाया.
इस हवेली में क्रांतिकारी करते थे गुप्त मंत्रणा
इनके साथ अर्जुन लाल सेठी, गोपाल सिंह खरवा भी थे. इसी शाहपुरा की हवेली में क्रांतिकारियों ने गुप्त मंत्रणा करते थे. केसरी सिंह बारहठ के पुत्र प्रताप सिंह बारठ बरेली में शहीद हुए थे. जब केसरी सिंह बारठ के पुत्र प्रताप सिंह बारठ को चार्ल्स क्लीवलैंड ने कहा कि प्रताप तुम अगर अपने साथियों के नाम बता दो तो मैं तुम्हारे पिता व चाचा की सजा माफ कर दूंगा. लेकिन प्रताप ने कभी अंग्रेजों के सामने अपना मुंह नहीं खोला. अंत में अंग्रेजों ने यहां तक कहा कि प्रताप अगर आपकी मां रो रही है और आप अपनी मां को हंसाना चाहते हो तो हमें नाम बता दो. इस पर प्रताप सिंह बारठ ने कहा कि मेरी मां को हंसाने के लिए मैं देश की हजारों- हजारों मांओं को रूला नहीं सकता. यह अमर वाक्य इतिहास में आज भी लिखा हुआ है.
वर्ष 2018 में प्रताप सिंह बारठ की शहादत के 100 वर्ष पूरे हुए थे. तब शाहपुरा से मेवाड़ क्रांति गौरव रथ यात्रा प्रारंभ की गई जो मेवाड़ से होकर वापस शाहपुरा पहुंची. तब बरेली जेल से प्रताप सिंह बारठ जहां शहीद हुए उस जेल से रज लेकर यहां आए थे. उस गौरव यात्रा में भारत के 50 से ज्यादा क्रांतिकारी परिवार शामिल थे. जिसमें मंगल पांडे, अशफाक उल्ला खां व भगत सिंह के परिवार भी यहां आए थे.
बारठ परिवार भारत का कोहिनूर था
संस्था सचिव कैलाश जाड़ावत ने कहा कि मैं आज यह कह सकता हूं कि यह परिवार भारत का कोहिनूर था. लेकिन बड़ी विडंबना है कि इस परिवार को जो सम्मान राष्ट्रीय स्तर पर मिलना चाहिए वह नहीं मिला. विगत 10 वर्ष से प्रदेश स्तर पर सम्मान जरूर मिला. प्रदेश में 50 से ज्यादा स्मारक बने हैं. तत्कालीन मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने पैनोरमा बनाने की घोषणा की थी लेकिन सरकार बदलने से वह काम फाइलों में बंद है. हम तो सिर्फ यही मांग करते हैं कि इनके कृतित्व और व्यक्तित्व को एनसीईआरटी के पाठ्यक्रम में शामिल किया जाए. साथ ही प्रताप सिंह बारठ के नाम से इनके पैतृक गांव देव खेड़ा में विद्यालय का नामकरण हो और केसरी सिंह बारठ के नाम से डाक टिकट भी जारी किया जाए.
संग्रहालय में जिम्मेदारी संभाल रहे पुरातत्व विभाग के सुरेंद्र सांवरिया ने कहा कि यह केसरी सिंह बारहठ का संग्रहालय है. यहां 5 जनों का स्टाफ कार्यरत है. यहां असंख्य लोग इनकी जीवन गाथा को पढ़ने-देखने आते हैं. यहां विजिट करने वाले लोगों को स्वतंत्रता आंदोलन के वीडियो दिखाए जाते हैं.
देग्या कुर्बानी..खेल्या रै खूनी फाग
शाहपुरा निवासी कवि कैलाश मंडेला ने अपनी कविता के माध्यम से कहा- देग्या कुर्बानी खेल्या रै खूनी फाग गण मायड़ जांपै गर्व करे. कवि कैलाश मंडेला ने कहा कि शाहपुरा का निवासी होना गौरव की बात है. इसी धरती पर जन्मे बारठ परिवार की त्रिमूर्ति ने अपना जौहर दिखाया. इसी वजह से शाहपुरा को शक्ति, भक्ति और कुर्बानी अमर भूमि कहा जाता है. एक ही परिवार का आजादी के आंदोलन में बड़ी आहूतियां देने का यह दुर्लभ उदाहरण है. केसरी सिंह बारठ, जोरावर सिंह बारठ और प्रतापसिंह बारहठ का बलिदान कभी भुलाया नहीं जा सकता.
प्रताप को बरेली जेल में यातनाएं
प्रताप सिंह को बरेली जेल में कई यातनाएं दी गईं. उस जेल की बैरक के पास ही सचिंद्र नाथ सान्याल की बैरक थी. उन्होंने एक संस्मरण लिखा था जिसमें प्रताप सिंह की जेल यातनाओं का जिक्र किया. प्रताप का जन्म भी 24 मई को हुआ और वीरगति भी 24 मई को हुई. अंग्रेजों ने प्रताप की मौत के बाद उन्हें जेल में ही दफ्न कर दिया था.
प्रताप के नाम से कॉलेज
वरिष्ठ पत्रकार मूलचंद पेसवानी कहते हैं कि शाहपुरा के बारठ परिवार की आजादी आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका रही. प्रताप सिंह 25 वर्ष की उम्र में ही स्वतंत्रता आंदोलन में शहीद हो गए थे, उनके नाम पर शाहपुरा में राजकीय महाविद्यालय है. उनकी माता के नाम से यहां विद्यालय है. फिर भी बारठ परिवार को राष्ट्रीय स्तर पर सम्मान और पहचान नहीं मिली. आज तक उन पर डाक टिकट जारी नहीं हुआ, न पैनोरमा बना.
चेतावनी रा चूंग्ट्या का असर
महात्मा गांधी की दांडी यात्रा में भी पूरा बारठ परिवार साथ था. बारठ परिवार के कारण ही मेवाड़ का नाम गर्व से लिया जाता है. मेवाड़ के महाराणा जब ब्रिटिश हुकूमत के बुलावे पर दिल्ली पहुंच रहे थे तब केसरी सिंह ने चेतावनी रा चूंगट्या सोरठे लिखकर महाराणा मेवाड़ को सरेरी रेलवे स्टेशन पर दिये थे. मेवाड़ महाराणा ने रेल में सफर करते वक्त चेतावनी रा चूंगट्या सोरठे पढे. वे दिल्ली रेलवे स्टेशन पर उतरे भी. लेकिन उन सोरठों का ऐसा असर हुआ कि ब्रिटिश अधिकारियों से मिले बिना ही वापस मेवाड़ लौट आए. केसरी सिंह बारठ की कविताओं ने उन्हें विचलित कर दिया था.