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स्पेशल रिपोर्ट : स्टील की चमक में खो गया 'पीतल', साल-दर-साल घटती गई बिक्री, बर्तन बनाने वाले मजदूरों की रोजी-रोटी पर संकट के बादल

प्रदेश के साथ-साथ भीलवाड़ा में दीपावली की तैयारियां चल रही है. व्यापारी दीपावली पर अच्छी ग्राहकी की उम्मीद कर रहें हैं. लेकिन, यहां के पीतल व्यवसायियों को इस साल भी बिक्री की उम्मीद कम हैं. आमतौर पर पीतल की कीमत स्टील से बहुत ज्यादा है पर व्यवसायी सिर्फ इसे ही कम बिक्री का कारण नहीं मानते. उनका कहना है कि लोग स्टील की चमक की ओर ज्यादा आकर्षित हैं.

भीलवाड़ा न्यूज, bhilwara news
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Published : Oct 12, 2019, 3:18 PM IST

भीलवाड़ा. इसे स्टील की चमक कहें या आधुनिकता के असर का प्रभाव. लेकिन हकीकत तो यह है कि पिछले कुछ सालों में पीतल की बिक्री में लगातार कमी आई है. पीतल व्यवसायी इस कमी का कारण स्टील के प्रति लोगों के बढ़ते रुझान को मानते हैं. वहीं कोयले की बढ़ती कीमतें भी इसका एक कारण हो सकती है.

पीतल के बर्तन बनाने वाले मजदूरों का छलका दर्द

भले ही देश में दीपावली से पहले बिक्री को लेकर प्रत्येक व्यापारी के चेहरे पर खुशी झलक रही है. लेकिन, शहर में पीतल के बर्तन बनाने वाले मजदूरों के चेहरे की चमक फीकी नजर आ रही है. ईटीवी भारत से बातचीत में पीतल के बर्तन बनाने वाले मजदूरों का दर्द छलक पड़ा और उन्होंने कहा कि वर्तमान समय में स्टील के बर्तन की बिक्री ज्यादा होने के कारण पीतल के बर्तनों की बिक्री कम हो गई है और कोयला भी महंगा हो गया है, जिससे उनकी रोजी-रोटी पर भी संकट के बादल मंडराने लगे हैं.

पीतल का बाजार मूल्य

बता दें कि पीतल का बाजार मूल्य 500 रुपए किलो है, वहीं स्टील 200 रुपए किलो मिल रहा है. ऐसे में पीतल की आधी से भी कम कीमतों में उपलब्ध स्टील को ग्राहक ज्यादा खरीदना पसंद करते है.

पढ़ें: अभिनेत्री पायल रोहतगी के खिलाफ मामला दर्ज...नेहरू परिवार पर आपत्तिजनक टिप्पणी करने का आरोप

मजदूरों का का कहना है कि वर्तमान समय में कोयला महंगा होने के साथ ही स्टील के बर्तनों की बिक्री ज्यादा हो गई है, जिससे पीतल की बिक्री पर सीधा असर पड़ा है. वर्तमान दौर में पीतल के बर्तनों का निर्माण ज्यादा नहीं हो रहा, जिससे पीतल व्यवसायियों को परिवार पालने में भी दिक्कत का सामना करना पड़ रहा है. दिपावली के दिनों में भी पीतल व्यवसायी कम बिक्री से जुझते नजर आ रहे हैं. पीतल का पुश्तैनी व्यवसाय करने वाले कारीगर दीपावली पर भी ज्यादा ग्राहकी की उम्मीद नहीं कर पा रहें हैं.

शादी-विवाह के सीजन में ही रोजगार उपलब्ध

ईटीवी भारत की टीम शहर के बाजर में पीतल के बर्तनों का व्यवसाय करने वाले कारीगरों के पास पहुंची और उनसे घटते व्यापार का कारण जाना. जहां पीतल के बर्तन बनाने वाले गोपाल ठठेरा ने खास बातचीत करते हुए कहा कि हमारे पीतल के बर्तन बनाने का पुश्तैनी काम है, लेकिन, अब रोजगार की कमी हो रही है. शादी विवाह के समय ही पीतल के बर्तनों की बिक्री अच्छी होती है, जिससे हम इन बर्तनों का निर्माण करते हैं.

यह भी पढ़ें-अजमेर के अरुण का इनोवेशन : इजरायली तकनीक से घर की छत पर उगा दी शुद्ध सब्जी, अब ड्राइंग रूम में सब्जियां उगाने की तैयारी

ईटीवी भारत की टीम शहर के बाजर में पीतल के बर्तनों का व्यवसाय करने वाले कारीगरों के पास पहुंची और उनसे घटते व्यापार का कारण जाना. जहां पीतल के बर्तन बनाने वाले गोपाल ठठेरा ने खास बातचीत करते हुए कहा कि हमारे पीतल के बर्तन बनाने का पुश्तैनी काम है, लेकिन, अब रोजगार की कमी हो रही है. शादी विवाह के समय ही पीतल के बर्तनों की बिक्री अच्छी होती है, जिससे हम इन बर्तनों का निर्माण करते हैं.

उन्होंने बताया कि वो 25 वर्षों में काम कर रहे हैं, वर्तमान समय में स्टील के बर्तनों की मांग बढ़ने के कारण पीतल की मांग कम हो गई है, वहीं कोयले की भी समस्या है. यहा तक कि स्टील के बर्तन के अंदर पानी शुद्ध नहीं रहता है लेकिन, चमक रहने के कारण स्टील के बर्तन ज्यादा बिकता है.

स्टील के बर्तन आज खरीदने पर वापस बिक्री नहीं होती है, वहीं पीतल के बर्तन आज खरीदने के बाद कभी भी बेचते हैं तो वही रुपये वापस मिल जाते हैं. उन्होंने सरकार से मांग की है कि सरकार कोयले को सस्ता करे, जिससे पीतल के बर्तन बनाते समय भट्टी में जो कोयले की जरुरत को आसानी से पूरा कर सके.

पीतल के बर्तन में रखा खाना स्वास्थ्य के लिए भी अच्छा

वहीं अन्य मजदूर रतनलाल ठठेरा ने कहा कि पीतल का धंधा धीरे-धीरे खत्म होता जा रहा है. हमारे को लागत ज्यादा लगती है और मजदूरी कम मिलती है, जिससे हमारा भरण-पोषण होना भी मुश्किल है. यह सर्वविदित है कि पीतल के बर्तन में रखा पानी स्वास्थ्य के लिए अच्छा रहता है, स्टील के बर्तन खरीदने वाले का स्वास्थ्य की ओर ध्यान ही नहीं है, सिर्फ चमक की ओर ध्यान रहता है. पूरा परिवार पीतल के बर्तनों के व्यवसाय पर ही निर्भर है.

पीतल की कीमत समय के साथ नहीं घटती ना ही इससे स्वास्थ्य पर कोई दुष्प्रभाव पड़ता है. लेकिन, आधुनिकता के इस दौर में लोग अन्य चमकीली धातुओं की तरफ ज्यादा आकर्षित नजर आते हैं. पीतल के बर्तनों के व्यवसायी की दिक्कत यहीं खत्म नहीं होती है, बल्कि बर्तन बनाने में महत्वपूर्ण कोयले के लिए भी उन्हें संघर्ष करना पड़ता है. मजदूरों की सरकार से आस है कि मध्यम वर्गीय व्यवसायियों के लिए भी कदम उठाए जाएं.

भीलवाड़ा. इसे स्टील की चमक कहें या आधुनिकता के असर का प्रभाव. लेकिन हकीकत तो यह है कि पिछले कुछ सालों में पीतल की बिक्री में लगातार कमी आई है. पीतल व्यवसायी इस कमी का कारण स्टील के प्रति लोगों के बढ़ते रुझान को मानते हैं. वहीं कोयले की बढ़ती कीमतें भी इसका एक कारण हो सकती है.

पीतल के बर्तन बनाने वाले मजदूरों का छलका दर्द

भले ही देश में दीपावली से पहले बिक्री को लेकर प्रत्येक व्यापारी के चेहरे पर खुशी झलक रही है. लेकिन, शहर में पीतल के बर्तन बनाने वाले मजदूरों के चेहरे की चमक फीकी नजर आ रही है. ईटीवी भारत से बातचीत में पीतल के बर्तन बनाने वाले मजदूरों का दर्द छलक पड़ा और उन्होंने कहा कि वर्तमान समय में स्टील के बर्तन की बिक्री ज्यादा होने के कारण पीतल के बर्तनों की बिक्री कम हो गई है और कोयला भी महंगा हो गया है, जिससे उनकी रोजी-रोटी पर भी संकट के बादल मंडराने लगे हैं.

पीतल का बाजार मूल्य

बता दें कि पीतल का बाजार मूल्य 500 रुपए किलो है, वहीं स्टील 200 रुपए किलो मिल रहा है. ऐसे में पीतल की आधी से भी कम कीमतों में उपलब्ध स्टील को ग्राहक ज्यादा खरीदना पसंद करते है.

पढ़ें: अभिनेत्री पायल रोहतगी के खिलाफ मामला दर्ज...नेहरू परिवार पर आपत्तिजनक टिप्पणी करने का आरोप

मजदूरों का का कहना है कि वर्तमान समय में कोयला महंगा होने के साथ ही स्टील के बर्तनों की बिक्री ज्यादा हो गई है, जिससे पीतल की बिक्री पर सीधा असर पड़ा है. वर्तमान दौर में पीतल के बर्तनों का निर्माण ज्यादा नहीं हो रहा, जिससे पीतल व्यवसायियों को परिवार पालने में भी दिक्कत का सामना करना पड़ रहा है. दिपावली के दिनों में भी पीतल व्यवसायी कम बिक्री से जुझते नजर आ रहे हैं. पीतल का पुश्तैनी व्यवसाय करने वाले कारीगर दीपावली पर भी ज्यादा ग्राहकी की उम्मीद नहीं कर पा रहें हैं.

शादी-विवाह के सीजन में ही रोजगार उपलब्ध

ईटीवी भारत की टीम शहर के बाजर में पीतल के बर्तनों का व्यवसाय करने वाले कारीगरों के पास पहुंची और उनसे घटते व्यापार का कारण जाना. जहां पीतल के बर्तन बनाने वाले गोपाल ठठेरा ने खास बातचीत करते हुए कहा कि हमारे पीतल के बर्तन बनाने का पुश्तैनी काम है, लेकिन, अब रोजगार की कमी हो रही है. शादी विवाह के समय ही पीतल के बर्तनों की बिक्री अच्छी होती है, जिससे हम इन बर्तनों का निर्माण करते हैं.

यह भी पढ़ें-अजमेर के अरुण का इनोवेशन : इजरायली तकनीक से घर की छत पर उगा दी शुद्ध सब्जी, अब ड्राइंग रूम में सब्जियां उगाने की तैयारी

ईटीवी भारत की टीम शहर के बाजर में पीतल के बर्तनों का व्यवसाय करने वाले कारीगरों के पास पहुंची और उनसे घटते व्यापार का कारण जाना. जहां पीतल के बर्तन बनाने वाले गोपाल ठठेरा ने खास बातचीत करते हुए कहा कि हमारे पीतल के बर्तन बनाने का पुश्तैनी काम है, लेकिन, अब रोजगार की कमी हो रही है. शादी विवाह के समय ही पीतल के बर्तनों की बिक्री अच्छी होती है, जिससे हम इन बर्तनों का निर्माण करते हैं.

उन्होंने बताया कि वो 25 वर्षों में काम कर रहे हैं, वर्तमान समय में स्टील के बर्तनों की मांग बढ़ने के कारण पीतल की मांग कम हो गई है, वहीं कोयले की भी समस्या है. यहा तक कि स्टील के बर्तन के अंदर पानी शुद्ध नहीं रहता है लेकिन, चमक रहने के कारण स्टील के बर्तन ज्यादा बिकता है.

स्टील के बर्तन आज खरीदने पर वापस बिक्री नहीं होती है, वहीं पीतल के बर्तन आज खरीदने के बाद कभी भी बेचते हैं तो वही रुपये वापस मिल जाते हैं. उन्होंने सरकार से मांग की है कि सरकार कोयले को सस्ता करे, जिससे पीतल के बर्तन बनाते समय भट्टी में जो कोयले की जरुरत को आसानी से पूरा कर सके.

पीतल के बर्तन में रखा खाना स्वास्थ्य के लिए भी अच्छा

वहीं अन्य मजदूर रतनलाल ठठेरा ने कहा कि पीतल का धंधा धीरे-धीरे खत्म होता जा रहा है. हमारे को लागत ज्यादा लगती है और मजदूरी कम मिलती है, जिससे हमारा भरण-पोषण होना भी मुश्किल है. यह सर्वविदित है कि पीतल के बर्तन में रखा पानी स्वास्थ्य के लिए अच्छा रहता है, स्टील के बर्तन खरीदने वाले का स्वास्थ्य की ओर ध्यान ही नहीं है, सिर्फ चमक की ओर ध्यान रहता है. पूरा परिवार पीतल के बर्तनों के व्यवसाय पर ही निर्भर है.

पीतल की कीमत समय के साथ नहीं घटती ना ही इससे स्वास्थ्य पर कोई दुष्प्रभाव पड़ता है. लेकिन, आधुनिकता के इस दौर में लोग अन्य चमकीली धातुओं की तरफ ज्यादा आकर्षित नजर आते हैं. पीतल के बर्तनों के व्यवसायी की दिक्कत यहीं खत्म नहीं होती है, बल्कि बर्तन बनाने में महत्वपूर्ण कोयले के लिए भी उन्हें संघर्ष करना पड़ता है. मजदूरों की सरकार से आस है कि मध्यम वर्गीय व्यवसायियों के लिए भी कदम उठाए जाएं.

Intro:भीलवाड़ा - भले ही देश में दीपावली से पहले बिक्री को लेकर प्रत्येक व्यापारी के चेहरे पर खुशी झलक रही है। लेकिन भीलवाड़ा शहर में पीतल के बर्तन बनाने वाले मजदूरों के चेहरे की चमक फीकी नजर आ रही है । जहां पीतल के बर्तन बनाने वाले मजदूरों का ईटीवी भारत पर दर्द छलक पड़ा और उन्होंने कहा कि वर्तमान समय में स्टील के बर्तन की बिक्री ज्यादा होने के कारण पीतल के बर्तनों की बिक्री कम हो गई है व कोयला भी मंहगा हो गया है । जिससे हमारे रोजी-रोटी पर भी संकट के बादल गहराने लग गये हैं।


Body:दीपावली से पहले देश सहित भीलवाड़ा में बाजार सजने लग गए हैं और व्यापारीयो के इस बार अच्छी मानसून की बरसात के कारण अच्छी बिक्री की उम्मीद से चेहरे खिल रहे हैं । लेकिन भीलवाड़ा में पीतल के बर्तन बनाकर पुश्तैनी व्यवसाय करने वाले कार्यक्रम के चेहरे पर दीपावली से पहले मायूसी देखी जा रही है। जहां मजदूरों का ईटीवी भारत पर दर्ज छलक पड़ा और उन्होंने कहा कि वर्तमान समय में कोयला महंगा होने के साथ ही स्टील के बर्तनों की बिक्री ज्यादा हो गई है जिससे पीतल की बिक्री कम होने के कारण वर्तमान दौर में पीतल के बर्तनों का निर्माण ज्यादा नहीं हो रहा ।जिससे हमारे परिवार पालने में भी दिक्कत का सामना करना पड़ रहा है।

ईटीवी भारत ने भीलवाड़ा में पीतल के बर्तन निर्माण करने वाले कारीकरो का दर्द जानने पुराने भीलवाड़ा शहर में पहुंची। जहां पीतल के बर्तन बनाने वाले गोपाल ठठेरा ने ईटीवी भारत से खास बातचीत करते हुए कहा कि हमारे पीतल के बर्तन बनाने का पुश्तैनी काम है जहां अब रोजगार नहीं मिल रहा है हमारे को रोजगार की समस्या आ रही है । शादी विवाह के समय ही पीतल के बर्तनों की बिक्री अच्छी होती है जिससे हम इन बर्तनों का निर्माण करते हैं और रोजगार मिलता है । लेकिन वर्तमान समय में रोजगार के संकट है। हम 25 वर्ष में काम करते हैं वर्तमान समय में स्टील के बर्तनों की मांग बढ़ने के कारण पीतल की मांग कम हो गई है। वहीं कोयले की भी समस्या है। स्टील के बर्तन के अंदर पानी शुद्ध नहीं रहता है लेकिन चमक रहने के कारण स्टील के बर्तन ज्यादा बिकता है लेकिन पीतल में पानी शुद्ध रहता है । स्टील के बर्तन आज खरीदने पर वापस बिक्री नहीं होती है वही पीतल के बर्तन आज खरीदने के बाद कभी भी बेचते हैं तो वही रूपये वापस मिल जाते हैं। हमारी मांग है कि सरकार कोयला को सस्ता करें । जिससे हमारे को पीतल के बर्तन बनाते समय भट्टी में जो कोयले की जरूरत होती है वो हमारे को संस्ता उपलब्ध हो सके।

बाईट- गोपाल ठठेरा
पीतल बर्तन बनाने वाला मजदूर

वही अन्य मजदूर रतनलाल ठठेरा ने कहा कि पीतल का पुश्तैनी धंधा है । जो धीरे-धीरे खत्म होता जा रहा है। हमारे को लागत ज्यादा लगती है और मजदूरी कम मिलती है और हमारा भरण-पोषण नहीं हो पाता है । पीतल के बर्तन में रखा पानी स्वास्थ्य के लिए अच्छा रहता है। स्टील के बर्तन खरीदने वाले का स्वास्थ्य की ओर ध्यान ही नहीं है सिर्फ चमक की और पूरा परिवार ध्यान रखता है । हमारा परिवार की पढ़ाई लिखाई समेत तमाम खर्चे इस मजदूरी पर ही आश्रित है ।

बाईट- रतनलाल ठठेरा
मजदूर

अब देखना यह होगा कि मोदी सरकार छोटे-छोटे मजदूरों के व्यवसाय को बढ़ावा देने का काम कर रही है वहीं भीलवाड़ा में पुश्तैनी पीतल के बर्तन बनाने वाले मजदूरों के लिए कोयला सस्ता करके इन व्यापार को बढ़ावा देने के लिए क्या प्रयास करती हैं या नही।

सोमदत्त त्रिपाठी ईटीवी भारत भीलवाड़ा


Conclusion:
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