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आस पहाड़ पर स्थित शिव मंदिर की महिमा है निराली, भोले के भक्तों का लगा रहता है तांता...कुंड का पानी खत्म नहीं होता - ETV Bharat rajasthan news

भीलवाड़ा जिले में आस पहाड़ पर स्थित प्राचीन शिव मंदिर की अलग ही (Bhilwara Shiva Mandir) महिमा है. माना जाता है कि इस मंदिर में बने धुणी के पास जाकर जो भी मन्नत मांगी जाए, वह पूरी जरूर होती है. इस प्राचीन शिव मंदिर के पास एक ऐसा कुंड है जो कि 700 फीट ऊंची पहाड़ी पर बना है, लेकिन यहां कभी भी पानी खत्म नहीं होता है.

Bhilwara Shiva Mandir
भीलवाड़ा में आस पहाड़ पर शिव मंदिर
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Published : Aug 4, 2022, 6:03 AM IST

भीलवाड़ा. जिले की बदनोर तहसील के अंतिम गांव में मंगरा, मेवाड़ ओर मारवाड़ के संगम अरावली पर्वत माला में आस पहाड़ के नाम से एक प्रसिद्ध पर्वत है. यहां बने मंदिर में प्राचीन स्वयंभू शिवलिंग है. सावन महीने में यहां विशेष पूजा-अर्चना की जाती है. 700 फीट ऊंची पर्वतमाला पर एक कुंड है, जिसमें हमेशा पानी भरा रहता है. उसी पानी से भगवान भोले का प्रतिदिन अभिषेक होता है. वहीं पहाड़ पर एक धुणी भी है, मान्यता है कि यहां जो भी भक्त मन्नत मांगता है, उसे भगवान भोलेनाथ जरूर पूरा करते हैं.

क्षेत्र वासियों का मानना है कि इस शिव मंदिर में स्वयंभू शिवलिंग है, जो हजारों वर्ष (Lord shiva temple on aas mountain in Bhilwara) पुराना है. साथ ही यहां भगवान शंकर की तपस्या स्थली की धूणी है, इस पहाड़ पर वर्तमान में 72 वें महंत महेंद्र पुरी रहते हैं. इस मंदिर के अधीन 1013 गांव आते हैं. उन गांव में रहने वाला प्रत्येक परिवार 6 माह में इस मंदिर के नाम 5 किलो अनाज भेजता है. उस अनाज को मंदिर के सदस्य की ओर से कबूतर, मोर व चिड़िया को डाला जाता है.

आस पहाड़ पर बसे शिव मंदिर की महिमा है निराली...

सावन माह में यहां की प्राकृतिक छटा भी अद्भुत नजर आती है. पहाड़ों के बीच भगवान भोले के इस नयनाभिराम दृश्य को देखने वर्तमान में काफी संख्या में श्रद्धालु पहुंच रहे हैं. यहां करीब 700 फीट ऊंची पहाड़ी पर एक कुंड भी है, जिसमें सालभर में कभी भी पानी कम नहीं होता है. महंत व क्षेत्रवासियों का मानना है कि वर्ष 1956 के अकाल के समय भी जब पानी के लिए लोग त्राहिमाम- त्राहिमाम कर रहे थे. उस समय भी इस कुंड में कभी पानी समाप्त नहीं हुआ था.

पढ़ें. Sawan 2022 : न रेत लगी, न चूना...12वीं सदी का ऐसा मंदिर जो रातों-रात खड़ा हुआ

वर्तमान में 72वें गादीपति-मंदिर परिसर में ही भगवान शंकर की तपोस्थली के नाम से विख्यात एक प्रसिद्ध भगवान शंकर की धूणी है. इस धुणी के प्रतिदिन मंदिर के महंत तपस्या करते हैं. मंदिर में वर्तमान में 72वें संत महेंद्र पुरी महाराज हैं. जिनके संरक्षण में ही सभी आयोजन होते हैं.

हरियाली अमावस्या पर हुआ विशेष आयोजनः हरियाली अमावस्या पर यहां विशेष मेले का आयोजन किया गया. इस मेले में प्रदेश से काफी संख्या में भगवान भोले के भक्त यहां पहुंचे थे. मेला जैसा नजारा पूरे सावन में बना रहता है. दर्शन करने आए दयाल रावत ने बताया कि आस पहाड़ पर भगवान भोले के दर्शन करने आया हूं. यहां आने पर मन में शांति जरूर मिलती है. भक्त चंद्र प्रकाश जोशी ने कहा कि यहां एक ऐसा चमत्कारी कुंड है, जिसका पानी कभी समाप्त नहीं होता है.

Bhilwara Shiva Mandir
कुंड में कभी खत्म नहीं होता पानी

पढ़ें. मनोकामना पूरी करते हैं 'नई के नाथ', सावन में महादेव के पूजन को लगती है श्रद्धालुओं की कतार

देशराज ने कहा कि मैं अजमेर जिले के हनुतिया गांव से आया हूं. सावन जैसे पवित्र माह में भगवान भोलेनाथ के दर्शन व पूजा-अर्चना करने से मन में शांति मिलती है. यहां अरावली पर्वतमाला भी अद्भुत है, इसीलिए यहां भगवान भोलेनाथ के दर्शन करने आया हूं. मंदिर परिसर में व्यवस्थाओं की जिम्मेदारी संभाल रहे श्री राम गुर्जर ने कहा कि आस पहाड़ दरबार में काफी संत व भक्तजन दर्शन करने आते हैं. यहां वर्षा ऋतु में कहीं जंगली जानवर भी आसपास जंगल में घूमते हैं. लेकिन महादेव की ऐसी कृपा है कि किसी जंगली जानवर से आज तक किसी भी भक्तजन को डर नहीं लगता है.

वहीं मंदिर कमेटी के अन्य सदस्य वीरम सिंह ने कहा कि अरावली के बीच यहां भगवान भोलेनाथ के मंदिर के पास की प्राकृतिक छटा है. वही मंदिर कमेटी के अन्य सदस्य लादूराम गुर्जर ने कहा कि यहां आस पहाड़ पर भगवान भोलेनाथ का विशाल मंदिर है, जहां सावन माह में काफी संख्या में भक्तजन यहां भोले के दर्शन करने पहुंचते हैं. उन्होंने कहा कि हमारे बुजुर्गों ने बताया कि यह 1000 वर्ष पुराना मंदिर है, जो जमीन से 700 फीट ऊंचाई पर पहाड़ी पर स्थित है. यह भीलवाड़ा ,राजसमंद व अजमेर जिले के संगम के साथ ही यहा मेवाड़, मारवाड़ व मंगरा क्षेत्र का भी संगम है. इसलिए हम इनको त्रिवेणी संगम से कम नहीं मानते हैं.

भीलवाड़ा. जिले की बदनोर तहसील के अंतिम गांव में मंगरा, मेवाड़ ओर मारवाड़ के संगम अरावली पर्वत माला में आस पहाड़ के नाम से एक प्रसिद्ध पर्वत है. यहां बने मंदिर में प्राचीन स्वयंभू शिवलिंग है. सावन महीने में यहां विशेष पूजा-अर्चना की जाती है. 700 फीट ऊंची पर्वतमाला पर एक कुंड है, जिसमें हमेशा पानी भरा रहता है. उसी पानी से भगवान भोले का प्रतिदिन अभिषेक होता है. वहीं पहाड़ पर एक धुणी भी है, मान्यता है कि यहां जो भी भक्त मन्नत मांगता है, उसे भगवान भोलेनाथ जरूर पूरा करते हैं.

क्षेत्र वासियों का मानना है कि इस शिव मंदिर में स्वयंभू शिवलिंग है, जो हजारों वर्ष (Lord shiva temple on aas mountain in Bhilwara) पुराना है. साथ ही यहां भगवान शंकर की तपस्या स्थली की धूणी है, इस पहाड़ पर वर्तमान में 72 वें महंत महेंद्र पुरी रहते हैं. इस मंदिर के अधीन 1013 गांव आते हैं. उन गांव में रहने वाला प्रत्येक परिवार 6 माह में इस मंदिर के नाम 5 किलो अनाज भेजता है. उस अनाज को मंदिर के सदस्य की ओर से कबूतर, मोर व चिड़िया को डाला जाता है.

आस पहाड़ पर बसे शिव मंदिर की महिमा है निराली...

सावन माह में यहां की प्राकृतिक छटा भी अद्भुत नजर आती है. पहाड़ों के बीच भगवान भोले के इस नयनाभिराम दृश्य को देखने वर्तमान में काफी संख्या में श्रद्धालु पहुंच रहे हैं. यहां करीब 700 फीट ऊंची पहाड़ी पर एक कुंड भी है, जिसमें सालभर में कभी भी पानी कम नहीं होता है. महंत व क्षेत्रवासियों का मानना है कि वर्ष 1956 के अकाल के समय भी जब पानी के लिए लोग त्राहिमाम- त्राहिमाम कर रहे थे. उस समय भी इस कुंड में कभी पानी समाप्त नहीं हुआ था.

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वर्तमान में 72वें गादीपति-मंदिर परिसर में ही भगवान शंकर की तपोस्थली के नाम से विख्यात एक प्रसिद्ध भगवान शंकर की धूणी है. इस धुणी के प्रतिदिन मंदिर के महंत तपस्या करते हैं. मंदिर में वर्तमान में 72वें संत महेंद्र पुरी महाराज हैं. जिनके संरक्षण में ही सभी आयोजन होते हैं.

हरियाली अमावस्या पर हुआ विशेष आयोजनः हरियाली अमावस्या पर यहां विशेष मेले का आयोजन किया गया. इस मेले में प्रदेश से काफी संख्या में भगवान भोले के भक्त यहां पहुंचे थे. मेला जैसा नजारा पूरे सावन में बना रहता है. दर्शन करने आए दयाल रावत ने बताया कि आस पहाड़ पर भगवान भोले के दर्शन करने आया हूं. यहां आने पर मन में शांति जरूर मिलती है. भक्त चंद्र प्रकाश जोशी ने कहा कि यहां एक ऐसा चमत्कारी कुंड है, जिसका पानी कभी समाप्त नहीं होता है.

Bhilwara Shiva Mandir
कुंड में कभी खत्म नहीं होता पानी

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देशराज ने कहा कि मैं अजमेर जिले के हनुतिया गांव से आया हूं. सावन जैसे पवित्र माह में भगवान भोलेनाथ के दर्शन व पूजा-अर्चना करने से मन में शांति मिलती है. यहां अरावली पर्वतमाला भी अद्भुत है, इसीलिए यहां भगवान भोलेनाथ के दर्शन करने आया हूं. मंदिर परिसर में व्यवस्थाओं की जिम्मेदारी संभाल रहे श्री राम गुर्जर ने कहा कि आस पहाड़ दरबार में काफी संत व भक्तजन दर्शन करने आते हैं. यहां वर्षा ऋतु में कहीं जंगली जानवर भी आसपास जंगल में घूमते हैं. लेकिन महादेव की ऐसी कृपा है कि किसी जंगली जानवर से आज तक किसी भी भक्तजन को डर नहीं लगता है.

वहीं मंदिर कमेटी के अन्य सदस्य वीरम सिंह ने कहा कि अरावली के बीच यहां भगवान भोलेनाथ के मंदिर के पास की प्राकृतिक छटा है. वही मंदिर कमेटी के अन्य सदस्य लादूराम गुर्जर ने कहा कि यहां आस पहाड़ पर भगवान भोलेनाथ का विशाल मंदिर है, जहां सावन माह में काफी संख्या में भक्तजन यहां भोले के दर्शन करने पहुंचते हैं. उन्होंने कहा कि हमारे बुजुर्गों ने बताया कि यह 1000 वर्ष पुराना मंदिर है, जो जमीन से 700 फीट ऊंचाई पर पहाड़ी पर स्थित है. यह भीलवाड़ा ,राजसमंद व अजमेर जिले के संगम के साथ ही यहा मेवाड़, मारवाड़ व मंगरा क्षेत्र का भी संगम है. इसलिए हम इनको त्रिवेणी संगम से कम नहीं मानते हैं.

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