भीलवाड़ा. कोरोना वायरस के चलते किए गए लॉकडाउन से लोग उबर नहीं पा रहे हैं. सरकार ने लॉकडाउन को भले ही खत्म कर दिया है, लेकिन इसका असर अब तक लोगों के काम पर दिख रहा है. लॉकडाउन के दौरान काम नहीं मिलने से मजदूर खासा परेशान थे. मजदूरों को अपना घर चलाने में दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा था. वैसे तो कहने को 'अनलॉक' हो चुका है, लेकिन हालात वही हैं, जो लॉकडाउन के दौरान थे.
आलम ये है कि मजदूर कई दिनों तक बिना खाए भूखे-प्यासे रह रहे हैं. यहां तक कि उनके बच्चों को भी दो वक्त का खाना नसीब नहीं हो पा रहा है. दिहाड़ी का काम करने वाले मजदूर का हाल इस लॉकडाउन ने खस्ता कर दिया है. मजदूरों के घर राशन तक नहीं है. मजदूर भी बिना कुछ खाए-पीए ही काम की तलाश में भटक रहे हैं.
क्या कहते हैं आंकड़े...
अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन के मुताबिक भारत में कम से कम 90 फीसदी मजदूर गैर-संगठित क्षेत्रों में काम करते हैं. ऐसे में ये सभी कोरोना काल में रोजगार की तलाश में भटक रहे हैं. इनमें कई लोग सिक्योरिटी गार्ड, सफाई करने वाले, रिक्शा चलाने वाले, रेहड़ी लगाकर सामान बेचने वाले, कूड़ा उठाने वाले और घरों में नौकर के रूप में काम करते हैं.
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इनमें से ज्यादातर मजदूरों को पेंशन, बीमार होने पर छुट्टी, पेड लीव और किसी भी तरह का बीमा नहीं मिलता है. कई लोगों के बैंक अकाउंट नहीं हैं. ऐसे में इनकी और इनके परिवार की जिंदगी उसी नकद आमदनी पर टिकी होती है जिसे ये पूरे दिन काम करने के बाद घर लेकर जाते हैं.
2 महीने के फर्फ्यू के बाद रोजगार मिलना मुश्किल...
प्रदेश में सबसे पहले कोरोना की शुरूआत भीलवाड़ा जिले से हुई थी. जिले में कोरोना की चेन को खत्म करने के लिए शहर में 2 महीने तक कर्फ्यू लगा रहा. वहीं, जिले में सुप्रीम कोर्ट की रोक के बाद बजरी बंद होने के साथ ही कमठाने के काम बंद हैं. जिससे इस निर्माण काम में काम करने वाले मजबूर मजदूरों का ईटीवी भारत पर दर्द छलक पड़ा.
भीलवाड़ा शहर में लगभग 5 हजार मजदूर कमठाने यानी निर्माण कार्य का काम करते हैं. लेकिन इन दिनों कोरोना के चलते घरों का निर्माण कार्य पूरी तरह से बंद है. ऐसे में इन मजदूरों के लिए अपने परिवार का खर्च चलाना भी मुश्किल हो गया है.
कई दिनों से नहीं जला घर में चूल्हा...
ईटीवी भारत की टीम भीलवाड़ा शहर के प्रमुख चौराहे पर पहुंची. जहां पर मजदूरी की आस में टकटकी लगाए एक मजदूर बैठा हुआ था. मजदूर भंवरलाल ने अपना दर्द बयां करते हुए बताया कि उसके जैसे ना जाने कितने लोग इस चौराहे पर काम की तलाश में बैठे रहते हैं. सुबह से ही घर से निकल जाते हैं काम की तलाश में, लेकिन फिर काम नहीं मिलता तो खाली हाथ शाम को घर लौटना पड़ता है. ऐसे में कई दिनों से घर में चूल्हा ही नहीं जला है.
कमठाने में काम करने वाले एक और मजदूर हुसैन ने हमें बताया कि वे सुबह 8 बजे से काम की तलाश में घर से निकलते हैं. चौक-चौराहों पर दिनभर टकटकी लगाए बैठे रहते हैं. पूरा दिन बीत जाता है, लेकिन उन्हें ना तो काम मिलता है और ना ही पैसा.
बजरी परिवहन नहीं होने से निर्माण कार्य ठप...
कुछ मजदूरों का कहना है कि बजरी परिवहन पर रोक लगा दी गई है. ऐसे में घरों और भवनों का निर्माण कार्य पूरी तरह से बंद है. मजदूर ने कहा कि सरकार सिर्फ 10 किलो गेहूं देती है, लेकिन हम मात्र 10 किलो गेहूं में महीनों तक अपना पेट कैसे भर सकते हैं?
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एक अन्य मजदूर अब्दुल वहीद ने बताया कि इस चौराहे पर जितने भी मजदूर भाई बहन हैं, वे काफी परेशान हैं. 80 प्रतिशत मजदूरों के पास तो मजदूर डायरी नहीं है, जिससे उनको सरकार की योजनाओं का लाभ नहीं मिलता है.
बता दें कि भारत में पिछले 24 घंटे में 26,506 नए पॉजिटिव केस सामने आए हैं और 475 लोगों की मौत हुई है. नए कोरोना पॉजिटिव केस सामने आने के बाद देशभर में कुल मामलों की संख्या 7,93,802 तक पहुंच गई है. इनमें 21,604 मरने वाले लोग भी शामिल हैं (आंकड़े केंद्रीय स्वास्थ्य).