भरतपुर. दुनियाभर में पक्षियों के स्वर्ग के रूप में पहचाना जाने वाला केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान जैव विविधता का खजाना है. यहां पक्षियों के साथ ही अन्य जीवों की भी बड़ी संख्या में मौजूदगी है. पूरे प्रदेश में पाए जाने वाले कछुओं की 80% प्रजातियां अकेले केवलादेव उद्यान में मौजूद हैं. इतना ही नहीं यहां सैकड़ों की संख्या में मौजूद कछुओं में से कई कछुओं की उम्र तो 200 वर्ष से भी अधिक बताई जाती है.
उद्यान में कछुओं की ये प्रजातियां: पर्यावरणविद भोलू अबरार प्रजातियों के बारे में बताते हैं. कहते हैं कि प्रदेश में कछुओं की 10 प्रजातियां पाई जाती हैं, जिनमें से अकेले घना में 8 प्रजाति के कछुए मौजूद हैं. इनमें स्पॉटेड पौंड टर्टल, क्राउन्ड रिवर टर्टल, इंडियन रुफ्ड टर्टल, इंडियन सॉफ्टशेल टर्टल, इंडियन पिकॉक सॉफ्टशेल टर्टल, इंडियन फ्लेपशेल टर्टल, इंडियन टेंट टर्टल और इंडियन स्टार टर्टल शामिल हैं.
इसलिए इतनी अच्छी संख्या: भोलू अबरार ने बताया कि उद्यान में मौजूद कछुओं (Tortoise World In Bharatpur) पर जाने माने पर्यावरणविद एस भूपति ने अध्ययन किया था. उद्यान में कछुओं के अनुकूल सभी भौगोलिक और मौसमी परिस्थिति मौजूद हैं. साथ ही इनका आहार भी भरपूर मात्रा में उपलब्ध है. उद्यान के तालाब और यहां की दलदली भौगोलिक परिस्थिति कछुओं के काफी अनुकूल है.
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घना के ये 5: घना में वैसे तो प्रमुख तौर पर 8 प्रजातियां हैं (8 turtle Specie in Ghana) इनमें से 5 के बारे में आपको बताते हैं. इन पांच के अनुकूल भौगोलिक परिस्थिति यहां पर है. कौन से हैं ये 5 और क्या है इनकी खासियत आइए जानते हैं-
इंडियन सॉफ्टशेल टर्टल : ये नदियों एवं तालाबों में पाए जाने वाली नरम खोल की कछुआ प्रजाति है. ये प्रजाति सड़े गले मांस एवं पानी में पाए जाने वाले पौधों के साथ में जलीय वनस्पती, मछलियों, अन्य कछुओं की हैचरी व जलीय पक्षियों का शिकार करती है. ये ऐसी प्रजाति है जो और नदी के पानी को साफ करने में मदद करती है.
इंडियन पीकॉक सॉफ्ट शेल टर्टल : नदियों एवं तालाबों में पाए जाने वाली नरम खोल की एक और कछुआ प्रजाति है. ये मछली एवं घोंघे खाते हैं. इनके खोल पर 4 से 5 गोल निशान देखे जा सकते हैं. ये प्रजाति राजस्थान में केवलादेव राष्ट्रीय वन्य जीव अभ्यारण्य एवं चम्बल नदी के कुछ हिस्सों में पाई जाती है.
स्पॉटेड पॉन्ड टर्टल : ये झीलों और तालाबों में पाए जाने वाली सख्त खोल की एक छोटी कछुआ प्रजाति है. इसका रंग काला होता है और इसके ऊपर पीले डॉट्स भी होते हैं. ये मछली,घोंघे, घास, फल एवं जलकुम्भी खाते हैं.
क्राउंड रिवर टर्टल : ये नदी, तालाब और छोटी नदी शाखाओं में पाई जाने वाली सख्त खोल की एक बड़ी प्रजाति है. इसका रंग काला होता है. इसके मुंह पर 4 पीली-नारंगी रंग की धारियां देखी जा सकती हैं. ये शाकाहारी प्रजाति होती है और ये सब्ज़ी, फल, आदि खाते हैं.
इंडियन रूफड टर्टल : ये कछुए ठहरे हुए पानी वाली नदियों व नालों में पाए जाती है. इस प्रजाति के कई कछुए एक साथ देखे जा सकते हैं. ये एक सख्त खोल की छोटी प्रजाति का कछुआ है.
उद्यान में स्थित सीताराम की बगीची किए तालाब में सैकड़ों की संख्या में कछुआ मौजूद हैं. यहां आने वाले पर्यटक इनको आटे की गोली खिलाना नहीं भूलते. मंदिर पर मौजूद पुजारी जैसे ही आओ आओ की आवाज लगाता है, तालाब के कछुए सीढ़ियों की तरफ दौड़े चले आते हैं. बताया जाता है कि यहां पर मौजूद कछुओं में कई कछुए तो 200- 200 वर्ष से भी अधिक उम्र के हैं.