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गरीबों का फ्रिज 'मटके' पर भी कोरोना का संकट...आर्थिक तंगी में कुम्हार

कोरोना की मार ने देश के लगभग हर परिवार पर वार किया है. ऐसे में ही गरीबों का फ्रिज कहे जाने वाली 'मटकी' बेचने वालों परिवारों पर संकट आ गया हैं. उनका कहना हैं कि वे दिनभर धूप में बैठ कर मटकी बनाते है और पूरे दिन में सिर्फ दो या तीन ही मटकी बिक पाती है. ऐसे में उनके परिवार का गुजारा कैसे चलेगा? उन्होंने सरकार से गुहार लगाई है कि उनके लिए सरकार कुछ करें.

bhilawara news, भीलवाड़ा समाचार
'मटकी' पर भी कोरोना का संकट
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Published : May 27, 2020, 2:38 PM IST

भीलवाड़ा. गरीबों का फ्रिज कहे जाने वाली मटकी पर भी अब कोरोना का संकट आ चुका है. पहले जहां गर्मी की शुरुआत से ही मटकी की मांग बढ़ जाती थी. लेकिन लॉकडाउन ने इसकी बिक्री पर ही अंकुश लगा दिया है, जिसके चलते मटका बनाने वाले इन कुम्हार परिवारों के सामने रोजी-रोटी का भारी संकट खड़ा हो गया है.

'मटकी' पर भी कोरोना का संकट

बता दें कि भीलवाड़ा में ऐसे कई परिवार है जो मिट्टी के पात्र बनाकर अपना गुजारा करते है. लेकिन कोरोना महामारी का खामियाजा इन गरीब परिवारों पर पड़ा है. इन परिवारों के पास अब पैसे नहीं बचे है कि ये अपना और अपने परिवार का पेट पाल सके. ऐसे में इन परिवारों को एक और चिंता सता रही है, वो है बेमौसम की बारिश. अगर इस दौरान बारिश हो जाती है तो इनके साल भर के मेहनत पर पानी फिर जाएगा. ऐसे में ईटीवी भारत की टीम ने इन कुम्हार परिवारों से बातचीत की.

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मटकी बनाती महिला

पढ़ें- ग्रामीण क्षेत्र में कोरोना संक्रमण कम करने के लिए जिला प्रशासन मुस्तैदः भीलवाड़ा कलेक्टर

बालू लाल प्रजापत ने कहा कि हमने पिछले साल आगे की तैयारी देखते हुए 4 लाख रुपए का माल मंगवाया था. परंतु कोरोना वायरस के संक्रमण के चलते लगे लॉकडाउन के कारण उनका काफी माल नुकसान हो चुका है. इस कारण इन परिवारों की आर्थिक स्थिति काफी हद तक बिगड़ गई है, जिससे इनका गुजारा करना भी काफी मुश्किल हो रहा है.

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धूप में मटकी बेचती युवती

वहीं, माया कुमारी प्रजापत ने कहा कि इन हालातों में उनका गुजारा करना काफी मुश्किल हो गया है. उनका कहना है कि पहले जो मटकी 150 से 300 रुपए तक में बिकती थी, अब 40 से 60 रुपए में बिक रही है. ऐसे में वे अपने कर्ज का ब्याज तक नहीं चुका पा रहे हैं. उनका कहना है कि वे पूरे दिन धूप में तपकर मटकी बनाती है, लेकिन पूरे दिन में सिर्फ 2 से 3 मटकी ही बिकती है. ऐसे में उन्हें चिंता सता रही है कि उनके घर का गुजारा कैसे चल पाएगा?

पढ़ें- भीलवाड़ा में 3 महीने की बच्ची ने जीता कोरोना से जंग

मटकी खरीदने आए एक युवक ने कहा कि वह कोटडी से भीलवाड़ा फ्रिज खरीदने के लिए आए थे. मगर फ्रिज के आसमान छूते दामों के कारण उन्हें खाली हाथों ही लौटना पड़ रहा है. ऐसे में उनके खर्च भी निकल जाए और ठंडा पानी भी मिले, तो गरीबों का फ्रिज 'मटकी' खरीदना ही ज्यादा अच्छा है.

भीलवाड़ा. गरीबों का फ्रिज कहे जाने वाली मटकी पर भी अब कोरोना का संकट आ चुका है. पहले जहां गर्मी की शुरुआत से ही मटकी की मांग बढ़ जाती थी. लेकिन लॉकडाउन ने इसकी बिक्री पर ही अंकुश लगा दिया है, जिसके चलते मटका बनाने वाले इन कुम्हार परिवारों के सामने रोजी-रोटी का भारी संकट खड़ा हो गया है.

'मटकी' पर भी कोरोना का संकट

बता दें कि भीलवाड़ा में ऐसे कई परिवार है जो मिट्टी के पात्र बनाकर अपना गुजारा करते है. लेकिन कोरोना महामारी का खामियाजा इन गरीब परिवारों पर पड़ा है. इन परिवारों के पास अब पैसे नहीं बचे है कि ये अपना और अपने परिवार का पेट पाल सके. ऐसे में इन परिवारों को एक और चिंता सता रही है, वो है बेमौसम की बारिश. अगर इस दौरान बारिश हो जाती है तो इनके साल भर के मेहनत पर पानी फिर जाएगा. ऐसे में ईटीवी भारत की टीम ने इन कुम्हार परिवारों से बातचीत की.

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मटकी बनाती महिला

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बालू लाल प्रजापत ने कहा कि हमने पिछले साल आगे की तैयारी देखते हुए 4 लाख रुपए का माल मंगवाया था. परंतु कोरोना वायरस के संक्रमण के चलते लगे लॉकडाउन के कारण उनका काफी माल नुकसान हो चुका है. इस कारण इन परिवारों की आर्थिक स्थिति काफी हद तक बिगड़ गई है, जिससे इनका गुजारा करना भी काफी मुश्किल हो रहा है.

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धूप में मटकी बेचती युवती

वहीं, माया कुमारी प्रजापत ने कहा कि इन हालातों में उनका गुजारा करना काफी मुश्किल हो गया है. उनका कहना है कि पहले जो मटकी 150 से 300 रुपए तक में बिकती थी, अब 40 से 60 रुपए में बिक रही है. ऐसे में वे अपने कर्ज का ब्याज तक नहीं चुका पा रहे हैं. उनका कहना है कि वे पूरे दिन धूप में तपकर मटकी बनाती है, लेकिन पूरे दिन में सिर्फ 2 से 3 मटकी ही बिकती है. ऐसे में उन्हें चिंता सता रही है कि उनके घर का गुजारा कैसे चल पाएगा?

पढ़ें- भीलवाड़ा में 3 महीने की बच्ची ने जीता कोरोना से जंग

मटकी खरीदने आए एक युवक ने कहा कि वह कोटडी से भीलवाड़ा फ्रिज खरीदने के लिए आए थे. मगर फ्रिज के आसमान छूते दामों के कारण उन्हें खाली हाथों ही लौटना पड़ रहा है. ऐसे में उनके खर्च भी निकल जाए और ठंडा पानी भी मिले, तो गरीबों का फ्रिज 'मटकी' खरीदना ही ज्यादा अच्छा है.

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