भीलवाड़ा. जिले में पंचायत राज चुनाव का आगाज हो चुका है जिले में 4 चरणों में गांवों की सरकार चुनी जाएगी. पहले चरण में 17 जनवरी, दूसरे चरण में 22 जनवरी, तीसरे चरण में 29 जनवरी और चौथे चरण में 1 फरवरी को गांव की सरकार चुनी जाएगी.
जहां इन चारों चरणों में जिले की 393 ग्राम पंचायतों में सरपंच और वार्ड पंच के चुनाव होंगे. पहले चरण में जिले की तीन पंचायत समितियों के 63 ग्राम पंचायतों में सरपंचों के लिए मंगलवार को नामांकन दाखिल हो गए. जहां महिलाएं राजनीति की दहलीज पर पैर रखने के लिए घूंघट की आड़ में नामांकन दाखिल कर रही हैं.
पूर्ववर्ती सरकार ने पंचायत राज चुनाव में शिक्षा की अनिवार्यता का नियम लागू किया था, जहां 8वीं पास महिलाएं सरपंच चुनी जाना आवश्यक था. वहीं दसवीं पास महिलाएं प्रधान पद के लिए नामांकन दाखिल कर सकती थी. लेकिन, वर्तमान गहलोत सरकार ने पंचायत राज के क्षेत्र में शिक्षा की अनिवार्यता को खत्म कर दिया.
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इसलिए इस बार ग्रामीण क्षेत्र में पंचायत राज के क्षेत्र में रोचक मुकाबला देखने को मिल रहा है, जहां आरक्षण से लॉटरी निकलने के बाद ही भले ही राजनीतिक परिवार में उनके पुरुष वर्ग की लॉटरी नहीं निकली है. लेकिन, महिला वर्ग के लिए सीट आरक्षित होने के बाद महिलाएं घूंघट में नामांकन दाखिल करने पहुंच रही हैं. जहां महिलाएं विजयी होने पर राजनीति का तमाम काम उनके परिवार के हाथ में रहेगा.
ईटीवी भारत की टीम ने भीलवाड़ा जिले की घूंघट में नामांकन दाखिल की खबर को लेकर भाजपा जिलाध्यक्ष लादू लाल तेली ने कहा कि पूर्ववर्ती सरकार में तत्कालीन मुख्यमंत्री भैरोसिंह शेखावत ने हीं महिलाओं की भागीदारी को लेकर आरक्षण प्रथा शुरू की थी.
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वहीं हमारी पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने पंचायत राज में शिक्षा की अनिवार्यता लागू की. लेकिन, वर्तमान सरकार ने इसको हटा दिया है. इस आरक्षण व्यवस्थाओं के कारण घूंघट में जो महिला विजयी होती है. उनके राजनीति में परिवार का दबदबा रहता है. सरकार को महिलाओं को आगे लाने के लिए ऐसा क्या योजना बनानी चाहिए, जिससे महिलाएं ही ग्राम पंचायत क्षेत्र में विजय होने के बाद काम करें.
वहीं घूंघट में नामांकन दाखिल वह शिक्षा की अनिवार्यता खत्म करने को लेकर भाजपा की पूर्व मंत्री कालूलाल गुर्जर ने ईटीवी भारत से खास बातचीत करते हुए कहा कि घूंघट में राज करने का काम इस सरकार ने किया है. जब शिक्षित महिलाएं सरपंच बनती थी, तो वह घूंघट नहीं निकालती थी. पहली बार भाजपा की सरकार का निर्णय था कि जो सरपंच चुनकर आएगी वह आठवीं पास होना अनिवार्य थी. तब ही वह सरपंच बनती और घूंघट नहीं निकालते हुए गांव में विकास करवाती. लेकिन, गहलोत सरकार के मंत्रिमंडल में शिक्षा की अनिवार्यता को खत्म कर दिया.