भीलवाड़ा. भीलवाड़ा जिले की हुरडा पंचायत समिति क्षेत्र स्थित हिंदुस्तान जिंक लिमिटेड के खनन का खामियाजा (HZL Environmental Norms Violation) किसान और गांव के भोले भाले लोग उठा रहे हैं. इस मामले में NGT के निर्देश इनके जख्मों पर मरहम का काम कर रहे हैं. दरअसल, पर्यावरण नियमों के उल्लंघन को गंभीर मानते हुए राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण ने हाल ही में 25 करोड़ क्षतिपूर्ति (NGT Slaps Compensation On HZL) का आदेश सुनाया.
NGT ने 3 सदस्यीय कमेटी भी बनाई है. कमेटी क्षेत्र में हुए नुकसान का आंकलन करेगी और किसी अन्य विशेषज्ञ की सहायता से क्षेत्र में निवासियों और मवेशियों के लिए स्वास्थ्य सुधार कार्यक्रम के अलावा मिट्टी और भूजल की गुणवत्ता को सुधारने के लिए एक योजना तैयार कर सकती है.
NGT की समिति: कमेटी में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण मंडल ,राजस्थान प्रदूषण नियंत्रण मंडल और भीलवाड़ा जिला कलेक्टर शामिल होंगे. यह 3 सदस्यीय कमेटी जिंक लिमिटेड क्षेत्र में भूमि, जल को हुए नुकसान का आंकलन कर उसके Restoration यानी पुनर्स्थापना का प्लान तैयार करेगी.
नेता से आम ग्रामीण सब बोले हुआ है गलत: एनजीटी के आदेश के बाद भाजपा जिलाध्यक्ष लादू लाल तेली ने आरोप लगाया कि हिंदुस्तान जिंक लिमिटेड खनन में लगातार पर्यावरण नियमों की अनदेखी करता रहा. इसका असर लोगों के स्वास्थ्य पर पड़ रहा है जो कतई ठीक नहीं है. मुख्य विपक्षी दल के सदस्य हैं तो राज्य सरकार को भी कटघरे में खड़ा करते हैं. कहते हैं- गहरी खुदाई की वजह से किसानों की जमीन खिसक रही है लेकिन जिला प्रशासन और राज्य सरकार आंखें मूंद कर बैठा है.
हुरडा पंचायत समिति क्षेत्र से कांग्रेस के प्रधान कृष्णा सिंह राठौड़ भी मानते हैं कि नुकसान हो रहा है. जो भी निर्णय दिया है वह बहुत ही सही और उचित निर्णय है. हिंदुस्तान जिंक लिमिटेड के खनन से किसान और आमजन परेशान है. कहते हैं कि सरकारी महकमे की उदासीनता के चलते यह समस्या अति गंभीर रूप ले रही है.
एनजीटी के आदेश के बाद ईटीवी भारत की टीम हिंदुस्तान जिंक लिमिटेड क्षेत्र में पहुंची. स्थानीय लोग (Bhilwara Speaks On Hindustan Zinc Limited Issue) साफ कहते हैं हम त्रस्त हैं. किसान सलीम मोहम्मद अपनी सफेद पड़ी भूमि की ओर निराश होकर देखते हैं. कहते हैं कि जमीन के जरिए खनन का प्रदूषित पानी खेत में घुस रहा है इससे जमीन और फसल बर्बाद हो रही है. आरोप लगाते हैं कि कैसे वो इसकी शिकायत जब भी करने गए इन्हें डरा धमका कर लौटा दिया गया.
नुकसान की सीमा नहीं: इस खनन ने पर्यावरण को जो क्षति पहुंची है उसका अंदाजा क्षेत्र के पहाड़ों, नदी-नालों और तालाबों को देखकर लगाया जा सकता है. जिंक परिधी से 5 से 6 किलोमीटर दूर -दूर तक नाडियों (छोटे तालाब), तालाबों का पानी भी खराब हो गया है. खनन क्षेत्र के आसपास बड़े-बड़े पत्थरों के कृत्रिम पहाड़ बन गए हैं.
कृत्रिम पहाड़ पर बनी नाडी से प्रदूषित पानी का प्रतिदिन रिसाव हो रहा है जिससे किसानों की जमीन बंजर हो चुकी है. हिंदुस्तान जिंक लिमिटेड से आगूचा, बराठिया ,रामपुरा ,कोटडी, भोजराज, बडला, हुरड़ा ,भेरू खेड़ा व कोठिया पंचायत क्षेत्र के काफी गांव आते हैं. जिंक में खनन के दौरान फैले प्रदूषण के कारण क्षेत्र के लोगों में दमा और चर्म रोग जैसी बीमारियां भी फैल रही हैं.
विकास तो हुआ ही नहीं: Periphery को सीएसआर फंड से न के बराबर डेवलप करवाया गया है. कुछ गांव तो अभी भी विकास के लिए तरस रहे हैं. हालात ये है कि कई गांवो में सीएसआर फंड से नालियां तक नहीं बनाई गई हैं. पर्यावरण के नाम पर न के बराबर पौधारोपण किया गया है. वहीं खनन के दौरान डस्ट उड़ने से सिलिकोसिस बीमारी भी फैल रही है.
क्या है सिलिकोसिस: सिलिकोसिस (Silicosis) का वर्णन व्यावसायिक बीमारी या खतरे के तौर पर किया जाता है. इससे खदानों, निर्माण कार्यों और कारखानों में कार्यरत अनगिनत श्रमिक धूल के संपर्क में आने से धीरे धीरे मौत की ओर बढ़ते हैं. सिलिकोसिस (Silicosis) इस क्षेत्र में बसे आम लोगों पर भी विपरीत असर डाल रही है.
क्या कहता है प्रशासन: एनजीटी की 3 सदस्यीय टीम में भीलवाड़ा जिला कलेक्टर आशीष मोदी भी शामिल हैं. जो कहते हैं कि एनजीटी के आदेश की पूर्ण पालना करवाई जाएगी. तकलीफों पर गहनता से विचार होगा और इसके लिए जिला स्तर पर कार्य करवा कर सकारात्मक काम करेंगे.
एनजीटी ने आदेश जारी कर दिया है अब गेंद प्रशासन के पाले में है. सबको न्याय का इंतजार है. उस हानि की भरपाई का जिसका दंश यहां के बांशिदें लम्बे समय से झेल रहे हैं.