भरतपुर. योग और प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति में अपनी सेवाएं देकर नाम कमा चुके डॉ. वीरेंद्र अग्रवाल (Yoga and Naturopathy Dr Virendra Agarwal) लोगों को स्वास्थ्य लाभ पहुंचाने के साथ ही शिक्षा की रोशनी भी फैला रहे हैं. शहर के रणजीत नगर के स्वास्थ्य मंदिर में वह न केवल लोगों का योग और प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति से लाभ पहुंचा रहे हैं बल्कि यहां कचरा बीनने वाले गरीब बच्चों को निशुल्क शिक्षा भी उपलब्ध करा रहे हैं. कोरोना काल में शुरू किए इस सफर में अब तक स्वास्थ्य मंदिर में कचरा बीनने वाले 275 बच्चों को निशुल्क शिक्षा उपलब्ध कराई जा चुकी है. पेशे से चिकित्सक होने के साथ ही डॉ. वीरेंद्र एक शिक्षक की भूमिका भी उसी मनोवेग से निभाते हैं.
शिक्षक दिवस पर आज डॉ. वीरेंद्र के इस अद्भुत सफर और उनके कार्यों में बारे में हम उन्हीं से कुछ बातें करते हैं. डॉ. वीरेंद्र अग्रवाल ने बताया कि वह मूलतः अपने स्वास्थ्य मंदिर (Swasthya Mandir Bharatpur) में लोगों का योग एवं प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार करते हैं. कोरोना संक्रमण काल में उन्होंने झुग्गी-झोपड़ी में जाकर गरीब लोगों को निशुल्क भोजन वितरण करने का कार्यक्रम चलाया था. उसी दौरान एक दिन उनके स्वास्थ्य मंदिर में एक 3 वर्ष की बालिका अपनी नानी के साथ भीख मांगने आई. उसकी स्थिति देखकर पहले उस बच्ची को हमने अपने यहां निशुल्क शिक्षा देना शुरू किया.
डॉ. वीरेंद्र अग्रवाल ने बताया कि एक बच्ची को शिक्षा देने की शुरुआत के साथ हमने इसे मुहिम की तरह आगे बढ़ाया. इसके बाद झुग्गी-झोपड़ियों में हमने कचरा बीनने वाले ऐसे बच्चों को चिन्हित किया जो कभी स्कूल नहीं गए. इस अभियान के तहत बच्चों को हम निशुल्क शिक्षा से जोड़ते गए. बीते 2 वर्ष में 275 बच्चों को हम शिक्षा से जोड़ चुके हैं.
डॉ. वीरेंद्र अग्रवाल ने बताया कि हम स्वास्थ्य मंदिर में ही संचालित स्कूल में बच्चों को एलकेजी और यूकेजी स्तर की निशुल्क शिक्षा देते हैं. ये वे बच्चे हैं जो कचरा बीनने का काम कर रहे थे और कभी स्कूल नहीं गए थे. इसके बाद भामाशाहों की मदद से बच्चों को पहली कक्षा में अन्य स्कूलों में प्रवेश दिला देते हैं. फिलहाल स्वास्थ्य मंदिर में 86 बच्चों को निशुल्क शिक्षा दी जा रही है.
परिजनों को भी मदद
डॉ. वीरेंद्र अग्रवाल ने बताया कि स्वास्थ्य मंदिर में पढ़ने वाले बच्चों को निशुल्क पुस्तक, यूनिफॉर्म, ब्रेकफास्ट, दोपहर का खाना तक उपलब्ध कराया जाता है. इतना ही नहीं, कई बार तो इन गरीब बच्चों के घर पर भी भामाशाहों की मदद से जरूरत का सामान उपलब्ध कराया जाता है. डॉ. वीरेंद्र अग्रवाल ने बताया कि इन बच्चों को शिक्षा के साथ ही हमारी संस्कृति, संस्कार, संगीत और रुचि अनुसार खेलों का भी प्रशिक्षण दिया जाता है. हमारा उद्देश्य है कि यह बच्चे शिक्षा से जुड़कर समाज की मुख्यधारा से जुड़ें और आत्मनिर्भर बनें.