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SPECIAL: पहले कोरोना अब फसल को लगा ये रोग, दोहरी मार झेल रहा किसान

भीलवाड़ा जिले में मानसून पूरी तरह से मेहरबान है. मूसलाधार बारिश से जिले में जनजीवन अस्त-व्यस्त हो गया है. वहीं दूसरी तरफ किसानों के लिए यह बारिश आफत बन गई है. ज्यादा बारिश की वजह से खेतों में बोई गई दलहनी फसलें अब पीली पड़ने लगी है. मानसूने के लुका-छिपी के खेल ने किसानों को चिंता में डाल दिया है.

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दलहनी फसलों में फैला पीलापन का प्रकोप
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Published : Aug 27, 2020, 2:36 PM IST

भीलवाड़ा. जिले के किसानों ने खरीफ की फसल के रूप में इस बार दलहनी फसलों की ज्यादा बुवाई की है. इसका सबसे बड़ा कारण यह रहा कि इस साल जून महीने में जिले में मानसून सक्रिय नहीं हुआ था. ऐसे में जुलाई के आते-आते पानी ना गिरने की आशंका को देखते हुए किसानों ने खेतों में दलहनी फसल बो दी. किसानों ने मूंग और उड़द को अधिक मात्रा में खेतों में बोया है. लेकिन मुसीबत इस बात की हो गई है कि अगस्त महीने में पूरे प्रदेश में मानसून सक्रिय हो चुका है. भीलवाड़ा में भी इन दिनों भारी बारिश हो रही है. ऐसे में बारिश की वजह से दलहनी फसलों में पीलापन रोग (मोजेक रोग) का प्रकोप बढ़ता जा रहा है. जिससे किसानों के चेहरे पर चिंता की लकीरें देखी जा रही है.

दलहनी फसलों में फैला पीलापन का प्रकोप

इन क्षेत्रों में पड़ा बुरा प्रभाव

ETV भारत की टीम ने भीलवाड़ा के शाहपुरा, आसींद और रायला क्षेत्र की फसलों की स्थिति का जायजा लिया. जहां खलियान में दलहनी फसलों के पत्ते पीले नजर आए. कई किसान तो उपचार के लिए कीटनाशक दवाइयों का छिड़काव भी करते नजर आए. किसानों का मानना है कि अगर यह प्रकोप बढ़ गया, तो इस साल की फसल पूरी तरह से बर्बाद हो जाएगी.

सरकार से राहत की उम्मीद

किसान लक्ष्मण बताते हैं कि उन्होंने 15 बीघा में उड़द की फसल बो रखी है. फसलों में पीलापन बढ़ता ही जा रहा है. ऊपर से आवारा जानवर भी परेशान कर रहे हैं. वहीं जिले के आसींद क्षेत्र के किसान कानाराम जाट ने ईटीवी भारत पर अपना दर्द बयां करते हुए कहा कि पहले तो बरसात नहीं हुई, अब पीला रोग हो रहा है, जिससे फसल खराब हो गई है. किसानों का ध्यान रखने वाला कोई नहीं है. 20 बीघा में उड़द की फसल बोई है. इस साल कोरोना के चलते पहले ही फसल खेतों में रखे-रखे खराब हो गई है. वहीं कपास की फसलों में भी सूड़ी लगने लगी है. अगर उड़द की फसल चौपट हो गई, तो परिवार चलाना मुश्किल हो जाएगा. अब तो सरकार से ही कुछ राहत की उम्मीद है.

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कई पत्तों पर लग गए कीड़े

यह भी पढ़ें : Special : कर्ज, किसान और कयामत...आत्महत्या के दो माह भी नहीं हुई कोई कार्रवाई

वहीं एक किसान रामगोपाल ने हमें बताया कि वे आइसक्रीम बेचने का काम करते थे, लेकिन कोरोना की वजह से दूसरे प्रदेश में इस बार आइसक्रीम बेचने नहीं जा सके. ऐसे में घर के ही खेत में 20 बीघा में उड़द की फसल बो दी. लेकिन फसल में पीलापन (मोजेक रोग) का प्रकोप बढ़ गया है. गर्मी में कोरोना की वजह से मनरेगा में जाकर 2 जून की रोटी तरास रहे थे, इसलिए घर में खेती की ताकि कुछ पैसे कमाकर अपना खर्च चला सकें. लेकिन मौसम की मार की वजह से ये फसल भी बर्बादी की कगार पर है.

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इस रोग में पत्तियां हो जाती है पीली

44,000 हेक्टेयर में बोई गई उड़द

ETV भारत की टीम किसानों के खलियानों का जायजा लेने के बाद भीलवाड़ा कृषि विभाग के कार्यालय पहुंची. कृषि विभाग के उपनिदेशक रामपाल खटीक ने ETV से बताया कि जिले में मक्के के बाद दूसरे नंबर पर करीब 44,000 हेक्टेयर भूमि में उड़द की फसल की बुवाई हुई है. लेकिन बारिश की अनिश्चितता की वजह से पत्तियों में मोजेक रोग हो गया है.

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फसलों में मोजेक रोग

डाईमेथोएट से किया जा सकता है कंट्रोल

उन्होंने बताया कि इसे कंट्रोल करने के लिए कृषि विभाग की टीमें फील्ड में काम कर रही हैं और इससे बचाव के रास्ते किसानों को बताए जा रहे हैं. खटीक ने किसानों को उपाय बताते हुए कहा कि किसान खेतों में डाईमेथोएट और फेरस सल्फेट का छिड़काव करें, जिससे इस रोग पर काबू पाया जा सके. यह एक विषाणु रोग है. एक बार फैलता है, तो बढ़ता ही जाता है. यह वायरल डिजीज है, यह सफेद मक्खी के कारण फैलता है.

यह भी पढ़ें : SPECIAL: पाली में मानसून ने फिर दिया धोखा, आसमान की ओर टकटकी लगाए देखते रहे किसान

धरतीपुत्रों को पहले तो कोरोना की वजह से रोजगार नहीं मिला और अब बची-कुची फसलें कुदरत की भेंट चढ़ रही हैं. अब देखना यह होगा कि आखिर किसानों को इस संकट से उबारने के लिए सरकार क्या मदद करती है? जिससे गरीब किसान अपना पेट पाल सकें.

भीलवाड़ा. जिले के किसानों ने खरीफ की फसल के रूप में इस बार दलहनी फसलों की ज्यादा बुवाई की है. इसका सबसे बड़ा कारण यह रहा कि इस साल जून महीने में जिले में मानसून सक्रिय नहीं हुआ था. ऐसे में जुलाई के आते-आते पानी ना गिरने की आशंका को देखते हुए किसानों ने खेतों में दलहनी फसल बो दी. किसानों ने मूंग और उड़द को अधिक मात्रा में खेतों में बोया है. लेकिन मुसीबत इस बात की हो गई है कि अगस्त महीने में पूरे प्रदेश में मानसून सक्रिय हो चुका है. भीलवाड़ा में भी इन दिनों भारी बारिश हो रही है. ऐसे में बारिश की वजह से दलहनी फसलों में पीलापन रोग (मोजेक रोग) का प्रकोप बढ़ता जा रहा है. जिससे किसानों के चेहरे पर चिंता की लकीरें देखी जा रही है.

दलहनी फसलों में फैला पीलापन का प्रकोप

इन क्षेत्रों में पड़ा बुरा प्रभाव

ETV भारत की टीम ने भीलवाड़ा के शाहपुरा, आसींद और रायला क्षेत्र की फसलों की स्थिति का जायजा लिया. जहां खलियान में दलहनी फसलों के पत्ते पीले नजर आए. कई किसान तो उपचार के लिए कीटनाशक दवाइयों का छिड़काव भी करते नजर आए. किसानों का मानना है कि अगर यह प्रकोप बढ़ गया, तो इस साल की फसल पूरी तरह से बर्बाद हो जाएगी.

सरकार से राहत की उम्मीद

किसान लक्ष्मण बताते हैं कि उन्होंने 15 बीघा में उड़द की फसल बो रखी है. फसलों में पीलापन बढ़ता ही जा रहा है. ऊपर से आवारा जानवर भी परेशान कर रहे हैं. वहीं जिले के आसींद क्षेत्र के किसान कानाराम जाट ने ईटीवी भारत पर अपना दर्द बयां करते हुए कहा कि पहले तो बरसात नहीं हुई, अब पीला रोग हो रहा है, जिससे फसल खराब हो गई है. किसानों का ध्यान रखने वाला कोई नहीं है. 20 बीघा में उड़द की फसल बोई है. इस साल कोरोना के चलते पहले ही फसल खेतों में रखे-रखे खराब हो गई है. वहीं कपास की फसलों में भी सूड़ी लगने लगी है. अगर उड़द की फसल चौपट हो गई, तो परिवार चलाना मुश्किल हो जाएगा. अब तो सरकार से ही कुछ राहत की उम्मीद है.

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कई पत्तों पर लग गए कीड़े

यह भी पढ़ें : Special : कर्ज, किसान और कयामत...आत्महत्या के दो माह भी नहीं हुई कोई कार्रवाई

वहीं एक किसान रामगोपाल ने हमें बताया कि वे आइसक्रीम बेचने का काम करते थे, लेकिन कोरोना की वजह से दूसरे प्रदेश में इस बार आइसक्रीम बेचने नहीं जा सके. ऐसे में घर के ही खेत में 20 बीघा में उड़द की फसल बो दी. लेकिन फसल में पीलापन (मोजेक रोग) का प्रकोप बढ़ गया है. गर्मी में कोरोना की वजह से मनरेगा में जाकर 2 जून की रोटी तरास रहे थे, इसलिए घर में खेती की ताकि कुछ पैसे कमाकर अपना खर्च चला सकें. लेकिन मौसम की मार की वजह से ये फसल भी बर्बादी की कगार पर है.

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इस रोग में पत्तियां हो जाती है पीली

44,000 हेक्टेयर में बोई गई उड़द

ETV भारत की टीम किसानों के खलियानों का जायजा लेने के बाद भीलवाड़ा कृषि विभाग के कार्यालय पहुंची. कृषि विभाग के उपनिदेशक रामपाल खटीक ने ETV से बताया कि जिले में मक्के के बाद दूसरे नंबर पर करीब 44,000 हेक्टेयर भूमि में उड़द की फसल की बुवाई हुई है. लेकिन बारिश की अनिश्चितता की वजह से पत्तियों में मोजेक रोग हो गया है.

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फसलों में मोजेक रोग

डाईमेथोएट से किया जा सकता है कंट्रोल

उन्होंने बताया कि इसे कंट्रोल करने के लिए कृषि विभाग की टीमें फील्ड में काम कर रही हैं और इससे बचाव के रास्ते किसानों को बताए जा रहे हैं. खटीक ने किसानों को उपाय बताते हुए कहा कि किसान खेतों में डाईमेथोएट और फेरस सल्फेट का छिड़काव करें, जिससे इस रोग पर काबू पाया जा सके. यह एक विषाणु रोग है. एक बार फैलता है, तो बढ़ता ही जाता है. यह वायरल डिजीज है, यह सफेद मक्खी के कारण फैलता है.

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धरतीपुत्रों को पहले तो कोरोना की वजह से रोजगार नहीं मिला और अब बची-कुची फसलें कुदरत की भेंट चढ़ रही हैं. अब देखना यह होगा कि आखिर किसानों को इस संकट से उबारने के लिए सरकार क्या मदद करती है? जिससे गरीब किसान अपना पेट पाल सकें.

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