भीलवाड़ा. शिवरात्रि के मौके पर जिले के समस्त शिवालयों में भगवान भोलेनाथ की विशेष पूजा-अर्चना होती है. जहां जिले के प्रसिद्ध हरणी महादेव मंदिर और तिलस्वा महादेव मंदिर में विशाल तीन दिवसीय मेला भी लगता है.
मेले में देश और प्रदेश से काफी संख्या में श्रद्धालु भगवान भोलेनाथ के दर्शन करने आते हैं. यहां भगवान भोलेनाथ को गेहूं और जौ की बालियां, चावल, कुमकुम, बेल पत्र , धतूरा, नारियल, हरि दोब, सफेद आंकड़ा के पुष्प और सुगंधित द्रव्य चढ़ाकर भगवान भोलेनाथ की पूजा अर्चना कर परिवार में सुख शांति समृद्धि की कामना की जाती है.
ईटीवी भारत की टीम हरनी महादेव मंदिर पहुंची, जो प्राचीन काल का मंदिर है. जहां भगवान भोलेनाथ के दर्शन करने काफी संख्या में श्रद्धालु पहुंचे, जो भगवान भोलेनाथ की पूजा अर्चना कर परिवार में सुख शांति समृद्धि की कामना कर रहे थे.
मंदिर की सजावट के साथ लगाया गया है तिरंगा
भक्तों और मंदिर ट्रस्ट में देशभक्ति का जज्बा भी साथ में देखने को मिल रहा है. मंदिर परिसर में इस बार भगवान भोलेनाथ की पूजा अर्चना के साथ साथ देश की शान तिरंगा भी जगह-जगह लगाया गया है.
हरणी महादेव मन्दिर के पंडित ओम प्रकाश शर्मा ने कहा कि शिवरात्रि के मौके पर भगवान भोलेनाथ की प्रतिमा पर विशेष आकर्षण से श्रृंगारित किया जाता है. उनको बेल पत्र श्रृंगार कर जौ और गेहूं की बालियां, शुद्ध जल, गंगाजल और सफेद आंकड़े के पुष्प चढ़ाए जाते हैं. लोग भगवान की विधि विधान से पूजा अर्चना कर कर में मंगल कामना करते हैं.
महादेव के प्रिय चढ़ावे का औषधीय महत्व
भीलवाड़ा माणिक्य लाल वर्मा राजकीय महाविद्यालय में पद स्थापित वनस्पति शास्त्र के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. भगवती लाल जागेटिया से ईटीवी भारत ने खास बातचीत की, जिसमें उन्होंने कहा कि भगवान भोलेनाथ के शिवरात्रि पर जो भी वस्तुएं चढ़ाई जाती है. उसका वैज्ञानिक और औषधीय महत्व है.
जो पादप भगवान शिव को अर्पित किए जाते हैं, उसमें गेहूं का वानस्पतिक नाम ट्रिटीकम एस्टाइवम है, जिसका वानस्पतिक नाम होड्रियम बलेगेट है. मानव जीवन के लिए अति महत्वपूर्ण है. अनादि काल से गेहूं और जौ मानव की आहर में भोजन की आपूर्ति है. उनमें मुख्य घटक कार्बोहाइड्रेट है.
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उसी प्रकार भगवान शिव का प्रिय धतूरा जिसका वानस्पतिक नाम स्ट्रेमोनियम के नाम से जानते हैं, जो अनादि काल से औषधीय महत्व के रूप में काम में लिया जाता है. यह मानसिक विकार के निवारण के लिए काम आता है. साथ ही जो भगवान भोलेनाथ के दूब घास चढ़ाई जाती है यह पशुओं के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है. इसका वानस्पतिक नाम साइनेडॉन डेक्टाईलोन है.
वहीं भगवान भोलेनाथ को सबसे महत्वपूर्ण बेल पत्र अर्पित किया जाता है, जिसका वानस्पतिक नाम एक ऐगेल मार्मीलोन है, यह रूटेषि कुल का पादप है. यह हमेशा 12 महीने हरा रहता है. पतझड़ की ऋतु में भी बेल पत्र के पौधे से पत्ते कभी नहीं गिरते हैं. इसके पत्ते भगवान भोलेनाथ के चढ़ाए जाते हैं. बेल पत्र का महत्व पूर्ण उपयोग है. पाचन तंत्र संबंधित कोई भी रोग बेलपत्र से ठीक होना बताया गया है.